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Monday, February 9, 2015

यदि भाजपा मांझी को समर्थन देती है तो मांझी का अत्यंत बुरा अंत तय है।

यदि भाजपा #मांझी को समर्थन देती है तो मांझी का अत्यंत बुरा अंत तय है।

बिहार के सबसे विवादास्पद मुख्यमंत्री बना दिए गए #जीतनराम मांझी जनता दल में शामिल होने से पहले कांग्रेसी हुआ करते थे। वह डॉ. जगन्नाथ मिश्र की राज्य सरकार में राज्यमंत्री भी रहे। जनतादल में बिखराव के बाद में जीतनराम मांझी लालू प्रसाद के साथ गए और राष्ट्रीय जनता दल की सरकार मे मंत्री रहे। फिर वह लालू को छोड़ कर नीतीश के साथ हो गये और उनकी सरकार में मंत्री बने। मुख्य मंत्री बनने से पूर्व तक मध्य बिहार में जीतनराम मांझी की छवि एक सीधे-सादे गैर-विवादास्पद राजनेता की रही है। 

जीतनराम मांझी के बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में लगभग आठ महिने के कार्यकाल को देखें तो अपने दामाद को मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थापित कराने के अलावा उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसे गरिमाहीन या अनैतिक कहा जा सके। दामाद के मामले में भी उन्होंने फ़ौरन कार्रवाई की और उन्हें पदमुक्त कर दिया। 

मनुवादी मीडिया ने मांझी के हर एक सच्चे बयान को विवादित बतलाने और बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। #जनता दल (यू) के नेताओं-विधायकों की मांझी के बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया को भी मीडिया द्वारा ऐसे पेश किया गया, जैसे कि मांझी नीतीश के खिलाफ या सवर्णों और आर्यों के बारे में सच्ची बात बोलकर अपराध कर रहा हैं। 

इस प्रष्ठभूमि में देखा जाए तो बिहार के मुख्‍यमंत्री जीतनराम मांझी का कद केवल बिहार के #महादलितों में ही नहीं, बल्कि बहुत कम समय में देशभर के #दलितों, #पिछड़ों और #आदिवासियों में भी तेजी बढ़ा। जिसे नीतीश और जनता दल (यू) ने बगावत करार दिया। 

जीतनराम मांझी के बगावती तेवर और नीतीश के मुख्‍यमंत्री बनने की जल्‍दबाजी ने 'जनता परिवार' के एकीकरण का सारा खेल बिगाड़ दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आपात स्थिति में नीतीश कुमार ने जिस मांझी को सरकार रूपी नैया की पतवार सौंपी थी, वही आज बगावती सुर अलापकर नैया मझधार में डुबोने पर क्‍यों अमादा हैं?

सारा देश जनता है कि लोकसभा चुनाव में जनता दल (यू) के अत्यधिक घटिया प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 19 मई, 2014 को अपनी कार से जीतन राम मांझी के साथ राजभवन पहुंचे थे। सरकार की कमान संभालने के लायक उन्होंने जीतन राम मांझी को ही समझा था। वही मांझी आज उनके लिए खतरा दिखाई दे रहा है। लेकिन इसके पीछे के कारणों की पड़ताल करना भी जरूरी है। 

मांझी ने 20 मई, 2014 को 17 अन्य मंत्रियों के साथ मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। नीतीश ने कहा था कि मांझी सरकार चलाएंगे और वह (नीतीश) संगठन का काम देखेंगे। सवाल यह है कि इन आठ महीनों में ऐसा क्या हो गया? क्‍यों बागी हुए जीतनराम मांझी, जानिये ये रहे असली कारण :-

-नीतीश मांझी को रिमोट से चलाना चाहते थे जो मांझी को कतई भी मंजूर नहीं था। 

-बिहार के भाजपा के कद्दावर नेता सुशील कुमार मोदी सारे विकल्प खुले रहने के बयान देकर भाजपा के समर्थन के स्पष्ट संकेत दिए। दूसरी और उमा भारती ने अपने पटना दौरे के दौरान मांझी से मुलाकात की थी और उन्हें सार्वजनिक रूप से 'गरीबों का मसीहा' बताया था। जिससे मांझी भाजपा के संपर्क में माने जाने लगे।

-राजनीति के जानकार कहते हैं कि इतने दिनों में मांझी की तेजी से महत्वकांक्षा बढ़ती  गई है। प्रारंभ से ही मांझी महादलित नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने में लगे थे। मांझी बहुत कम दिनों में अपने समाज के नेता बन गए। कई लोग मांझी के पीछे खड़े नजर आते हैं। इसमें कई मंत्री और विधायक भी शामिल हैं। ऐसे में मांझी का हौसला बुलंद हुआ।

-मांझी के सही और कडवे बयानों से जद (यू) नेतृत्व परेशान हो चुका था। ऐसे में पार्टी नेतृत्व ने मांझी से जब इस्तीफा मांगा तो मांझी बागी से दिखने लगे।

-मांझी की नाराजगी लगातार उनके कामों में हस्तक्षेप को लेकर भी है। पिछले दिनों उनके काम को लेकर पार्टी के प्रवक्ताओं द्वारा की गई बयानबाजी से मांझी खासा नाराज हुए थे। इसके बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के स्थानांतरण को भी दो मंत्रियों ने नियम विरुद्ध बताते हुए मुख्य सचिव से शिकायत की थी।

-कुछ सूत्रों का यह दावा है कि कुछ दिनों पूर्व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद ने भी मांझी को खरी-खोटी सुनाई थी। इस कारण मांझी को लेकर जनता दल (यू) में नाराजगी काफी दिनों से थी, परंतु पार्टी अध्यक्ष शरद यादव द्वारा उनसे बिना पूछे पार्टी विधानमंडल दल की बैठक बुलाना आग में घी का काम कर गया और जदयू की नाव हिचकोले खाने लगी। 

अब देखना यह है कि मांझी और जनता दल (यू) की यह नाव किस किनारे लगती है। यदि भाजपा मांझी को समर्थन देती है तो वो मांझी का अत्यंत बुरा अंत तय है। क्योंकि भाजपा रामबिलास पासवान जैसो की भांति मांझी को भी अपनी छत्र छाया में लाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाली। आखिर भाजपा का मकसद दलित और आदिवासियों को नेतृत्व विहीन करना जो है!-डॉ. #पुरुषोत्तम मीणा '#निरंकुश',