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Monday, August 12, 2013

दुर्गा शक्ति के बहाने ताकतवर होती आईएएस लॉबी

"हमें हजारों सालों से एक ही बात सिखायी गयी है कि उच्च वर्ग और शासक वर्ग कभी गलत नहीं होता, उसे कभी बड़ी सजा नहीं दी जा सकती और छोटे लोग या निम्न वर्ग सेवा करने, सजा पाने और देश के कानून को तथा सत्ताधारियों व सत्ता के दलालों के हर आदेश को मानने के लिये पैदा हुए हैं।" "ये मनोभाव आज भी इस देश के लोगों के अवचेतन में विद्यमान है और यही रुग्ण मानसिकता, अनेक प्रकार के शोषण एवं विभेद के लिये जिम्मेदार है। जब तक इस मानसिकता को पैदा करने वाले कारकों को शक्ति से नहीं बदला जायेगा दुर्गा शक्ति नागपाल जैसियों के बहाने आईएएस अधिक ताकतवर होते रहेंगे और कमजोर वर्ग शोषण का शिकार होता रहेगा।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा युवा आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को निलम्बित कर दिये जाने के मुद्दे को कॉर्पोरेट तथा धनाढ्य वर्ग के चंगुल में कैद मीडिया द्वारा जमकर उछाला गया है। इस मुद्दे के बहाने मीडिया व हितबद्ध लोगों द्वारा तरह-तरह की चर्चाएँ और परिचर्चाएँ आयोजित और सम्पन्न करवायी गयी। प्रिंट और सोसल मीडिया पर कई सौ आलेख इस विषय पर लिखे जा चुके हैं। इस मुद्दे को प्रचारित करने का आधार ये बताया जा रहा है कि दुर्गा शक्ति नागपाल नाम की ये निलम्बित आईएएस ईमानदार बतायी जाती हैं और इन्होंने कथित रूप से माफिया से टक्कर लेने की कौशिश की। जबकि उत्तर प्रदेश की सरकार का पक्ष है कि रमजान के पवित्र महिने में इस्लाम के अनुयाईयों की ओर से किये जा रहे मस्जिद की निर्माण में व्यवधान डालने का प्रयास करके दुर्गा शक्ति नागपाल ने कथित रूप से सामाजिक सौहार्द और शान्ति को भंग करने का प्रयास किया।

इस मुद्दे को जहॉं एक ओर तो देश की आईएएस लॉबी ने अपनी आन-बान और शान से जोड़ दिया है, वहीं दूसरी और इस देश की संस्कृति, ईमानदारी, चाल, चरित्र और सभी सामाजिक मूल्यों की ठेकेदारी करने वाली सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक ताकतों ने इसे इस प्रकार से उछालने का प्रयास किया है, मानो दुर्गा शक्ति नागपाल के निलम्बन से आसमान टूट पड़ा हो और मानो इससे देश का सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और ईमानदारी का ढांचा ही बिखर जायेगा। इन ताकतों का मानना है कि इस देश के प्रबुद्ध वर्ग का नेतृत्व आईएएस करता है और वही देश को सही दिशा दे सकता है। इसलिये हर हाल में आईएएस का सम्मान होना चाहिये और आईएएस चाहे कुछ भी करे, उसे स्थानान्तरित किये जाने से बड़ी कोई सजा दी ही नहीं जानी चाहिये।

अन्यथा क्या कारण है कि गुजरात के आईपीएस संजीव भट्ट के साथ कोई क्यों खड़ा नहीं हुआ और प्रतिदिन कई सौ छोटे कर्मचारी कठोर श्रम करने के बाद भी अपनी ईमानदारी और संविधान के प्रति निष्ठा के चलते हुए भी आईएएस और पीएसएसी अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किये जा रहे हैं, लेकिन उनके साथ कोई खड़ा नहीं होता है। उनके साथ होने वाला अन्याय कोई अन्याय नहीं और दुर्गा शक्ति नागपाल को निलम्बित किया जाना देशभर में इस प्रकार से चर्चा का विषय बना दिया गया है, मानो दुर्गा शक्ति नागपाल के साथ कोई भयंकर अमानवीय दुर्व्यवहार या दुर्घटना हो गयी है।

स्वयं सुप्रीम कोर्ट अनेक बार कहा चुका है कि "निलम्बन कोई सजा नहीं है। अत: निलम्बन को चुनौती नहीं दी जा सकती।" हॉं ये बात अलग है कि सुप्रीम कोर्ट के ऐसे निर्णय उन छोटे कर्मचारियों को राहत नहीं देते हुए सुनाये जाते रहे हैं, जिनमें राज्य लोक सेवा आयोग और संघ लोक सेवा आयोग के उत्पाद महामानव, महान विभूतियों द्वारा मनमाने तरीके से छोटे कर्मचारियों का निलम्बन किया जाता रहा है, ऐसे में दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले में आने वाले समय में स्वयं सुप्रीम कोर्ट भी मीडिया की भॉंति अपना नया "विपरीत रुख" अपना ले तो कोई आश्‍चर्य नहीं होना चाहिये। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट हड़ताल करने को असंवैधानिक घोषित करने के बाद भी ओबीसी वर्ग को संविधान में वर्णित सामाजिक न्याय की अवधारणा के अनुसार उच्च शिक्षण संस्थानों में, ओबीसी की जनसंख्या से बहुत कम फीसदी आरक्षण दिये जाने के सरकारी आदेश के विरुद्ध, उच्च वर्ग के डॉक्टरों द्वारा विरोध स्वरूप, गैर कानूनी तरीके से की गयी हड़ताल को, सुप्रीम कोर्ट अपने पिछले आदेश की अनदेखी करते हुए न मात्र संवैधानिक ठहरा चुका है, बल्कि केन्द्र सरकार को निर्देश भी दे चुका है कि हड़ताली डॉक्टरों को हड़ताल की अवधि का वेतन दिया जावे।

ऐसे में "आईएएस अधिकारी का निलम्बन भी सुप्रीम कोर्ट को सजा नजर आ जाये तो कोई आश्‍चर्य नहीं होना चाहिये!" जिसका सबसे बड़ा कारण यही है कि "हमें हजारों सालों से एक ही बात सिखायी गयी है कि उच्च वर्ग और शासक वर्ग कभी गलत नहीं होता, उसे कभी बड़ी सजा नहीं दी जा सकती और छोटे लोग या निम्न वर्ग सेवा करने, सजा पाने और देश के कानून को तथा सत्ताधारियों व सत्ता के दलालों के हर आदेश को मानने के लिये पैदा हुए हैं।" "ये मनोभाव आज भी इस देश के लोगों के अवचेतन में विद्यमान है और यही रुग्ण मानसिकता, अनेक प्रकार के शोषण एवं विभेद के लिये जिम्मेदार है। जब तक इस मानसिकता को पैदा करने वाले कारकों को शक्ति से नहीं बदला जायेगा दुर्गा शक्ति नागपाल जैसियों के बहाने आईएएस अधिक ताकतवर होते रहेंगे और कमजोर वर्ग शोषण का शिकार होता रहेगा।

Friday, March 22, 2013

संजय दत्त को बचाना आग से खेलना है!

संजय दत्त को जिस अपराध में सजा दी गयी है, उसमें उसे पहले ही विशेष कोर्ट द्वारा बहुत ही कम सजा दी गयी, अन्यथा देश के दुश्मनों और आतंकियों से सम्बन्ध रखने और उनसे गैर-कानूनी तरीके से घातक हथियार प्राप्त करने और उन्हें उपने घर में रखने। आतंकियों के बारे में ये जानते हुए कि वे आतंकी हैं, उनसे गले लगकर मिलने जैसे गम्भीर आरोपों में यदि अन्य कोई समान्य व्यक्ति फंसा होता तो निश्‍चय ही उसे भी आतंकी करार दे दिया गया होता। ऐसे में मात्र गैर-कानूनी रूप से हथियार रखने के छोटे जुर्म के लिये ही संजय दत्त को दोषी ठहराया जाना अपने आप में अनेक प्रकार के सवाल खड़े करता है? यदि संजय दत्त के स्थान पर कोई संजय खान रहा होता तो और चाहे उसकी ओर से कितने ही समाज सेवा के काम किये गये होते उसे अदालत के साथ-साथ समाज की ओर से भी कभी भी नहीं बक्शा जाता।

Friday, December 21, 2012

बलात्कार से निजात कैसे?


एक पुलिस का जवान कानून व्यवस्था का हिस्सा बनने के लिये पुलिस में भर्ती होता है, लेकिन पुलिस अधीक्षक उसे अपने घर पर अपनी और अपने परिवार की चाकरी में तैनात कर देता है। (जो अपने आप में आपराधिक न्यासभंग  का अपराध है और इसकी सजा उम्र कैद है) जहॉं उसे केवल घरेलु कार्य करने होते हैं-ऐसा नहीं है, बल्कि उसे अफसर की बीवी-बच्चियों के गन्दे कपड़े भी साफ करने होते हैं। क्या यह उस पुलिस कॉंस्टेबल के सम्मान का बलात्कार नहीं है?