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Friday, January 1, 2016

उमराव सालोदिया का उमराव खान हो जाना


उमराव सालोदिया का उमराव खान हो जाना
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राजस्थान के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी उमराव सालोदिया ने मुख्य सचिव नहीं बनाये जाने से नाराज हो कर स्वेच्छिक सेवा निवृति लेने तथा हिन्दुधर्म छोड़कर इस्लाम अपनाने की घोषणा कर सनसनी पैदा कर दी है ।
राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार से अब न उगलते बन रहा है और न ही निगलते। यह सही बात है कि वरीयता क्रम में वे मुख्य सचिव बनने के लिए बिलकुल पात्र थे और यह भी सम्भव था कि वे राज्य के पहले दलित मुख्य सचिव बन जाते मगर भाजपा सरकार ने वर्तमान मुख्य सचिव सी एस राजन को तीन माह का सेवा विस्तार दे कर सालोदिया को वंचित कर दिया ।
सेवा एवम् धर्म छोड़ने की घोषणा करते हुए सालोदिया ने यह भी कहा कि उन्हें सेवाकाल के दौरान सामान्य वर्ग के एक व्यक्ति ने बहुत परेशान किया ,जिसकी प्राथमिकी दर्ज कराये जाने के बावजूद उस व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गयी।सालोदिया ने यह भी कहा कि वे समानता की चाह में इस्लाम कबूल कर रहे है । हालाँकि उन्होंने यह भी बताया कि उनकी इस्लाम में रूचि लंबे समय से है और उन्होंने इस्लाम को भली भांति पढ़ समझ कर ही धर्मान्तरण का फैसला किया है।
उमराव सालोदिया अब उमराव खान बन चुके है। उनके धर्म परिवर्तन करने पर मिश्रीत प्रतिक्रियाएं आई है ।राज्य के गृह मंत्री गुलाब चन्द कटारिया ने इसे व्यक्तिगत निर्णय बताते हुए कहा कि अगर उनके साथ अन्याय हुआ है और उन्हें लगता है कि उन्हें वंचित किया गया है तो उसका विरोध उचित फोरम पर किया जा सकता था। चिकित्सा एवम् स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ ने इसे सेवा नियमों का स्पष्ट उल्लंघन करार देते हुए कहा कि वे पद पर रहते हुए इस तरह प्रेस वार्ता कैसे कर सकते है । उन्हें दूसरे मान्य तरीके अपनाने चाहिए ।
यह तो निर्विवाद तथ्य है कि उन्हें मुख्य सचिव बनाया जाना चाहिये। यह उनका हक़ है जिसे सरकार ने जानबूझ कर छीना है मगर उनके इस तरीके और इस्लाम कबूल करने को लेकर दलित बहुजन आंदोलन ने भी कई सवाल खड़े करके उन्हें इस लड़ाई में अकेला छोड़ दिया है।
दरअसल विगत कुछ दिनों से दलित समुदाय के युवा सोशल मीडिया के ज़रिये उमराव सालोदिया को मुख्य सचिव बनाने की पुरजोर मांग कर रहे थे।इन उत्साही अम्बेडकर अनुयायियों को उमराव सालोदिया के इस आकस्मिक और एकाकी निर्णय ने निराश कर दिया है।अब तक उनके पक्ष में खड़े लोग ही अब पूंछ रहे है कि उमराव सालोदिया उमराव गौतम क्यों नहीं हुए ? जिस अम्बेडकर की वजह से वे इतने बड़े पद तक पंहुचे उनका मार्ग क्यों नहीं लिया खान साहब ने ?
दलित बहुजन आंदोलन को इस्लाम से ना तो परहेज़ है और ना ही कोई दिक्कत ,परेशानी उमराव सालोदिया के तरीके और निर्णय से है। बिना संघर्ष किये ही उनके नौकरी छोड़ने के निर्णय को पलायन माना जा रहा है तथा बुद्ध धर्म नहीं अपनाने की कड़ी आलोचना हो रही है।
दलित युवा सोशल मीडिया पर बहस छेड़े हुए है कि अब वे दलितों की समानता के मिशन के लिए काम करेंगे अथवा दीन की तब्लीग के लिए जमाती बन जाएंगे। यह भी प्रश्न उठाया जा रहा है कि अगर उनके साथ नौकरशाही में रहते हुए लंबे अरसे से अन्याय व भेदभाव हो रहा था तो वे इतने समय तक खामोश क्या सिर्फ मुख्य सचिव बनने की झूठी आशा में थे ? यहाँ तक पूंछा जा रहा है कि क्या अगर उन्हें चीफ सेकेट्री बना दिया जाता तो उनकी नज़र में हिन्दू धर्म समानता का धर्म हो जाता ? अब लोग यह भी जानना चाह रहे है कि क्या उन्होंने बौद्ध धर्म को पढ़ा है ?
जो उमराव सालोदिया को जानते है उनके मुताबिक वे कभी भी आंबेडकर की मुहिम में शामिल नहीं रहे है और ना ही उन्हें मुक्तिकामी कबीर, फुले, अम्बेडकर की विचारशरणी से कोई मतलब रहा है।यह भी कहा जा रहा है कि उन्हें समाज हित में एक सामूहिक फैसला ले कर नज़ीर स्थापित करनी चाहिए थी ।उन्हें अपने साथ हुए भेदभाव और वंचना के प्रश्न को समाज जागृति का हथियार बनाना चाहिए था मगर वे इससे चूक गए और इसे केवल निजी हित का सवाल बना डाला है।संभवतः उमराव सालोदिया से यह चूक इसलिए हुयी है क्योंकि उनका जुड़ाव समुदाय से लगभग नहीं के बराबर रहा है । वे पूरे सेवाकाल में इन्हीं लोगों के होने में लगे रहे जैसे अधिकांश बड़े दलित अधिकारी करते है।
यह बात कुछ हद तक सही भी है कि जो अधिकारी और राजनेता समाज से कट कर जीते है फिर उन्हें अपनी लड़ाई अक्सर अकेले ही लड़नी होती है और फिर वे ऐसे ही अदूरदर्शी निर्णय ले कर अपनी तथा अपने वर्ग की किरकिरी करा बैठते है।
बेहतर होता कि उमराव सालोदिया इस लड़ाई को थोडा पहले शुरू करते और अंत तक लड़ते ,मगर उन्होंने योद्धा बनने के बजाय भगौड़ा बनना स्वीकार किया है ,जिसका दलित बहुजन आंदोलन ने स्वागत करने से साफ इंकार कर दिया है।अब दलित किसी धर्म में मुक्ति नहीं देखते,क्योंकि उन्हें मुक्ति संघर्ष में दिखाई देती है पलायन में नहीं ।
- भंवर मेघवंशी
( लेखक स्वतन्त्र पत्रकार है ,उनसे Bhanwar meghwanshi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )





Sunday, December 20, 2015

देश का दुश्मन नहीं है भारतीय मुसलमान !

देश का दुश्मन नहीं है भारतीय मुसलमान !
राजस्थान के दौसा में पाकिस्तानी झण्डा फहराये जाने तथा टौंक के मालपुरा में आई एस आई एस के पक्ष में नारे लगाये जाने और जयपुर में आतंकी नेटवर्क खड़ा करने में जुटे मोहम्मद सिराजुद्दीन को गिरफ्तार किये जाने के बाद यह चर्चा बहुत आम हो गई है कि राजस्थान प्रदेश आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने की सबसे सुरक्षित जगह बन गया है ! 
उत्तरप्रदेश के एक स्वयंभू हिन्दू महासभाई कमलेश तिवाड़ी द्वारा हजरत मोहम्मद को अपमानित करने वाली टिप्पणी करने के विरोध में हुये देशव्यापी प्रदर्शन राजस्थान के भी विभिन्न शहरों में आयोजित किये गये. साम्प्रदायिक रूप से अतिसंवेदनशील मालपुरा कस्बे में भी मुस्लिम युवाओं ने अपने बुजुर्गों की मनाही के बावजूद एक प्रतिरोध जलसा किया. हालांकि शहर काजी और कौम के बुजुर्गों ने बिना मशवरे के कोई भी रैली निकालने से युवाओं को रोकने की भरपूर असफल कोशिस की. जैसा कि मालपुरा के निवासी वयोवृद्ध इकबाल दादा बताते है कि -
'हमने उन्हें मना कर दिया था और शहर काजी ने भी इंकार कर दिया था, मगर रसूल की शान के खिलाफ की गई अत्यंत गंदी टिप्पणी से युवा इतने अधिक आक्रोशित थे कि वे काजी तक को हटाने की बात करने लगे थे '
अंतत: मालपुरा के युवाओं की अगुवाई में 11दिसम्बर को एक रैली जामा मस्जिद से शुरू हो कर कोर्ट होते हुये तहसीलदार को ज्ञापन देने पहुंची. शांतिपूर्ण तरीके से ज्ञापन दे दिया गया। मगर दूसरे दिन सोशल मीडिया में वायरल हुये एक वीडियो के मुताबिक रैली से लौटते हुये मुस्लिम नवयुवकों ने 'आर एस एस- मुर्दाबाद' तथा 'आई एस आई एस- जिन्दाबाद' के नारे लगाये.
जब मुस्लिम समाज के मौतबीर लोगों को पुलिस के समक्ष यह वीडियो दिखाया गया तो उन्हें पहले तो यकीन ही नहीं हुआ, फिर उन्होंने अपने बच्चों की इस तरह की हरकत के लिये तुरंत माफी मांग ली और मामले को तूल नहीं देने का आग्रह किया, ताकि सौहार्द बरकरार रहे, मगर मालपुरा के हिन्दुवादी संगठन इस मांग पर अड़ गये कि दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उनको तुरंत गिरफ्तार किया जाये. सूबे में सत्तारूढ़ विचारधारा के राजनैतिक दबाव के चलते किसी व्यक्ति विशेष द्वारा बनाये गये विडियो को आधार बना कर मुकदमा दर्ज कर लिया गया तथा सलीमुद्दीन रंगरेज, फिरोज पटवा ,वसीम ,शाहिद ,शाकिर ,अमान तथा वसीम सलीम सहित 7 लोगो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.
गिरफ्तार किये गये 60 वर्षीय राशन डीलर सलीमुद्दीन के बेटे नईम अख्तर का कहना है कि-
'मेरे वालिद एक जमीन के सौदे के सिलसिले में कोर्ट गये थे, वे रैली मैं शरीक नहीं थे, मगर पुलिस कहती है कि उनका चेहरा वीडियो में दिख रहा है] जहां नारे लगाये जा रहे थे, इसलिये उन्हें गिरफ्तार किया गया है'
मालपुरा के मुस्लिम समुदाय का आरोप है कि पुलिस जानबूझकर बेगुनाहों को पकड़ रही है. इतना ही नहीं बल्कि धरपकड़ अभियान के दौरान सादात मौहल्ले में पुलिस द्वारा मुस्लिम औरतों के साथ निर्मम मारपीट और बदसलूकी भी की गई.
पुलिस दमन की शिकार 50 वर्षीय बिस्मिल्ला कहती है कि हम बहुत सारी महिलायें कुरान पढ़कर लौट रही थी, तब घरों में घुसते हुये मर्द पुलिसकर्मियों ने हमें मारा. वह चल फिरने में असहाय महसूस कर रही है. सना ,जमीला ,फहमीदा ,नसीम आदि महिलाओं पर भी पुलिस ने लाठियां भांजी ,किसी को चोटी पकड़ कर घसीटा तो किसी को पैरों और जंघाओं पर मारा एवं भद्दी गालियां दे कर अपमानित किया.पुलिस तीन औरतों-फरजाना ,साजिदा और आरिफा को पुलिस पर पथराव करने और राजकार्य में बाधा उत्पन्न करने के जुर्म में गिरफ्तार कर ले गई.जहां से फरजाना को शांतिभंग के आरोप में पाबंद कर देर रात छोड़ दिया गया ,वहीं आरिफा और साजिदा को जेल भेज दिया गया.
उल्लेखनीय है कि मालपुरा में आतंकवादी संगठनों के पक्ष में कथित नारे लगाने के वीडियो को वायरल किये जाने के बाद राज्य भर में इसकी प्रतिक्रिया हुई. हिन्दुत्ववादी संगठनों ने कुछ जगहों पर इसके विरूद्ध में ज्ञापन भी दिये और देशविरोधी तत्वों पर अंकुश लगाने की मांग की. जो विडियो लोगो को उपलब्ध है उसे देखने पर ऐसा लगता है कि वापस लौटती रैली में नारे लगाते एक युवक समूह पर ये नारे सुपर इम्पोज किये गये है . क्योंकि नारों की घ्वनि और रैली में चल रहे लोगो के मध्य कोई तारतम्य ही नहीं दिखाई पड़ता है .जिस जगह का यह विडियो है ,वहां के दुकानदारों का जवाब भी स्पष्ट नहीं है ,वे यह तो कहते है कि मालपुरा में पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे आम बात है ,मगर ये नारे कब और कहां लगते है तथा उस दिन क्या उन्होंने आई एस आई एस के पक्ष में नारे सुने थे ? इसका जवाब वे नहीं देते ,इतना भर कहते है की शायद आगे जा कर लगाये हो या कोर्ट में लगा कर आये हो.
विचार योग्य बात यह है कि ज्ञापन के दिन ना किसी समाचार पत्र ,ना किसी टीवी चैनल और ना ही गुप्तचर एजेंसियों और ना ही पुलिस या प्रशासन को ये नारे सुनाई पड़े .लेकिन अगले दिन अचानक एक वीडियो जिसकी प्रमाणिकता ही संदिग्ध है ,उसे आधार बना कर पुलिस मालपुरा के मुस्लिम समाज को देशप्रेम की तुला पर तोलने लगती है तथा उनमें देशभक्ति की मात्रा कम पाती है और फिर गिरफ्तारियों के नाम पर दमन और दशहत का जो दौर चलता है ,वह दिन ब दिन बढ़ते ही जाता है. हालात इतने भयावह हो जाते है कि लोग अपने आशियानों पर ताले लगा कर दर ब दर भागने को मजबूर कर दिये जाते है.
मालपुरा का घटनाक्रम चर्चा में ही था कि एक बड़े समाचार पत्र में दौसा के हलवाई मौहल्ले के निवासी 'खलील के घर की छत पर पाकिस्तानी झण्डा' फहराये जाने की सनसनीखेज खबर साया हो जाती है. खलील को तो प्रथम दृष्टया ही देशद्रोही घोषित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई ,मगर दौसा के मुस्लिम समाज ने पूरी निर्भिकता से इस शरारत का मुंह तोड़ जवाब दिया और पुलिस तथा प्रशासन को बुलाकर स्पष्ट किया कि यह चांद तारा युक्त हरा झण्डा इस्लाम का है ,ना कि पाकिस्तान का ! पुलिस अधीक्षक गौरव यादव को इस उन्माद फैलाने वाली हरकत करने की घटना पर स्पष्टीकरण देना पड़ा तथा उन्होनें माना कि यह गंभीर चूक हुई है ,एक धार्मिक झण्डे को दुश्मन देश का ध्वज बताना शरारत है. मुस्लिम समुदाय की मांग पर चार मीडियाकर्मियों के विरूद्ध मुकदमा दर्ज किया गया और खबर लिखने वाले पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया गया. खबर प्रकाशित करने वाले मीडिया समूह ने इसे पुलिस की नाकामी करार देते हुये स्पष्ट किया कि उनकी खबर का आधार पुलिस द्वारा दी गई सूचना ही थी ,पुलिस ने अपनी असफलता छिपाने की गरज से मीडिया के लोगों को बलि का बकरा बना दिया है.
जैसा कि इन दिनों ईद मिलादुन्नबी की तैयारियों के चलते घरों पर चांद तारे वाला हरा झण्डा लगभग हर जगह लगा हुआ दिखाई पड़ जाता है , उसे पाकिस्तानी झण्डे के साथ घालमेल करके मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार का अभियान चलाया जा रहा है .
भीलवाड़ा में पिछले दिनों एक मुस्लिम तंजीम के जलसे के बाद ऐसी ही अफवाह उड़ाते एक शख्स को मैने जब चुनौती दी कि वह साबित करे कि जिला कलक्ट्रेट पर प्रदर्शन में पाकिस्तानी झण्डा लहराया गया है तो वह माफी मांगने लगा. इसी तरह फलौदी में पाक झण्डे फहराने सम्बंधी वीडियो होने का दावा कर रहे एक व्यक्ति से विडियो मांगा गया तो उसने ऐसा कोई वीडियो होने से ही इंकार कर दिया. तब ये कौन लोग है जो संगठित रूप से ' पाकिस्तानी झण्डे ' के होने का गलत प्रचार कर रहे है. यह निश्चित रूप से वही अफवाह गिरोह है जो हर बात को उन्माद फैलाने और दंगा कराने में इस्तेमाल करने में महारत हासिल कर चुका है.
इन कथित राष्ट्रप्रेमियों को मीडिया की बेसिर पैर की खबरें खाद पानी मुहैया करवाती रहती है. भारत का कारपोरेट नियंत्रित जातिवादी मीडिया लव जिहाद , इस्लामी आतंतवाद ,गौ तस्करी ,पाकिस्तानी झण्डा ,सैन्य जासूसी और आतंकी नेटवर्क के जुमलों के आधार पर चटपटी खबरें परोस कर मुस्लिम समुदाय के विरूद्ध नफरत फैलाने के विश्वव्यापी अभियान का हिस्सा बन रहा है . आतंकवाद की गैर जिम्मेदाराना पत्रकारिता का स्वयं का चरित्र ही अपने आप में किसी आतंकवाद से कम नहीं दिखाई पड़ता है. हद तो यह है कि हर पकड़ा ग़या 'संदिग्ध' मुस्लिम दूसरे दिन 'दुर्दांत आतंकी ' घोषित कर दिया जाता है और उसका नाम 'अलकायदा' 'इंडियन मुजाहिद्दीन ' 'तालिबान ' अथवा 'इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एण्ड सिरिया ' से जोड़ दिया जाता है. आश्चर्य तो तब होता है जब मीडिया गिरफ्तार संदिग्ध को उपरोक्त में किसी एक आतंकी नेटवर्क का कमाण्डर घोषित करके ऐसी खबरें प्रसारित व प्रकाशित करता है , जैसे कि सारी जांच मीडियाकर्मियों के समक्ष ही हुई हो. अपराध सिद्ध होने से पूर्व ही किसी को आतंकी घोषित किये जाने की यह मीडिया ट्रायल एक पूरे समुदाय को शक के दायरे में ले आई है. इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि आज इस्लाम और आतंकवाद को एक साथ देखा जाने लगा है. इसी दुष्प्रचार का नतीजा है कि आज हर दाढ़ी और टोपी वाला शख्स लोगों की नजरों में 'संदिग्ध आतंकी ' के रूप में चुभने लगा है.
हाल ही में जयपुर में इण्डियन ऑयल कार्पोरेशन के मार्केटिंग मैनेजर सिराजुद्दीन को 'एन्टी टेरेरिस्ट स्क्वॉयड' ने आई एस आई एस के नेटवर्क का हिस्सा होने के आरोप में गिरफ्तार किया .मीडिया के लिये यह एक महान उपलब्धि का क्षण बन गया. पल पल की खबरें परोसी जाने लगी-" आतंकी नेटवर्क का सरगना सिराजुद्दीन यहां रहता था ,यह करता था ,वह करता था.सोशल मीडिया के जरिये 13 देशों के चार लाख लोगों से जुड़ा था ,अजमेर के कई युवाओं के सम्पर्क में था.सुबह मिस्र ,इंडोनेशिया जैसे देशों में रिपोर्ट भेजता था ,तो शाम को खाड़ी देशों तथा दक्षिणी अफ्रिकी देशों को रिपोर्ट भेजता था.फिदायनी दस्ते तैयार कर रहा था.आदि इत्यादि " 
दस दिन आतंक की खबरों का बाजार गर्म रहा ,सिराजुद्दीन को इस्लामिक स्टेट का एशिया कमाण्डर घोषित कर दिया गया ,जबकि जांच जारी है और जांच एजेन्सियों की और से इस तरह की जानकारियों का कोई ऑफिशियल बयान जारी नहीं हुआ है.गिरफ्तार किये गये मोहम्मद सिराजुद्दीन के पिता गुलबर्गा कर्नाटक निवासी मोहम्मद सरवर कहते है कि उनका बेटा पक्का वतनपरस्त है ,वह अपने मुल्क के खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकता है.सिराजुद्दीन की पत्नि यास्मीन के मुताबिक-
' उसने कभी भी उसको कुछ भी रहस्यमय हरकत करते हुये नहीं देखा ,वह एक नेक धार्मिक मुसलमान के नाते लोगो की सहायता करनेवाला इंसान है. उसके बारे में यह सब सुनकर मैं विश्वास ही नहीं कर पा रही हूं '
खैर ,सच्चाई क्या है , इसके बारे में कुछ भी कयास लगाना अभी जल्दबाजी ही होगी और जिस तरह का हमारी खुफिया एजेन्सियां ,पुलिस और आतंकरोधी दस्तों का पूर्वाग्रह युक्त साम्प्रदायिक व संवेदनहीन चरित्र है ,उसमें न्याय या सत्य के प्रकटीकरण की उम्मीद सिर्फ एक मृगतृष्णा ही है.यह देखा गया है कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में बरसों बाद 'कथित आतंकवादी' बरी कर दिये जाते है ,मगर तब तक उनकी जवानी बुढ़ापा बन जाती है.परिवार तबाह हो चुके होते है .
कुछ अरसे से पढ़े लिखे ,सुशिक्षित ,आई टी एक्सपर्ट भारतीय मुसलमान नौजवान खुफिया एजेन्सियों और आतंकवादी समूहों के निशाने पर है ,उन्हें पूर्वनियोजित योजना के तहत तबाह किया जा रहा है. इस तबाही या दमन चक्र के विरूद्ध उठने वाली कोई भी आवाज देशद्रोह मान ली जा रही है ,इसलिये राष्ट्र राज्य से भयभीत अल्पसंख्यक समूह अब बोलने से भी परहेज करने लगा है और बहुसंख्यक तबका मीडियाजनिक विभ्रमों का शिकार हो कर राज्य प्रायोजित दमन को 'उचित' मानने लगा है.जो कि अत्यंत निराशाजनक स्थिति है.
राजस्थान में गोपालगढ़ में मुस्लिम नरसंहार के आरोपी खुलेआम विचरण करते है.नौगांवा का होनहार मुस्लिम छात्र आरिफ जिसे पुलिस ने घर में घुसकर एके सैंतालीस से भून डाला ,उसके हत्यारे पुलिसकर्मियों को सजा नहीं मिलती है.भीलवाड़ा के इस्लामुद्दीन नामक नौजवान की जघन्य हत्या करने वाले हत्यारों का पता भी नहीं चलता है.गौ भक्तों द्वारा पीट पीट कर मार डाले गये डीडवाना के गफूर मियां के परिवार की सलामती की कोई चिन्ता नहीं करता है.हर दिन होने वाली साम्प्रदायिक वारदातों की आड़ में मुस्लिमों को लक्षित कर दमन चक्र निर्बाध रूप से जारी है.कहीं भी कोई सुनवाई नहीं है.लोग थाना ,कोर्ट कचहरियों में चक्कर काटते काटते बेबसी के कगार पर है और उपर से शौर्यदिवस के जंगी प्रदर्शनों में 'संघ में आई शान -मियांजी जाओ पाकिस्तान ' या ' अब भारत में रहना है तो हिन्दु बन कर रहना होगा ' जैसे नारे जख्मों पर नमक छिड़क रहे है.
हर दिन दूरियां बढ़ रही है,बेलगाम बयानबाजी ,दिन प्रतिदिन गांव गांव में बढ रहे संचलन और हथियारों को लहराती हुई रैलियां किसी गृहयुद्ध के बीज बोती दिख रही है.
आश्चर्य की बात तो यह है कि हम अपना घर नहीं सम्भाल पा रहे है ,अपने ही लोगों का भरोसा नहीं जीत पा रहे है और हमारे रक्षामंत्री अमेरिका की सैर से लौट कर कह रहे है कि-संयुक्त राष्ट्र कहेगा तो हमारी सेना "इस्लामिक स्टेट" से लड़ने को तैयार है .समझ नहीं आता कि हम आ बैल मुझे मार का काम क्यों करना चाहते है. हमें समझना होगा कि हथियारों का सौदागर अमेरिका कभी किसी का यार नहीं हुआ है.उसके बहकावे में आकर हमें किसी युद्ध में अपनी सेना को झौंकने की गलती क्यों करनी चाहिये ? हम अपने इर्द गिर्द के सभी मुल्कों को वैसे भी दुश्मन बना ही चुके है. हाल ही में हमने अपनी असफल विदेश नीति के चलते नेपाल जैसे स्वभाविक पड़ौसी मित्र तक को अपना विरोधी और चीन को दोस्त बना डाला है .अब हम क्या सारी मुस्लिम दुनिया को भी अपना दुश्मन बना लेंगे ? गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि कहीं हम अमेरिका जैसे देशों के बिछाये जाल में तो नहीं फंसते जा रहे है ? हमारा अमेरिकी प्रेम हमें डुबो भी सकता है .स्थिति यह होती जा रही है कि वाशिंगटन ही पूरा विमर्श तय कर रहा है. इस्लामिक आतंकवाद जैसी शब्दावली से लेकर किनसे लड़ना है और कब लड़ना है ? ईराक से लेकर अफगानिस्तान तक और सिरिया ये लेकर लीबिया तक आतंकी समूहों का निर्माण ,उनके सरंक्षण-संवर्धन में अमेरिका की हथियार इंडस्ट्री और सत्ता सब लगे हुये है .वैश्विक वर्चस्व की इस लड़ाई में पश्चिम का नया दुश्मन मुसलमान है ,मगर भारतीय राष्ट्र राज्य के लिये मुसलमान दुश्मन नहीं है .वे देश के सम्मानित नागरिक है.राष्ट्र निर्माण के सारथी है ,उनसे दुश्मनों जैसा सलूक बंद होना चाहिये .उनके देशप्रेम पर सवालिया निशान लगाने की प्रवृति से पार पाना होगा.झण्डा ,दाढ़ी ,टोपी ,मदरसे ,आबादी ,मांसाहार जैसे कृत्रिम मुद्दे बनाकर किया जा रहा उनका दमन रोकना होगा.उन्हें न्याय और समानता के साथ अवसरों में समान रूप से भागीदार बनाना होगा ,ताकि हम एक शांतिपूर्ण तथा सुरक्षित विकसित राष्ट्र का स्वप्न पूरा कर सकें .
- भँवर मेघवंशी 
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है , bhanwarmeghwanshi@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है



Thursday, September 19, 2013

ये हिन्दू एकता किस चिड़िया का नाम है?

ये हिन्दू एकता किस चिड़िया का नाम है :

1996 में भी इंटेलिज़ेंस विभाग के पूर्व निदेशक एवम् उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री टी.वी. राजेश्वर ने लिखा था कि पूर्वी भारत में एक नये इस्लामिक राज्य का नक्शा उभर रहा है। इतना ही नहीं सम्पूर्ण भारत में जहाँ मुस्लिम आबादी बढने लगती है, प्रशासन उसे संवेदनशील मानने लगती है। इस कारण से वैदिक धर्म के आयोजन करनें में बहुत सी कठिनाईयों का सामना कुछ मुस्लिम अवसरवादी नेताओं के कारण करना पडता है। लगातार ऐसे आयोजनों की शिकायत पुलिस प्रशासन को की जाती है। जिससे पुलिस प्रशासन ऐसे आयोजनों को अत्यधिक कठिनाई से और बहुत शर्तों को मनवाने बाद ही अनुमति देती हैं। पुलिस संवेदनशील क्षेत्र कहकर ऐसे आयोजनों से बजने की जुगत में रहती है।


साथ ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने नान डाँमिनेन्ट ग्रप को ही अल्पसंख्य माना है और 3 मई 2007 को अल्पसँख्यक मुद्दे पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री एन. एस. श्रीवास्तव नें मुस्लिमों को अल्पसँख्यक की श्रेणी से बाहर रखने की सलाह दी थी, क्योंकि यह नाँन डामिनेन्ट ग्रुप नहीं है। इनका राजनीति में भी दखल है, अकेले उत्तर प्रदेश में दोनों सदनों में 50 से अधिक विधायक है और 18 संसद सदस्य हैं। आगे प्रस्तुत है-जनसंख्या से सम्बंधित आँकडे 1951 में हुई जनगणना में देश में हिन्दु जनसँख्या थी 85 प्रतिशत और 2001 की जनसँख्या के अनुसार हिन्दु जनसँख्या 5 प्रतिशत कम होकर 80 प्रतिशत रह गयी और 1951 में ही मुस्लिम अल्पसँख्यक नहीं थे 1951 में मुस्लिम जनसँख्या थी 10 प्रतिशत और 2001 में मुस्लिम जनसँख्यख्या 3 प्रतिशत बढकर 13 प्रतिशत हो गयी। आगे की गणना और भी हतप्रभ करने वाली है।

क्या आप इस बात पर विश्वास कर सकते हैं कि 9 साल में मुस्लिम जनसँख्या 1.6 प्रतिशत बढी, देश के लगभग 40 जिलों में मुस्लिम जनसँख्या 50 प्रतिशत से अधिक है। जम्मू कश्मीर, केरल, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार और उत्तर प्रदेश अत्यधिक मुस्लिम जनसँख्या वाले हो गये हैं। बाँग्लादेश से सटे लगभग सभी 10 जिले और 22 लोकसभा क्षेत्र मुस्लिम बहुल्य हो चुके हैं। असम के 6 जिले तथा 126 में से 40 विधानसभा क्षेत्र मुस्लिम प्रभुत्व वाले हो गये हैं। पश्चिम बंगाल में 28000 गाँवों में से 8000 गाँवों मे हिन्दु अत्यन्त अल्प हो गये हैं तथा 10 जिलों में 24 प्रतिशत से अधिक जनसँख्या मुस्लिम है। उत्तर प्रदेश के 70 में से 19 जिले 20 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम जनसँख्या के हैं। सबसे हैरान करने वाले आँकडे हरियाणा के हैं। हरियाणा में मुस्लिम जनसँख्या तीन गुना बढी है। जम्मू कश्मीर के सात जिलों में 90 प्रतिशत मुस्लिम जनसँख्या है। सम्पूर्ण केरल में मुस्लिम जनसँख्या 19.2 प्रतिशत है और देश की राजधानी देहली में 1951 में मुस्लिम 5.71 प्रतिशत था और 2010 में यह जनसँख्या तीन गुणा हो गयी है। 

परिवार नियोजन पर अल्पसंख्यकों का प्रचलित उत्तर यही रहता है कि कुरान हमें परिवार नियोजन अपनाने की इजाजत नहीं देता है अथवा बच्चे अल्लाह की दैन हैं। इसे रोकना नहीं चाहिये तो उनसे मेरे कुछ प्रश्न हैं ओमान में 4.5% , सीरिया और लीबिया में 3.7% बँग्लादेश में 3.3% जार्डन में 3.1% केन्या में 2.7% कुवैत में 2.6% और पाकिस्तान में 2.2% जनसँख्या में कमी परिवार नियोजन को अपनाने के कारण आयी है और वहाँ की इस्लामी सरकारे परिवार नियोजन पर बहुत अधिक रकम खर्च कर रही हैं। यदि इस्लामी कानून इसकी इजाज़त नहीं देता तो इन इस्लामिक देशों में परिवार नियोजन योजनाएं सरकारी खर्चों पर क्यूँ चल रही हैं?

साथ ही एक और प्रश्न भी है यदि बच्चे अल्लाह की देन है तो बीमारियाँ को भी तो अल्लाह की दी सज़ा के रूप में माने उनका ईलाज करवाने क्यूँ डाँक्टर के पास जाते हैं ये सब कुतर्क हैं जो जनता में फैलाये जाते हैं। पाखण्डी धर्माधिकारियों द्वारा जिससे देश में अल्पसँख्यक एक दिन बहुसँख्यक होकर भी अल्पसँख्यकों को मिलने वाले लाभ उठाते रहें। अल्पसँख्यकों को पहले ही पर्याप्त अधिकार दिये जा चुके हैं। शुक्रवार को नमाज़ का छूट, पूरे विश्व में कहीं भी हजयात्रा में कोई छूट नहीं होती, लेकिन भारत में हजयात्रा पर छूट मिलती है, आपको यह जानकार आश्चर्यहोगा की हमारी सरकार ने हज यात्राओ पर अब तक लगभग 10 हजार करोड़ रुपये फूँक दिये है।
स्त्रोत : युवा पंचायत

Tuesday, August 14, 2012

पाकिस्तान में हिन्दू स्त्रियों का बलात्कार और भारत की चुप्पी के मायने?

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

1-भारत सरकार का ये नैतिक, मानवीय, धार्मिक, राष्ट्रीय, संवैधानिक और वैश्‍विक फर्ज है कि वह अपने स्तर पर कूटनीतिक प्रयासों के जरिये पाकिस्तान की सरकार को कड़ा सन्देश दे कि मानवता का मजाक उड़ाने वाले और हिन्दू बहन-बेटियों के साथ कुकर्म करने वाले नापाक वहशी दरिन्दों को कड़ी सजा दी जाये और पाकिस्तान के सभी हिन्दुओं को सम्पूर्ण सुरक्षा मुहैया करवायी जाये, अन्यथा इससे जहॉं एक ओर दोनों देशों के रिश्तों में खटाश तो आयेगी ही, साथ ही साथ भारत इस प्रकार के मामलों को चुपचाप नहीं देखेगा।
2-मीडिया के मार्फ़त जो खबरें आ रही हैं, उनसे पता चलता है कि इतनी भयानक स्थितियॉं पैदा हो चुकी हैं कि पाकिस्तान के हिन्दू परिवार भारत में शरण प्राप्त करने को विवश हो गये हैं। जिस पर भारत के इस्लामिक धर्मगुरुओं की ओर से रमजान के पवित्र महिने में चुप्पी साध लेना किस बात का संकेत देती है?
अमेरिका जो संसार के किसी भी देश के किसी भी कौने में अपनी दादागिरी करने पहुँच जाता है, उसे ये घटनाएँ क्यों नहीं दिख रही हैं? यह भी अपने आप में एक बड़ा सवाल है और भारत को विश्‍व मंचों पर इस बात को अमेरिका के खिलाफ उपयोग में लाना चाहिये।
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भारत और पाकिस्तान अपनी आजादी का जश्‍न मानने में मशगूल हैं और पाकिस्तान में आये दिन हिन्दू लड़कियों और औरतों के साथ हिन्दू होने के कारण ‘‘बलात्कार’’ किये जाने की खबरें, मीडिया के माध्यम से लगातार आती रहती हैं। जिस पर भारत सरकार की ओर से ऐसा कोई ठोस कूटनीतिक कदम सार्वजनिक रूप से नहीं उठाया गया है, जिससे देश के आम इंसाफ पसन्द लोगों को और विशेषकर हिन्दुओं को इस बात का अहसास हो सके कि भारत सरकार को विदेशों में बसने वाले हिन्दुओं की भी चिन्ता है! यह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण और दु:खद है, जिसकी तीखे शब्दों कड़ी निन्दा और भर्त्सना की जानी चाहिये।

हम सभी भारतीय और पाकिस्तानी लोग इस बात को ठीक से जानते हैं कि विभाजन के समय दोनों राष्ट्रों के तत्कालीन कर्ताधर्ताओं की ओर से सार्वजनिक रूप से गारण्टी दी गयी थी कि विभाजन के बाद अपने-अपने नागरिकों के बीच सरकारों द्वारा धर्म के आधार पर या अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जायेगा और सभी को अपने-अपने दीन-ईमान-धर्म का अनुसरण और पालन करने की सम्पूर्ण आजादी होगी। सभी को बिना किसी भेदभाव के पूर्ण सुरक्षा प्राप्त होगी। इसके बावजूद दोनों ही देशों में अनेकों बार इस घोषणा का उल्लंघन किया गया है।

वर्तमान में पाकिस्तान में हिन्दू धर्मानुयाईयों की बहन बेटियों की इज्जत के साथ केवल इस कारण कि वे हिन्दू हैं, सरेआम खिलवाड़ किया जाना ‘इस्लाम’ और ‘हिन्दू’ दोनों ही धर्मों के मूल सिद्धान्तों के विपरीत है। यही नहीं ये कुकृत्य संसार के सभी राष्ट्रों द्वारा स्वीकृत और सभी पर लागू मानव अधिकारों की संधियों के भी विपरीत है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि इस प्रकार की घटनाएँ समाज में वैमनस्यता और दुराग्रहों को जन्म देती हैं। जिससे आहत धर्म के अन्य लोगों में भी स्वाभाविक तौर पर गुस्सा भड़कता है, जिसमें हिंसा और आगजनी जैसी घटनाएँ हो सकती हैं। कुछ घटिया किस्म के लोग ऐसे माहौल का लाभ उठाकर लोगों के बीच दूरियॉं पैदा करने के प्रयास करते हैं। ऐसे में अनेक निरीह प्राणी असमय काल के गाल में समा जाते हैं। जिसके चलते समाज में साम्प्रदायिक माहौल खराब होता है। लोगों के बीच धार्मिक दीवारें खड़ी हो जाती हैं!

मीडिया के मार्फ़त जो खबरें आ रही हैं, उनसे पता चलता है कि इतनी भयानक स्थितियॉं पैदा हो चुकी हैं कि पाकिस्तान के हिन्दू परिवार भारत में शरण प्राप्त करने को विवश हो गये हैं। जिस पर भारत के इस्लामिक धर्मगुरुओं की ओर से रमजान के पवित्र महिने में चुप्पी साध लेना किस बात का संकेत देती है? मॉं-बहन किसी की भी हों, उनकी रक्षा करना केवल दीन, धर्म या मजहब को मानने वालों के लिये ही नहीं, बल्कि इंसानियत में आस्था रखने वाले हर एक इंसान का फर्ज है! जिस पर किसी की भी चुप्पी का अर्थ है, इंसानियत को नंगा होते हुए देखकर भी चुप्पी साध लेना या उनके इंसानी जेहन का मर जाना। मानवीय संवेदनशीलता का समाप्त हो जाना और नापाक एवं वहशी ताकतों के समाने घुटने टेकना और उनको खुला समर्थन देना।

फिर से इस बात को दौहराना जरूरी है कि भारत सरकार का ये नैतिक, मानवीय, धार्मिक, राष्ट्रीय, संवैधानिक और वैश्‍विक फर्ज है कि वह अपने स्तर पर कूटनीतिक प्रयासों के जरिये पाकिस्तान की सरकार को कड़ा सन्देश दे कि मानवता का मजाक उड़ाने वाले और हिन्दू बहन-बेटियों के साथ कुकर्म करने वाले नापाक वहशी दरिन्दों को कड़ी सजा दी जाये और पाकिस्तान के सभी हिन्दुओं को सम्पूर्ण सुरक्षा मुहैया करवायी जाये, अन्यथा इससे जहॉं एक ओर दोनों देशों के रिश्तों में खटाश तो आयेगी ही, साथ ही साथ भारत इस प्रकार के मामलों को चुपचाप नहीं देखेगा।

अमेरिका जो संसार के किसी भी देश के किसी भी कौने में अपनी दादागिरी करने पहुँच जाता है, उसे ये घटनाएँ क्यों नहीं दिख रही हैं? यह भी अपने आप में एक बड़ा सवाल है और भारत को विश्‍व मंचों पर इस बात को अमेरिका के खिलाफ उपयोग में लाना चाहिये। इस सबके साथ-साथ भारत के आम लोगों को भी जहॉं एक ओर तो संयम और सौहार्द को बनाये रखना होगा, वहीं दूसरी ओर भारत सरकार को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करने के लिये मजबूर करना होगा! प्रतिपक्षी दलों को भी एकजुट होकर इस मामले को संसद में पूरी ताकत के साथ उठाना चाहिये। भारत की महिला संगठनों और मानव अधिकारों के लिये काम करने वाले संगठनों तथा लोगों को भी इस मामले में संज्ञान लेकर इसे उचित मंचों पर उठाना चाहिये। लेकिन इस बात की सावधानी बरती जाने की भी अत्यधिक जरूरत है कि इस मामले को भारत के कुछ दुष्ट प्रकृति के साम्प्रदायिक लोग वोट बैंक बनाने के लिये इस्तेमाल नहीं करने पायें।

Sunday, November 13, 2011

पशुओं की हत्या कराने वाला यह ईश्वर कौन है?

तस्लीमा के बयानों को अपने पक्ष में अपने तरीके से इस्तेमाल किये जाने का मीडिया को जो भी लाभ मिलता हो उससे एक बड़ा नुकसान ये होता है कि तस्लीमा द्वारा कही गयी सही बातों, जिन पर कि व्यापक विमर्श संभव हो सकता है, सामने नहीं आ पातीं ...

तसलीमा आहत हैं,मगर हारी नहीं हैं.इस बार उन्हें देश की मीडिया से शिकायत है ,जो अपनी सुर्ख़ियों के लिए बार -बार उनका इस्तेमाल करता है और धर्म की आड़ में करने वालों के हाथों में हथियार थमा देता है.जिससे वो जब नहीं तब तसलीमा को छलनी करते रहते हैं.तसलीमा पर ताजा हमला बकरीद से पूर्व पशु हत्या को नाजायज कहे जाने से सम्बंधित ट्विट की वजह से हुआ है,जिसमे तस्लीमा ने किसी भी धर्म में पशु हत्या को नाजायज ठहराते हुए कहा था कि वो इश्वर महान कैसे हो सकता है जो निर्दोष प्राणियों की हत्या से खुश होता हो.
तस्लीमा के इस बयान को दैनिक भास्कर के हिंदी और अंग्रेजी संस्करणों ने जानबूझ कर इस तरह से प्रस्तुत किया मानो वो इस्लाम के खिलाफ बोल रही हों नतीजा ये हुआ कि पंजाब के शाही इमाम हबीब -उर -रहमान ने जुमे की नमाज के बाद तसलीमा को इस्लाम से निष्काषित किये जाने का फतवा सुना दिया.शाही इमाम का कहना था कि तसलीमा का दिमाग खराब हो गया है इसलिए वो अपने ही धर्म के खिलाफ बोल रही हैं ,उन्होंने ये भी कहा कि "तसलीमा मानवता पर काले धब्बे की तरह हैं इसलिए उन्हें और इस्लाम और ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकता". 
गौरतलब है कि दुर्गा पूजा और उसके बाद बकरीद के दौरान पूरे देश में लाखों पशुओं की आस्था के नाम पर बलि चढ़ा दी जाती है. तसलीमा इस पूरे मामले पर एक बातचीत में कहती हैं "भास्कर ने मेरे बयान को इमानदारी से प्रस्तुत नहीं किया, शायद वो मेरे खिलाफ फतवे की अपेक्षा कर रहे थे और उन्होंने अंततः वो कर डाला. अपने ताजा बयान के सम्बन्ध में वो कहती हैं "मै दर्द रहित मृत्यु की कामना करती हूँ, पशुओं को भी इसका अधिकार होना चाहिए". 
तसलीमा के खिलाफ मीडिया के दुष्प्रचार का पहला मामला नहीं है, दरअसल देश का मीडिया उनके बयानों को अपनी टीआरपी के लिए इस्तेमाल करता रहा है. ऐसे में कई बार उनके द्वारा कही गयी बातें सही ढंग से लोगों के बीच नहीं आ पाती और नतीजा वो बार-बार फतवों का शिकार हो जाती हैं. इसके पूर्व मीडिया ने सत्य साई बाबा की मौत के बाद उन्हें कथित तौर पर दिए गए उस बयान को लेकर कटघरे में खड़ा करदिया था, जिसमे उन्होंने सत्य साईं बाबा के निधन के पहले सचिन तेंदुलकर द्वारा देश से प्रार्थना किये जाने की अपील से सम्बंधित उस ट्वीट को री ट्वीट कर दिया था, जिसमे कहा गया था कि "साई बाबा 86 साल के हो गए थे, उन्हें मरने देना चाहिए?" 
हुआ ये था कि तसलीमा ने किसी अन्य व्यक्ति के ट्वीट को री ट्विट कर दिया था, टाइम्स आफ इण्डिया ने उसे तस्लीमा का व्यक्तिगत बयान मान कर खबर छाप दी. तस्लीमा का कहना था कि आम आदमी री ट्विट के बारे में न जानता हो ये संभव है ये कैसे संभव है कि टाइम्स आफ इण्डिया को इसकी जानकारी न हो.
गौरतलब है कि इस खबर के प्राकशित होने के बाद तसलीमा के वीजा को रद्द किये जाने को लेकर मीडिया में बहस शुरू हो गयी थी. दरअसल तस्लीमा के बयानों को अपने पक्ष में अपने तरीके से इस्तेमाल किये जाने का मीडिया को जो भी लाभ मिलता हो उससे एक बड़ा नुकसान ये होता है कि तस्लीमा द्वारा कही गयी सही बात जिन पर व्यापक विमर्श संभव हो सकता है, सामने नहीं आ पाती. अक्सर उनके बारे में छापने वाली ख़बरों की शुरुआत ही विवादास्पद या फिर कंट्रोवर्शियल लेखिका तस्लीमा नसरीन ...से शुरू होती है. 
हिंदुस्तान की मीडिया को समझने की कोई भी कोशिश तस्लीमा को केन्द्र में रखकर आसानी से की जा सकती है, दरअसल जब कभी तस्लीमा कुछ बोलती है, अयोध्या और गुजरात से जुड़े अपने चरित्र को छोड़कर मीडिया तत्काल सेक्युलर हो जाता है, तस्लीमा के बयानों का प्रस्तुतीकरण उसके लिए वो माध्यम है, जिससे वो जब नहीं तब दिखने वाली अपनी भगवा छवि को उजला कर सकता है, ज्यादा से ज्यादा उजला दिखने की कोशिश में तस्लीमा पर हमले और भी तेज कर दिए जाते हैं.तसलीमा साफ़ कहती हैं "मीडिया मेरी बात क्यूँ कहेगा, क्या वो भी धर्म से प्रभावित हो रहा है ?" 
हमें नहीं याद है कि पश्चिम बंगाल में तसलीमा के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाए जाने के बाद देश के किसी भी अखबार ने लोकतांत्रिक मूल्यों की इस शर्मनाक अवहेलना पर एक शब्द भी नहीं लिखा, यूँ लग रहा था, जैसे नहीं तैसे तस्लीमा को पश्चिम बंगाल से क्या देश से ही खदेड़ दिया जाए. 
अफ़सोस ये है कि तसलीमा के खिलाफ मीडिया की इस मनमानी को लेकर देश के तमाम बुद्धिजीवी भी अपने होंठ सीए रहते हैं, इस मनमानी पर उनका सीधा तर्क होता है कि तसलीमा अतिवादी बयान दे रही हैं, जबकि सच्चाई ये है कि वो डरते हैं कि कहीं तसलीमा के पक्ष में खड़ा होकर वो खुद अन्सेक्युलर साबित हो जायेंगे. ऐसा नहीं है कि तसलीमा के बयानों से असहमति नहीं हो सकती, निश्चित तौर पर हो सकती है. लेकिन मीडिया उनके मामले में गेम खेलकर बहस के सारे रास्तों पर ही ताला लगा देती है. जहाँ तक फतवों का सवाल है, लगता है देश के तमाम इमाम और मौलवी इस इन्तजार में रहते हैं कि कब तसलीमा कुछ बोलें, जिसकी खबर बने और कब फतवा जारी कर दिया जाये. 
तसलीमा के खिलाफ जो भी हालिया फतवे जारी हुए हैं वो सभी कतरनों का करिश्मा हैं. बंगलादेश में तो ये असंभव था, लेकिन हिंदुस्तान में स्वतंत्र कहे जाने वाले मीडिया का वर्ग भी इन फतवों के खिलाफ कुछ नहीं बोलता, भास्कर ने शुक्रवार के फतवे को लेकर जो खबर छपी है उसे पढ़कर यूँ लगता है मानो वो दाउद इब्राहिम हो तसलीमा नहीं. पत्रकारिता में आदर्शों और मानकों की दुहाई देने वाली मीडिया कभी भी किसी भी खबर को छपने के पहले उस मामले में उनकी राय जानने की कोशिश नहीं करता, जो कुछ जहाँ मिलता है, उसे अपनी समझ और पाने लाभ के हिसाब से तोड़ फोड़ कर लगा दिया जाता है. 
अब वक्त आ गया है कि देश की मीडिया तसलीमा के साथ किये जा रहे अपने अन्याय पूर्ण व्यवहार की मीमांसा करे. आलोचना की वो कभी परवाह नहीं करती, निस्संदेह उनकी आलोचना हो, लेकिन सच भी शीशे की तरह साफ़ दिखना चाहिए. सोशल नेटवर्किंग के इस जमाने में जब धर्म, जाति, संप्रदायों से जुडी सभी नकारात्मक प्रवृतियाँ भर भरा कर टूट रही हैं, तसलीमा को उनकी बात साहस के साथ कहने में हमें मदद करनी ही होगी, नहीं तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सारे दावे बेमानी साबित तो होंगे ही, पत्रकारिता के पाखण्ड से भी पर्दा उठ जायेगा, जहाँ हम सब नंगे हैं.-स्त्रोत : आवेश तिवारी, जनज्वार, १३.११.११