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Monday, April 13, 2015

एनसीआरटी की स्थापना से आज तक अजा/अजजा के कर्मचारियों के साथ भेदभाव जारी कार्यवाही हेतु हक रक्षक दल के प्रमुख ने प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्री को लिखा पत्र

एनसीआरटी की स्थापना से आज तक अजा/अजजा के कर्मचारियों के साथ भेदभाव जारी
कार्यवाही हेतु हक रक्षक दल के प्रमुख ने प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्री को लिखा पत्र
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जयपुर। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) में अजा/अजजा के कर्मचारियों के मौलिक अधिकारों का हनन, अत्याचार, भेदभाव और मनमानी के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करने के सम्बन्ध में हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली और मानव संसाधन मंत्री भारत सरकार, नयी दिल्ली को पत्र लिखकर मांग की है कि अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों को जानबूझकर क्षति पहुंचाने वाले गैर अजा/अजजा प्रशासकों के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जावे और अभियान चलाकर अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों को पदोन्नतियां प्रदान की जावें।
पत्र में डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने लिखा है कि हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली और मानव संसा को प्राप्त जानकारी के अनुसार-भारत सरकार के मानव संसाधन विभाग के अधीन संचालित राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद में इसकी स्थापना से आज तक अजा एवं अजजा के कर्मचारियों को संविधान में निर्धारित प्रावधानों और सरकारी नीति तथा प्रक्रियानुसार पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के लिये विधिवत रोस्टर बनाकर लागू नहीं किया गया है। रोस्टर में जानबूझकर विसंगतियॉं छोड़ने वाले कर्मचारियों को अनारक्षित वर्ग के उच्चाधिकारियों का दुराशयपूर्ण संरक्षण प्राप्त है। अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों के उच्च श्रेणी में पद रिक्ति होने के वर्षों बाद तक डीपीसी का गठन नहीं किया जाता है। यही नहीं अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों की पदोन्नति की पात्रता में किसी भी प्रकार की छूट का नियम लागू नहीं किया गया है। जबकि भारत सरकार की सभी मंत्रालयों में इस प्रकार की छूट के स्पष्ट प्रावधान लागू हैं।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने आगे लिखा है कि इस प्रकार उपरोक्त कारणों से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक अनारक्षित वर्ग के उच्च पदस्थ प्रशासकों द्वारा निम्न से उच्च पदों पर अजा एवं अजजा के कर्मचारियों की पदोन्नति दुराशयपर्वक बाधित की जाती रही हैं और इस कारण राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक उच्चतम पदों पर अजा एवं अजजा वर्गों का संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार पर्याप्त और निर्धारित प्रतिनिधित्व सम्भव नहीं हो पाया है। जिसके चलते अजा एवं अजजा के निम्न स्तर के कर्मचारियों का संरक्षण और उनका उत्थान असंसभव हो चुका है। परिषद के उच्च पदस्थ गैर-अजा एवं अजजा वर्ग के प्रशासकों का यह कृत्य अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (9) के तहत दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता है।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने उपरोक्त तथ्यों से अवगत करवाकर प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्री  से आग्रह है कि-

1. अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों को पदोन्नति की क्षति पहुँचाने वाले गैर-अजा एवं अजजा वर्गों के उपरोक्तानुसार लिप्त रहे सभी प्रशासकों के विरुद्ध अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (9) के तहत आपराधिक मुकदम दर्ज करवाकर उन्हें कारवास की सजा दिलवाई जावे और साथ ही साथ ऐसे प्रशासकों के विरुद्ध विभागीय सख्त अनुशासनिक कार्यवाही भी की जावे। जिससे भविष्य में अजा एवं अजजा वर्गों के हितों को नुकसान पहुँचाने की कोई गैर-अजा एवं अजजा वर्गों का प्रशासक हिम्मत नहीं जुटा सके।
2. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक अजा एवं अजजा वर्गों को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिये किसी बाहरी स्वतन्त्र और निष्पक्ष ऐजेंसी से सभी पदों का सही रोस्टर बनवाया जावे और भारत सरकार की नीति के अनुसार पदोन्नति पात्रता में शिथिलता प्रदान करते हुए अजा एवं अजजा वर्गों के समस्त रिक्त पदों को अभियान चलाकर तुरन्त प्रभाव से भरवाये जाने के आदेश प्रदान किये जावें।
पत्र के अंत में डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने लिखा है की पत्र पर की जाने वाली कार्यवाही सेहक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन को अवगत करवाने का कष्ट करें।

(डॉ. पुरुषोत्तम मीणा)
राष्ट्रीय प्रमुख
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लिखा गया पात्र  ----------------------------------------------------------------------------
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प्रेषक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन 
राष्ट्रीय कार्यालय : 7, तंवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
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पत्रांक : /भारत सरकार/पत्र/2 दिनांक : 13.04.2015
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प्रतिष्ठा में :
प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली।
शिक्षामंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली।

विषय : राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) में अजा/अजजा के कर्मचारियों के मौलिक अधिकारों का हनन, अत्याचार, भेदभाव और मनमानी के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करने के सम्बन्ध में।
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इस संगठन को प्राप्त जानकारी के अनुसार-

भारत सरकार के मानव संसाधन विभाग के अधीन संचालित राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद में इसकी स्थापना से आज तक अजा एवं अजजा के कर्मचारियों को संविधान में निर्धारित प्रावधानों और सरकारी नीति तथा प्रक्रियानुसार पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के लिये विधिवत रोस्टर बनाकर लागू नहीं किया गया है। रोस्टर में जानबूझकर विसंगतियॉं छोड़ने वाले कर्मचारियों को अनारक्षित वर्ग के उच्चाधिकारियों का दुराशयपूर्ण संरक्षण प्राप्त है। अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों के उच्च श्रेणी में पद रिक्ति होने के वर्षों बाद तक डीपीसी का गठन नहीं किया जाता है। यही नहीं अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों की पदोन्नति की पात्रता में किसी भी प्रकार की छूट का नियम लागू नहीं किया गया है। जबकि भारत सरकार की सभी मंत्रालयों में इस प्रकार की छूट के स्पष्ट प्रावधान लागू हैं।

इस प्रकार उपरोक्त कारणों से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक अनारक्षित वर्ग के उच्च पदस्थ प्रशासकों द्वारा निम्न से उच्च पदों पर अजा एवं अजजा के कर्मचारियों की पदोन्नति दुराशयपर्वक बाधित की जाती रही हैं और इस कारण राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक उच्चतम पदों पर अजा एवं अजजा वर्गों का संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार पर्याप्त और निर्धारित प्रतिनिधित्व सम्भव नहीं हो पाया है। जिसके चलते अजा एवं अजजा के निम्न स्तर के कर्मचारियों का संरक्षण और उनका उत्थान असंसभव हो चुका है। परिषद के उच्च पदस्थ गैर-अजा एवं अजजा वर्ग के प्रशासकों का यह कृत्य अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (9) के तहत दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता है।

अत: आपको उपरोक्त तथ्यों से अवगत करवाकर आग्रह है कि-

  • 1. अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों को पदोन्नति की क्षति पहुँचाने वाले गैर-अजा एवं अजजा वर्गों के उपरोक्तानुसार लिप्त रहे सभी प्रशासकों के विरुद्ध अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (9) के तहत आपराधिक मुकदम दर्ज करवाकर उन्हें कारवास की सजा दिलवाई जावे और साथ ही साथ ऐसे प्रशासकों के विरुद्ध विभागीय सख्त अनुशासनिक कार्यवाही भी की जावे। जिससे भविष्य में अजा एवं अजजा वर्गों के हितों को नुकसान पहुँचाने की कोई गैर-अजा एवं अजजा वर्गों का प्रशासक हिम्मत नहीं जुटा सके।
  • 2. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक अजा एवं अजजा वर्गों को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिये किसी बाहरी स्वतन्त्र और निष्पक्ष ऐजेंसी से सभी पदों का सही रोस्टर बनवाया जावे और भारत सरकार की नीति के अनुसार पदोन्नति पात्रता में शिथिलता प्रदान करते हुए अजा एवं अजजा वर्गों के समस्त रिक्त पदों को अभियान चलाकर तुरन्त प्रभाव से भरवाये जाने के आदेश प्रदान किये जावें।
  • 3. उक्त पत्र पर की जाने वाली कार्यवाही से इस संगठन को अवगत करवाने का कष्ट करें।

भवदीय 
(डॉ. पुरुषोत्तम मीणा)
राष्ट्रीय प्रमुख

Friday, April 5, 2013

राजस्थान को गुजरात बनाने से रोक पाना मुश्किल होगा।


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

राजस्थान शुरू से ही शान्ति, सौहार्द, सांस्कृतिक मिठास और मेहमान नवाजी के लिये जाना जाता रहा है, लेकिन पिछले दो दशकों से राजस्थान में ऐसे तत्वों का दबदबा बढा है, जो यहॉं की शान्ति और सौहार्द को तहस-नहस करने पर तुले हुए हैं। इनका एकमात्र लक्ष्य है किसी भी प्रकार से सत्ता पर काबिज होना। ये जब-जब सत्ता में होते हैं या सत्ता के करीब होते हैं, लोगों को लड़ाने के लिये षड़यंत्रों की संरचना करते हैं और प्रायोजित तरीके से ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं, जिससे लोगों में जातिगत या साम्प्रदायिक घृणा इस सीमा तक बढ जाये कि उनके बीच के संघर्ष को रोका नहीं जा सके और प्रशासन के लिये कानून और व्यवस्था बनाये रखना असम्भव हो जाये।

पिछले दो दिनों में राजस्थान का राजनैतिक माहौल तो गर्मा ही रहा है, लेकिन साथ ही साथ राज्य के साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही है। नागौर जिले के मकराना कस्बे में 3 अप्रेल की घटना और राजधानी जयपुर के सांगानेर में 4 अप्रेल की घटनाएँ (साम्प्रदायिक) इसी बात का संकेत हैं। यदि सरकार और प्रशासन ने हालातों को तत्काल समझकर, नियंत्रित नहीं किया तो आने वाले बीस-पच्चीस दिनों की राजनैतिक सरगर्मियों के बीच राज्य के साम्प्रदायिक माहौल को बिगड़ने से रोक पाना असम्भव हो जायेगा।

राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सबसे बड़ी समस्या ये है कि उन्हें जनता के दु:खदर्द और जनता की दैनिक समस्याओं की असली कारक-भ्रष्ट नौकीशाही के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने से डर लगता है। जबकि जनता नौकरशाही और विशेषकर ब्यूरोक्रेसी की मनमानियों से बुरी तरह से त्रस्त है। केवल जनता ही नहीं, बल्कि सत्ताधारी पार्टी के विधायक, जनप्रतिनिधि और पार्टी कार्यकर्ता भी अफसरशाही की मनमानियों  से अत्यधिक व्यथित हैं, लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत को अफसरों के खिलाफ कुछ भी सुनना पसन्द नहीं है।

ऐसे हालात में सरकार के विरुद्ध जनता के दिल में स्वाभाविक रूप से गुस्सा उबल रहा है, जिसका फायदा उठाने के लिये सत्ताधारी पार्टी के राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। आजकल राजनीति इसी स्तर पर काम करने लगी है। दूसरी सबसे बड़ी बात ये भी है कि विरोधियों के पास कोई बड़ा और सार्थक राजनैतिक मुद्दा भी नहीं है। क्योंकि गहलोत के वर्तमान कार्यकाल के दौरान डॉ किरोड़ी लाल मीणा की राजनीतक महत्वाकांक्षाओं के चलते गुर्जरों और मीणाओं का टकराव, आपसी सौहार्द में बदल गया है। राज्य में हिन्दू-मुसलमानों के बीच भी कोई बड़ी झड़प नहीं हुई। हॉं सवर्णों द्वारा दलितों का लगातार अपमान करते रहने और दलितों तथा आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाएँ अवश्य राज्य में बदस्तूर जारी हैं, जिनको लेकर यहॉं का सवर्ण मीडिया चुप रहता है। जिसके चलते दोनों बड़ी पार्टियों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है, क्योंकि ले-देकर दलितों तथा आदिवासियों को अन्तत: इन्हीं दोनों पार्टियों की शरण में आना मजबूरी रहा है।

ऐसे हालातों में राज्य में पिछले दो दिनों की घटनाएँ इस बात का साफ संकेत देती हैं कि कुछ तत्व इस प्रकार के प्रयास कर सकते हैं कि राज्य को धर्म के नाम पर गुजरात की तरह से आग में झोंक दिया जाये। जिससे सरकार के प्रति जनता में और अधिक रोष व्याप्त हो जाये और हालात सरकार के नियंत्रण से बाहर हो जायें। जिसका लाभ आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान उठाया जा सके। 

अफसरशाही के प्रति मुख्यमंत्री गहलोत का अटूट प्रेम और अफसरों की लगातार मनमानी दो ऐसे कारण हैं, जो हर आम-ओ-खास को सरकार एवं सत्ताधारी पार्टी के विरुद्ध आवाज उठाने का पर्याप्त कारण प्रदान करते हैं।

मुख्यमंत्री गहलोत के दरबार में जनसुनवाई के लिये जो लोग दूरदराज से जैसे-तैसे जयपुर तक का कठिन  सफर करके पहुँचते हैं, उनके मामलों में मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी की ओर से सम्बंधित अफसर को पत्र लिखकर मामले को समाप्त मान लिया जाता है। जिसका दुष्परिणाम ये हो रहा है कि मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी की ओर से लिखे जाने वाले पत्रों पर कार्रवाई होना तो दूर 90 फीसदी पत्रों का तो निर्धारित समय में मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी को जवाब तक नहीं मिलता है। मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी की ओर से ऐसे मामलों में निगरानी की कोई ऐसी कारगर व्यवस्था नहीं है, जिससे उनको ये ज्ञात हो सके कि जो लोग जनसुनवाई में मुख्यमंत्री के समक्ष उपस्थित हुए, अन्तत: उनको न्याय मिला या नहीं!

अपने विभागीय सचिव, मंत्रियों की नहीं सुनते हैं। आईएएस सीधे मुख्यमंत्री के मुंह लगे हुए हैं। मंत्री पांच वर्ष तक पद और आधी-अधूरी पावर का आनन्द उठा रहे हैं। मीडिया बिका हुआ है। इसके उपरान्त भी सरकार चल रही है और आश्‍चर्यजनक रूप से फिर से सत्ता में आने के सपने भी देख रही है। यदि इन हालातों में भी सरकार फिर से सत्ता में आती है, क्योंकि अनेक विश्‍लेषक ऐसा मानते भी हैं, तो इसके लिये सरकार की उपलब्धियॉं नहीं, बल्कि मुख्य प्रतिपक्ष जिम्मेदार होगा। जो वर्तमान सरकार की तुलना में पूरी तरह से अपनी साख खो चुका है। इस बात का प्रतिपक्ष को भी बखूबी अहसास है। इसी लिए राज्य के शांत माहौल को गर्माने के लिए हर हथकंडे को अपनाने में कोई भी पीछे नहीं है!

दूसरी इसी कमजोरी का राजनैतिक लाभ उठाने के लिये आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान राज्य में तीसरी ताकत के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिये मुलायम सिंह, मायावती और डॉ. किरोड़ी लाल मीणा बेताब हैं। यह अलग बात है कि ये तीनों ही कोई बड़ी सफलता अर्जित कर पायेंगे, इसमें जनता को अभी तक सन्देश है।

ऐसे हालातों में सत्तालोलुप दुराचारियों की ओर से वर्तमान सरकार को सत्ता से येनकेन बेदखल करने और इसके लिए सौहार्दप्रिय राजस्थानियों के बीच साम्प्रदायिक वैमनस्यता बढाने के सुनियोजिक प्रयास शुरू हो चुके हैं। अन्यथा फेसबुक पर की गयी टिप्पणी के मामले में पुलिस द्वारा कानूनी कार्रवाई हेतु मामला दर्ज कर लिए जाने के बाद भी, नागौर के मकराना कसबे में दोषी के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की मांग को लेकर समुदाय विशेष के लोगों का सड़क पर हुडदंग मचाने का क्या कारण हो सकता है? इसी प्रकार से जयपुर के सांगानेर क्षेत्र में बाइक खड़ी करने के मामूली से विवाद को लेकर दो समुदायों का आमने-सामने आ जाना और मामले को इतना तूल दे देना कि जयपुर के पुलिस आयुक्त सहित दो दर्जन पुलिस वालों घायल हो जाना, किस बात का संकेत है?

यदि राजस्थान सरकार और सरकार के मुखिया अशोक गहलोत की आँख-नाक-कान के रूप में काम करने वाली अफसरशाही अभी भी पिछले चार साल की तरह ही सोती रही और मनमानी करती रही तो 2013 में राजस्थान को गुजरात बनाने रोक पाना मुश्किल होगा।

Wednesday, March 20, 2013

उपभोक्ता अदालतें भी करती हैं भेदभाव!


एक साधारण व्यक्ति की मौत की कीमत मात्र बावन हजार रुपये है, जबकि ब्रिटिश एयरवेज में यात्रा करने में सक्षम व्यक्ति का थैला गुम हो जाने के कारण थैला धारक हो हुई परेशानी की कीमत एक लाख 
रुपये। विलम्ब से खाना परोसने और तीन घण्टे विलम्ब से गन्तव्य पर पहुँचने की कीमत 70 हजार रुपये। इससे ये बात स्वत: ही प्रमाणित होती है कि उपभोक्ता अदालतें, उपभोक्ता कानून के अनुसार नहीं, बल्कि उपभोक्ता अदालत के समक्ष न्याय प्राप्ति हेतु उपस्थित होने वाले पीड़ित व्यक्ति की हैसियत देखकर फैसला सुनाती हैं।