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Sunday, December 20, 2015

देश का दुश्मन नहीं है भारतीय मुसलमान !

देश का दुश्मन नहीं है भारतीय मुसलमान !
राजस्थान के दौसा में पाकिस्तानी झण्डा फहराये जाने तथा टौंक के मालपुरा में आई एस आई एस के पक्ष में नारे लगाये जाने और जयपुर में आतंकी नेटवर्क खड़ा करने में जुटे मोहम्मद सिराजुद्दीन को गिरफ्तार किये जाने के बाद यह चर्चा बहुत आम हो गई है कि राजस्थान प्रदेश आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने की सबसे सुरक्षित जगह बन गया है ! 
उत्तरप्रदेश के एक स्वयंभू हिन्दू महासभाई कमलेश तिवाड़ी द्वारा हजरत मोहम्मद को अपमानित करने वाली टिप्पणी करने के विरोध में हुये देशव्यापी प्रदर्शन राजस्थान के भी विभिन्न शहरों में आयोजित किये गये. साम्प्रदायिक रूप से अतिसंवेदनशील मालपुरा कस्बे में भी मुस्लिम युवाओं ने अपने बुजुर्गों की मनाही के बावजूद एक प्रतिरोध जलसा किया. हालांकि शहर काजी और कौम के बुजुर्गों ने बिना मशवरे के कोई भी रैली निकालने से युवाओं को रोकने की भरपूर असफल कोशिस की. जैसा कि मालपुरा के निवासी वयोवृद्ध इकबाल दादा बताते है कि -
'हमने उन्हें मना कर दिया था और शहर काजी ने भी इंकार कर दिया था, मगर रसूल की शान के खिलाफ की गई अत्यंत गंदी टिप्पणी से युवा इतने अधिक आक्रोशित थे कि वे काजी तक को हटाने की बात करने लगे थे '
अंतत: मालपुरा के युवाओं की अगुवाई में 11दिसम्बर को एक रैली जामा मस्जिद से शुरू हो कर कोर्ट होते हुये तहसीलदार को ज्ञापन देने पहुंची. शांतिपूर्ण तरीके से ज्ञापन दे दिया गया। मगर दूसरे दिन सोशल मीडिया में वायरल हुये एक वीडियो के मुताबिक रैली से लौटते हुये मुस्लिम नवयुवकों ने 'आर एस एस- मुर्दाबाद' तथा 'आई एस आई एस- जिन्दाबाद' के नारे लगाये.
जब मुस्लिम समाज के मौतबीर लोगों को पुलिस के समक्ष यह वीडियो दिखाया गया तो उन्हें पहले तो यकीन ही नहीं हुआ, फिर उन्होंने अपने बच्चों की इस तरह की हरकत के लिये तुरंत माफी मांग ली और मामले को तूल नहीं देने का आग्रह किया, ताकि सौहार्द बरकरार रहे, मगर मालपुरा के हिन्दुवादी संगठन इस मांग पर अड़ गये कि दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उनको तुरंत गिरफ्तार किया जाये. सूबे में सत्तारूढ़ विचारधारा के राजनैतिक दबाव के चलते किसी व्यक्ति विशेष द्वारा बनाये गये विडियो को आधार बना कर मुकदमा दर्ज कर लिया गया तथा सलीमुद्दीन रंगरेज, फिरोज पटवा ,वसीम ,शाहिद ,शाकिर ,अमान तथा वसीम सलीम सहित 7 लोगो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.
गिरफ्तार किये गये 60 वर्षीय राशन डीलर सलीमुद्दीन के बेटे नईम अख्तर का कहना है कि-
'मेरे वालिद एक जमीन के सौदे के सिलसिले में कोर्ट गये थे, वे रैली मैं शरीक नहीं थे, मगर पुलिस कहती है कि उनका चेहरा वीडियो में दिख रहा है] जहां नारे लगाये जा रहे थे, इसलिये उन्हें गिरफ्तार किया गया है'
मालपुरा के मुस्लिम समुदाय का आरोप है कि पुलिस जानबूझकर बेगुनाहों को पकड़ रही है. इतना ही नहीं बल्कि धरपकड़ अभियान के दौरान सादात मौहल्ले में पुलिस द्वारा मुस्लिम औरतों के साथ निर्मम मारपीट और बदसलूकी भी की गई.
पुलिस दमन की शिकार 50 वर्षीय बिस्मिल्ला कहती है कि हम बहुत सारी महिलायें कुरान पढ़कर लौट रही थी, तब घरों में घुसते हुये मर्द पुलिसकर्मियों ने हमें मारा. वह चल फिरने में असहाय महसूस कर रही है. सना ,जमीला ,फहमीदा ,नसीम आदि महिलाओं पर भी पुलिस ने लाठियां भांजी ,किसी को चोटी पकड़ कर घसीटा तो किसी को पैरों और जंघाओं पर मारा एवं भद्दी गालियां दे कर अपमानित किया.पुलिस तीन औरतों-फरजाना ,साजिदा और आरिफा को पुलिस पर पथराव करने और राजकार्य में बाधा उत्पन्न करने के जुर्म में गिरफ्तार कर ले गई.जहां से फरजाना को शांतिभंग के आरोप में पाबंद कर देर रात छोड़ दिया गया ,वहीं आरिफा और साजिदा को जेल भेज दिया गया.
उल्लेखनीय है कि मालपुरा में आतंकवादी संगठनों के पक्ष में कथित नारे लगाने के वीडियो को वायरल किये जाने के बाद राज्य भर में इसकी प्रतिक्रिया हुई. हिन्दुत्ववादी संगठनों ने कुछ जगहों पर इसके विरूद्ध में ज्ञापन भी दिये और देशविरोधी तत्वों पर अंकुश लगाने की मांग की. जो विडियो लोगो को उपलब्ध है उसे देखने पर ऐसा लगता है कि वापस लौटती रैली में नारे लगाते एक युवक समूह पर ये नारे सुपर इम्पोज किये गये है . क्योंकि नारों की घ्वनि और रैली में चल रहे लोगो के मध्य कोई तारतम्य ही नहीं दिखाई पड़ता है .जिस जगह का यह विडियो है ,वहां के दुकानदारों का जवाब भी स्पष्ट नहीं है ,वे यह तो कहते है कि मालपुरा में पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे आम बात है ,मगर ये नारे कब और कहां लगते है तथा उस दिन क्या उन्होंने आई एस आई एस के पक्ष में नारे सुने थे ? इसका जवाब वे नहीं देते ,इतना भर कहते है की शायद आगे जा कर लगाये हो या कोर्ट में लगा कर आये हो.
विचार योग्य बात यह है कि ज्ञापन के दिन ना किसी समाचार पत्र ,ना किसी टीवी चैनल और ना ही गुप्तचर एजेंसियों और ना ही पुलिस या प्रशासन को ये नारे सुनाई पड़े .लेकिन अगले दिन अचानक एक वीडियो जिसकी प्रमाणिकता ही संदिग्ध है ,उसे आधार बना कर पुलिस मालपुरा के मुस्लिम समाज को देशप्रेम की तुला पर तोलने लगती है तथा उनमें देशभक्ति की मात्रा कम पाती है और फिर गिरफ्तारियों के नाम पर दमन और दशहत का जो दौर चलता है ,वह दिन ब दिन बढ़ते ही जाता है. हालात इतने भयावह हो जाते है कि लोग अपने आशियानों पर ताले लगा कर दर ब दर भागने को मजबूर कर दिये जाते है.
मालपुरा का घटनाक्रम चर्चा में ही था कि एक बड़े समाचार पत्र में दौसा के हलवाई मौहल्ले के निवासी 'खलील के घर की छत पर पाकिस्तानी झण्डा' फहराये जाने की सनसनीखेज खबर साया हो जाती है. खलील को तो प्रथम दृष्टया ही देशद्रोही घोषित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई ,मगर दौसा के मुस्लिम समाज ने पूरी निर्भिकता से इस शरारत का मुंह तोड़ जवाब दिया और पुलिस तथा प्रशासन को बुलाकर स्पष्ट किया कि यह चांद तारा युक्त हरा झण्डा इस्लाम का है ,ना कि पाकिस्तान का ! पुलिस अधीक्षक गौरव यादव को इस उन्माद फैलाने वाली हरकत करने की घटना पर स्पष्टीकरण देना पड़ा तथा उन्होनें माना कि यह गंभीर चूक हुई है ,एक धार्मिक झण्डे को दुश्मन देश का ध्वज बताना शरारत है. मुस्लिम समुदाय की मांग पर चार मीडियाकर्मियों के विरूद्ध मुकदमा दर्ज किया गया और खबर लिखने वाले पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया गया. खबर प्रकाशित करने वाले मीडिया समूह ने इसे पुलिस की नाकामी करार देते हुये स्पष्ट किया कि उनकी खबर का आधार पुलिस द्वारा दी गई सूचना ही थी ,पुलिस ने अपनी असफलता छिपाने की गरज से मीडिया के लोगों को बलि का बकरा बना दिया है.
जैसा कि इन दिनों ईद मिलादुन्नबी की तैयारियों के चलते घरों पर चांद तारे वाला हरा झण्डा लगभग हर जगह लगा हुआ दिखाई पड़ जाता है , उसे पाकिस्तानी झण्डे के साथ घालमेल करके मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार का अभियान चलाया जा रहा है .
भीलवाड़ा में पिछले दिनों एक मुस्लिम तंजीम के जलसे के बाद ऐसी ही अफवाह उड़ाते एक शख्स को मैने जब चुनौती दी कि वह साबित करे कि जिला कलक्ट्रेट पर प्रदर्शन में पाकिस्तानी झण्डा लहराया गया है तो वह माफी मांगने लगा. इसी तरह फलौदी में पाक झण्डे फहराने सम्बंधी वीडियो होने का दावा कर रहे एक व्यक्ति से विडियो मांगा गया तो उसने ऐसा कोई वीडियो होने से ही इंकार कर दिया. तब ये कौन लोग है जो संगठित रूप से ' पाकिस्तानी झण्डे ' के होने का गलत प्रचार कर रहे है. यह निश्चित रूप से वही अफवाह गिरोह है जो हर बात को उन्माद फैलाने और दंगा कराने में इस्तेमाल करने में महारत हासिल कर चुका है.
इन कथित राष्ट्रप्रेमियों को मीडिया की बेसिर पैर की खबरें खाद पानी मुहैया करवाती रहती है. भारत का कारपोरेट नियंत्रित जातिवादी मीडिया लव जिहाद , इस्लामी आतंतवाद ,गौ तस्करी ,पाकिस्तानी झण्डा ,सैन्य जासूसी और आतंकी नेटवर्क के जुमलों के आधार पर चटपटी खबरें परोस कर मुस्लिम समुदाय के विरूद्ध नफरत फैलाने के विश्वव्यापी अभियान का हिस्सा बन रहा है . आतंकवाद की गैर जिम्मेदाराना पत्रकारिता का स्वयं का चरित्र ही अपने आप में किसी आतंकवाद से कम नहीं दिखाई पड़ता है. हद तो यह है कि हर पकड़ा ग़या 'संदिग्ध' मुस्लिम दूसरे दिन 'दुर्दांत आतंकी ' घोषित कर दिया जाता है और उसका नाम 'अलकायदा' 'इंडियन मुजाहिद्दीन ' 'तालिबान ' अथवा 'इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एण्ड सिरिया ' से जोड़ दिया जाता है. आश्चर्य तो तब होता है जब मीडिया गिरफ्तार संदिग्ध को उपरोक्त में किसी एक आतंकी नेटवर्क का कमाण्डर घोषित करके ऐसी खबरें प्रसारित व प्रकाशित करता है , जैसे कि सारी जांच मीडियाकर्मियों के समक्ष ही हुई हो. अपराध सिद्ध होने से पूर्व ही किसी को आतंकी घोषित किये जाने की यह मीडिया ट्रायल एक पूरे समुदाय को शक के दायरे में ले आई है. इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि आज इस्लाम और आतंकवाद को एक साथ देखा जाने लगा है. इसी दुष्प्रचार का नतीजा है कि आज हर दाढ़ी और टोपी वाला शख्स लोगों की नजरों में 'संदिग्ध आतंकी ' के रूप में चुभने लगा है.
हाल ही में जयपुर में इण्डियन ऑयल कार्पोरेशन के मार्केटिंग मैनेजर सिराजुद्दीन को 'एन्टी टेरेरिस्ट स्क्वॉयड' ने आई एस आई एस के नेटवर्क का हिस्सा होने के आरोप में गिरफ्तार किया .मीडिया के लिये यह एक महान उपलब्धि का क्षण बन गया. पल पल की खबरें परोसी जाने लगी-" आतंकी नेटवर्क का सरगना सिराजुद्दीन यहां रहता था ,यह करता था ,वह करता था.सोशल मीडिया के जरिये 13 देशों के चार लाख लोगों से जुड़ा था ,अजमेर के कई युवाओं के सम्पर्क में था.सुबह मिस्र ,इंडोनेशिया जैसे देशों में रिपोर्ट भेजता था ,तो शाम को खाड़ी देशों तथा दक्षिणी अफ्रिकी देशों को रिपोर्ट भेजता था.फिदायनी दस्ते तैयार कर रहा था.आदि इत्यादि " 
दस दिन आतंक की खबरों का बाजार गर्म रहा ,सिराजुद्दीन को इस्लामिक स्टेट का एशिया कमाण्डर घोषित कर दिया गया ,जबकि जांच जारी है और जांच एजेन्सियों की और से इस तरह की जानकारियों का कोई ऑफिशियल बयान जारी नहीं हुआ है.गिरफ्तार किये गये मोहम्मद सिराजुद्दीन के पिता गुलबर्गा कर्नाटक निवासी मोहम्मद सरवर कहते है कि उनका बेटा पक्का वतनपरस्त है ,वह अपने मुल्क के खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकता है.सिराजुद्दीन की पत्नि यास्मीन के मुताबिक-
' उसने कभी भी उसको कुछ भी रहस्यमय हरकत करते हुये नहीं देखा ,वह एक नेक धार्मिक मुसलमान के नाते लोगो की सहायता करनेवाला इंसान है. उसके बारे में यह सब सुनकर मैं विश्वास ही नहीं कर पा रही हूं '
खैर ,सच्चाई क्या है , इसके बारे में कुछ भी कयास लगाना अभी जल्दबाजी ही होगी और जिस तरह का हमारी खुफिया एजेन्सियां ,पुलिस और आतंकरोधी दस्तों का पूर्वाग्रह युक्त साम्प्रदायिक व संवेदनहीन चरित्र है ,उसमें न्याय या सत्य के प्रकटीकरण की उम्मीद सिर्फ एक मृगतृष्णा ही है.यह देखा गया है कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में बरसों बाद 'कथित आतंकवादी' बरी कर दिये जाते है ,मगर तब तक उनकी जवानी बुढ़ापा बन जाती है.परिवार तबाह हो चुके होते है .
कुछ अरसे से पढ़े लिखे ,सुशिक्षित ,आई टी एक्सपर्ट भारतीय मुसलमान नौजवान खुफिया एजेन्सियों और आतंकवादी समूहों के निशाने पर है ,उन्हें पूर्वनियोजित योजना के तहत तबाह किया जा रहा है. इस तबाही या दमन चक्र के विरूद्ध उठने वाली कोई भी आवाज देशद्रोह मान ली जा रही है ,इसलिये राष्ट्र राज्य से भयभीत अल्पसंख्यक समूह अब बोलने से भी परहेज करने लगा है और बहुसंख्यक तबका मीडियाजनिक विभ्रमों का शिकार हो कर राज्य प्रायोजित दमन को 'उचित' मानने लगा है.जो कि अत्यंत निराशाजनक स्थिति है.
राजस्थान में गोपालगढ़ में मुस्लिम नरसंहार के आरोपी खुलेआम विचरण करते है.नौगांवा का होनहार मुस्लिम छात्र आरिफ जिसे पुलिस ने घर में घुसकर एके सैंतालीस से भून डाला ,उसके हत्यारे पुलिसकर्मियों को सजा नहीं मिलती है.भीलवाड़ा के इस्लामुद्दीन नामक नौजवान की जघन्य हत्या करने वाले हत्यारों का पता भी नहीं चलता है.गौ भक्तों द्वारा पीट पीट कर मार डाले गये डीडवाना के गफूर मियां के परिवार की सलामती की कोई चिन्ता नहीं करता है.हर दिन होने वाली साम्प्रदायिक वारदातों की आड़ में मुस्लिमों को लक्षित कर दमन चक्र निर्बाध रूप से जारी है.कहीं भी कोई सुनवाई नहीं है.लोग थाना ,कोर्ट कचहरियों में चक्कर काटते काटते बेबसी के कगार पर है और उपर से शौर्यदिवस के जंगी प्रदर्शनों में 'संघ में आई शान -मियांजी जाओ पाकिस्तान ' या ' अब भारत में रहना है तो हिन्दु बन कर रहना होगा ' जैसे नारे जख्मों पर नमक छिड़क रहे है.
हर दिन दूरियां बढ़ रही है,बेलगाम बयानबाजी ,दिन प्रतिदिन गांव गांव में बढ रहे संचलन और हथियारों को लहराती हुई रैलियां किसी गृहयुद्ध के बीज बोती दिख रही है.
आश्चर्य की बात तो यह है कि हम अपना घर नहीं सम्भाल पा रहे है ,अपने ही लोगों का भरोसा नहीं जीत पा रहे है और हमारे रक्षामंत्री अमेरिका की सैर से लौट कर कह रहे है कि-संयुक्त राष्ट्र कहेगा तो हमारी सेना "इस्लामिक स्टेट" से लड़ने को तैयार है .समझ नहीं आता कि हम आ बैल मुझे मार का काम क्यों करना चाहते है. हमें समझना होगा कि हथियारों का सौदागर अमेरिका कभी किसी का यार नहीं हुआ है.उसके बहकावे में आकर हमें किसी युद्ध में अपनी सेना को झौंकने की गलती क्यों करनी चाहिये ? हम अपने इर्द गिर्द के सभी मुल्कों को वैसे भी दुश्मन बना ही चुके है. हाल ही में हमने अपनी असफल विदेश नीति के चलते नेपाल जैसे स्वभाविक पड़ौसी मित्र तक को अपना विरोधी और चीन को दोस्त बना डाला है .अब हम क्या सारी मुस्लिम दुनिया को भी अपना दुश्मन बना लेंगे ? गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि कहीं हम अमेरिका जैसे देशों के बिछाये जाल में तो नहीं फंसते जा रहे है ? हमारा अमेरिकी प्रेम हमें डुबो भी सकता है .स्थिति यह होती जा रही है कि वाशिंगटन ही पूरा विमर्श तय कर रहा है. इस्लामिक आतंकवाद जैसी शब्दावली से लेकर किनसे लड़ना है और कब लड़ना है ? ईराक से लेकर अफगानिस्तान तक और सिरिया ये लेकर लीबिया तक आतंकी समूहों का निर्माण ,उनके सरंक्षण-संवर्धन में अमेरिका की हथियार इंडस्ट्री और सत्ता सब लगे हुये है .वैश्विक वर्चस्व की इस लड़ाई में पश्चिम का नया दुश्मन मुसलमान है ,मगर भारतीय राष्ट्र राज्य के लिये मुसलमान दुश्मन नहीं है .वे देश के सम्मानित नागरिक है.राष्ट्र निर्माण के सारथी है ,उनसे दुश्मनों जैसा सलूक बंद होना चाहिये .उनके देशप्रेम पर सवालिया निशान लगाने की प्रवृति से पार पाना होगा.झण्डा ,दाढ़ी ,टोपी ,मदरसे ,आबादी ,मांसाहार जैसे कृत्रिम मुद्दे बनाकर किया जा रहा उनका दमन रोकना होगा.उन्हें न्याय और समानता के साथ अवसरों में समान रूप से भागीदार बनाना होगा ,ताकि हम एक शांतिपूर्ण तथा सुरक्षित विकसित राष्ट्र का स्वप्न पूरा कर सकें .
- भँवर मेघवंशी 
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है , bhanwarmeghwanshi@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है



Tuesday, February 26, 2013

हिंदू, सवर्ण, मर्द राष्ट्र

मनीषा पांडेय
इंडिया टुडे की फीचर एडिटर
मनीषा पांडेय






एक काम क्‍यों नहीं करते, इस मुल्‍क को आप हिंदू, सवर्ण, मर्द राष्ट्र घोषित कर दीजिए!

मनीषा पांडेय

"मैं पिछले दस सालों से घर से दूर अकेले रह रही हूं। लेकिन मेरी मां को आज भी लगता है कि मैं घर वापस आ जाऊं। लड़की के अकेले रहने, अकेले घर से बाहर निकलने के ख्‍याल से उन्‍हें बार-बार इलाहाबाद की उस महिला डॉक्‍टर का ख्‍याल आता है, जिसे कुछ लोगों ने रेप करके मार डाला था। दिल्‍ली गैंग रेप के बाद उनका डर और गहरा हो गया है। वो जानती हैं, रहना तो पड़ेगा लेकिन उनके दिल को सुकून नहीं है। उन्‍हें कतई भरोसा नहीं है कि कभी कुछ बुरा नहीं हो सकता। इस मुल्‍क में उन्‍हें अपनी बच्‍ची की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं लगती। वो डर में जीती हैं।"
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"मेरा एक मुसलमान दोस्‍त मुंबई में रहता है। शहर में जब-जब बम फटता है, उससे बहुत दूर बिजनौर में बैठी उसकी मां डर जाती है। वो नास्तिक है। खुदा से उसका कभी याराना नहीं रहा। वो न नमाज पढ़ता है, न रोजे रखता है। लेकिन उसे याद है कि हर नौकरी में लोगों ने उसके नाम के कारण उसे तिरछी निगाहों से देखा है। जब-जब बम फटे, उससे उसकी देशभक्ति का सबूत मांगा है। वो जिस मुल्‍क में पैदा हुआ, उसके दादा, परदादा, दादा के दादा, जिस मुल्‍क में जन्‍मे और जिसकी मिट्टी में दफन हो गए, वो मुल्‍क उससे रोज उसकी देशभक्ति का सबूत मांगता है। दूर देश बैठी उसकी मां रोज डर में जीती है। मां को भरोसा नहीं इस मुल्‍क पर कि वो उसके बच्‍चे की हिफाजत करेगा। इस मुल्‍क ने मां को वो भरोसा कभी नहीं ही दिया।
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मेरा एक और दोस्‍त है। बहुत गरीब दलित परिवार से आता है। उसकी विधवा मां ने लोगों के घरों में झाडू-बर्तन करके उसे पढ़ाया। आज वो पीसीएस ऑफीसर है। लेकिन अब भी वो कभी-कभी उदास होता है क्‍योंकि उसकी सारी पढ़ाई, मेहनत, पोजीशन और पावर के बावजूद लोग उसे आज भी पीठ पीछे चमार का लड़का कहकर बुलाते हैं। उसकी सारी उपलब्धियों का ठीकरा रिजर्वेशन के सिर फोड़ देते हैं। मां अपनी धुंधलाई आंखों से बेटे को देखती है और सोचती है कि इतना पढ़-लिखकर भी आखिर बदला क्‍या। उसकी मां को भी इस मुल्‍क पर भरोसा नहीं। क्‍या चाहिए था जिंदगी में। इज्‍जत और स्‍वाभिमान की दो रोटी। रोटी तो मिली लेकिन इज्‍जत और स्‍वाभिमान नहीं।
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ये सारी माएं तुम्‍हारे महान लोकतांत्रिक मुल्‍क में आज भी डर में जीती हैं। वो मुल्‍क पर भरोसा कर न सकीं, मुल्‍क उन्‍हें भरोसा करा न सका। क्‍योंकि ये मुल्‍क औरतों के, दलितों के, मुसलमानों के स्‍वाभिमान का घर है ही नहीं। एक काम क्‍यों नहीं करते। अपने मुल्‍क को आप हिंदू, सवर्ण, मर्द राष्ट्र घोषित कर दीजिए।
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मेरे मुसलमान दोस्‍त से ये मुल्‍क बार-बार देशभक्ति का सबूत मांगता है। एक औरत से उसका पति उसके शरीर की पवित्रता का सबूत मांगता है। बलात्‍कार की शिकार महिला से पुलिस, कानून, न्‍यायालय तक अच्‍छे चरित्र का सबूत मांगते हैं। एक दलित से उसकी खून की श्रेष्‍ठता का सबूत मांगते हैं। नौकरी और प्रमोशन में योग्‍यता का सबूत मांगते हैं। तुम्‍हारे मुल्‍क में हम सब हर क्षण संदेह के घेरे में हैं। तुम्‍हारे हिंदू, सवर्ण, मर्द राष्ट्र में हमारे लिए न इज्‍जत है, न स्‍वाभिमान।

स्त्रोत/साभार : भड़ास४मीडिया (इंडिया टुडे की फीचर एडिटर मनीषा पांडेय Manisha Pandey के फेसबुक वॉल से.)

Friday, February 1, 2013

देश का माहौल बिगाड़ने वाले तथाकथित बड़े लोग


"मनुवादी आशीष नन्दी कहते हैं कि भ्रष्टाचार के जनक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोक सेवक हैं। आशीष नन्दी को ये सब कहने का साहस इस कारण से हुआ कि कुछ ही दिन पूर्व प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि यदि वह भारत का प्रधानमंत्री बन जाये तो मुसलमानों से सभी प्रकार के संवैधानिक हकों को एक झटके में छीन लेंगे। इस बयान पर देश के शूद्र, तथाकथित बुद्धिजीवी, संविधान के रक्षक चुप्पी साधे रहे। सभी जानते हैं कि देश के 90 फीसदी से अधिक मुसलमानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों के पूर्वजों के वंशज हिन्दुओं से धर्मपरिवर्तित होकर मुसलमान बने हैं, जो मनुवादियों के लिये आज भी शूद्र ही हैं।"

डॉ पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

यदि हम इतिहास उठाकर देखें तो पायेंगे कि हर क्षेत्र में हर बार भारत का सौहार्द बिगाड़ने का काम भारत के तथाकथित बड़े कहलाने वाले लोगों ने ही किया है। इसकी शुरूआत कभी भी भारत के आम आदमी ने नहीं की है। चाहे बात अखण्ड भारत के स्वतन्त्रता सेनानी और पाकिस्तान के जनक मुहम्मत अली जिन्ना से शुरू की जाये या भारत के बहुसंख्यक शूद्रों (दलित, आदिवासियों और पिछड़ों) के सेपरेट इलेक्ट्रोल के अधिकार को छीनने के लिये अनशन को हथियार बनाने वाले मोहनदास कर्मचन्द गॉंधी की करें या अहिंसा के नाटककार पुजारी मो. क. गॉंधी के हत्यारे और कट्टरपंथी हिन्दू नाथूराम गोडसे की बात की जाये।

आगे चलकर अयोध्या-बाबरी विवाद को जानबूझकर भड़काने वाले लालकृष्ण आडवाणी की बात करें या कट्टर हिन्दुत्व को भड़काकर अपनी रोटी सेकने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उत्पाद प्रवीण तोगड़िया, उमा भारती, विनय कटारिया, नरेन्द्र मोदी जैसे मुसलमान विरोधी लोगों की बात करें या शिव सेना के बाला साहेब ठाकरे, उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे और उनके गुण्डों के कुकर्मों को देखें या फिर कथित बुद्धिजीवी कहलाने वाले समाज विज्ञानी और प्रोफेसर आशीष नन्दी की बात करें। स्त्री एवं शूद्र विरोधी ढोंगी संत आसाराम या हिंदुत्व के ठेकेदार संघ के मुखिया मोहन भागवत की बात करें। ये सब के सब इस देश के बहुसंख्यक लोगों (अर्थात शूद्रों), स्त्रियों और मुसलमानों को दूसरे, तीसरे और चौथे दर्जे का नागरिक मानते हैं। शूद्र, स्त्री एवं मुसलमानों को देश की कुल आबादी में से घटाने के बाद बचे शेष कुलीन मुनवादी लोग इस देश पर विगत हजारों सालों की भांति आगे भी हजारों सालों तक अपना अमानवीय राज कायम रखने के लिये तरह-तरह के पेंतरे चलते रहते हैं। जिसके लिये इन लोगों ने शूद्रों, स्त्रियों और मुसलमानों में से भी कुछ समाज-द्रोहियों को ललचाकर अपने मिला लिया है। जिन्हें दिखावटी तौर पर आगे रखकर ये सभी वर्गों के हितचिन्तक होने का ढोंग करते रहते हैं!

हिन्दुत्व के ये कथित संरक्षण अपनी संविधानेत्तर और कथित धार्मिक सत्ता और मनुवादी विचारधारा को हर कीमत पर कायम रखने के लिये अपनी खुद की गुण्डा-पुलिस रखते हैं। जो 14 फरवरी को वेलैटाइंस डे पर, मुम्बई से उत्तर भारतीयों को खदेड़ते समय, दलितों को मन्दिरों से लतियाते समय और स्त्रियों को धार्मिक आयोजनों पर बहिष्कृत करते हुए और छेड़ते समय अपना कमाल दिखाती रहती है। ये पुलिस देश में धर्म के नाम पर तरह-तरह के कुकर्म करती रहती है। जिसके सुफल गुजरात के डाण्डिया रास के बाद गर्भपात क्लीनिकों के आंकड़ों से प्रमाणित होते हैं। जिसे रोकने के लिये अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने तो बाकायदा डाण्डिया रास स्थलों के आसपास सरकारी खर्चे पर लाखों गर्भनिरोधक पिल्स और कण्डोम वितरित करवाकर इस बात को प्रमाणित किया था कि धार्मिक आयोजन कुलीन हिन्दुओं के लिये आज भी ऐश-ओ-आराम के सुअवसर होते हैं। आजाद भारत में जबकि देवदासी बनाने की अमानवीय हिन्दू प्रथा संवैधानिक तौर पर समाप्त हो चुकी है तो ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों का भव्यता से आयोजन किया जाने लगा है, जिनमें युवा लड़कियां धर्म के नाम पर घर से बाहर निकलती हैं और उनके साथ मनुवादियों की स्व-घोषित पुलिस के कमाण्डर और पैदल सेना के लोग यौनसुख भोगने को उसी प्रकार से आजाद होते हैं, जैसे कि देवदासियों के साथ उनके पूर्वज हुआ करते थे। इसी का परिणाम है कि आज डाण्डिया रास गुजरात से निकलकर अनेक प्रान्तों में अपने पैर पसार चुका है!

इसके उपरान्त भी मनुवादी आशीष नन्दी कहते हैं कि भ्रष्टाचार के जनक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोक सेवक हैं। आशीष नन्दी को ये सब कहने का साहस इस कारण से हुआ कि कुछ ही दिन पूर्व प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि यदि वह भारत का प्रधानमंत्री बन जाये तो मुसलमानों से सभी प्रकार के संवैधानिक हकों को एक झटके में छीन लेंगे। इस बयान पर देश के शूद्र, तथाकथित बुद्धिजीवी, संविधान के रक्षक चुप्पी साधे रहे। सभी जानते हैं कि देश के 90 फीसदी से अधिक मुसलमानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों के पूर्वजों के वंशज हिन्दुओं से धर्मपरिवर्तित होकर मुसलमान बने हैं, जो मनुवादियों के लिये आज भी शूद्र ही हैं।

शूद्रों को अजा, अजजा, ओबीसी और मुसलमानों के नाम पर मनुवादी लगातार गालियॉं देते रहते हैं और शूद्र चुपचाप सब कुछ सहते और सुनते रहते हैं। यही कारण है कि शूद्र विरोधी भारतीय न्यायपालिका के कुछ जजों ने ऐसे निर्णय दिये हैं, जिनके कारण इस देश के सामाजिक माहौल को बिगाड़ने का काम किया है। इन निर्णयों से इस देश का माहौल मनुवाद को मजबूत करने में सहायक का काम कर रहा है। सभी जानते हैं कि शूद्रों को हजारों सालों तक भारत में मानव नहीं समझा गया। इसी वजह से उन्हें सरकारी क्षेत्र में प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये आरक्षण प्रदान किया गया। जिसे अमलीजामा पहनाने के लिये संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में साफ़ तौर पर प्रारम्भ से ही ये सुस्पष्ट व्यवस्था की गयी थी कि आरक्षण "नियुक्ति के समय" अर्थात् "नौकरी प्राप्त करते समय" और "पदों पर" अर्थात् "पदोन्नति के समय" दिया जायेगा। जिसकी मनुवादी विचारधारा के पोषक जजों ने बार-बार, मनुवादियों और आरक्षणविरोधियों के पक्ष में और संसद की भावना के विपरीत व्याख्या की गयी, जिसे संसद ने अनेक बार ख़ारिज किया और शूद्रों को आरक्षण के हक से वंचित करने के लिये अनेकों बार न्यायिक शक्ति की आड़ में सताया गया! ये सिलसिला अनवरत आज भी जारी है। इस प्रकार इस देश के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और न्यायिक माहोल को बिगाड़ने में सबसे अधिक यदि किसी का योगदान है तो वे हैं शूद्र-विरोधी-मनुवादी तथाकथित बड़े-बुद्धिजीवी, राजनेता, धर्मनेता और जज|