Thursday, July 18, 2013

धर्म आधारित भेदभाव समाप्त हो

पाकिस्तान के आम लोग भारत से शांतिपूर्ण संबंध चाहते हैं 

पाकिस्तान की मेरी हालिया (1828 फरवरी 2013) 11दिवसीय यात्रा के दौरान मैंने यह महसूस किया कि जहां तक भारत के प्रति रूख का प्रश्न है, वहां का समाज दो स्पष्ट तबकों में बंटा हुआ है। एक तबका उन लोगों का है जो भारत व पाकिस्तान के बीच दोस्ती चाहते हैं और दूसरी तरफ वे लोग हैं जो वहां भारत के विरूद्ध घृणा फैलाकर अपना दबदबा कायम रखना चाहते हैं। ये लोग भारत के प्रति दुर्भावना तो रखते ही हैं, वे अपने कारनामों से अपने देश को भी कमजोर कर रहे हैं। पहले तबके में हैं वहां के बुद्धिजीवी, कालेज और विश्वविद्यालयों के शिक्षक, एन.जी.ओ. के कार्यकर्ता, शायर, कहानीकार व अन्य रचनाधर्मी। यह वह वर्ग है जो पाकिस्तान में व्याप्त अशांति से परेशान है, जो चाहता है कि धर्म आधारित भेदभाव समाप्त हो। 

मैं पाकिस्तान, उस सम्मान को ग्रहण करने गया था, जो अमरीका की एक संस्था ने मुझे प्रदान किया था। यह संस्था दक्षिण एशिया में शांति और सद्भाव कायम करने के लिये प्रयासरत है। अन्यों के अतिरिक्त यह सम्मान, पाकिस्तान की एक महिला को भी दिया गया था। इस महिला का नाम है शीमा पाकिस्तान की एक प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं। वे भारतीय शास्त्रीय नृत्यकला में पारंगत हैं। वे स्वयं तो नृत्य करती ही हैं पाकिस्तान की बेटियों को भी नृत्य का प्रशिक्षण देती हैं। पाकिस्तान के तानाशाह जियाउल-हक ने उन्हें नृत्यकला सिखाने से मना किया था परन्तु वे तानाशाह के सामने नहीं झुकीं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के बड़े लोग तो मुजरा सुनते हैं और उन्हें नृत्य करने से मना करते हैं। तब से लेकर आज तक नृत्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता में किसी प्रकार की कमी नहीं आयी है। 

सम्मान प्रदान करने के लिये 19 फरवरी को करांची में एक समारोह आयोजित किया गया था। समारोह में करांची के अनेक जानेमाने लोगों ने भाग लिया। समारोह में सभी वक्ताओं ने भारतपाक मित्रता और दोनों देशों के बीच शांति की आवश्यकता पर जोर दिया। समारोह में करांची के अनेक साहित्यकारों, शायरों और बुद्धिजीवियों ने अपने विचार प्रगट किये। सभी वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि यदि दोनों देशों के आम लोग आपस में घुलतेमिलते रहेंगे तो यह शांति की सबसे बड़ी गारंटी होगी। 

अमरीकी संस्था ॔एसोसिएशन फार कम्यूनल हार्मोनी॔ की ओर से प्रीतम रोहिला ने सम्मान प्रदान किया। रोहिला ने बताया कि बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद, अमरीका में निवासरत भारतपाक मूल के अनेक व्यक्तियों ने इस संस्था की स्थापना की। यह संस्था दक्षिण एशिया, विशेषकर भारत एवं पाकिस्तान के ऐसे लोगों को सम्मानित करती है जो अपनेअपने देशों में सौहार्द और दोस्ती के लिये काम करते हैं और जो यह मानते हैं कि पाकिस्तान व भारत के मधुर संबंध, दक्षिण एशिया में शांति की पहली शर्त है। रोहिला ने कहा कि उनकी व उनके साथियों की यह मान्यता है कि सरकारें चाहे कोशिश करें या न करें, आम जनता को शांति के लिये प्रयासरत रहना चाहिये। करांची के जानेमाने चिंतक करामत अली ने कहा कि दक्षिण एशिया के सभी देशों को एक संधि पर हस्ताक्षर करना चाहिये, जिसके अंतर्गत वे आपस में युद्ध न करने का वचन दें। उन्होंने कहा कि इन देशों को अपनी सेनाओं और रक्षा बजट में कटौती करनी चाहिये। वीजा जारी करने में उदारता बरती जाये। 

कार्यक्रम में बोलते हुये सुप्रसिद्ध शायरा फहमीदा रियाज ने कहा कि भारत व पाकिस्तान के बीच बेहतर संबंधों से अतिवादी हिंसक गतिविधियां समाप्त हो सकती हैं। कार्यक्रम को पाकिस्तान के एक और चिंतक एवं सामाजिक सुधारक डॉ. बी.एम. कुट्टी ने भी संबोधित किया। डॉ. कुट्टी उन लोगों में से हैं जो पिछले 40 वर्षों से पाकिस्तान के मजदूरों के कल्याण के लिए प्रयासरत हैं और इस उद्धेश्य से एक संस्था भी चला रहे हैं।
 
मैंने कार्यक्रम में कहा कि धर्मनिरपेक्षता ही दक्षिण एशिया के देशों की समस्याओं का प्रभावी हल है। मैंने कहा कि पाकिस्तान के निर्माता कायदे आजम जिन्ना भी पाकिस्तान को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाना चाहते थे। आज पाकिस्तान की बहुसंख्यक जनता भी यही चाहती है। मैंने कहा कि इतिहास, पाकिस्तान के उन शासकों को कभी माफ नहीं करेगा जिन्होंने जिन्ना के इस सपने को चूरचूर कर दिया। मैंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता के बारे में जानबूझकर दुष्प्रचार किया जाता है। भारत में भी ऐसे लोग और संगठन हैं जो धर्मनिरपेक्षता को बदनाम करते हैं। शीमा किरमानी ने इस अवसर पर अंग्रेजी की कविता भी पॄकर सुनाई जिसका भावार्थ था 

"मैं तुम्हारे युद्ध के नगाड़ों पर नहीं नाचूंगी, 
मैं घृणा की धुन पर नहीं नाचूंगी। 
मैं तुम्हारे लिए किसी को नहीं मारुंगी। 
मैं तुम्हारे लिए अपनी जान नहीं दूंगी। 
मैं तुम्हारे बमों की आवाज पर नहीं नाचूंगी। 
परन्तु मैं नाचूंगी, 
हां मैं नाचूंगी, विरोध करने के लिये, 
मैं नाचूंगी, 
अस्तित्व में बने रहने के लिए 
हां मैं नाचूंगी, शांति के लिये 
जब तक वह स्थापित नहीं हो जाती।’’ 

करांची प्रवास के दौरान हमें वहां के विश्वविद्यालय जाने का अवसर मिला। विश्वविद्यालय में हमने अन्तर्राष्ट्रीय संबंध विषय के एम.ए. के विद्यार्थियों को संबोधित किया। एम.ए. क्लास में कम से कम 100 विद्यार्थी थे। विद्यार्थियों में छात्राओं का बहुमत था। कम ही छात्रायें बुर्का पहिने थीं। यद्यपि उनमें से कुछ अपना सिर के थीं। मैंने कक्षा में काफी अनुशासन पाया। हाजिरी लगने के बाद एक छात्रा ने क्लासरूम में प्रवेश करना चाहा। परन्तु क्लास के प्रोफेसर ने उससे कहा तुम लेट हो, भीतर नहीं आ सकती। इसी तरह क्लास के दौरान एक युवक आया और उसने प्रोफेसर से अनुरोध किया कि वे क्लास छोड़ दें ताकि छात्र-छात्रायें क्रिकेट मैच देख सकें। इस पर प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम क्लास के भीतर कैसे आये। क्लास जारी रहेगी।

मेरे संक्षिप्त भाषण के बाद छात्रछात्राओं ने अनेक प्रश्न पूछे। उनमें एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि भारत ने अभी तक पाकिस्तान के अस्तित्व को क्यों नहीं स्वीकारा है? मैंने उन्हें बताया कि यह आरोप सरासर बेबुनियाद है। मैंने कहा कि वैसे यह बात सच है कि हमारे देश के सबसे बड़े नेता, जिन्हें हम राष्ट्रपिता कहते हैं, देश के विभाजन के विरोधी थे। वे कहते थे कि भारत का विभाजन केवल उनकी मृत देह पर होगा। परन्तु जब पाकिस्तान बन ही गया तो गांधीजी ने भी पाकिस्तान के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया था। विभाजन के बाद भारत को केन्द्रीय बैंक के रिजर्व कोष में पाकिस्तान के हिस्से के बतौर उसे 55 करोड़ रूपये देना बाकी रह गया था। गांधी जी भारत सरकार को बार बार कहते थे कि पाकिस्तान की उधारी शीघ्र चुकाओ। परन्तु उधारी चुकाने में देरी हो रही थी। इस पर भारत सरकार पर दबाव बनाने के लिये महात्मा गांधी ने अनशन प्रारंभ कर दिया। इसके बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपये दे दिये। गांधी जी का रवैया देश के कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगा। ऐसे लोगों में नाथूराम गोडसे भी शामिल था। पाकिस्तान को उसका वाजिब हक दिलवाने का गांधीजी का यह प्रयास कुछ लोगों को मुसलमानों और पाकिस्तान का तुष्टिकरण लगा। यही वे लोग थे जिन्होंने बाद में गांधी जी की हत्या की। इस तरह, हमारे देश के सबसे बड़े नेता ने पाकिस्तान के हित की खातिर अपनी जान दे दी। पाकिस्तान को मान्यता देने का इससे बड़ा सुबूत और क्या हो सकता है।
 
अपने भाषण के अंत में मैंने कहा कि मेरा एक सपना है जो मैं उनसे बांटना चाहता हूँ। मैंने उन्हें याद दिलाया कि अमरीका के एक बड़े नेता थे डॉ. मार्टिन लूथर किंग "जूनियर"। वे वहां के काले लोगों के अधिकारों के लिये संघर्ष करते थे। उन्होंने एक दिन एक जोशीला भाषण दिया। अपने भाषण के बीच में वे बारबार दुहराते थे कि ’आई हेव ए ड्रीम॔ (मेरा यह सपना है)। 

मैंने कहा कि मेरा भी एक सपना है। और वह यह कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश मिलकर एक महासंघ बना लें। ठीक वैसे ही जैसे यूरोप के देशों ने मिलकर यूरोपीय संघ बनाया है। यूरोप के देशों ने आपस में अनेक युद्ध लड़े। इनमें दो महायुद्ध शामिल हैं। इन युद्धों में करोड़ों लोगों की जान गयी और अरबों की संपत्ति स्वाहा हो गई। इतनी बड़ी जनधन की हानि के बाद अब यूरोपीय देशों ने यह निर्णय किया है कि वे आपस में युद्ध नहीं लड़ेंगे। क्या हम भी युद्ध लड़तेलड़ते थक नहीं गये हैं? पिछले 66 वर्षों में हमने स्वयं का कितना नुकसान किया है। इन वर्षों में हमने अपनी सीमाओं की रक्षा पर जितना खर्च किया है, यदि वह खर्च नहीं हुआ होता तो शायद हम तीनों देशों का एक भी व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे रही रह जाता। हम महासंघ बनायें, युद्ध न करने की कसम खायें, आपस में व्यापार करें, बिना वीजा के तीनों देशों में कहीं भी आजा सकें। मैंने कहा कि स्वार्थी तत्व ही हमें आपस में लड़ाते हैं। इन स्वार्थी तत्वों में पश्चिम के वे देश शामिल हैं जो पहिले ऐसी परिस्थिति पैदा करते हैं जिससे हम आपस में लड़ें और लड़ाई के लिये वे अपने उत्पादित किये गये हथियार हमें बेचते हैं। हमें इन चालाकियों को समझना चाहिये और आपस में न लड़ने की कसम खाना चाहिये। 

इतना कहने के बाद मैंने विद्यार्थियों से पूछा कि क्या वे मेरे इस सपने को पूरा करने में सहायक होंगे। क्या वे अपने देश में ऐसे प्रयास करेंगे जिससे युद्ध समर्थक लोगों की आवाज दबे? इस पर सभी छात्रछात्राओं ने जोरदार तालियां बजाकर मेरे सपने को पूरा करने का आश्वासन दिया। उनके इस समर्थन से यह स्वयंसिद्ध कि पाकिस्तान के आम नागरिक शांति चाहते हैं।

-एल. एस. हरदेनिया, बृहस्पतिवार, 28 मार्च 2013
स्त्रोत : लो क सं घ र्ष !

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