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Thursday, March 3, 2016

पंतजलि द्वारा कैंसर का भय दिखाना क्या नैतिक है? क्या कानून सम्मत है?

पंतजलि द्वारा कैंसर का भय दिखाना
क्या नैतिक है? क्या कानून सम्मत है?
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
आज 03 मार्च, 2016 को राजस्थान पत्रिका के जयपुर संस्करण के मुखपृष्ठ पर एक विज्ञापन के शीर्षक ने चौंका दिया। पतंजलि की ओर से जारी विज्ञापन में कहा गया है कि 'आपके खाने के तेल में कैंसर कारक तत्वों की मिलावट तो नहीं—जरा सोचिए' यह 'जरा सोचिये', जरा सी बात नहीं, बल्कि भयानक बात हो सकती है और उपभोक्ताओं के विरुद्ध भयानक षड़यंत्र हो सकता है? लोगों को 'जरा सोचिये' के बहाने ​कैंसर का भय दिखलाकर पतंजलि द्वारा अपना सरसों का तेल परोसा जा रहा है। क्या यह सीधे-सीधे आम और भोले-भाले लोगों को भय दिखाकर अपना तेल खरीदने के लिये मानसिक दबाव बनान नहीं? क्या यह उपभोक्ताओं की मानसिक ब्लैक मेलिंग नहीं है?
दिमांग पर जोर डालिये रामदेव वही व्यक्ति है—जो 5-7 साल पहले अपने कथित योगशिविरों में जोर-शोर से योग अपनाने की सलाह देकर घोषणा करता था कि उनके योग के कारण बहुत जल्दी डॉक्टर और मैडीकल दुकानदार मक्खी मारेंगे। वर्तमान हकीकत सबके सामने है, कोई भी मक्खी नहीं मार रहा। हां यह जरूर हुआ है कि इन दिनों कथित योगशिविरों में योग कम और पतंजलि की दवाईयों का विज्ञान अधिक किया जाता है। इन दिनों शिविरों में योग के बजाय हर बीमारी के लिये केवल पतंजलि की दवाई बतलाई जाती है। जिसका सीधा सा मतलब यही है कि रामदेव का कथित योग असफल हो चुका है। रामदेव के योग शिविरों में सरकार के योगदान की तेजी के साथ-साथ वृद्धि हो रही है, लेकिन योग निष्प्रभावी हैं, क्यों रागियों और रोगों में तेजी से बढोतरी हो रही है। रामदेव के शिविरों के नियमित कथित योगी भी डॉक्टरों की शरण में हैं, लेकिन बेशर्मी की हद यह है कि अब लोगों को योग के साथ-साथ पतंजलि के उत्पादों के नाम गुमराह करने के साथ-साथ दिग्भ्रमित भी किया जा रहा है। केवल इतना ही नहीं, डराया और धमकाया जा रहा है। विज्ञापनों से जो संदेश प्रसारित हो रहा है, वह यह है कि पतंजलि के अलावा जितने भी तेल उत्पाद हैं, उनमें कैंसर कारक तत्वों की मिलवाट हो सकती है!
यह सीधे-सीधे भारतीय कंज्यूमेबल मार्केट पर रामदेव का कब्जा करने और कराने की इकतरफा मुहिम है, जिसमें केन्द्र और अनेक राज्यों की सरकार के साथ-साथ, बकवासवर्ग समर्थक मीडिया भी शामिल है। मेरा मानना है कि अब आम व्यक्ति को जरा सा नहीं, बल्कि गम्भीरता से इस बात पर भी गौर करना चाहिये कि पहले योग के नाम पर और अब उत्पादों की शुद्धता के नाम पर जिस प्रकार से उपभोक्ताओं को गुमराह और भयभीत किया जा रहा है, उसका लक्ष्य और अंजाम क्या हो सकता है? यह भी विचारणीय है कि रामदेव किस विचारधारा के समर्थक हैं?
अन्त में सबसे महत्वपूर्ण बात : कानूनविदों को इस बात का परीक्षण करना चाहिये कि उपभोक्ता अधिकार संरक्षण अधिनियम तथा विज्ञापन क़ानून क्या इस प्रकार से उपभोक्ताओं को भ्रमित और गुमराह करके या डराकर विज्ञापन के जरिये कैंसर का भय परोसा जाना क्या नैतिक रूप से उचित है? क्या ऐसा विज्ञापन करना कानून सम्मत है?

जय भारत। जय संविधान।

नर-नारी सब एक समान।।
लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
9875066111/03.03.2016/05.42 PM
@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : होम्योपैथ ​चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। +राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ 
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Friday, March 22, 2013

संजय दत्त को बचाना आग से खेलना है!

संजय दत्त को जिस अपराध में सजा दी गयी है, उसमें उसे पहले ही विशेष कोर्ट द्वारा बहुत ही कम सजा दी गयी, अन्यथा देश के दुश्मनों और आतंकियों से सम्बन्ध रखने और उनसे गैर-कानूनी तरीके से घातक हथियार प्राप्त करने और उन्हें उपने घर में रखने। आतंकियों के बारे में ये जानते हुए कि वे आतंकी हैं, उनसे गले लगकर मिलने जैसे गम्भीर आरोपों में यदि अन्य कोई समान्य व्यक्ति फंसा होता तो निश्‍चय ही उसे भी आतंकी करार दे दिया गया होता। ऐसे में मात्र गैर-कानूनी रूप से हथियार रखने के छोटे जुर्म के लिये ही संजय दत्त को दोषी ठहराया जाना अपने आप में अनेक प्रकार के सवाल खड़े करता है? यदि संजय दत्त के स्थान पर कोई संजय खान रहा होता तो और चाहे उसकी ओर से कितने ही समाज सेवा के काम किये गये होते उसे अदालत के साथ-साथ समाज की ओर से भी कभी भी नहीं बक्शा जाता।

Sunday, March 3, 2013

बलात्‍कार के कानून का दुरूपयोग!

राजीव कुमार

बलात्‍कार का कानून इसलिये बनाया गया है कि किसी लड़की के साथ बलात्‍कार हुआ है तो उसे इंसाफ मिले, लेकिन इसका मतलब यह नही कि इस कानून की आड़ में लड़की या पुलिस किसी बेगुनाह को फंसाये या उसके परिवार से ब्‍लैक‍मेलिंग करे। इसलिये कानून के रखवालों को चाहिये कि वे इसके दुरूपयोग करने वाले को सख्‍त से सख्‍त सजा का प्रावधान करें वर्ना कुछ दुष्‍ट महिलाओं व पुलिस के लिये यह पैसा उगाहने का एकमात्र साधन बनकर रह जायेगा।

ज्ञात हो कि श्री लक्ष्‍मीनारायण गुप्‍ता, निवासी खलीलाबाद, जिला संत कबीर नगर, उ.प्र. के पुत्र दीपक गुप्‍ता से धर्मेश गुप्‍ता (काल्‍पनिक नाम), निवासी एफ-67, गली नं0 2, सुभाष विहार, उत्‍तरी घोण्‍डा, दिल्‍ली-53 की पुत्री अनन्‍या (काल्‍पनिक नाम) के विवाह की बात चली, किन्‍तु समगोत्र होने से वर पक्ष ने रिश्‍ता करने से इंकार कर दिया।

धर्मनाथ गुप्‍ता और उसकी पुत्री अनन्‍या ने रिश्‍ता न होने पर काफी तिलमिला गये और दीपक गुप्‍ता को फर्जी मामले में जेल भेजने की धमकी दी। आगे अनन्‍या और उसके पिता ने यह धमकी दी थी कि आपने शादी तोड़ी है इसके एवज में हमें 15 लाख रूपये दीजिये, वर्ना हम आप सबको फंसवा देंगे हमारी पुलिस में काफी पकड़ है।

अनन्‍या गुप्‍ता ने 1 जनवरी 2013 को दिल्‍ली के थाना मण्‍डावली में प्राथमिकी संख्‍या 3/2013 दर्ज कराई कि 24 जून 2012 को दीपक गुप्‍ता उनके घर आया और 25 जून 2012 को अक्षरधाम मन्दिर घुमाने के बहाने अपने जीजा अजय गुप्‍ता के साथ एक कमरे पर ले गया जहां दोनों ने पेप्‍सी में नशीला पदार्थ पिलाकर बेहोश किया इसके बाद दोनों ने बारी-बारी से उसके साथ बलात्‍कार किया तथा वीडियो भी बनाया।

इसके बाद आनन-फानन में मण्‍डावली थाने की भ्रष्‍ट पुलिस ने बलात्‍कार के आरोप में दीपक गुप्ता और अजय गुप्‍ता को बिना किसी सबूतों की जांच-पड़ताल किये बिना गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया, दोनों आरोपी अभी तिहाड़ जेल में हैं। वहीं पुलिस किसी भी सबूत को देखना नही चाहती है यहां तक कि डीसीपी तक भी सबूत को बिना जांचे-परखे उसे फर्जी बता रहे हैं। इसका क्‍या मतलब हो सकता है? इसका तो यही मतलब निकलता है कि लड़की के पक्ष ने एक मोटी रकम देकर इन पुलिस वालों की तोंदे फुला दी तभी तो वे आरोपी पक्ष के कोई बेगुनाही के सबूत को देखना तक भी मुनासिब नही समझ रहे हैं।

सही मायने में देखा जाय तो दीपक गुप्‍ता 24 जून, 2012 को संत कबीर नगर, उ0प्र0 में एक रिश्‍तेदार की शादी में था जिसका प्रमाण शादी की वीडियो, तस्‍वीरें और शादी का प्रमाण पत्र है। तो लड़की का झूठ का पर्दाफाश यहीं हो जाता है कि वो पूरी तरह से गलत आरोप लगा रही है। यदि लड़की के साथ बलात्‍कार हुआ तो छह महीने बाद क्‍यों पुलिस को जानकारी दी, अगर उसे अपने बनाये एमएमएस का डर था तो वह डर छह महीने बाद कैसे समाप्‍त हो गया। वहीं बलात्‍कार का दूसरा आरोपी अजय गुप्‍ता उस दिन फरीदाबाद, हरियाणा स्थित अपने घर में अपनी पत्‍नी के पास था। इसलिये प्रथम दृष्‍टया बलात्‍कार का यह आरोप पूरी तरह से झूठा नजर आता है।
सच्‍चाई कुछ और ही है

अनन्‍या के साथ बलात्‍कार 25/06/2012 को हुआ। उसने आरोप लगाया कि उसके साथ बलात्‍कार दीपक और उसके जीजा दोनों ने मिलकर किया। उसने प्राथमिकी 01/01/2013 को कराया। आखिर प्राथमिकी दर्ज कराने में इतनी देरी क्‍यों? और तो और छह महीने से ज्‍यादा बीत जाने के बाद वो किसलिये चुप बैठी थी। लड़के पक्ष वालों का कहना है शादी टूटने पर 15 लाख रूपये की मांग परोक्ष रूप से किया गया जिसके न देने पर लड़की ने फंसाया। दूसरी मांग लड़की वालों ने यह की कि हमें दिल्‍ली में 50 गज जमीन दे दी जाये और अब लड़की पक्ष वाले मामला बिगड़ता देख कह रहे हैं कि लड़का शादी करले हम पूरा मामला वापस ले लेंगे।

इधर दीपक गुप्‍ता के बेगुनाही का दूसरा सबूत यह है कि उसने आरोप वाले दिन खैलाबाद, संत कबीर नगर के एचडीएफसी के एटीएम से दिन में सुबह 9:06 के करीब 1500 रूपये निकाले थे, उस एटीएम की वी‍डियो फुटेज उसकी बेगुनाही का पुख्‍ता सबूत है। और तो और पुलिस ने बिना किसी सबूतों-सच्‍चाई की जांच-परख के दीपक और अजय को जेल में डाल दिया, इससे यही प्रतीत होता है कि पुलिस अनन्‍या और उसके पूरे परिवार से मिली हुयी है।

इस मुद्दे पर अखिल भारत हिन्‍दू महासभा के दिल्‍ली प्रदेश अध्‍यक्ष रविन्‍द्र द्विवेदी की प्रशंशा करनी चाहिये कि उन्‍होंने इन दो बेगुनाहों को बचाने के लिये 4 फरवरी, 2013 को पुलिस मुख्‍यालय पर प्रदर्शन किया व संबोधित ज्ञापन भी पु‍लिस आयुक्‍त को सौंपा। इसके बाद 18 फरवरी, 2013 को पुन: जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन किया, अपनी गिरफ्तारी दी, तत्‍पश्‍चात प्रधानमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा। 

पुलिस का रवैया बेहद नकारात्‍मक

इस घटना को लेकर पुलिस का रवैया बेहद नकारात्‍मक व शर्मनाक है। जब बलात्‍कार के आरोपी के बेगुनाही के सबूत दिये जा रहे हैं तो पुलिस उन प्रमाणों को क्‍यों नजरंदाज कर रही है? पुलिस लड़की की ही बात क्‍यों सुन रही है? पुलिस एटीएम से निकाले गये पैसे का दिन, समय व वीडियो फुटेज क्‍यों नजरंदाज कर रही है जिसके गर्भ में ठोस सबूत छिपे हैं?

आखिर पुलिस एटीएम के वीडियो फुटेज क्‍यों नही देखना चाह रही है? एटीएम के वीडियो फुटेज से सब दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा। इससे तो एक बात पूरी तरह से साबित हो जाता है कि पुलिस पूरी तरह से लड़की पक्ष से मिली हुयी है और मोटा रिश्‍वत डकारी है जिसके एवज में बलात्‍कार के आरोपी पक्ष के मजबूत व पुख्‍ता सबूतों को पूरी तरह नजरंदाज कर दे रही है। पुलिस बिना किसी प्रमाण के ही दो बेगुनाहों को जेल में इसलिये डाल रखा है क्‍योंकि लड़की ने झूठा आरोप लगाया है, जिसमें पुलिस की पूरी मिलीभगत है। यह पुलिस व दुष्‍ट लड़की का एक ऐसा षडयंत्र है जिसमें बलात्‍कार के कानून का डर दिखाकर भारी धन-दोहन किया जा सके।

दुर्भाग्‍यवश कोई लड़की यदि किसी पर झूठा आरोप मढ़े तो पुलिस बिना किसी तथ्‍यों को देखे बिना उसे तिहाड़ भेज देगी। जबकि होना यह चाहिये था कि पुलिस आयुक्‍त व पूर्वी दिल्‍ली के डीसीपी के समक्ष यह विषय आया तो इसकी निष्‍पक्ष तहकीकात कराना चाहिये था, मगर पुलिस किसी तथ्‍य को बिना जांच कराये ही फर्जी बताने पर आमादा है। छोटे अधिकारी तो छोटे है बड़े अधिकारी भी अपने अविवेक का ही परिचय दे रहे हैं।

कानून का दुरूपयोग करने वालों को सख्‍त सजा होनी चाहिये

बलात्‍कार का कानून इसलिये बनाया गया है ताकि किसी महिला के साथ अन्‍याय न हो, उसे न्‍याय मिले लेकिन यदि इस कानून का दुरूपयोग कोई दुष्‍ट महिला करे तो उसे कठोर से कठोर सजा मिलनी चाहिये ताकि भविष्‍य में इस तरह के कानून का कोई दुरूपयोग करने का दुस्‍साहस न कर सके। 

बलात्‍कार का झूठा केस बनाने वाले ऐसे पुलिस अधिकारियों को भी सख्‍त सजा मिलनी चाहिये जिससे वे भविष्‍य में इस तरह की गलतियों का पुनरावृत्ति न कर सके आने वाले पुलिस अधिकारी उससे सबक लेते हुये उसका दुरूपयोग करने से परहेज करें।

जरा सोचें कि कल यदि दीपक गुप्‍ता व अजय गुप्‍ता यदि बेगुनाह छूट जाते हैं तो क्‍या उनकी पूरे समाज में जो सम्‍मान की क्षति हुयी है, क्‍या उसे भरा जा सकता है? आरोपी युवक व उनका पूरा परिवार जिस मानसिक पीड़ा के दौर से गुजर रहा है क्‍या उसकी भरपायी हो पायेगी? कानून के रखवालों, कानून के बनाने वालों को एक बार सोचना होगा कि इस तरह के कानून का कैसे दुरूपयोग रूके ताकि कोई बेगुनाह फिर बलात्‍कार के झूठे मामले में पुलिस या दुष्‍ट महिलाओं के शिकार होने से बच सके। इसके लिये जनता को सड़कों पर आकर आंदोलन करना होगा वर्ना खाकी वर्दी वाले गुंडे-दरिंदे इस तरह की दुष्‍ट महिलाओं के साथ मिलकर बेगुनाह जनता को ऐसे ही फंसाते रहेंगे और हम और आप सिवाय रोने-सिसकने के कुछ नही कर पायेंगे।

इस यू ट्यूब लिंक में दीपक गुप्‍ता 24/06/2012 के विवाह समारोह में शामिल हुआ था फिर उसने रेप कैसे किया? दीपक गुप्‍ता कत्‍थई रंग के शर्ट में: स्त्रोत : क्रान्ति४पीपुल, 02.03.2013
- See more at: http://kranti4people.com/article.php?aid=3459#sthash.ccOIGHri.dpuf

Monday, January 7, 2013

पांच लड़कियों के साथ दुष्कर्म पर नपुंसक बनाया गया!

एक तरफ जहां बलात्कार की घटना को लेकर भारत में किस तरह का कानून हो इस पर विचार-विमर्श चल रहा है, विभिन्न राजनीतिक दलों, राज्य सरकारों से इस विषय पर राय ली जा रही है वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे देश हैं जो बलात्कार जैसे घिनौने अपराध पर कठोर दंड देकर भारत के सामने एक उदाहरण पेश कर रहे हैं. साउथ कोरिया में इस दिशा में कड़ा कदम उठाते हुए वहां के कोर्ट ने पांच लड़कियों का रेप करने वाले आरोपी को रसायनों से नपुंसक करने का आदेश दिया है.

न्यूज एजेंसी के मुताबिक आरोपी का नाम पायो है. पायो लड़कियों से स्मार्ट फोन चैट सर्विस के दौरान मिला था. आरोपी ने लड़कियों की अश्लील वीडियो बना रखी थी और वह उन्हें इन वीडियो को सार्वजनिक करने की धमकी देता था. इतना ही नहीं आरोपी हथियारों के बल पर भी उन्हें धमकाकर पीड़ित लड़कियों का बलात्कार करता था. पायो को यौन उत्पीड़न का दोषी पाए जाने पर अदालत ने उसे 15 साल के जेल की सजा सुनाई. इस दौरान जेल में उसे ऐसी दवाएं दी जाएंगी जिससे उसके भीतर की यौन इच्छा समाप्त हो सके.

एशियाई देशों में साउथ कोरिया ऐसा पहला देश है, जिसने बलात्कार के आरोपी को रसायन से नपुंसक करने का आदेश दिया है. इससे पहले जर्मनी, डेनमार्क, स्वीडन, पोलैंड और अमेरिका के कैलिफोर्निया में ही इस तरह की सजा का प्रवाधान है. भारत में भी बलात्कारियों को रसायन के जरिए नपुंसक बनाए जाने पर विचार चल रहा है. यहां भी बलात्कार के दोषियों को रासायनिक प्रक्रिया से नपुंसक बनाना कांग्रेस के उन प्रस्तावों में शामिल हैं जिन्हें वो जस्टिस जेएस वर्मा के नेतृत्व वाली समिति को सौंपेंगे. हाल ही में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि रेप के मामलों में शामिल लोगों को मौत और रसायन का इस्तेमाल कर नपुंसक बनाने की सजा देने के लिए कानूनों में संशोधन किया जाए.

भारत में एक तरफ बलात्कारियों को नपुंसक बनाए जाने के लिए आवाज उठाए जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ कुछ राज्य ऐसे हैं जिनकी रेप जैसे जघन्य अपराध के लिए फांसी की सजा पर भी सहमति नहीं है. शुक्रवार को दिल्ली में हुई पुलिस महानिदेशकों की बैठक में लगभग सभी ने बलात्कारियों को उम्रकैद की सजा को ज्यादा कारगर बताया. लेकिन शायद ये राज्य भूल गए हैं कि हमारे यहां उम्रकैद की सजा का प्रावधान है और भारत में उम्रकैद का मतलब है आरोपी का कुछ ही सालों में जेल से बाहर आ जाना.

आइए जानते हैं किन-किन देशों में बलात्कार जैसी घटनाओं पर कैसे प्रावधान हैं :-

भारत: आइपीसी की धारा 376 में आरोपी को दंडित करने का प्रावधान है जिसके तरह आरोपी को दो साल से लेकर 14 साल तक या उम्रकैद की सजा हो सकती है. यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्‍‌नी के साथ रेप करता है तो उसको दो साल की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. वहीं अगर यदि कोई पुलिस अधिकारी या सिविल सेवक किसी महिला से रेप करता है या कोई व्यक्ति 12 साल से कम उम्र या गर्भवती स्त्री के साथ रेप करता है या गैंगरेप की स्थिति में 10 साल का सश्रम कारावास या आजीवन कारावास, जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.

पाकिस्तान: दहशतगर्दी के रूप में पहचाने जाने वाले पाकिस्तान में भी भारत से कड़े कानून हैं. यहां गैंगरेप के मामले में दोषियों को न्यूनतम उम्रकैद से लेकर फांसी तक की सजा हो सकती है. किसी महिला के साथ रेप करने पर सामान्यतया 10 से 25 साल की सजा का प्रावधान है. अप्राकृतिक रूप से लैंगिक उत्पीड़न के लिए दो साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

चीन: चीन दुनियाभर में अपने कड़े नियमों के लिए जाना जाता है. यहां रेप जैसे विशेष मामलों में आरोपी को मौत की सजा देने का प्रावधान है. सामान्यत: रेप के मामले में यहां तीन से 10 साल तक की सजा का प्रावधान है. यदि पीड़िता की आयु 14 वर्ष से कम हो तो कड़ी सजा हो सकती है. गैंगरेप, पीड़िता की मौत या उसके गंभीर रूप से घायल होने जैसे विशेष मामलों में दोषी को फांसी की सजा हो सकती है.

अमेरिका: विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमरीका में भी कड़े कानून हैं. यहां हर राज्य में रेप के लिए सजा के अलग-अलग प्रावधान हैं. टेक्सास में जबरदस्ती, अप्राकृतिक सेक्स, गैंगरेप के बाद यदि जान से मारने की धमकी दी जाती है या पीड़िता की मौत हो जाती है तो दोषी को पांच से लेकर अधिकतम 99 साल तक की सजा हो सकती है. लैंगिक उत्पीड़न पर दो से 20 साल तक की सजा की व्यवस्था है. वाशिंगटन में रेपिस्ट को सामान्यतया पांच से लेकर 15 साल तक की सजा हो सकती है.

ब्रिटेन: लगभग 200 सालों तक भारत पर राज्य करने वाले ब्रिटेन में भी रेप, लैंगिक उत्पीड़न के लिए अधिकतम आजीवन कारावास की सजा है जिसकी अवधि 15 से 40 साल तक की है. लैंगिक रूप से किसी से संपर्क भी लैंगिक उत्पीड़न की श्रेणी में आता है. इस वजह से छह महीने से 10 साल तक की सजा हो सकती है. किसी के साथ लैंगिक गतिविधियों के लिए जबरदस्ती करने से छह माह से लेकर आजीवन कारावास की सजा तक हो सकती है.

रूस: रूस में हिंसा का सहारा या जबरदस्ती लैंगिक संबंध बनाना, पीड़ित की असहाय दशा का लाभ लेकर उत्पीड़न करना रेप की श्रेणी में शामिल है. इस तरह के मामले में तीन से छह साल की सजा का प्रावधान है. गैंगरेप के मामले में चार से 10 साल तक की सजा हो सकती है. 14 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन अपराध करने पर आठ से 15 साल की तक सजा हो सकती है. इस तरह के मामलों में कुल मिलाकर कठोरतम 15 साल की सजा का यहां के कानून में प्रावधान है.

सऊदी अरब: महिला उत्पीड़न और अन्य दूसरे सामाजिक कानूनों की बात की जाए तो सऊदी अरब का उदाहरण हर कोई देता है. यहां शरीयत कानून का पालन किया जाता है. इसके तहत रेप, हत्या, सशस्त्र डकैती जैसे अपराधों के लिए कानून में मौत की सजा का प्रावधान है. ऐसे मामले में दोषियों का सिर कलम कर दिया जाता है.
स्त्रोत : पोस्टेड ओन: 6 Jan, 2013 न्यूज़ बर्थ में, जागरण जंक्शन 

Sunday, January 6, 2013

बलात्कार का मनोविज्ञान!

स्त्री की गहन चाह कि कोई पुरुष उसका पागल हो जाए, कि वह इतनी सुंदर है कि किसी को भी पागल कर दे, कि वह इतनी बड़ी जरूरत है कि कोई उसके लिए जान की बाजी लगा दे, बलात्कार के मूल होती है।
लेखक : बनवारी

क्या आपको पता है कि दुनियाभर के मनोवैज्ञानिकों का यह विश्लेषण रहा है कि बलात्कार के मामलों में अधिकांशतः स्त्रियां स्वयं इस तरह की चाह से भरी होती हैं? कहा तो यह तक जाता है कि स्त्री के स्वभाव में होता है कि कोई उसके साथ जोर-जबरदस्ती करे...कोई उसके लिए इतना पागल हो जाए कि बस सब कुछ करने को तैयार हो जाए?

हाल ही में प्रकाशित मनोविज्ञान के एक अध्ययन के अनुसार पिछले तीस सालों में की लगभग 20 शोधों से यह पता चला है कि पचास से अधिक प्रतिशत में स्त्रियां बलात्कार की वासना रखती हैं, चाह रखती हैं। कुछ मनोवैज्ञानिक तो यह तक कहते हैं कि कई बार स्त्री स्वयं ऐसी परिस्थितियां पैदा करती हैं कि उसका बलात्कार हो जाए।

स्त्री की गहन चाह कि कोई पुरुष उसका पागल हो जाए, कि वह इतनी सुंदर है कि किसी को भी पागल कर दे, कि वह इतनी बड़ी जरूरत है कि कोई उसके लिए जान की बाजी लगा दे, बलात्कार के मूल होती है।

यह तो एक मनोवैज्ञानिक सोच है बलात्कार के पीछे।

भारत में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के पीछे एक तो बहुत बड़ा कारण है स्त्रियां लगातार कम हो रही है और पुरुषों की संख्या बढ़ती जा रही है।

महावीर और बुद्ध की शिक्षाओं के बाद भारत में ब्रह्मश्चर्य की शिक्षा ने ऐसा घर कर लिया कि सेक्स बुरी तरह से अपमानित कर दिया गया और सदियों तक हमने भयंकर दमन किया। आज के इस संचार माध्यमों के सहज युग में हर कोई किसी ने किसी बहाने उत्तेजित हो रहा है। सदियों का दमन का ढक्कन तहस-नहस हो रहा है, काम के दमन से काम की अती पर स्वाभाविक ही पैंडुलम डोल रहा है।

जब तक स्त्री को प्रेम नहीं किया जाता, उसे सम्मान नहीं दिया जाता, उसके प्रति संवेदनशील नहीं हुआ जाता, उसे भी एक मानव समझ कर अपनी बराबरी का नहीं माना जाता, बलात्कार जैसी घटनाएं होती रहेगी। यदि स्त्री भोग की ही चीज है तो सहमती या असहमती भोग ही लो बुरा क्या है?

बलात्कार को सख्त कानून से नहीं रोका जा सकता। काम का वेग इतना होता है कि जब यह उद्दाम वेग किसी के सिर पर चढ़ता है तो उस समय उसे कोई कानून नहीं दिखाई देता। एक बार एक वृद्ध वकील साहब जो देश में अंग्रेजों के जमाने से वकालात कर रहे थे, मुझे बता रहे थे कि जितना कानून सख्त होता जाता है उतना ही बीमारी और जटिल हो जाती है। उन्होंने मुझे बताया कि बलात्कार पर सख्त से सख्त कानून के आते-आते, बलात्कार के बाद स्त्रियों की हत्याएं अधिक होने लगी। सबूत मिटाने के लिए हत्या कर दी जाती है।

बलात्कार के लिए एक बेहद स्वस्थ समाज की जरूरत होती है, जहां स्त्री-पुरुष समान हो, उनका मिलना-जुलना सहज हो, सरल हो, उनके बीच रिश्ते बहुत ही पवित्रता के साथ बन सकते हों, सेक्स का दमन जरा भी न हो, इसे एक प्राकृतिक भेंट समझकर उसे स्वीकारा जाए, उसकी निंदा जरा भी न हो।

किसी तल पर जो आदिवासी हैं, पिछड़े हैं, जंगलों में रहते हैं, वे बेहद सहज, सरल व प्राकृतिक जीवन जीते हैं, वहां कभी बलात्कार नहीं होते। बलात्कार आधुनिक सभ्यता, शिक्षा व दमित समाज की देन है।

और हां, यह भी सच है कि अनेक मामलों में स्त्री अपनी मर्जी से संबंध बनाती हैं और दुर्घटनावश पकड़ में आ जाए तो स्वयं को बचाने के लिए बलात्कार का आरोप लगाती है।

बलात्कार एक बहुत ही जटिल मामला है। हमारे न्यूज चैनल्स व राजनैतिक पार्टियां अपने राजनैतिक हितों के लिए जिस तरह से बयान देकर अपनी रोटी सेंक रहे हैं, उससे इस समस्या का कोई निदान नहीं होगा।

Sunday, December 23, 2012

बलात्कारी खुद को निर्दोष सिद्ध करे, ऐसा कानून बनाने की मांग पागलपन है!

प्रत्येक क्षेत्र में प्रक्रियात्मक सुधार के लिये हर स्तर पर आमूलचूल परिवर्तन के लिये मन से तैयार होना होगा और देश में कानून बनाने से लेकर कानूनों को लागू करने, दोषी को सजा देने तथा सजा भुगताने तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया को न केवल पूरी तरह से पारदर्शी ही बनाना होगा, बल्कि हर एक स्तर पर पुख्ता, सच्ची और समर्पित लोगों की भागीदारी से निगरानी की संवेदनशील व्यवस्था भी करनी होगी। जिससे किसी निर्दोष को किसी भी सूरत में सजा नहीं होने पाए और किसी भी सूरत में किसी भी दोषी को बक्शा नहीं जा सके! इसके साथ-साथ 21वीं सदी में तेजी बदलते समय के आचार-विचारों, पश्चिम के प्रभावों को और देश पर अंगरेजी थोपे जाने के कुपरिणामों को ध्यान में रखते हुए, पुरातनपंथी कही जाने वाली और अव्यावहारिक हो चुकी हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परम्पराओं, प्रथाओं और रीतियों से समाज को क्रमश: मुक्त करने की दिशा में केवल कुछ दिन नहीं, बल्कि दशकों तक लगातार कार्य करना होगा। तब ही केवल बलात्कार ही नहीं, बल्कि हर प्रकार के अन्याय और अपराध से पीड़ितों को संरक्षण प्रदान किया जा सकेगा।


Friday, October 28, 2011

लिंग निर्धारण रोकने के लिए सख्त कानून?

मुंबई। महाराष्ट में अनाधिकृत चिकित्सकीय गर्भपात( एमटीपी) पर नियंत्रण के लिए कदम सुझाने के लिहाज से गठित नौ सदस्यीय समिति ने एमटीपी कानून में संशोधनों की सिफारिश की है। सरकार के लिंग निर्धारण पर काबू पाने के प्रयासों के तहत इस तरह के सुझाव दिये गये हैं।