tag:blogger.com,1999:blog-89794892596070946132024-02-07T11:33:25.764+05:30PRESSPALIKA NEWS CHANNEL-प्रेसपालिका न्यूज चैनलआप सबका हार्दिक स्वागत है! यहाँ पर "प्रेसपालिका" (राष्ट्रीय हिन्दी पाक्षिक) और "ऑल इण्डिया प्रेसपालिका-प्रेस-क्लब" की मौलिक ख़बरों, आलेखों तथा अन्य स्रोतों से प्राप्त संकलित विभिन्न विषयों के अन्य शोधपूर्ण तथा तथ्यपरक आलेखों और विचारों के साथ-साथ देश के प्रमुख प्रान्तों की राजधानियों/प्रमुख शहरों की तथा राजस्थान के सभी जिलों की अन्य पापुलर स्रोतों, समाचार-पत्रों से प्राप्त ताजा खबर, समाचार और हलचल भी प्रस्तुत हैं! सुधि पाठक भी इसमें अपना स्रजनात्मक योगदान कर सकते हैं!Unknownnoreply@blogger.comBlogger209125tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-47525695173722559612016-05-21T19:50:00.000+05:302016-05-21T19:50:03.602+05:30बुद्ध के ध्यान में उतरने के बाद ही ज्ञात होता है कि बुद्ध कितने पवित्र, निर्मल और निराग्रही व्यक्ति हैं।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b>बुद्ध के ध्यान में उतरने के बाद ही ज्ञात होता है कि</b></div>
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<b>बुद्ध कितने पवित्र, निर्मल और निराग्रही व्यक्ति हैं।</b></div>
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<b>लेखक : Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'</b></div>
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सोशल मीडिया पर हजारों—लाखों ऐसे लोगों से परिचय हुआ है, जिनसे मिलने या जिनको जानने की कभी कल्पना भी नहीं की गयी थी। अनेक प्रकार के मिजाज और विचारों के विद्वानों से इतना सीखने को मिला है कि मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी। इनमें से कुछ सदाशयी मित्रों की अनेक प्रकार की इच्छा और आकांक्षाएं होती हैं। यद्यपि सभी की आकांक्षाओं पर खरा उतरना कम से कम मेरे जैसे छोटे से व्यक्ति के लिये हमेशा सम्भव नहीं हो पाता है। ऐसे ही कुछ सदाशयी मित्रों का कहना है कि मैं बुद्ध के बारे में कुछ लिखूं।</div>
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महामानव बुद्ध के बारे में सोशल मीडिया पर इतना अधिक लिखा जाता है कि मुझ जैसे अनाम व्यक्ति के लिये महामानव बुद्ध के बारे में लिखना, बड़ी चुनौती है। मैं जितना समझ सका हूं, गौतम बुद्ध दूसरों की खुशी के लिये हारने में ही खुशी का अनुभव करते थे। बुद्ध ने कभी किसी पर अपने विचार थोपे नहीं। बुद्ध ने ईश्वरीय सत्ता को सिरे से नकारा, लेकिन अपने इन विचारों को मानने के लिये कभी किसी को मजबूर नहीं किया। अपने आप को महामानव बुद्ध ने कभी ईश्वरीय अवतार या भगवान घोषित नहीं किया। सिद्धार्थ के रूप में जन्मे बच्चे का महामानव बुद्ध के रूप में जन्म ही महामानव बुद्ध का वास्तविक जन्मदिन है। शैशवकाल में माँ का साया छिन जाने के बाद, राजा का पुत्र होते हुए भी बिन माँ के बच्चे का संसार को प्रकाश दिखाना और हर आम—ओ—खाश को अपने अन्दर के प्रकाश को प्रज्वलित करने को प्रेरित करना, कोई सामान्य कार्य नहीं था। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अभेद और असमानता से मुक्ति, तनाव और विभ्रम से ग्रस्त व्यक्ति को ध्यान की परामावस्था तक ले जाने का मार्ग, मानना नहीं जानना के साथ तर्क और विज्ञान को दैनिक जीवन से जोड़ना, अन्धश्रृद्धा और पाखण्ड से समूल मुक्ति, ऐसे दुरूह अभीष्ट क्या कोई सामान्य व्यक्ति के लिये सम्भव था? बुद्ध के ध्यान में उतरने के बाद ज्ञात होता है कि बुद्ध कितने पवित्र, कितने निर्मल और कितने निराग्रही व्यक्ति हैं। बुद्ध सा जीवन हजारों, लाखों वर्षों में किसी विरले को प्राप्त होता है। बुद्धिष्ट नहीं हाकर भी बुद्ध का अनुयायी होना भी अपने आप में गौरव की बात है। मुझे फक्र है कि मैं बुद्धानुयाई हूं! मैं हृदय से महामानव बुद्ध को नमन करता हूँ।</div>
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अन्त में बुद्ध के प्रति ईमानदार बने रहते हुए मुझे यह लिखना भी जरूरी है कि वर्तमान भारतीय परिदृश्य में कथित बुद्धिष्टों द्वारा बुद्ध को राजनीतिक हथियार की भांति उपयोग किया जा रहा है। ऐसे लोगों में से अनेक अपने आप को कट्टर बुद्धिष्ट तक कहते हैं, जबकि बुद्ध और कट्टर? बुद्ध के साथ इससे घटिया मजाक और क्या हो सकता है? इन्हीं लोगों के कारण लोग बुद्ध के बारे में भिन्न मत रखते हैं। ऐसे लोगों के बारे में यही कहा जा सकता है कि उनको बुद्ध का ककहरा भी नहीं पता। यही वजह है कि उनको बुद्ध से अधिक बुद्ध धर्म प्रिय है। बेशक वे बुद्ध धर्म को बुद्ध धम्म कहकर ज्ञान बांटते फिरते हैं।</div>
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<b>हमारा मकसद साफ़।</b></div>
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<b>सभी के साथ इंसाफ।</b></div>
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<b>जय भारत। जय संविधान।</b></div>
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<b>नर-नारी, सब एक समान।।</b></div>
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<b>: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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<b>9875066111/21-05-2016, 07.40 PM</b></div>
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@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : मूलवासी-आदिवासी अर्थात रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।</div>
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नोट : उक्त सामग्री व्यक्तिगत रूप से केवल आपको ही नहीं, बल्कि ब्रॉड कॉस्टिंग सिस्टम के जरिये मुझ से वाट्स एप पर जुड़े सभी मित्रों/परिचितों/मित्रों द्वारा अनुशंसितों को भेजी जा रही है। अत: यदि आपको किसी भी प्रकार की आपत्ति हो तो, कृपया तुरंत अवगत करावें। आगे से आपको कोई सामग्री नहीं भेजी जायेगी। अन्यथा यदि मेरी ओर से प्रेषित सामग्री यदि आपको उपयोगी लगे तो इसे आप अपने मित्रों को भी भेज सकते हैं। </div>
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यह पोस्ट यदि आपको आपके किसी परिचत के माध्यम से मिली है, लेकिन यदि आप चाहते हैं कि आपको मेरे आलेख और आॅडियो/वीडियो आपके वाट्स एप इन बॉक्स में सदैव मिलते रहें तो कृपया आप मेरे वाट्स एप नं. 9875066111 को आपके मोबाइल में सेव करें और आपके वाट्स एप से मेरे वाट्स एप नं. 9875066111 पर एड होने/जुड़ने की इच्छा की जानकारी भेजने का कष्ट करें। इसक बाद आपका परिचय प्राप्त करके आपको मेरी ब्रॉड कास्टिंग लिस्ट में एड कर लिया जायेगा।</div>
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<b>डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'/ 21 मई, 2016</b></div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-7090751196214767322016-05-04T15:51:00.000+05:302017-10-08T11:17:40.518+05:30कांशीराम नहीं होते तो आंबेडकर भुला दिए गए होते<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b>कांशीराम के बिना आंबेडकर अधूरा और निष्फल है।</b></div>
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<b>फ़ूले के बिना अम्बेडकर अजन्मा है।</b></div>
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<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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इन दिनों अम्बेडकरवादियों की बाढ़ आयी हुई है, लेकिन इन अम्बेडकरवादियों में से 99.99 फीसदी संविधान के बारे में कुछ नहीं जानते! ऐसे में मेरा अकसर इनसे सवाल होता है कि आंबेडकरवाद का मतलब क्या है? अधिकतर का जवाब होता है-बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाएँ, जो बुद्ध धर्म ग्रहण करते समय उनके द्वारा घोषित की गयी थी। फिर मेरा प्रतिप्रश्न-यह अम्बेडकरवाद नहीं बुद्ध धर्म का प्रचार है। ऐसे अम्बेडकरवादी कहते हैं कि हमारे लिए यही सब अम्बेडकरवाद है।</div>
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मैं ऐसे लोगों से व्यथित हूँ, क्योंकि ऐसे लोग बाबा साहब के विश्वव्यापी व्यक्तित्व को बर्बाद कर रहे हैं। यदि बाबा साहब ने बुद्ध धर्म ग्रहण नहीं किया होता तो क्या हम उनको याद नहीं करते? बिना बुद्ध धर्म बाबा साहब का क्या कोई महत्व नहीं होता? ऐसे सवालों से अम्बेडकरवादी कन्नी काट जाते हैं।</div>
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अम्बेडकरवाद की बात करने वालों से मेरा सीधा सवाल है कि आखिर वे चाहते क्या हैं? संविधान का शासन या अम्बेडकरवादियों के छद्म बुद्ध धर्म का प्रचार? इन लोगों को न तो बाबा के योगदान का ज्ञान है और न हीं संविधान की जानकारी। इसके बाद भी ऐसे लोग वंचित समाज का नेतृत्व करने की हिमाकत करते हैं, वह भी केवल बुद्ध धर्म के बाध्यकारी अनुसरण के बल पर और खुद को अम्बेडकरवादी घोषित कर के ही अपने आप को भारत के भाग्यविधाता समझने लगे हैं।</div>
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अम्बेडकरवाद की बात करने वालों को शायद ज्ञात ही नहीं है कि 1980 तक आंबेडकर पाठ्यपुस्तकों में एक छोटा का विषय/चैप्टर मात्र रह गए थे। उनका कोई गैर दलित नाम तक नहीं लेता था। कांशीराम जी का उदय नहीं हुआ होता तो न तो आंबेडकर को याद किया जाता और न ही आंबेडकर को भारत रत्न मिलता। इसके बाद भी मुझे याद नहीं कि कांशीराम जी ने खुद को कभी ऐसा ढोंगी अम्बेडकरवादी कहा या प्रचारित किया हो?</div>
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कांशीराम जी ने साईकल से मिशन की शुरूआत की तथा अपने जीते जी मिशन को फर्श से अर्श तक पहुंचाया। यदि कांशीराम जी का अन्तिम अंजाम षड्यंत्रपूर्ण नहीं हुआ होता तो वंचित भारत की तस्वीर बदल गयी होती। कांशीराम जी की कालजयी पुस्तक---<b><span style="color: blue;">"चमचा युग"</span></b>--- आज के अम्बेडकरवादियों के लिए प्रमाणिक पुस्तक है।</div>
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इन दिनों अम्बेडकवाद से कहीं अधिक सामाजिक न्याय की विचारधारा को अपनाने की जरूरत है, जो ज्योतिबा फ़ूले से शुरू होकर कांशीराम जी पर रुक गयी है। जिसमें आंबेडकर का बड़ा किरदार है, लेकिन कांशीराम के बिना आंबेडकर अधूरा और निष्फल है। फ़ूले के बिना अम्बेडकर अजन्मा है। ऐसे में अम्बेडकरवाद की बात करने वाले फ़ूले और कांशीराम के साथ धोखा और अन्याय करते हैं। सबसे बड़ा अन्याय बुद्ध के साथ भी करते हैं, क्योंकि बुद्ध संदेह को मान्यता प्रदान करते हैं और सत्य को तर्क और विज्ञान की कसौटी पर कसते हैं। जबकि अम्बेडकरवादी मनुवादियों की भाँति बाबा के नाम की अंधभक्ति को बढ़ावा देते हैं। बुद्ध और बाबा की मूर्ती पूजा को बढ़ावा दे रहे हैं।</div>
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<b>जय भारत। जय संविधान।</b></div>
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<b>नर-नारी, सब एक समान।।</b></div>
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<b>: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', </b><b>4 मई, 2016</b></div>
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<b><a href="tel:9875066111">9875066111</a>/04-05-2016/04.04 PM</b></div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-44870321841503530242016-05-03T20:19:00.000+05:302016-05-21T15:21:59.418+05:30वंचित वर्ग की राह के रोड़े और समाधान-असफल और आऊट डेटेड लोगों से मुक्ति पहली जरूरत है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b>वंचित वर्ग की राह के रोड़े और समाधान-असफल</b></div>
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<b>और आऊट डेटेड लोगों से मुक्ति पहली जरूरत है</b></div>
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<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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देश के दर्जनों राज्यों की यात्रा करने के बाद लगातार नये-नये लोगों से मिलने, संवाद करने, आम लोगों के बीच समय बिताने, विभिन्न विद्वानों के विचार पढ़ने/जानने और सुनने के बाद भी वंचित वर्ग की मुक्ति का कोई सर्वमान्य रास्ता जानने या सुनने को नहीं मिलता है। हर जगह कुछ न कुछ दिखावा, ढोंग और नाटक चल रहे हैं, लेकिन वास्तविक समाधान कहीं भी नजर नहीं आता। हजारों संगठन लगातार कार्य कर रहे हैं, फिर भी वंचित वर्ग के साथ हर पल शोषण, उत्पीड़न, भेदभाव, अत्याचार, बलात्कार, हिंसा, अपमान, न्यायिक विभेद और तिरस्कार क्यों जारी है? यह सवाल सोचने को विवश करता है। संवेदनाओं को झकझोरता है।</div>
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हर जगह सुनने को मिलता है कि देश की 85/90 फीसदी आबादी से कौन टकरा सकता है? इस सवाल के जवाब में मेरा हर बार यही सवाल/प्रतिप्रश्न होता है कि कौन नहीं टकरा सकता? हकीकत तो यह है कि देश का बहुसंख्यक वंचित वर्ग खुद ही गुमराह है, तब ही तो आपस में लड़ता रहता है। 90 फीसदी आबादी को 10 फीसदी लोग अपने इशारों पर नचाते रहते हैं। आदिवासी-दलित सौहार्द नहीं दिखता। ओबीसी-आदिवासी सौहार्द नहीं दिखता। दलित जातियां आपस में एक दूसरी जाति को छोटी या कमतर समझती हैं। आदिवासियों और ओबीसी जातियों की भी यही दशा है।</div>
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वंचित वर्ग के तथाकथित शिक्षित और उच्च पदस्थ लोग अपने ही जाति समाज के लोगों से दूरी बना रहे हैं। वास्तव में ब्राह्मण जनित मनुवादी व्यवस्था की रुग्ण शिक्षा, अंधश्रद्धा और नाटकीय संस्कारों के कारण हीनता के शिकार लोग, खुद को श्रेष्ठ समझने के नकारात्मक अहंकार से ग्रसित हो जाते हैं। दुष्परिणामस्वरूप एक ही जाति में असमानता के नये नये प्रतिमान स्थापित हो जाते हैं। नवधनाढ़य लोग खुद को श्रेष्ठता के शिखर पर स्थापित कर लेते हैं। ऐसे हालात में PAY BACK TO SOCIETY के बारे में कोई विचार ही नहीं करता। करने की जरूरत ही नहीं समझता।</div>
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इसके विपरीत वंचित वर्ग के कुछ कथित सामाजिक संगठन वंचित वर्ग के उत्थान के नाम की माला जपते रहते हैं, लेकिन हकीकत में समाज में नकारात्मक और विध्वंशक माहौल पैदा कर रहे हैं। उदाहरण के लिये "मूलनिवासी" शब्द को जोड़कर अनेक संगठन संचालित किये जा रहे हैं। जिनके संचालकों का मूल/उद्भव भारतीय मूल का नहीं है, लेकिन उनकी ओर से समाज में देशी और विदेशी की विनाशक विचारधारा का प्रचार किया जा रहा है। जबकि भारत में विदेशी मूल और देशी मूल के नाम से किसी भी क्षेत्र में न तो कोई विभेद होता है और न ही शोषण किया जाता है।</div>
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हकीकत में भारत में जन्मजातीय विभेद है, जिसके मूल में ब्राह्मणों की विदेशी मूल की नीति नहीं, बल्कि भारत में जन्मी वैदिक विचारधारा जिम्मेदार है। जिसे वर्तमान में विदेशी मूल के ब्राह्मण नहीं, बल्कि भारतीय मूल के आदिवासी, यूरेशिया मूल के आर्य-शूद्रों के वर्तमान भारतीय वंशज, अफ़्रीकी मूल के वर्तमान भारती वंशज (कथित अछूत), विदेशी हूँण, कुषाण, शक आदि विदेशी नस्लों के वर्तमान वंशज-ओबीसी इत्यादि लोग लागू कर रहे हैं। वर्तमान में बामण वैदिक व्यवस्था को वंचित वर्ग पर जबरन थोपने नहीं आ रहा है, बल्कि उक्त वर्णित लोग बामणों को और वैदिक व्यवस्था को खुद अपने खर्चे पर आमन्त्रित कर रहे हैं। वंचित वर्ग खुद वैदिक-मनुवादी व्यवस्था का प्रचार, प्रसार और विज्ञापन कर रहा है।</div>
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देशभर में सामाजिक न्याय के नाम पर संघर्ष करने वाले संगठन जन्मजातीत विभेद और मनुवादी शोषण से मुक्ति के लिए आज तक कोई ठोस और व्यावहारिक नीति पेश करने में असफल रहे हैं। बल्कि इसके विपरीत नयी पीढ़ी को हिन्दू धर्म को गाली देना सिखा रहे हैं। जैसे संघ ने मुसलमानों के विरोध में घृणा का वातावरण निर्मित किया, वही ऐसे संगठन हिंदुओं के विरुद्ध कर रहे हैं। जबकि ऐसे लोग खुद हिन्दू हैं। जिससे समाज में विभिन्न प्रकार के अपराध और अपकृत्य पनप रहे हैं। बामणवादी व्यवस्था की भाँति व्यक्ति पूजा को बढ़ावा दिया जा रहा है। महापुरुषों के कार्यों को रचनात्मक तरीके से आगे बढ़ाने के बजाय उनके नाम के नारे लगाये जा रहे हैं। उनके नाम की आरती, वन्दना और पूजा का बाजार विकसित हो रहा है। मनुवादी व्यवस्था में मूर्तियां थी, यहां तस्वीर, बिल्ले, कलेंडर, डायरी और ताम्र मूर्ति भी निर्मित करके बेची जा रही हैं। फ़ूहड़ नाचगांन और कानफोड़ू वाद्ययंत्रों के साथ पूजा-आरती की जा रही हैं।</div>
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फ़ूले, बिरसा, भीम, कांशीराम, पेरियार, एकलव्य, लोहिया, वीपी सिंह जैसे विशिष्ठ इंसानों को जबरन भगवान बनाया जा रहा है। इनके मन्दिर बनाये जा रहे हैं। इन कारणों से पहले बंटे लोग नये टुकड़ों में बंट रहे हैं। सामाजिक आयोजनों के शुरू में बुद्ध वन्दना को अनिवार्य कर के गैर-हिन्दू/हिन्दू आदिवासियों और हिन्दू/मुस्लिम ओबीसी पर दलितों द्वारा जबरन बुद्ध धर्म को थोपा जा रहा है। इनकी धार्मिक आजादी का सरेआम मजाक उड़ाया जा रहा है। जबकि बुद्ध धर्म हिन्दू धर्म की एक शाखा मात्र है। सभी बुद्धिष्ट भारत में हिन्दू लॉ से शासित होते हैं। सामाजिक न्याय के संघर्ष को जबरन बुध धर्म का आंदोलन बनाया जा रहा है। बाबा साहब को बुद्धिस्ट वर्ग द्वारा हाई जैक करके बाबा साहब को बुद्ध का अवतार घोषित करने की योजना पर काम कर रहे हैं। इस कारण बाबा साहब को दलितों और इन्साफ पसन्द लोगों से छीनकर बुद्ध धर्म की सीमाओं में कैद किया जा रहा है।</div>
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इन हालातों में 85/90 फीसदी आबादी की एकता की कल्पना या बात करना, खोखले गाल बजाना ही है। हकीकत में ऐसे लोग अपने छद्म दुराग्रहों के चलते वंचित समाज को गुमराह कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों में कल तक रामदास अठावले, राम विलास पासवान, रामराज/उदितराज आदि भी शामिल थे, जो आज संघ की राजनैतिक शाखा भाजपा की गौद में बैठे हुए हैं।</div>
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खुद को कांशीराम जैसे महामानव की एक मात्र उत्तराधिकारी बताने वाली मायावती-उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते अजा/जजा अत्याचार निवारण अधिनियम को निष्प्रभावी कर देती हैं। 2002 में गुजरात में मुसलमानों के एकतरफा कत्लेआम के कथित रूप से प्रमुख आरोपी माने गए, तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में गुजरात जाकर मायावती दलितों से वोट देने की मांग करती हैं। संविधान के प्रावधानों और सामाजिक न्याय की अवधारणा के बिलकुल विपरीत मायावती राज्यसभा में और फिर कुछ दिन बाद अपने जन्मदिन पर नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार से मांग करती हैं कि उच्च जातीय गरीबों को आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने के लिये क़ानून बनाया जावे।</div>
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राजस्थान के आदिवासी राजनेता नमोनारायण मीणा (पूर्व आईपीएस) यूपीए की सरकार में 10 साल तक राज्य मंत्री रहे और अपने गृह कस्बे में लोगों को गुमराह करने वाला वक्तव्य देते हैं कि अजा/जजा के लिए नौकरियों का आरक्षण 10 साल के लिए था, जिसे इंदिरा, राजीव और सोनिया की मेहरबानी से बढ़ाया गया। मध्य प्रदेश के आदिवासी राजनेता कांति लाल भूरिया केंद्र में मंत्री रहे, लेकिन पार्टी की लाईन से हटकर आरक्षण व्यवस्था, जातिगत विभेद, उत्पीड़न या नक्सलवाद पर एक वाक्य तक नहीं बोल सके। राजस्थान की आदिवासी मीणा जनजाति के कथित रूप से सबसे बड़े राजनेता डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के मुख से कभी भी मनुवादी व्यवस्था, दलित उत्पीड़न और नक्सलवाद के विरूद्ध एक शब्द सुनने को नहीं मिला और राजस्थान में तीसरे मोर्चे को सत्ता में लाने के सपने देखते रहते हैं! ऐसे दर्जनों नहीं, सैकड़ों नाम हैं, जो वंचित समाज के उत्थान के नाम पर अपना उत्थान कर रहे हैं।S</div>
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वंचित समाज के नाम पर राजनीति करने वाले ऐसे लोगों पर जब तक हम दाव लगाते रहेंगे, तब तक वंचित समाज ही दाव पर लगाया जाता रहेगा। आज जरूरत इस बात की है कि हम वास्तविक अर्थों में सच्चे, समर्पित और शिक्षित लोगों को हर क्षेत्र में आगे लाएं। हमें शिक्षा के वास्तविक अर्थ को समझना होगा। अभी तक का अनुभव है कि वंचित समाज के डिग्रीधारी और उच्चपदस्थ लोग ही सबसे अधिक समाजद्रोही सिद्ध हुए हैं। अत: हम वर्तमान में सामाजिक व्यवस्था के संक्रमण काल से गुजर रहे हैं। वंचित वर्ग के हर दल और हर राजनेता ने वंचित वर्ग को धोखा दिया है। जमकर गुमराह किया है। समाज के नाम पर खुद को और अपने कुटम्ब को आगे बढ़ाया है।</div>
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इसके बावजूद कुछ लोग समस्या को जानबूझकर समझना नहीं चाहते और समाजद्रोही राजनेताओं से मुक्ति के बजाय पहले नए विकल्प खोजने की बात करके चिंतन और सुधार की राह में रोड़े अटकाते रहते हैं। जबकि वास्तव में वंचित वर्ग में विकल्पों की कमी नहीं है, लेकिन सड़े-गले और असफल हो चुके पुराने विचार या सिस्टम से विरक्ति और नये के स्वागत के बिना बदलाव कैसे होगा? मनुवाद से मुक्ति के लिए जैसे बुद्ध के वैज्ञानिक एवं तार्किक विचार और आधुनिक विज्ञान सहायक सिद्ध हो रहा है, उसी तरह से नाकारा और असंवेदनशील नेतृत्व को भी बदलना होगा।</div>
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पुरुषों ने धोती को उतारकर की पायजामा और पेंट अपनाया। वंचित वर्ग की लड़कियां लहंगा चोली के बजाय साड़ी और सलवार सूट पहन रही हैं। नये के लिए बदलाव का साहसिक निर्णय जरूरी है। सच यह भी है कि हमारे वे लोग जिनके दिल में समाज का दर्द है, हम उनको पहचान नहीं पा रहे हैं या सच्चे लोग वर्तमान व्यवस्था का सामना करने के लिए सक्षम हैं, इस बात का हमको विश्वास नहीं है। ऐसे हालातों में वंचित वर्ग के हितैषीे बुद्धिजीवियों को गहन-गंभीर और निष्पक्ष चिंतन करने की जरूरत है। लेकिन असफल, आऊट डेटेड और समाजद्रोही सिद्ध हो चुके विचारों तथा लोगों से मुक्ति पहली जरूरत है।</div>
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<b>जय भारत। जय संविधान।</b></div>
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<b>नर-नारी, सब एक समान।।</b></div>
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<b>: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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<b>@—लेखक का संक्षिप्त परिचय :</b> मूलवासी-आदिवासी अर्थात रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।</div>
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<b>डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'/ 3 मई, 2016</b></div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-69694943004185840992016-05-02T15:13:00.000+05:302016-05-21T15:14:42.824+05:30मूलवासी बनाम सवर्ण<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b>मूलवासी बनाम सवर्ण</b></div>
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<b>~~~~~~~~~~~~~~</b></div>
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<b><br /></b></div>
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<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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भारत के स्वाभाविक और प्राकृतिक वासी, इस देश के आदिनिवासी और मूलवासी कहे जाते हैं। इन्हें ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने इंडीजीनियस पीपुल कहा है। लेकिन चालाक सवर्ण आर्यों ने जिस प्रकार से अछूत को हरिजन और दलित, आदिवासी को वनवासी, गिरिवासी और जंगली घोषित कर दिया, उसी तर्ज पर आदिनिवासी-मूलवासी को भी मूलनिवासी (भाड़ेदार) बना दिया।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
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<b>सवर्ण कौन :</b> सबसे पहले हम सवर्ण कौन, इसे ही समझ लें। बाबा साहब डॉ. आंबेडकर के शोध और निष्कर्ष इस विषय में अधिक प्रासंगिक होंगे। शुद्र कौन थे? नामक ग्रन्थ में बाबा साहब ने जो कुछ लिखा है, उसके अनुसार शूद्र प्रारम्भ में सूर्यवंशी आर्य क्षत्रिय वीर यौद्धा थे, लेकिन ब्राह्मणों से युद्ध और वैमनस्यता के कारण बामणों ने उनका उपनयन संस्कार बन्द कर दिया और उनको क्षत्रिय से शूद्र बना दिया। इस प्रकार शुद्र नामक चौथे वर्ण का उद्भव हुआ। बाबा साहब के अनुसार, वर्ण संरचना के समय----भारत में ब्राह्मण, क्षत्रित, वैश्य और शुद्र चार ही वर्ण थे। जिनमें सभी आर्य थे। जिन्हें सवर्ण कहा गया और उस समय के शेष वाशिंदे, अर्थात भारत के मूलवासी-आदिनिवासी अवर्ण, अर्थात, जिनका कोई वर्ण नहीं, कहलाये गये।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
यह चार स्तरीय वर्ण व्यवस्था रची गयी उसके तकरीबन एक हजार साल बाद गैर आर्य प्रजातियों का भारत में आगमन हुआ। जैसे हूँण, कुषाण, शक, मंगोल और बाद में मुगल, ईसाई, पारसी, पुर्तगाली आदि। इस प्रकार वर्ण संरचना के बाद में भारत में आने वाले लोगों के वंशज भी अवर्ण ही हुए। जिनमें से शासक जाति होने के बाद भी अंग्रेजों और मुसलमानों को बामणों ने क्षत्रिय नहीं, बल्कि मुसलमानों को म्लेच्छ और अंग्रेजों को फिरंगी नाम दे दिया। जो किसी वर्ण में शामिल नहीं। इस प्रकार फिर से प्रमाणित हुआ कि उक्त चार वर्णों में शामिल प्रजातियों के अलावा भारत के शेष सब अवर्ण श्रेणी में माने गए।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
वर्तमान भारत में खुद को शूद्रों के वंशज मानने वाली कुछ सवर्ण आर्य जातियों ने खुद को भारत के असली निवासी और मूल मालिक सिद्ध करने के लिए--मूलवासी-आदिनिवासी शब्द को तोड़-मरोड़कर मूलनिवासी बना डाला और बाबा साहब के निष्कर्षों के विपरीत खुद को असवर्ण घोषित कर दिया। इन लोगों ने कभी भी अपने आप को भारत के इंडीजीनियश पीपुल या आदिवासी नहीं माना। ये कभी भी विश्व आदिवासी दिवस नहीं मनाते, लेकिन शाब्दिक चालबाजी के जरिये वास्तविक मूलवासी शब्द को, कूट रचित मूलनिवासी शब्द के रूप में गढ़कर और समाज को भ्रमित कर के अपने आप को भारत का मूलवासी और मूलमालिक बताने का षड्यंत्र रच डाला।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
जबकि वास्तव में इसकी कोई जरूरत ही नहीं थी, क्योंकि खुद को भ्रमवश शूद्र मानने वालों में अनेक जातियां आर्य शूद्रों की नहीं, बल्कि मूलवासियों की ही वंशज हैं। इसके उपरान्त भी कि बाबा साहब ने अछूतों का जो शोधात्मक अध्ययन किया है, उसके अनुसार वर्तमान में अजा में शामिल या कथित रूप से अछूत मानी जाने वाली या बामणों द्वारा अछूत घोषित जातियों में से केवल "चमार" जाति के अलावा अन्य किसी भी जाति के आर्य-शूद्र-वंशीय होने के प्राथमिक आधार नहीं मिलते हैं। चमार जाति के भी शूद्र होने के अकाट्य प्रमाण नहीं हैं, फिर भी वामन मेश्राम और मायावती/बसपा समर्थक समस्त अनु. जातियों को शूद्रवंशी घोषित करके भारत की वास्तविक मालिक मूलवासी जातियों के वर्तमान वंशजों को और ओबीसी, मुस्लिम और ईसाइयों को भी भारत के मूलनिवासी बनाकर भारत के मालिक मूलवासी बनाने के लिए लगातार भ्रम फैला रहे हैं। झूठ फैला रहे हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इस प्रकार उपनयन संस्कार से तिरस्कृत सवर्ण शूद्र्वंशी आर्य भी संघ पर काबिज आर्य ब्राह्मणों की भाँति खुद को भारत के मूल मालिक सिद्ध करने के षड्यंत्र में बराबर शामिल प्रतीत होते हैं। केवल यही नहीं, इन लोगों की ओर से अपने द्वारा गढ़े गए झूठ और बाबा साहब के महत्वपूर्ण शोधों को असत्य सिद्ध करने के लिए किसी (सम्भवत: इन्हीं के द्वारा) बनावटी और प्रायोजित डीएनए रिपोर्ट का भी आधार लिया जा रहा है। जबकि खुद को शुद्र बताने वाले यह क्यों भूल जाते हैं कि जिस देश में बामणों द्वारा हजारों सालों तक शूद्रों की नवविवाहिता स्त्रियों से यौनि पवित्र संस्कार के नाम पर प्रथम सम्भोग किया जाता रहा था और भारत में विवाहेत्तर सम्बंधों को कटु सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। जिनसे बामणों और गैरवर्णीय/गैर जातीय मर्दों की औलादें शूद्रों सहित सभी वर्णों में जन्मती रही होंगी, इससे इनकार करना असम्भव है। ऐसे में वर्तमान में डी इन ए की प्रामाणिकता अप्रासंगिक, असम्भव और अकल्पनीय है।</div>
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<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इसके अलावा भारत में नस्लीय भेद नहीं, बल्कि जन्मजातीय विभेद मूल समस्या है, जिसका स्थायी और व्यावहारिक समाधान प्रायोजित तरीके से मूलवासी को मूलनिवासी बनाना या बनावटी डीएनए रिपोर्ट नहीं, बल्कि समान संवैधानिक भागीदारी और राष्ट्रीय संसाधनों में हिस्सेदारी है। जो मूलनिवासी का षड्यंत्र फ़ैलाने से नहीं, बल्कि संवैधानिक और मूलवासी हकों की प्राप्ति से ही सम्भव है। जिसके लिए वंचित समाज को गुमराह करने की नहीं, बल्कि उनको सजग और जागरूक बनाना पहली और अंतिम जरूरत है। जबकि इस दिशा में कुछ नहीं हो रहा है। इसके विपरीत बुद्ध और भीम वन्दना गायी जाकर इनकी पूजा की जा रही हैं। जो मनुवाद का पोषण कर रही हैं।</div>
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<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
अंत में यही कहा जा सकता है कि मूलवासियों को यदि अपने प्राकृतिक और मौलिक हक पाने हैं तो आर्य-सवर्ण-षड्यंत्रकारियों से भारत की सम्पूर्ण व्यवस्था को मुक्त करना होगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>जय भारत। जय संविधान।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>नर-नारी, सब एक समान।।</b></div>
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<b>: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><a href="tel:9875066111">9875066111</a>/02-05-2016/02.21 AM</b></div>
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@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : मूलवासी-आदिवासी अर्थात रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-7648143088215943162016-04-30T15:04:00.000+05:302016-05-21T15:05:34.013+05:30मायावती की जीत, क्या सामाजिक न्याय की हार होगी?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b>मायावती की जीत, क्या सामाजिक न्याय की हार होगी?</b></div>
<div style="text-align: justify;">
??????????????????????????????????????????????</div>
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<b>लेखक : Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'</b></div>
<div style="text-align: justify;">
मनुवादी एमके गांधी द्वारा आमरण अनशन को हथियार बनाकर बाबा साहब को कम्यूनल अवार्ड को त्यागने को मजबूर किया गया। दुष्परिणामस्वरूप पूना पैक्ट अस्तित्व में आया। जिसके तहत सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े उन वर्गों को, जिनका राज्य (सरकार) की राय में प्रशासन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हो को प्रशासनिक प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए संविधान में मूलाधिकार के रूप में आरक्षण की व्यवस्था की गयी। जिसके तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में अजा, अजजा एवं ओबीसी को आरक्षण प्रदान किया जा रहा है। जिसका मूल मकसद सामाजिक न्याय की स्थापना करना था। यद्यपि न्यायपालिका ने आरक्षण को अनेकों बार कमजोर करने वाले निर्णय सुनाये हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इसके विपरीत संघ की राजनैतिक शाखा भाजपा की राज्य सरकारों द्वारा संविधान को धता बताकर आरक्षण प्रदान करने हेतु आर्थिक आधार को आगे बढ़ाया जाकर भाजपा की सरकारों द्वारा राजस्थान और गुजरात में सामाजिक न्याय की हत्या करने की शुरूआत की जा चुकी है। इस अन्याय के समर्थन के लिए दलित नेतृत्व पासवान, उदितराज और अठावले को भाजपा द्वारा पहले ही अपने साथ मिलाया जा चुका है। मायावती के विरुद्ध जारी आपराधिक मामलों के दबाव के जरिये उसे भी संघ द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण का समर्थन करने को मजबूर किया जा चुका है। संविधान के विरूद्ध जाकर मायावती राज्यसभा में सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान करने की अन्यायपूर्ण मांग कर चुकी हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इस सबके बावजूद भी संविधान में संशोधन के बिना आर्थिक आधार पर आरक्षण को व्यवहार में लागू नहीं किया जा सकता। मगर सबसे बड़ा पेच यह है कि राज्यसभा में भाजपा के बहुमत के अभाव में संविधान संशोधन सम्भव नहीं हो पा रहा है। राज्यसभा में बहुमत के लिए भाजपा और संघ द्वारा उत्तर प्रदेश विधानसभा के अगले आम चुनाव के बाद बदलने वाली तस्वीर का इन्तजार किया जा रहा है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
चूंकि वर्तमान परिदृश्य में राजनैतिक समीक्षकों को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बहुमत में आने के आसार बहुत ही कम नजर आ रहे हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनाव के बाद निम्न संभावनाएं और आशंकाएं दिखाई दे रही हैं :-</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
1. उत्तर प्रदेश विधानसभा में बसपा को बहुमत मिले जिससे राज्यसभा में बसपा की ताकत बढ़े। मायावती तो सीबीआई जांच के शिकंजे में छूट/ढिलाई मिले और बदले में मायावती अपनी पूर्व घोषित संघ समर्थक नीति के अनुसार सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिलाने के बहाने संघ/भाजपा के संविधान संशोधन के एजेंडे/प्रस्ताव का समर्थन करे।</div>
<div style="text-align: justify;">
2. उत्तर प्रदेश विधानसभा में भाजपा को बहुमत मिले जिससे राज्यसभा में भाजपा की ताकत बढ़े। जिसके बल पर भाजपा अपने एजेंडे को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करे। </div>
<div style="text-align: justify;">
3. उक्त बिंदु एक संघ और भाजपा की पहली आकांक्षा है, क्योंकि बसपा के समर्थन से संविधान में संशोधन करके सामाजिक न्याय की हत्या करने में कथित रूप से दलितों की सबसे बड़ी पार्टी बसपा की सहमति भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से दूरगामी लाभ का सौदा होगा। भाजपा की नियत पर कम सवाल उठेंगे।</div>
<div style="text-align: justify;">
4. उत्तर प्रदेश में बसपा को जिताने के बदले में केंद्र सरकार बसपा सुप्रीमों को सीबीआई से संरक्षण प्रदान करेगी, जिसके प्रतिफल में मायावती अन्य राज्यों में कांग्रेस को हराने के लिए अपने उम्मीदवार खड़े करके भाजपा को जिताने में योगदान करेंगी।</div>
<div style="text-align: justify;">
5. संविधान संशोधन के जरिये एक बार यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान संविधान में जुड़ गया तो आज नहीं तो कल, सीधे नहीं तो सुप्रीम कोर्ट के मार्फत अजा एवं जजा के आरक्षण का मूल आधार भी आर्थिक किया जाना आसान हो जाएगा। जो संघ का मूल मकसद है। इसके बाद आराक्षण का आधार जाति या वर्ग नहीं बीपीएल कार्ड होगा। जिसे खरीदना आसान होगा। आर्थिक आधार लागू होते ही पदोन्नति का आरक्षण अपने आप ख़त्म हो जाएगा और सामाजिक न्याय एक कल्पना मात्र रह जाएगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
अत: उपरोक्त संभावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा में मायावती को जिताना वंचित वर्ग के लिए कितना घातक हो सकता है, यह वंचित MOST वर्ग के लिए समय रहते गंभीर विचार और चिंतन का विषय होना चाहिए।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>जय भारत। जय संविधान।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>नर-नारी, सब एक समान।।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><a href="tel:9875066111">9875066111</a>/29-04-2016/03.44 PM</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>@—लेखक का संक्षिप्त परिचय :</b> मूलवासी-आदिवासी अर्थात रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।</div>
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<div style="text-align: justify;">
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<b>डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-22681700905466046962016-04-29T22:20:00.000+05:302016-05-21T15:00:19.157+05:30भारत की संयुक्त राष्ट्र संघ में घेराबंदी??<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b>भारत की संयुक्त राष्ट्र संघ में घेराबंदी??</b></div>
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<b><br /></b></div>
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<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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इस बात में कोई दो राय नहीं कि वर्तमान भाजपा की केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा का 100 फीसदी नेतृत्व करती है। यह भी सर्वविदित है कि संघ मनुवादी आतंक, जनजातीय विभेद, वर्गवाद, वर्णवाद, जातिवाद, अमानवीयता, साम्प्रदायिकता, अंधश्रद्धा, अंधभक्ति, अंधविश्वास, बामणवाद, सामन्तशाही, भ्रष्टचार, अत्याचार, उत्पीड़न, लिंग भेद, स्त्री अत्याचार जैसी हजारों बुराईयों का पोषक है। अत: ऐसी बुराइयां भारत में अचानक पैदा नहीं हुई हैं, बल्कि सदियों से व्याप्त रही हैं। इसके बावजूद अचानक भारत के मन्दिरों और मस्जिदों/दरगाहों में स्त्रियों के प्रवेश का मुद्दा राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गर्माया रहा है। जिसके लिए देशभर में संघ, मनुवाद, भाजपा, बामणवाद, आदि को कोसा जा रहा है। कोसा जाना भी चाहिए, लेकिन इसके पीछे निहित मकसद को भी समझने की जरूरत है। क्योंकि जो कुछ या जिन बुराईयों को प्रचारित किया जा रहा है, वे न तो अचानक पैदा हुई हैं और न ही नयी हैं और न हीं वर्तमान भाजपा की केंद्र सरकार की दैन हैं। अत: इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं:-</div>
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<br /></div>
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1. संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो पावर प्राप्त करना भारत का दशकों से सपना रहा है। जिसके लिए पिछले 15 वर्षों में बहुत काम किया गया है। ऐसे में भारत को रोकने के लिये विश्व के सामने भारत की छवि की ध्वस्त करना कुछ विश्वव्यापी ताकतों का दुराशय हो सकता है। अत: सम्भव है कि भारत में स्त्रियों के मानवाधिकारों के हनन को मुद्दा बनाकर भारत को घेरने की योजना पर काम हो रहा है। जिसमें प्राथमिक सफलता मिल चुकी है।</div>
<div style="text-align: justify;">
2. दूसरा कारण, जिसका भारत को फायदा होगा। वह, यह कि भाजपा को बदनाम करने के लिए प्रोपेगण्डा चलाया जा रहा है।</div>
<div style="text-align: justify;">
पहला मुद्दा अत्यंत गम्भीर और विचारणीय है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
जय भारत। जय संविधान।</div>
<div style="text-align: justify;">
नर-नारी, सब एक समान।।</div>
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: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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<a href="tel:9875066111">9875066111</a>/28-04-2016/10.26 PM</div>
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@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : मूलवासी-आदिवासी अर्थात रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।</div>
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नोट : उक्त सामग्री व्यक्तिगत रूप से केवल आपको ही नहीं, बल्कि ब्रॉड कॉस्टिंग सिस्टम के जरिये मुझ से वाट्स एप पर जुड़े सभी मित्रों/परिचितों/मित्रों द्वारा अनुशंसितों को भेजी जा रही है। अत: यदि आपको किसी भी प्रकार की आपत्ति हो तो, कृपया तुरंत अवगत करावें। आगे से आपको कोई सामग्री नहीं भेजी जायेगी। अन्यथा यदि मेरी ओर से प्रेषित सामग्री यदि आपको उपयोगी लगे तो इसे आप अपने मित्रों को भी भेज सकते हैं।</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-23236952396240005972016-04-27T22:52:00.000+05:302016-05-21T14:54:15.924+05:30बुद्ध और बाबा को भगवान बनाने वाले वंचित वर्ग के पक्के दुश्मन हैं।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b>बुद्ध और बाबा को भगवान बनाने</b></div>
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<b>वाले वंचित वर्ग के पक्के दुश्मन हैं।</b></div>
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<b>~~~~~~~~~~~~~~~~~~</b><b>~~~~</b><b>~~</b></div>
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<b><br /></b></div>
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<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
<div style="text-align: justify;">
पिछले एक-डेढ़ वर्ष के दौरान देश के अनेक राज्यों में दर्जनों कार्यक्रमों, सभाओं और कार्यशालाओं में शामिल होने का अवसर मिला। जितने भी आयोजन अजा के नेतृत्व में सम्पन्न हुए तकरीबन सभी में बुद्ध और बाबा साहब की वन्दना और गुणगान इस प्रकार से किया गया, मानो ये दोनों व्यक्ति इंसान नहीं साक्षात मनुवादी बामणों के ईश्वर हैं। अनेक जगह पर तो दोनों महापुरुषों की ईश्वर की भाँति मूर्तियां लगायी जाकर पूजा अर्चना की जा रही है। नियमित रूप से दीपक या वल्व या केंडल का प्रकाश किया जा रहा है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
लेकिन एक भी आयोजन में बुद्ध की वैज्ञानिक विचारधारा, तर्क तथा सन्देह की महत्ता और बाबा साहब के संवैधानिक ज्ञान की तनिक भी चर्चा नहीं की गयी! बाबा का खूब गुणगान किया जाता है, लेकिन बाबा के संवैधानिक योगदान पर चर्चा करना तो दूर संविधान में अंतर्निहित प्रावधानों के बारे एक शब्द तक नहीं बोला जाता। आयोजनों का सीधा और एक मात्र मकसद बुद्ध और बाबा को भगवान के रूप में स्थापित करना है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
दुःखद आश्चर्य कि ऐसे आयोजनों को 85 से 90 फीसदी वंचित आबादी के आयोजन बताकर प्रचारित तो खूब किया जाता है, लेकिन इनमें 90 से 95 फीसदी लोग केवल अजा के ही होते हैं। सामाजिक न्याय के बजाय आयोजनों को बुद्ध धर्म प्रचार के आयोजन बनाया जा रहा है। केवल यही नहीं, इन आयोजनों में हिन्दू धर्म और हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में हिन्दुओं की दृष्टि से घृणित और असहनीय भाषा उपयोग की जाती है। जिसके कारण रामायण, गीता, भागवत आदि का पाठ करवाकर देवलोक की आशा लगाये बैठे अजा, अजजा और ओबीसी के लोग इन आयोजनों में चाहकर भी शामिल नहीं होते हैं। बुद्ध वन्दना के कारण मुस्लिम शामिल नहीं होते या मन मारकर फॉर्मेलिटी करते हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कुल मिलाकर आयोजन कागजी तौर पर ही कामयाब होते हैं या केवल एक राजनैतिक जुंडली के इरादों तक सीमित रहते हैं। इस कारण बकवास वर्ग के लिए बुद्ध और बाबा के मिशन को भगवान से जोड़कर भटकाने का अवसर मिल चुका है। जिसके लिए ऐसे आयोजक जिम्मेदार हैं। एक और तो अजा, ओबीसी और आदिवासी वर्ग को हिन्दू शिकंजे से मुक्ति की बात की जाती हैं और दूसरी ओर ज्योतिबा फ़ूले, बिरसा मुंडा, बाबा साहब, जयपाल सिंह मुंडा, पेरियार, कांसीराम जैसे महापुरुषों के सामाजिक न्याय, समानता, सामान हिस्सेदारी, अंधश्रद्धा निर्मूलन जैसे ऐतिहासिक और अविस्मरणीय प्रयासों को इन आयोजनों में पलीता लगाया जा रहा है। सब कुछ बर्बाद किया जा रहा है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
क्या ऐसे आयोजक इतनी सी बात नहीं समझना चाहते कि बुद्ध और बाबा भगवान नहीं केवल इंसान थे, महान इंसान थे। जिनके अनेक बड़े कार्य वंचित वर्ग के लिए तभ ही उपयोगी होंगे, जबकि इनको भगवान नहीं इंसान माना जाएगा और इनके आचरण, निर्णयों और कार्यों की आज के संदर्भ में खुलकर समीक्षा करने की आजादी होगी। अन्यथा ऐसे आयोजनों के चलते वंचित वर्ग कभी भी वास्तव में एकजुट नहीं हो सकेगा। सामाजिक न्याय की लड़ाई हम कभी नहीं जीत पाएंगे और बकवास वर्ग यही चाहता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
यही नहीं, बल्कि इन्हीं कारणों से बुद्ध और बाबा साहब को केवल अजा तक सीमित किया जा चुका है। बाबा साहब का विश्वव्यापी पैमाना ऐसे आयोजनों के कारण दलित दृष्टि से मापा जाता है। क्या बाबा साहब और बुद्ध यही चाहते थे?</div>
<div style="text-align: justify;">
<b>जय भारत। जय संविधान।</b></div>
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<b>नर-नारी, सब एक समान।।</b></div>
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<b>: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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<a href="tel:9875066111">9875066111</a>/27-04-2016/09.16 PM</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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वंचित वर्ग की मूल समस्या नर्क का भय और स्वर्ग का प्रलोभन</div>
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<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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मुझे अकसर वंचित वर्ग के मित्रों के घर जाने के अवसर मिलते रहते हैं। जिनमें अधिकतर अजा, अजजा, ओबीसी और मुस्लिम लोग होते हैं। उनके घर का नजारा देखकर कोई नहीं कह सकता कि उनको दरिद्रता, शोषण, विभेद और गैर-बराबरी से आजादी का दर्द है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
जय भीम, जय आदिवासी जैसी कथित क्रांति के नारे बोलकर स्वागत करने वालों के घरों के प्रवेश द्वार पर गणेश विराजमान हैं। मुख्य द्वार पर नींबू मिर्ची लटकी मिलती हैं। घरों में बामणवादी पूजा पद्धति के सभी ढोंग दिखाई देते हैं। ओबीसी के लोग तो इनमें आकंठ दूबे हुए हैं। मुस्लिम धर्म के नाम पर जितने अंधभक्त और अंधश्रद्धा रखते हैं, उसकी अन्य किसी से तुलना नहीं की जा सकती।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
जो लोग सोशल मीडिया पर बुद्ध-बुद्ध और नमो बुद्धाय चिल्लाते हैं। उनके घरों पर बुद्ध की वन्दना के नाम पर, बुद्ध को भगवान बना कर बामणवादी व्यवस्थानुसार पूजा-अर्चना जारी है। अब तो बुद्ध की मूर्ती के साथ बाबा साहब की मूर्ती भी लगती जा रही है। जो बुद्ध मूर्ती पूजा को नकारते हैं और विज्ञान की बात करते हैं। उनको ही भगवान बनाया जा रहा है। इसके बाद भी इनके परिवारों बामणवादी भगवानों से भी पूर्ण मुक्ति नहीं मिली है। इनके घर भी दुर्गा, हनुमान, गणेश, कृष्ण, राम और शिवजी बिराजे मिलेंगे। ऐसे ही ढोंगियों के कारण बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित किया जा चुका है और संघ की पूर्ण तैयारी है कि बाबा साहब को भी विष्णु अवतारी घोषित करके बाबा भक्तों को पूर्णत: मनुवादी कैद के शिकंजे में बन्द रखा जावे।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
वंचित वर्ग के डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर तक अंधश्रद्धा में आकण्ठ दूबे हुए हैं। राजस्थान का डूंगरपुर-बांसवाड़ा जो भील आदिवासी बहुल क्षेत्र है, वहां के शिक्षित और सम्पन्न भील आदिवासी वैदिक व्यवस्था को अपनाने में गौरव का अनुभव करते हैं और आदिकाल से प्रचलित वधुमूल्य प्रथा के स्थान पर दहेज को बढ़ावा दे रहे हैं। बामण को बुलाकर वैदिक रीति से सप्तपदी अनुसार फेरे सम्पन्न करवाकर विवाह होने लगे हैं। पूर्वी राजस्थान के मीणा आदिवासी तो अपने आप को वैदिक व्यवस्था के संरक्षक मानते हैं। उनके लिए उक्त सब के साथ साथ भागवत कथा और रामायण पाठ तो जैसे मोक्ष का मार्ग है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कुल मिलाकर सारा खेल नर्क के भय और स्वर्ग के प्रलोभन पर टिका हुआ है। जब तक वंचित वर्ग इस मोहपाश में बंधा रहेगा। बामनवादी विभेदक व्यवस्था से उसका शोषण कोई नहीं रोक सकता। ऐसे उसे बराबरी नहीं मिल सकती। जिसका मूल है-अशिक्षा। हमारे लोग डिग्रियां तो हासिल कर रहे हैं, लेकिन पूर्णत: अशिक्षित हैं। उनको जीवन की वास्तविकता का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं हैं। जब तक जीवनोपयोगी शिक्षा नहीं मिलेगी, वंचित समाज मनुवादी शिकंजे से मुक्त नहीं हो सकता। क्योंकि आम व्यक्ति कथित शिक्षित और बड़े लोगों की ओर देखकर आगे बढ़ता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-27132001373195224592016-04-15T23:30:00.000+05:302016-05-21T14:32:34.671+05:30बाबा साहब के 125वें जन्मोत्सव को संविधान खरीदकर ज्ञानोत्सव मनाएं।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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बाबा साहब के 125वें जन्मोत्सव को</div>
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संविधान खरीदकर ज्ञानोत्सव मनाएं।</div>
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<br /></div>
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ऑल इण्डिया एससी/एसटी रेलवे एप्लाईज एसोशिएशन, कपूरथला कोच फैक्ट्री की जोनल इकाई की ओर से 14 अप्रैल, 16 को आयोजित बाबा साहब के 125वें जन्मोत्सव कार्यक्रम को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित करते हुए हक रक्षक दल (HRD) के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने आह्वान किया कि वंचित वर्ग के लोगों को संविधान खरीदकर बाबा साहब के जन्मदिन को ज्ञानोत्सव के रूप में मनाना चाहिए। भारी संख्या में उपस्थित जनसमूह की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच डॉ. मीणा जी ने बाबा साहब के योगदान और संविधान की जानकारी प्रदान करके लोगों को मन्त्रमुग्ध कर दिया। ऐसी जानकारियां दी जिनसे अधिकतर लोग अनभिज्ञ थे। कार्यक्रम के बाद श्रोताओं ने डॉ. मीणा जी से मिलकर व्यक्तिगत रूप से ख़ुशी का इजहार किया। महिलाओं तक ने डॉ. साहब के भाषण को सराहा। डॉ. मीणा जी कहा कि बाबा साहब ने शिक्षित बनो पहला नारा दिया था, जिसके बाद हम डिग्रीधारी और नौकर तो बन गए लेकिन सच में शिक्षित बनना अभी भी शेष है। लोगों को संविधान तथा नियम कानूनों को पढ़ना चाहिए और जागरूक तथा सतर्क नागरिक बनना चाहिए। जिससे बकवास वर्ग के शोषण से मुक्ति मिल सके और मोस्ट मूवमेंट मजबूत हो सके। डॉ. मीणा जी की ओर से मोस्ट और बकवास की व्याख्या लोगों को बहुत पसन्द आयी। डॉ. साहब ने आह्वान किया कि हमें बाबा साहब का गुणगान करने या बाबा साहब को भगवान बनाने के बजाय, जो कुछ वंचित समाज के लिए बाबा साहब ने किया उसपर विचार, चिंतन और मन्थन करना चाहिए। संविधान का ज्ञान हासिल करना चाहिए। इसके अलावा बहुत सी बातें बतलाई। कार्यक्रम में एसोशिएशन की जोनल बॉडी के अध्यक्ष जीत सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष रनजीत सिंह, वरिष्ठ उपाध्यक्ष विजय कुमार, उपाध्यक्ष के एस खोकर, सचिव आर सी मीणा, कोषाध्यक्ष सोहन बैठा, अतिरिक्त सचिव करण सिंह सहित स्थानीय पंजाबी लेखक बी एल सांपला, मैडम आशा क्लियर, के एल जस्सल, धर्मपाल पैंथर, श्रीमती बैठा आदि अनेकों वक्ताओं ने विचार व्यक्त किये। जबकि मैडम दिव्याना इक्का, मैडम बिमला और रूपो वालिया की टीम ने सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किये। कार्यक्रम पूरी तरह से सफल रहा। आयोजन की समाप्ति के बाद डॉ. मीणा जी से फिर से कपूरथला पधारने का निवेदन किया गया। कार्यक्रम के शुरू में डॉ. मीणा जी की ओर से झण्डा वन्दन किया गया, जबकि अंत में प्रमुख कार्यकर्ताओं और वक्ताओं को समृति चिह्न भेंट किये। खुद मीणा जी को भी समृति चिह्न भेंट किया गया।</div>
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निवेदक</div>
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जीत सिंह-जोनल अध्यक्ष</div>
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आर सी मीणा-जोनल सचिव</div>
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कपूरथला। पंजाब।</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-20733430234625664392016-04-11T09:24:00.003+05:302016-04-11T09:24:27.623+05:30वंचितों पर जिन्दा वंचित वर्ग विरोधी पत्रिका का संघ की सह पर आरक्षण विरोधी अभियान जारी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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वंचितों पर जिन्दा वंचित वर्ग विरोधी पत्रिका का</div>
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संघ की सह पर आरक्षण विरोधी अभियान जारी</div>
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<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' </b></div>
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एक तरफ तो राजनैतिक लाभ उठाने के लिये बकवास@ वर्ग द्वारा देशभर में बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेड़कर की 125वीं जयन्ति मनाने का षड़यंत्रपूर्ण नाटक खेला जा रहा है। जिसकी छद्म और छलपूर्ण खबरें मीडिया में छायी हुई हैं। वहीं दूसरी और वंचित मोस्ट@ वर्ग की ओर से बाबा साहब की जयन्ति मनाने की वास्तविक और देश को जगाने वाली खबरों को बकवासवर्गी मीडिया द्वारा जानबूझकर दबाया जा रहा है। तीसरी ओर बकवासवर्गी मीडिया की ओर से देश के लोगों को लगातार गुमराह करके आरक्षण के विषय पर भड़काया जा रहा है। इस सबके कारण सामाजिक न्याय विषय पर अनारक्षित वर्ग के संविधान के प्रावधानों और आरक्षण व्यवस्था से अनजान युवा लोगों की अज्ञानता को बढावा देकर, रुग्ण मानसिकता को हवा दी जा रही है।</div>
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<br /></div>
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इसी क्रम में राजस्थान पत्रिका के 11 अप्रेल, 2016 के जयपुर शहर संस्करण के सम्पादकीय पृष्ठ आठ आर्य पुत्र एसएन शुक्ला, (महासचिव—लोकप्रहरी) का लेख प्रकाशित किया गया है, जिसका शीर्षक है—<b>'आरक्षण—जातिगत आधार से निकलकर सभी धर्मों के गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों को मिले लाभ अब आर्थिक आधार अपनाने का वक्त'।</b> जिसमें मूल रूप से दो गलत, आपत्तिजनक, असंवैधानिक और भ्रामक बातें लिखी/प्रकाशिक की गयी हैं :—</div>
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<br /></div>
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<b>पहली </b>सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा गया है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि <b>''आरक्षण केवल जातिगत आधार पर नहीं दिया जा सकता।''</b> जबकि इन आर्यपुत्र लेखक शुक्ला और आर्यपुत्र पत्रिका प्रकाशक गुलाबचन्द कोठारी को शायद अच्छी तरह से ज्ञान है कि <b>संविधान में जातिगत आधार आरक्षण है ही नहीं</b> और न केवल पिछले साल, बल्कि संविधान लागू होने के तत्काल बाद से सुप्रीम कोर्ट अनेकों बार इस बात को निर्णीत कर चुका है कि <b>आरक्षण जातिगत आधार पर नहीं दिया जा सकता। क्योंकि आरक्षण जातियों को नहीं, बल्कि जातियों के समूह अर्थात् समाज के वंचित वर्गों को प्रदान किया गया है। आरक्षण के लिये सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ी एक समान जातियों को वर्गीकरण करके मिलते-जुलते वर्गों में बांटकर आरक्षण प्रदान किया गया है। </b>जिसकी संवैधानिकता की पुष्टि करते हुए <b>पश्चिम बंगाल बनाम अनवर अली सरकार, एआईआर 1952 एसएसी 75, 88</b> में सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि</div>
<blockquote class="tr_bq" style="text-align: justify;">
<b><span style="color: blue;">''चूंकि जब तक कानून उन सबके लिये, जो किसी एक वर्ग के हों, एक जैसा व्यवहार करता है, तब तक समान संरक्षण के नियम का अतिक्रमण नहीं होता, (अनुच्छेद 14 समान संरक्षण की बात कहता है) इसलिये व्यक्तियों का तथा जिनकी स्थितियां सारभूत रूप से एक जैसी हों उन्हें एक ही प्रकार की विधि के नियमों के अधीन (आरक्षण प्रदान करके) रखने का असंंदिग्ध अधिकार विधायिका को प्राप्त है।''</span></b></blockquote>
<div style="text-align: justify;">
डॉ. प्रद्युम्न कुमार त्रिपाठी द्वारा लिखित ग्रंथ <b>'भारतीय संविधान के प्रमुख तत्व'</b> के पृष्ठ 277 को आर्यपुत्र लेखक शुक्ला, पत्रिका प्रकाशक कोठारी और उन जैसे पूर्वाग्रही एवं रुग्ण मानसिकता के लोगों को निम्न पंक्तियों को समझना चाहिये। जिसमें स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है कि—</div>
<blockquote class="tr_bq" style="text-align: justify;">
<b><span style="color: blue;">समानता के मूल अधिकार का संवैधानिक प्रावधान करने वाला ''अनुच्छेद 14 विभेद की मनाही नहीं करता, वह केवल कुटिल विभेद की मनाही करता है, वर्गीकरण की मनाही नहीं करता, प्रतिकूल वर्गीकरण की मनाही करता है।'' इस प्रकार आरक्षण जातिगत नहीं है। अत: यह जाति आधारित विभेद नहीं है, बल्कि जाति आधारित कुटिल विभेद मिटाने के लिये वंचित जातियों के लोगों का न्यायसंगत वर्गीकरण है।</span></b></blockquote>
<div style="text-align: justify;">
पत्रिका में प्रकाशित उक्त लेख में आर्य—पुत्र लेखक शुक्ला और प्रकाशक कोठारी ने समाज में वैमनस्यता फैलाने वाली <b>दूसरी बात लिखी है कि—'मण्डल आयोग के बाद प्रशासनिक दक्षता नीचे गयी।''</b> इन दोनों आर्य पुत्रों को क्या यह ज्ञात नहीं है कि <b>मण्डल आयोग की सिफारिशों के आधार पर करीब 55 फीसदी ओबीसी आबादी को बकवासवर्गी सरकारों ने मात्र 27 फीसदी आरक्षण ही प्रदान किया था और अभी तक नीति—नियन्ता प्रशासनिक पदों पर ओबीसी को एक फीसदी भी आरक्षण नहीं मिला है?</b> अजा एवं अजजा को साढे बाईस फीसदी आरक्षण के होते हुए प्रथम श्रेणी प्रशासनिक पदों पर पांच फीसदी भी प्रतिनिधत्व नहीं हैं और नीति—नियन्ता पदों पर प्रतिनिधित्व शून्य है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
ऐसे में प्रशासनिक दक्षता गिरने के लिये आरक्षण व्यवस्था को दोषी ठहराना सार्वजनिक रूप से सम्पूर्ण समाज को गुमराह करने का गम्भीर अपराध है। जिसके लिये ऐसे दुराग्रही लेखक औ प्रकाशक के विरुद्ध सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने, लोगों को संविधान के विरुद्ध उकसाने, वंचित वर्गों के संवैधानिक हकों को छीनने और देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिये। मगर दु:ख है कि वंचित वर्ग के लोग ऐसे मामलों में चुप्पी साधे बैठे रहते हैं और वंचित वर्ग के संवैधानिक राजनैतिक तथा प्रशासनिक प्रतिनिधि बकवास वर्ग की गुलामी करने में मस्त रहते हैं। जिसका दुखद दुष्परिणाम है—शुक्ला और कोठारी जैसों द्वारा खुलकर संविधान की अवमानना करने वाले लेख लिखकर प्रकाशित करना और समाज को गुमराह करते रहना।</div>
<div style="text-align: justify;">
<b>शब्दार्थ :</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>@बकवास</b> (BKVaS= Brahman + Kshatriy+ Vaishay + Sanghi)</div>
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<b>@मोस्ट</b> (MOST=Minority+OBC+SC+Tribals)/ </div>
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<b>- : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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<b>9875066111/03-04-2016/09.02 AM</b></div>
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@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : मूलवासी-आदिवासी अर्थात रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।</div>
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निजी क्षेत्र में व्याप्त खुले शोषण को</div>
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रोकने हेतु सख्त कानूनी सुधार जरूरी</div>
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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वर्ष 1991 में जैसे नरसिम्हा राव की सरकार ने सत्ता संभाली या यह कहना अधिक उचित होगा कि वीपी सिंह एवं चन्द शेखर की सरकार द्वारा बरबार अर्थव्यवस्था के सुधार के लिये जैसे ही रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया के पूर्व गर्वनर डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत के वित्तमंत्री के रूप में जिम्मेदारी संभाली भारत को फिर से कॉर्पोरेट के गुलाम बनाने की शुरूआत हो गयी। खुले बाजार और विश्व अर्थव्यवस्था के साथ प्रतियोगिता के नाम पर डॉ. मनमोहन सिंह की नीति को पीवी नरसिम्हाराव के बाद अटलबिहारी वाजपेयी और अन्तत: स्वयं डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने उत्तरोत्तर प्रगति के साथ जारी रखा। जिसके चलते भारत का पहले से कमजोर तबका लगातार वंचित और बेहाल हो गया तथा किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो गये। स्त्रियों की स्थिति बद से बदतर हो गयी। निम्न श्रेणी की सरकारी नौकरियां समाप्त करने की प्रकिया शुरू हो गयी।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
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वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार भारत की अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र को सौ फीसदी हिस्सेदारी प्रदान करके सम्पूर्ण रूप से कॉर्पोरेट घरानों पर मेहरबान है। जिसके चलते जहां एक ओर भ्रष्टाचार चरम पर है, वहीं दूसरी ओर आम व्यक्ति, किसान, स्त्री और वंचित तबका बेहाल है। अपरिहार्य तकनीकी पदों को छोड़कर ग्रुप डी की सरकारी नौकरियां समाप्त हो चुकी हैं। जिसके चलते वंचित तबकों को प्रशासन में प्राप्त संवैधानिक प्रतिनिधित्व/आरक्षण का मूल अधिकार हमेशा के लिये नेस्तनाबूद किया जा चुका है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
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यहां जो सबसे महत्वूपर्ण और विचारणीय तथ्य है, वह यह कि—सरकारी क्षेत्रों में जिन कार्यों के लिये, जितनी पगार मिला करती थी या वर्तमान में मिल रही, उसी कार्य के लिये ठेकदार द्वारा एक चौथाई पगार पर वंचित तबके के लोगों को कार्य पर रखा जा रहा है। जिसके चलते वंचित वर्ग का खुला शोषण हो रहा है। लेकिन इसकी ओर 1991 से आज तक किसी भी सरकार या जनप्रतिनिधि ने जरा सा भी ध्यान नहीं दिया। दुष्परिणामस्परूप वर्तमान में जो कार्य ग्रुप डी सरकारी कर्मचारी 25 से 40 हजार रुपये महावार वेतन में करता है, वही कार्य ठेकदार के अधीन कार्यरत मजदूर 9 से 12 हजार प्रतिमाह में करने को विवश है। जिसे अन्य किसी प्रकार की कोई सुविधा या कानूनी संरक्षण भी प्राप्त नहीं हैं।</div>
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<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इस शोषक व्यवस्था के कारण कारोबारी, ठेकेदार, कॉर्पोरेट घराने और ठेका प्रदान करने वाले सरकारी अफसर लगातार मालामाल होते जा रहे हैं। हों भी क्यों नहीं, जब कार्य की लागत का अनुमान/ऐस्टीमेट सरकारी दर पर बनाया जाता है और ठेकेदार द्वारा मजदूरों से सरकारी दर की तुलना में मात्र एक चौथाई दर पर कार्य करवाया जाता है। इसमें जो मुनाफा होता है, उसकी आपस में बन्दरबांट होती है, जिसका निर्धारित हिस्सा सरकार में उच्चतम स्तर तक पहुंचता है। इसी काले धन के कारण भ्रष्ट धनकुबेरों और भ्रष्ट अफसरों की संख्या में बेतहासा बढोतरी हो रही है। इसी के चलते चुनावों में बेतहासा धन खर्च/विनियोग किया जाता है। जीतने के बाद खर्चे गये/विनियोग किये गये खर्चे का सैकड़ों गुणा वसूला जाता है। जिसका सरलतम रास्ता है—ठेकादारी/अनुबन्ध प्रथा।</div>
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<br /></div>
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डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा बिना पर्याप्त कानून बनाये और वंचित तबके के संवैधानिक अधिकारों को संरक्षण प्रदान किये शुरू की गयी खुली अर्थव्यवस्था के कारण वर्तमान में हर एक जिले में हजारों भ्रष्ट लोग तो मालामाल हो गये, लेकिन लाखों—करोंड़ों लोगों को हमेशा—हमेशा के लिये दलित, वंचित और शोषित बना दिया गया है। जिसकी ओर कोई भी ध्यान देने की जरूरत नहीं समझता है। वर्तमान में निर्वाचित होकर विधायिका में पहुंचने वाले जनप्रतिनिधियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बहुत बड़ी संख्या शोषक ठेकेदारों की भी है। इस कारण इस बारे में कभी भी विधायिका में कोई सुधारात्मक चर्चा नहीं होती है। ऐसे में वंचित तबका लगातार शोषण के दुष्चक्र और गरीबी के अंधकूप में समाता जा रहा है। जिसके चलते दैहिक शोषण सहित अनेकों प्रकार के अपराधों में वृद्धि हो रही है। किसान आत्महत्या करने को विवश हैं और देश का मोस्ट वर्ग प्रशासन में प्रस्तावित संवैधानिक हिस्सेदारी के मूल अधिकार से असंवैधानिक तरीके से वंचित किया जा रहा है।</div>
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<br /></div>
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इस प्रायोजित समस्या का समाधान उन्हीें सत्ताधारी लोगों अर्थात् डॉ. मनमोहन सिंह के मानसपुत्रों के अधिकार क्षेत्र में है, जिन्होंने इसे अर्थव्यवस्था में सुधार के नाम पर जन्म देकर पोषित किेया है। अर्थात् कार्यपालिका और विधायिका द्वारा न्यायसंगत कानून बनकार ठेकेदारों के अधीन कार्यरत मजदूरों एवं कर्मकारों को न्यायसंगत वेतन, भत्ते, भविष्य निधि, चिकित्सा सुविधा, आपात निधि आदि की व्यवस्था करके इस समस्या का स्थायी निराकरण सम्भव है, लेकिन ऐसे जरूरी और न्यायसंगत कानून बनाते ही ऊपर तक पहुंचने वाला कमीशन मिलना बन्द हो जायेगा। इस कारण स्थित विकट हो चुकी है।</div>
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<br /></div>
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अत: शोषण और अन्याय के खिलाफ सच्चे इरादों से प्रयासरत हम लेखकों, चिन्तकों और मीडिया से जुड़े लोगों का दायित्व है कि हम जनागरण के जरिये इस अत्यधिक समस्या को समाज और सरकार के सामने लायें। जिससे शोषण और अन्याय के खिलाफ जनमत खड़ा हो सके और वर्तमान शोषक व्यवस्था से मुक्ति के लिये सख्त कानून बनाने को सरकार को विवश किया जा सके। याद रहे एकजुट जनमत के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी है। आइये—एकजुट होना शुरूआत है।</div>
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- : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' 9875066111/03-04-2016/08.25 AM</div>
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<b>रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया : मूलवासी-आदिवासी</b></div>
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<b>समस्त प्रजातियों को एकजुट होने की जरूरत है!!</b></div>
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<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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भारत के मूलमालिक, मूलवासी, आदिनिवासी, जिन्हें आम बोलचाल में आदिवासी कहा जाता है, जबकि संविधानसभा में शामिल मूलवासी प्रतिनिधि जयपाल सिंह मुंडा के तीखे विरोध के बावजूद मूलवासी-आदिवासियों को संविधान में अनुसूचित जन जाति लिखा गया है, जो वर्तमान भारत में सर्वाधिक कष्टमय जीवन जीने को विवश है। जिसका मूल कारण भारत के मूलवासी के साथ संविधान निर्माताओं द्वारा किया गया अन्याय है। मूलवासी प्रजाति का मौलिक अस्तित्व मिटाने के लिए, उसे अजजा नाम दे दिया गया। केवल इतना ही नहीं, बल्कि आदिनिवासी जो हकीकत में रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया हैं, उनकी अनेक प्रजातियों को षड्यंत्र पूर्वक संविधान निर्माताओं, केंद्र सरकार और विधायिका ने अजजा, अजा और ओबीसी में विभाजित कर दिया। इस कारण <b>वर्तमान में भारत के मूलमालिक-मूलवासी की खोज करना, मूलवासियों की पहली और अनिवार्य जरूरत है।</b> जिसमें बकवास वर्ग से प्रभावित और भ्रमित कुछ मूलवासी जो खुद को शूद्र मानते हैं, विदेशी मूल की नस्लों के लिए उपयोग में लाये जाने वाले मूलनिवासी शब्द को गढ़कर और मूलवासियों पर थोपकर बलात् व्यवधान पैदा कर रहे हैं। जिनमें बामसेफी वामन मेश्राम प्रमुख व्यक्ति हैं, जो बामणों द्वारा दी गयी शूद्र नामक गाली को सार्वजनिक रूप से अंगीकार कर के, खुद को शूद्रवंशी मान रहे हैं। जबकि बाबा साहब के अनुसार शूद्र सूर्यवंशी आर्य क्षत्रियों के वंशज थे, जिनका उपनयन संस्कार बन्द कर के बामणों ने उनको शूद्र बना दिया। दूसरी और संसार के सबसे बड़े, क्रूर और दुर्दांत हत्यारे आर्य-ब्राह्मण परशुराम ने समस्त क्षत्रियों की 21 बार अभियान चलाकर निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी थी। वहीं बाबा साहब का कहना है कि वर्तमान अजा, दलित और अछूत जातियां ही शूद्र हैं, इस बात का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है। बाबा साहब के उक्त निष्कर्ष का आज तक किसी ने खण्डन नहीं किया है। इससे यह तथ्य स्वत: प्रमाणित होता है कि वर्तमान अजा एवं ओबीसी वर्गों में भी अनेक जातियां शूद्रवंशी या विदेशी मूलनिवासी नहीं, बल्कि अदिनिवासी मूलवासी हैं। जो रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया हैं। आज विभिन्न वर्गों में शामिल समस्त रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया-मूलवासी-आदिवासी जातियों को एकजुट होने की जरूरत है। क्योंकि रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया अर्थात अजा, अजजा और ओबीसी में शामिल हम सभी भारत के मूलवासियों की प्रजातियों को एकजुट होकर अनेक मोर्चों पर लड़ना होगा। मूलवासियों को अनेक विदेशी विचारधाराओं से सतत संघर्ष करना होगा। जिनमें गांधीवादी लोग जो मूलवासी को गिरिवासी कहते हैं। याद रहे गांधी ने भारत का वारिसाना हक प्राप्त करने के लिए कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे निरस्त करके कोर्ट ने निर्णय दिया था कि भारत गांधी या कांग्रेस का नहीं, बल्कि मूलवासी-आदिवासी का देश है, जिसका वारिसाना हक गांधी और उनकी कांग्रेस को नहीं दिया जा सकता। आर्यवंशी विदेशी लोगों द्वारा प्रतिपादित अमानवीय मनुवादी व्यवस्था के पोषक संघी जो भारत के मूलमालिक आदिवासी को वनवासी कहते हैं। इनसे मुक्ति मूलवासियों की सबसे बड़ी चुनौती है। हमारे की मूलवासियों में शामिल प्रजातियों के कुछ लोग जो बामसेफी प्रभाव में हैं, जबकि बामसेफी जो मूलवासी को मूलनिवासी-विदेशी शूद्रों की औलाद सिद्ध करने में जुटे हुए हैं, ये लोग आज मूलवासी-आदिवासी के विरुद्ध सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण और आत्मघाती कार्य कर रहे हैं। केंद्र सरकार और अनेक राज्य सरकारें जो देश के मूलवासियों के प्राकृतिक हकों को बलपूर्वक छीन रही हैं और प्रतिरोध करने पर मूलवासी को नक्सलवादी घोषित कर रही हैं। अंत में अफसरशाही जो हमेशा व्यवस्था के नाम पर सत्ता की चाटुकारिता करती है, वो भी मूलवासियों के हकों के विरुद्ध जारी षडयन्त्रों में सहायक सिद्ध हो रही है। अत: रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया : मूलवासी-आदिवासी की अजा, अजजा और ओबीसी में शामिल समस्त प्रजातियों को सबसे पहले शीघ्रता से एकजुट होने की जरूरत है!!</div>
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जय भारत। जय संविधान।</div>
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नर-नारी सब एक समान।।</div>
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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<a href="tel:9875066111">9875066111</a>/09-03-2016/07.37 AM</div>
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@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : मूलवासी-आदिवासी रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।</div>
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<b>महिला दिवस को सार्थक बनाने के लिए 7 कदम!</b></div>
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<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
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आज 08 मार्च, 2016 है। सभी अखबारों, टीवी चैनलों और रेडियो पर महिलाओं के बारे में बातें होंगी। चर्चा, बहस और लेख सब जगह महिलाओं की बात होनी हैं। इस बारे में मेरा भी कुछ चिंतन है। हजारों सालों से महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक, बल्कि गीता जैसे कथित धर्मग्रंथ के अध्याय : 9 के 32वें श्लोक में स्त्री को पाप यौनि में जन्मी जीव समझा गया है। अनेक ग्रन्थों में स्त्री को हजारों सालों से दासी, गुलाम और अमानवी प्रावधानों की त्रासदी झेलनी पड़ी है। बलात्कार केवल स्त्री का होना। लज्जा, शर्म और हया को केवल स्त्री का आभूषण बताया जाना। बहुत सी बातें और ऐसे हालात हैं, जो स्त्री को पुरुष से कमतर बनाने के लिए लगातार काम अवचेतन स्तर पर कार्य करते रहते हैं। वास्तव में स्त्री की नैसर्गिक प्रजनन की अनुपम क्षमता और उसके जन्मजात संवेदनशील स्वभाव को समाज ने स्त्री की कमजोरी समझ लिया और उसके साथ हजारों सालों से गुलामों की तरह से व्यवहार किया गया। इन सब मनमानियों से स्त्री की मुक्ति के लिए बातें तो हम खूब करते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर क्या कुछ होता है, किसी से छिपा नहीं है। मेरा मानना है कि शेष बातें तो बाद में सबसे पहले स्त्रियों को मानवीय दर्जा देने के लिए बहुत थोड़े कदम उठाने की जरूरत है। जैसे-</div>
<div style="text-align: justify;">
1. संविधान के अनुच्छेद 13 में मूल अधिकार विरोधी होने के कारण-शून्य घोषित स्त्री विरोधी सभी धर्मग्रंथों के लेखन, प्रकाशन, मुद्रण और विक्रय को आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध घोषित किया जाए।</div>
<div style="text-align: justify;">
2. अंधश्रद्धा, अंधविश्वास और अवैज्ञानिक मन्त्र-तंत्रों पर प्रतिबन्ध और इनका उल्लंघन करना आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध हो।</div>
<div style="text-align: justify;">
3. शराब हिंसा, दहेज और कन्यादान स्त्री की दुर्दशा के मूल हैं। स्त्री के मानवी होने को ये 3 बातें पल-प्रतिपल कुचलती हैं। अत: इनको कठोरता से निषिद्ध किया जाए और उल्लंघन करने वाले को उम्र कैद की सजा दी जाए।</div>
<div style="text-align: justify;">
4. अपनी इच्छानुसार न्यूनतम स्नातक तक की शिक्षा हर लड़की के लिए अनिवार्य और मुफ़्त मूल अधिकार हो, जिसका आवासीय सुविधाओं सहित सम्पूर्ण और वास्तविक खर्चा सरकार वहन करे।</div>
<div style="text-align: justify;">
5. कन्या भ्रूण हत्या में किसी भी रूप में लिप्त डॉक्टर और अन्य अपराधियों को कम से कम उम्र कैद की सजा मिले।</div>
<div style="text-align: justify;">
6. स्त्रियों को विधायिका में 50 फीसदी भागीदारी हो, लेकिन यह भागीदारी हर वर्ग की स्त्री को आबादी के अनुपात में होनी चाहिए।</div>
<div style="text-align: justify;">
7. स्त्रियों के मान-सम्मान को उनकी निजी या पारिवारिक इज्जत से नहीं, बल्कि देश और समाज की इज्जत से जोड़ा जाए। जिससे ऑनर किलिंग की समस्या से निजात मिले।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
उक्त मुद्दों पर सरकार, समाज और प्रशासन को मिलकर लगातार काम करने की जरूरत है।</div>
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जय भारत। जय संविधान।</div>
<div style="text-align: justify;">
नर-नारी सब एक समान।।</div>
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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9875066111/08-03-2016/08.38 AM</div>
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<div style="text-align: justify;">
<b>सोशल मीडिया पर नेताओं का मजाक उड़ाने पर जेल</b></div>
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<b>सोशल मीडिया हिट में गन्दगी की सफाई भी जरूरी है। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>================================</b></div>
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<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
<div style="text-align: justify;">
तमिलनाडु से खबर है कि सोशल मीडिया पर नेताओं का मजाक उड़ाने पर जेल की हवा खानी पड़ सकती है। ऐसा करने वालों के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 188 के तहत कार्यवाही की जायेगी।</div>
<div style="text-align: justify;">
कुछ मित्रों को इस खबर के हवाले से यह बोलने और लिखने का मौक़ा मिल सकता है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी पर सरकारी हमला है। मैं इससे सहमत नहीं हूँ।</div>
<div style="text-align: justify;">
सोशल मीडिया पर जिस दिन से जुड़ा था, उसी दिन से मेरा स्पष्ट मत है कि जो कोई भी सोशल मीडिया पर हल्की, अभद्र या स्तरहीन भाषा का इस्तेमाल करे, उसे केवल सजा ही नहीं, कठोर सजा मिलनी चाहिए। कारण भी बतला दूँ-</div>
<div style="text-align: justify;">
1. स्तरहीन भाषा और असत्य संवाद के कारण सोशल मीडिया को सरकार, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों द्वारा गम्भीरता से नहीं लिया जाता है। जबकि वर्तमान में सोशल मीडिया आम व्यक्ति की आवाज है। जो लोग सोशल मीडिया का स्तर गिराते हैं, वे लोग आम व्यक्ति की अभिव्यक्ति के विश्वस्तरीय मुक्त मंच इंटरनेट और सोशल मीडिया की गरिमा को क्षति पहुंचाने के अपराधी हैं। ऐसे लोगों की अनदेखी आत्मघाती नीति होगी।</div>
<div style="text-align: justify;">
2. किसी भी गलत व्यक्ति, संगठन, राजनैतिक दल, राजनेता, धर्म, धार्मिक व्यक्ति, प्रतिनिधि, प्रशासक, सरकार या किसी भी गलत विषय की निंदा करने के लिए संसदीय और शिष्ट भाषा में भी विचार रखे जा सकते हैं, बल्कि ऐसे ही विचार अधिक प्रभावी होते हैं। इससे सोशल मीडिया और अंतर्जाल अर्थात इंटरनेट की गरिमा एवं मीडिया के रूप में प्रतिष्ठा भी कायम होती है।</div>
<div style="text-align: justify;">
3. सोशल मीडिया पर इन दिनों कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसको इतिहास, क़ानून, संविधान, प्रेस एक्ट आदि का कोई ज्ञान नहीं। यहां तक कि जिन लोगों को भाषा तक का ज्ञान नहीं। जो लोग सार्वजनिक संवाद की मर्यादा को तक नहीं जानते, ऐसे लोग सोशल मीडिया के जरिया अशिष्ट, असंसदीय, अभद्र और कलुषित भाषा में अपने पूर्वाग्रह तथा अपनी भड़ास निकालने के लिए आम जनता की मुक्त आवाज सोशल मीडिया का दुरूपयोग कर रहे हैं। जिसके चलते जनप्रतिनिधि, सरकार और प्रशासन द्वारा सोशल मीडिया पर व्यक्त संजीदा विचारों और सही जानकारी तक को गम्भीरता से नहीं लिया जाता है। </div>
<div style="text-align: justify;">
अत: मेरा स्पष्ट मत है कि सोशल मीडिया की प्रतिष्ठा कायम करनी है तो गन्दगी की सफाई जरूरी है। गन्दगी फैलाने वालों को जेल की हवा खिलाने में संजीदा लोगों को मदद करनी चाहिए। ऐसा होने से सोशल मीडिया और आम व्यक्ति की आवाज को ताकत मिलेगी।</div>
<div style="text-align: justify;">
जय भारत। जय संविधान।</div>
<div style="text-align: justify;">
नर-नारी सब एक समान।।</div>
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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<a href="tel:9875066111">9875066111</a>/06-03-2016/09.28 AM</div>
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<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: Tahoma; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
<span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b>पंतजलि द्वारा कैंसर का भय दिखाना</b></span></span></span><br />
<span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b>क्या नैतिक है? </b></span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b>क्या </b></span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b>कानून सम्मत है?</b></span></span></span><br />
<span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;">==========================</span></span></span><br />
<span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></span></span></span><br />
<span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;">आज 03 मार्च, 2016 को राजस्थान पत्रिका के जयपुर संस्करण के मुखपृष्ठ पर एक </span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b>विज्ञापन</b></span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"> के शीर्षक ने चौंका दिया। पतंजलि की ओर से जारी विज्ञापन में कहा गया है कि </span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="background-color: red; margin: 0px;"><b><span style="color: yellow;">'आपके खाने के तेल में कैंसर कारक तत्वों की मिलावट तो नहीं—जरा सोचिए'</span></b></span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><span style="background-color: red;"> </span>यह 'जरा सोचिये', जरा सी बात नहीं, बल्कि भयानक बात हो सकती है और उपभोक्ताओं के विरुद्ध </span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b>भयानक षड़यंत्र</b></span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"> हो सकता है? लोगों को 'जरा सोचिये' के बहाने कैंसर का भय दिखलाकर पतंजलि द्वारा अपना सरसों का तेल परोसा जा रहा है। क्या यह सीधे-सीधे आम और भोले-भाले लोगों को भय दिखाकर अपना तेल खरीदने के लिये मानसिक दबाव बनान नहीं? क्या यह उपभोक्ताओं की मानसिक ब्लैक मेलिंग नहीं है?</span></span></span><br />
<span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;">दिमांग पर जोर डालिये रामदेव वही व्यक्ति है—जो 5-7 साल पहले अपने कथित योगशिविरों में जोर-शोर से योग अपनाने की सलाह देकर घोषणा करता था कि उनके योग के कारण बहुत जल्दी डॉक्टर और मैडीकल दुकानदार मक्खी मारेंगे। वर्तमान हकीकत सबके सामने है, कोई भी मक्खी नहीं मार रहा। हां यह जरूर हुआ है कि इन दिनों </span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b>कथित योगशिविरों</b></span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"> में योग कम और पतंजलि की दवाईयों का विज्ञान अधिक किया जाता है। इन दिनों शिविरों में योग के बजाय हर बीमारी के लिये केवल पतंजलि की दवाई बतलाई जाती है। जिसका सीधा सा मतलब यही है कि </span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b>रामदेव का कथित योग असफल हो चुका है। रामदेव के योग शिविरों में सरकार के योगदान की तेजी के साथ-साथ वृद्धि हो रही है, लेकिन योग निष्प्रभावी हैं, क्यों रागियों और रोगों में तेजी से बढोतरी हो रही है।</b></span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"> रामदेव के शिविरों के नियमित कथित योगी भी डॉक्टरों की शरण में हैं, लेकिन बेशर्मी की हद यह है कि अब लोगों को योग के साथ-साथ पतंजलि के उत्पादों के नाम गुमराह करने के साथ-साथ दिग्भ्रमित भी किया जा रहा है। केवल इतना ही नहीं, डराया और धमकाया जा रहा है।</span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b> विज्ञापनों से जो संदेश प्रसारित हो रहा है, वह यह है कि पतंजलि के अलावा जितने भी तेल उत्पाद हैं, उनमें कैंसर कारक तत्वों की मिलवाट हो सकती है!</b></span></span></span><br />
<span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b><span style="color: red;">यह सीधे-सीधे भारतीय कंज्यूमेबल मार्केट पर रामदेव का कब्जा करने और कराने की इकतरफा मुहिम है, जिसमें केन्द्र और अनेक राज्यों की सरकार के साथ-साथ, बकवासवर्ग समर्थक मीडिया भी शामिल है।</span></b></span></span></span><span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"> मेरा मानना है कि अब आम व्यक्ति को जरा सा नहीं, बल्कि गम्भीरता से इस बात पर भी गौर करना चाहिये कि पहले योग के नाम पर और अब उत्पादों की शुद्धता के नाम पर जिस प्रकार से उपभोक्ताओं को गुमराह और भयभीत किया जा रहा है, उसका लक्ष्य और अंजाम क्या हो सकता है? यह भी विचारणीय है कि रामदेव किस विचारधारा के समर्थक हैं?</span></span></span></div>
<blockquote style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: Tahoma; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: -webkit-auto; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
<div style="text-align: justify;">
<span style="widows: 1;"><span style="font-family: "apos";"><span style="background-color: red; margin: 0px;"><b><span style="color: yellow;">अन्त में सबसे महत्वपूर्ण बात : कानूनविदों को इस बात का परीक्षण करना चाहिये कि उपभोक्ता अधिकार संरक्षण अधिनियम तथा विज्ञापन क़ानून क्या इस प्रकार से उपभोक्ताओं को भ्रमित और गुमराह करके या डराकर विज्ञापन के जरिये कैंसर का भय परोसा जाना क्या नैतिक रूप से उचित है? क्या ऐसा विज्ञापन करना कानून सम्मत है?</span></b></span></span></span></div>
</blockquote>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<b style="font-family: Tahoma; orphans: 2; text-align: -webkit-auto;"><span style="color: blue;">जय भारत। जय संविधान।</span></b></div>
<span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto;"></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto;"><b style="text-align: -webkit-auto;"><span style="color: blue;">नर-नारी सब एक समान।।</span></b></span></div>
<span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto;">
</span><span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto;"><div style="text-align: justify;">
<b style="text-align: -webkit-auto;"><span style="color: blue;">लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</span></b></div>
</span><span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto;"><div style="text-align: justify;">
<b style="text-align: -webkit-auto;"><span style="color: blue;">9875066111/03.03.2016/05.42 PM</span></b></div>
</span><span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto;"><div style="text-align: justify;">
<span style="text-align: -webkit-auto;"><span style="font-family: "apos";"><span style="margin: 0px;"><b><span style="color: blue;">@—लेखक का संक्षिप्त परिचय :</span></b></span></span></span><span style="text-align: -webkit-auto;"> होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। +राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ </span></div>
</span><span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto;"><div style="text-align: justify;">
<span style="text-align: -webkit-auto;">नोट : उक्त सामग्री व्यक्तिगत रूप से केवल आपको ही नहीं, बल्कि ब्रॉड कॉस्टिंग सिस्टम के जरिये मुझ से वाट्स एप पर जुड़े सभी मित्रों/परिचितों/मित्रों द्वारा अनुशंसितों को भेजी जा रही है। अत: यदि आपको किसी भी प्रकार की आपत्ति हो तो, कृपया तुरंत अवगत करावें। आगे से आपको कोई सामग्री नहीं भेजी जायेगी। अन्यथा यदि मेरी ओर से प्रेषित सामग्री यदि आपको उपयोगी लगे तो इसे आप अपने मित्रों को भी भेज सकते हैं।</span></div>
</span><span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto;"><div style="text-align: justify;">
<span style="text-align: -webkit-auto;">यह पोस्ट यदि आपको आपके किसी परिचत के माध्यम से मिली है, लेकिन यदि आप चाहते हैं कि आपको मेरे आलेख और आॅडियो/वीडियो आपके वाट्स एप इन बॉक्स में सदैव मिलते रहें तो कृपया आप मेरे वाट्स एप नं. 9875066111 को आपके मोबाइल में सेव करें और आपके वाट्स एप से मेरे वाट्स एप नं. 9875066111 पर एड होने/जुड़ने की इच्छा की जानकारी भेजने का कष्ट करें। इसक बाद आपका परिचय प्राप्त करके आपको मेरी ब्रॉड कास्टिंग लिस्ट में एड कर लिया जायेगा।</span></div>
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</span><span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto;"><div style="text-align: justify;">
<b style="text-align: -webkit-auto;"><span style="color: blue;">पूर्व प्रकाशित आलेख पढने के लिए : http://healthcarefriend.blogspot.in/</span></b></div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-43906502080036988022016-03-02T16:17:00.000+05:302016-03-08T16:25:26.148+05:30आत्मीय मित्र समाधान सिद्ध होते हैं।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b>आत्मीय मित्र समाधान सिद्ध होते हैं।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>=========================</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
<div style="text-align: justify;">
मानव जीवन अपने आप में कठिन से कठिन परीक्षा है। जिसमें अनेक बार व्यक्ति को अनचाहे और अपवित्र समझोते करने होते/पड़ते हैं। दिल में बसने वाले और दिमांग में उथल-पुथल मचाने वाले। दो प्रकार के लोग इस जीवन में अपना-अपना विशेष महत्व रखते हैं। फिर भी इस बात को स्वीकारना होगा कि आज के समाज ने जीवन को अनेक क्षेत्रों में बेहद सरल और आसान बनाया है, लेकिन समाज ने रिश्तों को और रिश्तों ने जीवन को अत्यधिक कठिन बना दिया है। अनेक बार लगता है, समाज अत्यधिक जरूरी है और अनेक बार लगता है कि असली दिक्कत यह समाज का तानाबाना ही है। असंवेदनशील, चालाक और व्यावसायिक मानसिकता के लोगों पर इसका कोई असर नहीं होता, लेकिन रिश्तों का अंतर्द्वंद्व संवेदनशील मनुष्य को न जीने देता है और न मरने देता है। आदिकाल में जब कभी व्यक्ति अत्यधिक परेशानियों और तनावों का सामना कर रहा होगा, सम्भवत: तब हालातों से निपटने या लड़ने के लिए ही उसने आत्मीय मित्रों की खोज की होगी या जिस किसी ने उन हालातों में मदद की होगी, मित्र बन गए होंगे। क्योंकि वर्तमान समाज के हालात इस बात के गवाह हैं कि ऐसे विकट हालातों में मित्र ही जीवन को जीने योग्य बनाते हैं। रिश्ते भी सामाजिक जीवन की अनिवार्यता बन चुके हैं, यद्यपि आज के दौर में रिश्ते ही तनाव, दुःख और अनेक बीमारियों के कारण बन गए हैं। रिश्ते अनेक बार नासूर बन जाते हैं और जीवनभर रिसते रहते हैं। रिश्तों के कारण सामाजिक और असामाजिक ये दो शब्द जब कभी व्यवहार और जीवन में टकराते हैं, व्यक्ति बुरी तरह से कराह उठता है, टूट जाता है। ऐसे वक्त में मित्र ही असली और सच्चे सहारा बनते हैं। मित्र ही अमृत की बरसा करते हैं। एक समय था, जब मनुष्य रिश्तेदार और सम्बंधियों तक ही सीमित हुआ करता था, लेकिन आधुनिक युग में परिभाषाएं बदल गयी हैं। व्यक्ति का कार्यक्षेत्र बढ़ गया है। परिवार और रिश्तों से बहुत दूर उसे नये क्षेत्रों में नयी-नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जिनमें परिवार और रिश्तों तक सिमटे लोग कोई सहयोग नहीं कर पाते। इसके अलावा आधुनिक युग की भागमभाग की जिंदगी में व्यक्ति जब तनाव और विषाद के दौर से गुजरता है, जब रिश्तों के रिसते हुए दर्द से मुक़ाबिल होता है तो ऐसे समय में उसे भावनात्मक उपचार की जरूरत होती, जिससे कि उसका आत्मबल और आत्मविश्वास कमजोर नहीं होने पाये। ऐसे नाजुक वक्त पर अनेक रिश्तेदार और खोखले लोग केवल सहानुभूतियों की बरसात करते हैं, जबकि इस अवस्था में सच्चे और आत्मीय मित्र ही समाधान सिद्ध होते हैं। ऐसे मित्र हालातों से सफलतापूर्वक लड़ने और जीवन को जीने योग्य बनाने में अद्भुत और अकल्पनीय योगदान करते हैं। जिन लोगों के जीवन में ऐसे सच्चे मित्र हों, उन्हें सौभाग्यशाली कहा जा सकता है। जिस किसी के जीवन में ऐसे मित्र हैं, समझें कि वे ही वास्तविक धनवान हैं। ऐसे सच्चे मित्र सभी के जीवन में हों, मेरी यही कामना है। लेकिन इस मित्रता के रिश्ते के प्रति ईमानदारी और सच्चाई बहुत जरूरी है। जरा सी भ्रान्ति अनेक बार मुश्किल खड़ी कर सकती है, यद्यपि निस्वार्थ, सच्चे और गहरे मित्रता के रिश्तों की मजबूत नींव को हिलाना आसान नहीं होता।</div>
<div style="text-align: justify;">
---निरंकुश आवाज---जारी----</div>
<div style="text-align: justify;">
1- "भय और आलस्य जीवन के कैंसर हैं। कदम-कदम पर जिनका पोषण करते हैं, हमारे अपने लोग।"</div>
<div style="text-align: justify;">
2- "क्या हृदय का ऑपरेशन किसी लुहार से करवाना उचित होगा? आपको मेरा यह सवाल मूर्खतापूर्ण लग रहा होगा। लेकिन भारत में इससे भी खतरनाक मूर्खताएं समाज में भी बदस्तूर जारी हैं।"</div>
<div style="text-align: justify;">
उक्त विषयों पर-विस्तार से फिर कभी।</div>
<div style="text-align: justify;">
जय भारत। जय संविधान।</div>
<div style="text-align: justify;">
नर-नारी सब एक समान।।</div>
<div style="text-align: justify;">
लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
<div style="text-align: justify;">
9875066111/02.03.2016/ 06.30 AM</div>
<div style="text-align: justify;">
@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोशिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक), पूर्व रा. महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ और दाम्पत्य विवाद सलाहकार।</div>
<div style="text-align: justify;">
नोट : उक्त सामग्री व्यक्तिगत रूप से केवल आपको ही नहीं, बल्कि ब्रॉड कॉस्टिंग सिस्टम के जरिये मुझ से वाट्स एप पर जुड़े सभी मित्रों को भेजी जा रही है। अत: यदि आपको किसी भी प्रकार की आपत्ति हो तो, कृपया अवगत करावें। आगे से आपको कोई सामग्री नहीं भेजी जायेगी। अन्यथा मेरी ओर से प्रेषित सामग्री यदि आपको उपयोगी लगे तो इसे आप अपने मित्रों को भी भेज सकते हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
यह पोस्ट यदि आपजो मेरी ओर से सीधी नहीं मिली, लेकिन यदि आप चाहते हैं कि आपको मेरे आलेख और आॅडियो/वीडियो आपके वाट्स एप इन बॉक्स में सदैव मिलते रहें तो आपको मेरे वाट्स एप नं. 9875066111 को अपने मोबाइल में सेव करके मेरे वाट्स एप नं. 9875066111 पर एड होने की इच्छा की जानकारी भेजनी होगी। तदोपरान्त आपका परिचय प्राप्त करके आपको मेरी ब्रॉड कास्टिंग लिस्ट में एड कर लिया जायेगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
मेरी फेसबुक आईडी : https://www.facebook.com/NirankushWriter</div>
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मेरा फेसबुक पेज : https://www.facebook.com/nirankushpage/</div>
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पूर्व प्रकाशित आलेख पढने के लिए : http://vicharpravaha.blogspot.in/</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-75597997778975308602016-02-27T16:14:00.000+05:302016-03-08T16:25:03.899+05:30केवल आदिवासी ही भारत के मूलवासी हैं।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b>केवल आदिवासी ही भारत के मूलवासी हैं।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>~~~~~~~~~~~~~~~~</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</b></div>
<div style="text-align: justify;">
हमारे कुछ मित्र दिन-रात "जय मूलनिवासी" और "मूलनिवासी जिंदाबाद" की रट लगाते नहीं थकते। बिना यह जाने और समझे कि मूलनिवासी का मतलब क्या होता है? साथ ही भारत के 85 फीसदी लोगों को भारत के मूलनिवासी घोषित करके, शेष आबादी ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय को विदेशी बतलाते हैं। आश्चर्य कि इनमें से बहुत से खुद को तर्क के समर्थक महामानव बुद्ध के अनुयायी भी बतलाते हैं, लेकिन इनको व्यवहार में बुद्ध के तर्क के सिद्धांत से परहेज है। तर्क करने वाला इनको मूर्ख, गद्दार और मनुवादियों का एजेंट नजर आता है। मूलनिवासी का नारा देने वाले शीर्ष लोग एक विशेष तबके या विशेष मानसिकता के लोग हैं, जो खुद को बुद्धिजीवियों का शिरोमणि मानते हैं। सबसे बड़ा दुःख तो यह है कि इनका बाबा आंबेडकर या कांशीराम या अन्य किसी के मिशन या सामाजिक न्याय या संविधान के प्रावधानों से कोई सरोकार नहीं है। इनको वंचित वर्ग शूद्रों की समस्याओं से भी कोई मतलब नहीं है। इनका लक्ष्य येनकेन प्रकारेण सत्ता पर कब्जा करना है, जिसके लिये इनको नरेंद्र मोदी का प्रचार करने वाली और बामणों को आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करने वाली मायावती साक्षात देवी नजर आती हैं। आएं भी क्यों नहीं, आखिर मायावती के सहारे पहले की भाँति सत्ता की मलाई मिलने की उम्मीद जो जगी रहती है। इनको बाबा साहब और कांशीराम की संदिग्ध मौत की जांच की मांग करना तो दूर इस बारे में बात करना तक गवारा नहीं है। ऐसे लोग भारत की सत्ता पर कब्जा करने के सपने देखते हैं, जिनको बोलने, लिखने और संवाद करने की तहजीब तक नहीं? हकीकत में ऐसे लोग अभिव्यक्ति की आजादी को कुचल देना चाहते हैं। मूलाधिकारों में इनकी कोई आस्था नहीं। वंचित वर्गों की संख्यात्मक दृष्टि से छोटी-छोटी जातियों के प्रति इनके मन में कोई मान-सम्मान या जगह नहीं। सच में इनका व्यवहार ब्राह्मणों से कई गुना अधिक दुराग्रही और तानाशाही है। इनके लिए वंचित वर्गों के महान लोग, जैसे ज्योतिराव फ़ूले, बिरसा मुंडा, पेरियार, बाबा साहब, कांशीराम आदि के विचार, काम और नाम केवल सत्ता पाने की सीढ़ी मात्र हैं। इनको इतनी सी बात समझ में नहीं आती कि आज भारत का प्रत्येक वह व्यक्ति भारत का मूलनिवासी है, जिसके पास मूलनिवास प्रमाण-पत्र है! ये लोग प्रायोजित और तथाकथित डीएनए को आधार बनाकर तर्क करते हैं, लेकिन हजारों सालों से बामणों और आर्य शासकों के यौनाचार के साथ-साथ विवाहेत्तर यौन सम्बंधों के कार्ब उटप्पन्न वर्णशंकर संतति के कड़वे सच पर विचार, चर्चा और तर्क नहीं करना चाहते। इनका मकसद केवल सत्ता है, सत्ता भी वंचित वर्ग के उद्धार के लिए नहीं, बामणों के साथ समझौता करके माल कमाने और नरेंद्र मोदी का प्रचार करने के लिए चाहिए। सत्ता चाहिये जिससे बामणों के हित में अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम को निलम्बित किया जा सके। संघ के लिए राम मन्दिर और धारा 370 का जो महत्व है, वही इनके लिए मूलनिवासी का अर्थ है। अर्थात लोगों को गुमराह करके वोट बैंक तैयार करना। इसलिए ये लोग सत्ता की खातिर वंचित वर्गों को मूलनिवासी के बहाने लगातार गुमराह कर रहे हैं। मूलनिवासी शब्द के बहाने ये लोग केवल खुद को अर्थात एक विशेष तबके को भारत के मूलवासी घोषित करना चाहते हैं। इनसे मेरा सीधा सवाल है कि यदि वास्तव में इनके पूर्वज भारत के मूलवासी थे तो मूलनिवासी जैसे हल्के शब्द को गढ़ने की क्या जरूरत है? अपने आप को भारत के मूलवासी अर्थात आदिवासी क्यों नहीं मानते? सारा संसार जानता है कि भारत के मूलवासी तो आदिवासी हैं। मूलनिवासी तो प्रत्येक देश के सभी नागरिक होते हैं। ईसाई, पारसी, यहूदी, आर्य-क्षत्रिय-शूद्र, अछूत, दलित, ओबीसी, घुमन्तु, विमुक्त, आदिवासी, हूँण, कुषाण, शक, मंगोल, मुगल, आर्य-ब्राह्मण और वैश्यों सहित सभी के वंशज जो भारत के नागरिक हैं, आज कानूनी तौर पर भारत के मूलनिवासी हैं, लेकिन भारत के मूलवासी नहीं हैं। भारत के मूलवासी केवल भारत के आदिवासी हैं। हाँ यदि इतिहास या अन्य किन्हीं साक्ष्य के मार्फत किन्हीं अन्य जाति, समुदायों के भारत के मूलवासी और आदिवासी होने के प्रमाण प्रकट होते हैं, तो सभी को अपने आप को भारत का आदिवासी मानना चाहिये और आदिवासी एकता को मजबूत करना चाहिए। अन्यथा लोगों को गुमराह करने और बुद्ध के नाम की माला जपने और तर्क से भागने का नाटक बन्द करना चाहिए।</div>
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>जय आदिवासी। जय मूलवासी।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>जय भीम। नमो बुद्धाय।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>जय भारत। जय संविधान।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>नर-नारी सब एक सामान।।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', 9875066111/27.02.2016.</b></div>
</div>
डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-14430196392304653892016-02-25T09:23:00.000+05:302016-02-25T09:23:20.897+05:30आखिर देश बड़ा या आरक्षण? देशद्रोह और राष्ट्रहित क्या है?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
आखिर देश बड़ा या आरक्षण?</div>
<div style="text-align: justify;">
देशद्रोह और राष्ट्रहित क्या है?</div>
<div style="text-align: justify;">
================</div>
<div style="text-align: justify;">
लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
<div style="text-align: justify;">
बहुसंख्यक वंचित MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) वर्ग में शामिल किसी भी जाति या किसी भी वर्ग या किसी हिस्से की ओर से जब—जब भी सामाजिक न्याय के संवैधानिक हक अर्थात् बराबरी की मांग या गुहार की जाती है, बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Vaवैश्य+Sसंघी) वर्गी मानसिकता के लोगों द्वारा हर बार, विभिन्न माध्यमों से यही सवाल उठाया जाता है कि देश बड़ा या आरक्षण? पहले गूजर आरक्षण आन्दोलन के दौरान और इन दिनों जाट आरक्षण आन्दोलन को लेकर फिर से यही उठाया जा रहा है। जब कभी मुसलमानों की ओर से ऐसा कोई या किसी प्रकार का कोई आन्दोलन किया जाता है तो उन्हें तो इन बकवासवर्गी मानसिकता के लोगों द्वारा सीधे—सीधे देशद्रोही और पाकिस्तान परस्त करार दे दिया जाता है।</div>
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ऐसे में सवाल यह है कि आखिर देश है क्या?</div>
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अल्पसंख्यक, ओबीसी, दलित, आदिवासी, घुमुंतू, विमुक्त आदि कोई भी वंचित वर्ग अपने हकों की मांग करता है तो उनको बकवासवर्गी लोगों द्वारा हक और हिस्सेदारी दी नहीं जाती। जब संवैधानिक हक एवं समान हिस्सेदारी के लिये सड़कों पर उतरकर आन्दोलन किये जाते हैं तो ऐसे आन्दोलन देशहित के खिलाफ करार दे दिये जाते हैं! बल्कि ऐसे लोगों को देशद्रोही करार दे दिया जाता है। अत: 'आखिर देश है क्या?' इस सवाल का उत्तर तलाशने से पहले हमें 'देशहित और देशद्रोह की परिभाषा क्या है?' इस दूसरे सवाल का उत्तर भी तलाशना होगा।</div>
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भारत में बहुसंख्यक वंचित MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) वर्ग के संवैधानिक हक और समान हिस्सेदारी की बात या मांग करना, बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Vaवैश्य+Sसंघी) वर्गी लोगों की नजर में देशद्रोह है। राष्ट्रहित के विरुद्ध है। क्योंकि राष्ट्रहित और देशद्रोह की परिभाषा गढने का हक भी सत्ता पर हजारों सालों से काबिज इसी बकवासवर्गी मानसिकता के लोगों द्वारा अपने पास कैद किया हुआ है। जिसे बकवासवर्गी मीडिया लगातार बकवास वर्ग के पक्ष में हवा देता रहता है। बकवासवर्गी मीडिया, बकवासवर्गी विचारों के पक्ष में और वंचित मोस्ट वर्ग के विरुद्ध लोगों को गुमराह तैयार करता रहता है। जिसे बकवासवर्गी लोग जनमत कहते हैं। जब भी बकवास वर्ग के असंवैधानिक और जबरन काबिज हितों में कमी होने की आशंका नजर आती है, ऐसे प्रयाय देश के विरुद्ध करार दे दिये जाते हैं। मांग करने वालों को देशद्रोही करार दे दिया जाता है।</div>
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अत: भारत में बहुसंख्यक वंचित MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) वर्ग को गम्भीरतापूर्वक इस कड़वी सच्चई को जितना जल्दी सम्भव हो समझने की जरूरत है कि आखिर बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Vaवैश्य+Sसंघी) वर्गी लोगों के शोषण या मनमानी या तानाशाही या मनुवादी आतंक के विरुद्ध या बहुसंख्यक वंचित MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) वर्ग के संवैधानिक हक और समान हिस्सेदारी के समर्थन में कोई भी मांग या आन्दोलन देशद्रोह क्यों है? राष्ट्रहित के विरुद्ध क्यों है? इस सवाल का उत्तर जान लेने के बात स्वत: ही इस सवाल का जवाब मिल जायेगा कि 'आखिर देश है क्या?'</div>
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वास्तव में देखा जाये तो इन दिनों—'बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Vaवैश्य+Sसंघी) वर्ग' की सत्ता, मनमानी, बकवास वर्ग का मनुवादी आतंक, शोषण, बलात्कार, गुण्डाराज और तानाशाही ही देश का पर्याय बन चुके हैं। इन सब अपराधों के विरुद्ध कोई भी मांग, गुहार या आन्दोलन बकवास वर्गी लोगों द्वारा देशद्रोह और राष्ट्रहितों के विरुद्ध करार दे दिये जाते हैं! आरक्षण भी बकवासवर्गी लोगों के प्रशासनिक अधिपत्य को तोड़ता है, अत: इनकी दृष्टि में राष्ट्रहित के विरुद्ध है।</div>
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यहां यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि बकवासवर्गी मीडिया के मार्फत जाट आन्दोलन के दौरान हिंसा तथा अपराध की जो खबरें प्रकाशित, प्रचारित एवं प्रसारित की जा रही हैं, यदि वे सच हैं तो निन्दनीय हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जाटों को इस आन्दोलन के लिये विवश किसने और क्यों किया?</div>
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जब तक भारत के बहुसंख्यक वंचित MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) वर्ग को उसके सभी संवैधानिक हक और समान हिस्सेदारी नहीं मिलेगी, वंचित मोस्ट वर्ग का आक्रोश ऐसे आन्दोलनों में प्रकट होता रहेगा। दु:ख इस बात का है कि ऐसे आन्दोलनों से पीड़ित होने वाले में अधिकतर मोस्ट वर्ग के लोग ही होते हैं। बकवास वर्ग ऐसे आन्दोलनों से अप्रभावित ही रहता है। अत: भारत के बहुसंख्यक वंचित MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) वर्ग को संवैधानिक हकों और समान हिस्सेदारी के लिये ऐसी योजना और रणनीति बनाने की जरूरत है कि 'बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Vaवैश्य+Sसंघी) वर्ग' तुरन्त घुटने टेकने को मजबूर हो जाये। देश के मोस्ट वर्ग के चिन्तनशील लोगों को इस बारे में तत्काल गम्भीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है।</div>
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जय भारत! जय संविधान!</div>
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नर-नारी सब एक समान!!</div>
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@—लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोशिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक), पूर्व रा महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, दाम्पत्य विवाद सलाहकार तथा लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में एकाधिक प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित। वाट्स एप एवं मो. नं. : 9875066111 / दि.25.02.16/ 08.54AM</div>
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नोट : उक्त सामग्री व्यक्तिगत रूप से केवल आपको ही नहीं, बल्कि ब्रॉड कॉस्टिंग सिस्टम के जरिये मुझ से वाट्स एप पर जुड़े सभी मित्रों को भेजी जा रही है। अत: यदि आपको किसी भी प्रकार की आपत्ति हो तो, कृपया अवगत करावें। आगे से आपको कोई सामग्री नहीं भेजी जायेगी। अन्यथा मेरी ओर से प्रेषित सामग्री यदि आपको उपयोगी लगे और यदि आप चाहते हैं कि आपको मेरे आलेख और आॅडियो/वीडियो आपके वाट्स एप इन बॉक्स में सदैव मिलते रहें तो आपको मेरे वाट्स एप नं. 9875066111 को अपने मोबाइल में सेव करके वाट्स एप नं. 9875066111 पर एड होने की इच्छा की जानकारी भेजनी होगी। तदोपरान्त आपका परिचय प्राप्त करके आपको एड कर लिया जायेगा। धन्यवाद।</div>
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मेरी फेसबुक आईडी : https://www.facebook.com/NirankushWriter</div>
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मेरा फेसबुक पेज : https://www.facebook.com/nirankushpage/</div>
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पूर्व प्रकाशित आलेख पढने के लिए : http://hrd-newsletter.blogspot.in/ एवं http://ppnewschannel.blogspot.in/</div>
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फेसबुक ग्रुप https://www.facebook.com/groups/Sachkaaaina/</div>
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अति—महत्वूपर्ण नोट : बकवासवर्गीय मीडिया हमारे विचारों को दबाता है। ऐसे में वंचित वर्गों के पास शोसल मीडिया ही विचार सम्प्रेषण का एक मात्र माध्यम है। अत: यदि हम वंचित वर्गों से जुड़े महत्वूपर्ण विषयों से सम्बन्धित जानकारी को अपने मित्रों और परिचितों को अग्रेषित कर सकें तो हम वंचित वर्गों के जनजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।</div>
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—निवेदक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-13799454839127127872016-02-22T07:49:00.000+05:302016-02-22T07:49:24.013+05:30बकवास वर्ग द्वारा कभी भी देश को गृहयुद्ध के बहाने आपातकाल की ओर धकेला जा सकता है!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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बकवास वर्ग द्वारा कभी भी देश को गृहयुद्ध के</div>
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बहाने आपातकाल की ओर धकेला जा सकता है!</div>
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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24 अक्टूबर, 2015 को ''देश गृहयुद्ध और आपातकाल की ओर—क्या हम इसके लिये तैयार हैं?'' शीर्षक से मैंने एक लेख लिखा था। जिसमें मैंने लिखा था कि———</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFuXsdUxtl0xdIRfzT2l3ObrLqDghxGLJwLEUYiG6uG4wfgFvJE1RScAigGz0o4seZ3EGYnSVgV1ElRaJ8Y2tWw8cp6GgrWdzHetTQYYSAGglLVUT64WK4ARa6vXGEwqn3i_ThEODKdxU/s1600/22.02.2016.JPG" imageanchor="1"><img border="0" height="228" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFuXsdUxtl0xdIRfzT2l3ObrLqDghxGLJwLEUYiG6uG4wfgFvJE1RScAigGz0o4seZ3EGYnSVgV1ElRaJ8Y2tWw8cp6GgrWdzHetTQYYSAGglLVUT64WK4ARa6vXGEwqn3i_ThEODKdxU/s320/22.02.2016.JPG" width="320" /></a></div>
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''———मैं कभी भी किसी जाति के नाम से कोई टिप्पणी लिखने में विश्वास नहीं करता। लेकिन ब्राह्मणों की ओर से सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करना कि—''आरक्षण के फन को कुचलेगा ब्राह्मण संगठन'' मुझ जैसे संयमित प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले व्यक्ति को भी जवाबी प्रतिक्रिया व्यक्त करने को विवश किया जा रहा है। यद्यपि खुद ब्राह्मणीय व्यवस्थानुसार ब्राह्मण जाति, जाति नहीं, बल्कि कथित हिन्दू धर्म का सर्वोच्च वर्ण है। अत: ब्राह्मण को जाति मानकर नहीं, बल्कि वर्ण मानकर और उनकी असंवैधानिक ललकार को पढकर मैं संवैधानिक सच्चाई और प्रथमदृष्टया नजर आ रहे हालात को लिखने को विवश हूं।</div>
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मुझे यह जानकर आश्चर्य होता है कि अपने आप को भू—देव अर्थात् इस पृथ्वीलोक का साक्षात देवता कहने वाले, 'वसुधैव कुटम्बकम' की बात लिखने वाले ब्राह्मणों के मात्र 2-3 फीसदी वंशज—ब्राह्मण वर्ग के लोग सार्वजनिक रूप से देश की तीन चौथाई आरक्षित (3/4) आबादी के संवैधानिक हकों को सांप का फन सम्बोधित करके कुचलने की बात कहते हैं। मनुवादी तथा कॉर्पोरेट मीडिया ऐसी असंवैधानिक खबर को प्रमुखता से प्रकाशित भी करता है। सरकार चुप्पी साधे हुए हैं। संविधान को धता बताकर आरक्षण को कुचलने की बात पढकर भी आरक्षित वर्ग के लोग या तो भयभीत हैं या फिर उनको अपने बहरूपिये राजनेताओं पर अति-आत्मविश्वास है। क्या इसे संवैधानिक भारतीय लोकतांत्रिक गणतंत्र कहा जा सकता है? क्या इन हालातों में भारत के कमजोर तबके के सुरक्षित जीवित रहने की आशा की जा सकती है? इसके पीछे के कारण विश्वस्तरीय चिन्ता का कारण बनते जा रहे हैं।</div>
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कारण जो भी हों लेकिन इस समय देश के हालात शर्मनाक और आम व्यक्ति तथा वंचित तबकों के लिये चिन्ताजनक हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अर्थात् आरएसएस और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और मंत्रियों के बयानों तथा उनके व्यक्तिगत क्रियाकलापों से ऐसा प्रतीत होता है कि आरक्षण तथा जातीय हिंसा के बहाने देश को गृहयुद्ध में धकेला जा रहा है। साफ तौर पर हालात ऐसे नजर आ रहे हैं कि गृहयुद्ध के बहाने देश में आपात काल लागू कर के सत्ताधारी पार्टी मनुवादी व्यवस्था लागू करने की ओर अग्रसर होती दिख रही है।——''</div>
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उपरोक्त लेख में व्यक्त विचारों के साथ—साथ देश के वर्तमान हालातों में भारत की सत्ता पर काबिज बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Vaवैश्य+Sसंघी) वर्ग द्वारा या बकवास वर्ग की मानसिकता की सरकार द्वारा सामाजिक न्याय की आधारशिला जातिगत जनगणना को जानबूझकर सार्वजनिक नहीं किये जाने के साथ—साथ बकवास वर्गीय मानकिता के द्वारा अंजाम दी गयी कुछ अमानवीय और असंवैधानिक घटनाओं पर सतर्कतापूर्वक ध्यान दिये जाने की जरूरत है। राजस्थान के डांगावास में दलितों को बेरहमी से कुचला गया। उत्तर प्रदेश में पुलिस की उपस्थिति में दलित महिलाओं में सरेराह नंगी करके दौड़ाया गया। मध्य प्रदेश में सरकार द्वारा प्रायोजित सामूहिक विवाह कार्यक्रम से पहले बिनाकिसी विधिक प्राधिकार के आदिवासी लड़कियों का कौमर्य और गर्भ परीक्षण। संविधान को धता बताकर बिना किसी मांग और बिना किसी वैधानिक औचित्य के राजस्थान की उच्चवर्णीय जातियों के तथाकथित गरीब लोगों को 14 फीसदी आरक्षण का बिल राजस्थान विधानसभा में पारित किया गया, जबकि तथाकथित गरीबों की कुल जनसंख्या एक फीसदी से भी कम है। राजस्थान की गुर्जर जाति को वर्षों से संवैधानिक हकों से लगातार वंचित किया जा रहा है। छत्तीसगढ एवं झारखण्ड में आदिवासी महिलाओं के साथ आयेदिन सामूहिक बलात्कार। छत्तीसगढ आदिवासी लड़कियों के स्तन निचोड़कर एवं सार्वजनिक रूप उनके अधोवस्त्रों को हटाकर पुरुष फोर्स द्वारा उनके यौनांगों का निरीक्षण—परीक्षण कर कौमार्य की परीक्षा करना। हैदराबाद विश्वविद्यालय में वंचितवर्गीय रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिये विवश करना, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पुखराज मीणा का उत्पीड़न और जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में कन्हैया कुमार को देशद्रोही करार देना। इससे कुछ समय पूर्व हरियाणा में दलित बच्चों को जिन्दा जलाया जाना। अरुणाचल प्रदेश में बिना संवैधानिक औचित्य के आपातकाल लगाने की सिफारिश करना। पहले सुप्रीम कोर्ट के मार्फत जाट जाति का आरक्षण समाप्त करवाना फिर, गुजरात से पटेलों के मार्फत ललकार की 'पटेलों को आरक्षण नहीं तो किसी को नहीं' और अब जाट जाति का आरक्षण आन्दोलन। यह सब क्या है? देश किस ओर जा रहा है? इन विकट हालातों में भी वंचित वर्ग के कुछ आर्य—शूद्र, जो खुद को अतिविद्वान सझते हैं, जाट जाति के आरक्षण के विरुद्ध जाट जाति के राजनैतिक एवं प्रशासनिक प्रतिनिधित्व के आंकड़े गिनवाने में व्यस्त हैं। ऐसे लोगों के पास बकवास वर्ग के कथित गरीबों को आरक्षण दिलाने की मांग करने वाली मायावती के विरुद्ध बोलने के लिये एक शब्द नहीं होता है। न हीं मायावती को बकवास वर्ग के आंकड़े उपलब्ध करवाये जाते हैं।</div>
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राजस्थान विधानसभा में राज्य की एक फीसदी से भी कम उच्चवर्गीय जातियों के कथित गरीब लोगों को 14 फीसदी आरक्षण का बिल पास करते समय बहुसंख्यक वंचित MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) वर्ग की जातियों के विधायकों द्वारा विरोध करना तो दूर पक्ष एवं विपक्ष दोनों ओर से समर्थन में तालियां बजाई गयी। ऐसे हालात में धनप्रतिनिधि और दलप्रतिनिधि बन चुके, जनप्रतिनिधियों के भरासे संविधान, लोकतंत्र और गणतंत्र की रक्षा की उम्मीद करना अपने आप को धोखा देने के सदृश्य है। यदि अभी भी बहुसंख्यक वंचित MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) वर्ग नहीं जागा तो बहुत जल्द सब कुछ समाप्त हो जाने वाला है। विशेषकर इस कारण कि वंचित वर्ग के जनप्रतिनिधि मौन साधे हुए हैं। देश में चाहे कितने ही अन्याय और अत्याचार हो जायें, वंचित वर्ग के जनप्रतिनिधि तब तक मौन ही साधे रहेंगे, जब तक की उनके राजनैतिक दल के बकवासवर्गीय आलाकामना की ओर से बोलने की स्वीकृति नहीं मिलेगी। यह लड़ाई बहुत बड़ी है। जिसे आमजन को ही लड़ना होगा और बकवासवर्गीय लोगों को राष्ट्र, राष्ट्रहित, देशद्रोह, सामाजिक न्याय एवं भागीदारी की परिभाषा समझानी होगी। मीडिया को उसका दायित्व समझाना होगा। अब भारत की सत्ता पर काबिज बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Vaवैश्य+Sसंघी) वर्ग से भारत की आजादी का बिगुल बजाना ही होगा। जिसका एक मात्र रास्ता है। निष्पक्ष जातिगत जनगणना के आंकड़े घोषित हों और वर्तमान अजा, अजजा एवं आबीसी तीन वर्गों को समाप्त कर, समान पृष्ठभूमि की जातियों के एक दर्जन से अधिक वर्ग बनाकर सभी को सत्ता एवं संसाधानों में समान भागीदारी एवं हिस्सेदारी मिले। अन्यथा बकवास वर्ग द्वारा कभी भी देश को गृहयुद्ध के बहाने आपातकाल की ओर धकेला जा सकता है!</div>
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जय भारत! जय संविधान!</div>
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नर-नारी सब एक समान!!</div>
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@—लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोशिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक), पूर्व रा महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, दाम्पत्य विवाद सलाहकार तथा लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में एकाधिक प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित। वाट्स एप एवं मो. नं. : 9875066111 / दि.22.02.16/06.44AM</div>
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नोट : उक्त सामग्री व्यक्तिगत रूप से केवल आपको ही नहीं, बल्कि ब्रॉड कॉस्टिंग सिस्टम के जरिये मुझ से वाट्स एप पर जुड़े सभी मित्रों को भेजी जा रही है। अत: यदि आपको किसी भी प्रकार की आपत्ति हो तो, कृपया अवगत करावें। आगे से आपको कोई सामग्री नहीं भेजी जायेगी। अन्यथा मेरी ओर से प्रेषित सामग्री यदि आपको उपयोगी लगे और यदि आप चाहते हैं कि आपको मेरे आलेख और आॅडियो/वीडियो आपके वाट्स एप इन बॉक्स में सदैव मिलते रहें तो आपको मेरे वाट्स एप नं. 9875066111 को अपने मोबाइल में सेव करके वाट्स एप नं. 9875066111 पर एड होने की इच्छा की जानकारी भेजनी होगी। तदोपरान्त आपका परिचय प्राप्त करके आपको एड कर लिया जायेगा। धन्यवाद।</div>
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मेरी फेसबुक आईडी : https://www.facebook.com/NirankushWriter</div>
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मेरा फेसबुक पेज : https://www.facebook.com/nirankushpage/</div>
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पूर्व प्रकाशित आलेख पढने के लिए : http://hrd-newsletter.blogspot.in/ एवं http://ppnewschannel.blogspot.in/</div>
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फेसबुक ग्रुप https://www.facebook.com/groups/Sachkaaaina/</div>
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अति—महत्वूपर्ण नोट : बकवासवर्गीय मीडिया हमारे विचारों को दबाता है। ऐसे में वंचित वर्गों के पास शोसल मीडिया ही विचार सम्प्रेषण का एक मात्र माध्यम है। अत: यदि हम वंचित वर्गों से जुड़े महत्वूपर्ण विषयों से सम्बन्धित जानकारी को अपने मित्रों और परिचितों को अग्रेषित कर सकें तो हम वंचित वर्गों के जनजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।l</div>
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—निवेदक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-75638825038828768192016-02-13T19:14:00.001+05:302016-02-13T19:14:25.349+05:30यूरेशियन आर्य-क्षत्रियों के वंशज शूद्रों की दारुण व्यथा और बामसेफी बामण मेश्राम का 'मूलनिवासी' मिशन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
यूरेशियन आर्य-क्षत्रियों के वंशज शूद्रों की दारुण व्यथा</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
और बामसेफी बामण मेश्राम का 'मूलनिवासी' मिशन</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
====================================</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
<span style="font-family: Tahoma; text-align: -webkit-auto; widows: 2;">लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</span></div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
जिन यूरेशियन आर्य-ब्राह्मणों ने अपने ही आर्य-वंशी-यूरेशियन-क्षत्रियों का उपनयन (यज्ञोपवीत) संस्कार बंद करके चौथे वर्ण में डालकर उनको 'शूद्र' बना दिया। उन शूद्रों के पूर्वज अनेक तेजस्वी राजा हुए थे। बाबा साहब ने ऐसे वीर पूर्वजों के वंशज शूद्रों के बारे में गहन अध्ययन, शोध और विश्लेषण करके ''शूद्र कौन थे'' नामक ग्रंथ की रचना की। जिसको भारत सरकार द्वारा 1998 से 2013 तक सात बार प्रकाशित किया जा चुका है। जबकि वर्तमान भारत सरकार इसके प्रकाशन में कोई रुचि नहीं दिखा रही है। जिसके कारण अम्बेड़करवादियों में नाराजगदी दिखाई दे रही है। इस ग्रंथ में बाबा साहब ने शूद्रों के बारे में क्या अधिकृत जानकारी प्रस्तुत की है? इसे निम्न उद्धरणों से आसानी से समझा जा सकता है:-</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwgaFcY0CKKtXlQyTrc7Q48ZBfKiz5lUMTvcs0jqK7bwGuDyTUEGoADm2FJ3lIqJlsqNeJ9NrcL72RFJqEI82tEdwx0ENkeqvqBeac05Y-Hr7OI-w368-Wct1NQF_9jfVXdVxCYuDtJXo/s1600/13.02.2016.JPG" imageanchor="1"><img border="0" height="215" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwgaFcY0CKKtXlQyTrc7Q48ZBfKiz5lUMTvcs0jqK7bwGuDyTUEGoADm2FJ3lIqJlsqNeJ9NrcL72RFJqEI82tEdwx0ENkeqvqBeac05Y-Hr7OI-w368-Wct1NQF_9jfVXdVxCYuDtJXo/s320/13.02.2016.JPG" width="320" /></a></div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
1-''मैं निश्चय के साथ कहा सकता हूं कि मैंने अपनी इस खोज में स्वयं को पूर्वाग्रह से मुक्त रखा है। शूद्रों के विषय में लिखते समय मैंने शूद्र इतिहास के अतिरिक्त अन्य शेष बातों पर ध्यान नहीं दियाा है।......यह पुस्तक सरल और अबोध शूद्रों के लिये लिखी गयी है कि उनकी यह दशा कैसे हुई और वे हैं कौन? उन्हें पता नहीं कितने करीने से यह ग्रंथ लिखा गया है।''-कृपया देखें भारत सरकार द्वारा प्रकाशित एवं बाबा साहब लिखित ग्रंथ ''शूद्र कौन थे' के सातवें संस्करण-2013 के प्राक्कथन का पृष्ठ : 9</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
<br /></div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
2-''निसंदेह मैं जो इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं, वह मेरी जिज्ञासाओं और खोज का प्रतिफल है। इस पुस्तक में दो प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयास किया गया है। (1) शूद्र कौन थे? और (2) उन्हें भारतीय आर्य समुदाय का चतुर्थ वर्ण कैसे बनाया गया? संक्षेप में मेरा उत्तर इस प्रकार है:-</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(1) शूद्र आर्यों के सूर्यवंशी समुदाय में से ही थे।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(2) एक समय था जब आर्य समुदाय में केवल तीन वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को ही मान्यथा थी।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(3) शूद्रों का अलग से कोई वर्ण नहीं था वे भारतीय आर्य समुदाय के क्षत्रिय वर्ण में आते थे।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(4) शूद्र राजाओं और ब्राह्मणों के बीच अनवरत संघर्ष होते रहते थे और ब्राह्मणों को शूद्रों के हाथों अनेक कष्ट और अपमान सहने पड़े।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(5) शूद्रों द्वारा किये गये उत्पीड़न और पीड़ाओं से त्रस्त होकर ब्राह्मणों ने फलस्वरूप शूद्रों का उपनयन संस्कार सम्पन्न करवाना बंद कर दिया।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(6) उपनयन संस्कार से वंचित होने पर शूद्र जो क्षत्रिय थे उनका सामाजिक ह्रास हो गया। उनका दर्जा वैश्यों के नीचे हे गया और वे चौथे वर्ण में गिने गये।--कृपया देखें उक्त का पृष्ठ : 3 एवं 4</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
<br /></div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
3-भारत सरकार द्वारा प्रकाशित एवं बाबा साहब लिखित ग्रंथ ''शूद्र कौन थे' के सातवें संस्करण-2013 का पृष्ठ : 1-''यह बात प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि शूद्र भारतीय आर्यों के समाज का चौथा वर्ण हैं..''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
4-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 10 पर बाबा साहब ने ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के हवाले से लिखा है कि- ''भारतीय आर्य जाति पांच कबीलों के समन्वय से बनी है जो भारतीय आर्य जन में एकीकृत होकर एक समान जाति बन गयी।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
5-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 15 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''सवर्ण शब्द आमतौर पर अवर्ण का विलोम है। सवर्ण का अर्थ है जो चारों वर्णों में से कोई एक है। सवर्ण वह है जिसका चारों वर्णों से कोई सम्बन्ध नहीं है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सवर्ण हैं।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
6-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 54 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-"आर्यों और दासों तथा दस्युओं के बीच अंतर न तो प्रजातीय था और न ही शारीरिक बनावट का। इसीलिये दास और दस्यु आर्य कहे जा सकते हैं।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
7-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 55 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''पश्चिमी लेखकों ने यह कहानी रची कि आर्यों ने आक्रमण करके दासों तथा दस्युओं को पराजित किया।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
8-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 56 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''यह दावा कि आर्य बाहर से आये और भारत पर आक्रमण किया और यह कल्पना कि दास या दस्यु भारत के मूलनिवासी थे, एकदम गलत है।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
9-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 75 एवं 76 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''प्राय: यह संभावना व्यक्त की जाती है कि दास और दस्यु भारत के मूलनिवासी थे और आर्यों से भिन्न जाति थे। आर्यों ने उन्हें पराजित किया, यह तो एक काल्पनिक उड़ान मात्र है।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
10-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 79 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''जहां तक दस्युओं का प्रश्न है ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिलता कि इन्हें अनार्य जाति के रूप में माना जा सकता है।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
11-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 80 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''दस्यु भारतीय मूल वंश के नहीं हो सकते।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
12-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 81 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''दास भारत के मूल निवासी आदिवासी सिद्ध नहीं होते।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
13-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 82 एवं 83 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''शूद्र आर्यों (ब्राह्मणों) के विरोधी थे, (इससे) यह तात्पर्य नहीं निकलता कि शूद्र आर्य नहीं थे। वास्तव में वे भिन्न (आर्य) वर्ग या समूह के आर्य थे।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
14-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 85 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''व्याख्या कोई भी हो किन्तु तथ्य फिर भी स्पष्ट है कि सातवीं पीढी में शूद्र परिस्थिति विशेष में ब्राह्मण हो सकता था। शूूद्र यदि आर्य नहीं होते तो इस प्रकार की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।''....''अर्थशास्त्रियों के अनुसार शूद्र अनार्य नहीं थे।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
15-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 86 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''कौटिल्य (चाणक्य) ने अपने अर्थशास्त्र में शूद्रों को स्पष्ट रूप से आर्य घोषित किया है।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
16-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 86 एवं 87 पर बाबा साहब ने शूद्रों के क्षत्रिय-आर्य होने के प्रमाण जुटाते हुए लिखा है कि-</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(1) ''शूद्र क्षत्रिय राजाओं के राज्याभिषेक में सम्मिलित होते थे।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(2) ''युधिष्ठर के राजतिलक समाराह में ब्राह्मणों के साथ शूद्र भी आमंत्रित किये गये थे।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(3) ''शूद्र प्रतिनिधियों का ब्राह्मण भी विशेष रूप से सम्मान करते थे।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(4) ''शूद्र मंत्री होते थे और उनको ब्राह्मणों के बराबर ही प्रतिनिधित्व प्राप्त होता था।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
17-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 89 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''शूद्र यदि मूलत: अनार्य नहीं थे तो कौन थे? मेरे मतानुसार इसके तीन उत्तर निम्न प्रकार हैं:—</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(1) —''शूद्र आर्य थे।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(2) —शूद्र क्षत्रिय थे।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(3) —शूद्र क्षत्रियों में इतने उत्तम और महत्वपूर्ण वर्ण थे कि प्राचीन आर्यों के समुदाय में अनेक शूद्र तेजस्वी और बलशाली राजा थे।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
18-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 106 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''शूद्र आर्य ही थे।...यह तो असंदिग्ध है कि वे आर्य और क्षत्रिय थे।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
19-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 124 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''शूद्र क्षत्रियों की ही एक शाखा थे।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
20-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 130 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''ब्राह्मण परशुराम ने क्षत्रियों का संहार कर दिया था तथा जो बच गये थे उनका मूलोच्छेदन मगध के शूद्र राजा महापदम नंद ने कर दिया था। अत: क्षत्रियों का सम्पूर्ण विनाश हो गया। केवल ब्राह्मण और शूद्र बचे थे।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
21-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 138 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''शूद्रों से बदला लेने के लिये ब्राह्मणों ने शूद्रों के विरुद्ध उपनयन (यज्ञोपवीत) विरोध को एक भीषण अणुबम के रूप में प्रयोग कर उन्हें गर्त में ढकेल दिया और उन्हें शमशान तुल्य बना दिया।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
22-उक्त ग्रंथ के पृष्ठ : 164 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''शूद्र यह समझ नहीं पाये कि उपनयन बंद हो जाने के क्या फलितार्थ होंगे।''</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
23-उक्त ग्रंथ के अन्तिम अध्याय पृष्ठ : 165 पर बाबा साहब ने निष्कर्ष रूप में लिखा है कि-</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(1) शूद्र सूर्यवंशी आर्यजतियों के एक कुल या वंश थे।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(2) भारतीय आर्य समुदाय में शूद्र का स्तर क्षत्रिय वर्ण का था।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(3) एक समय आर्यों में केवल तीन वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ही थे। शूद्र अलग वर्ण नहीं था, बल्कि क्षत्रिय वर्ण का ही एक भाग था।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(4) शूद्र राजाओं और ब्राह्मणों में निरन्तर संघर्ष चलता रहा, जिससे ब्राह्मणों को (शूद्रों का) अत्याचार, उत्पीड़न और अपमान सहना पड़ा।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(5) शूद्रों के अत्याचार व उत्पीड़न से त्रस्त ब्राह्मणों ने प्रतिशोध के कारण उनका उपनयन बन्द कर दिया।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
(6) उपनयन (यज्ञोपवीत) पर प्रतिबन्ध से शूद्रों का सामाजिक पतन हुआ और (शूद्र) वैश्यों से निचली सीढी पर आ गये। उनका स्तर वैश्यों से भी निम्न हो गया। परिणामस्वरूप वे समाज का चौथा वर्ण बन गये।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
24-उक्त ग्रंथ के अन्तिम पृष्ठ : 168 पर बाबा साहब ने लिखा है कि-''मुझे यह कहने का पूरा अधिकार है कि शूद्रों की उत्पत्ति और पतन के संबंध में मेरा मत शुद्ध और त्रुटिहीन तथा युक्तिसंगत है। मेरा कथन है केि इस विषय पर कोई और रचना इससे बेहतर नहीं हो सकती।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
<br /></div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
लेखकीय टिप्पणी : बाबा साहब के ग्रंथ के उक्त उद्धरणों से शूद्रों को मूलनिवासी जैसे असंगत शब्द के बहाने बहकाकर भारत के मूलवासी सिद्ध करने वाले बामण मेश्राम की हकीकत भी आसानी से समझी जा सकती है। इसके अलावा उक्त विवेचन से यह भी स्वत: प्रमाणित है कि शूद्र वर्ण में केवल आर्य—क्षत्रियों के वंशज—शूद्रों में ओबीसी और आदिवासी शामिल नहीं हैं।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
<br /></div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
मित्रो———मेरी ओर से प्रेषित सामग्री यदि आपको उपयोगी लगे और यदि आप चाहते हैं कि आपको मेरे आलेख और आॅडियो/वीडियो आपके वाट्स एप इन बॉक्स में सदैव मिलते रहें तो आपको मेरे वाट्स एप नं. 9875066111 को अपने मोबाइल में सेव करके वाट्स एप नं. 9875066111 पर एड होने की इच्छा की जानकारी भेजनी होगी। तदोपरान्त आपका परिचय प्राप्त करके आपको एड कर लिया जायेगा। धन्यवाद।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
जय भारत! जय संविधान!</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
नर-नारी सब एक समान!!</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
<br /></div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
@—लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोशिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक), पूर्व रा महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, दाम्पत्य विवाद सलाहकार तथा लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में एकाधिक प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित। वाट्स एप एवं मो. नं. : 9875066111/दि.13.02.2016/06.33 PM</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
नोट : उक्त सामग्री व्यक्तिगत रूप से केवल आपको ही नहीं, बल्कि ब्रॉड कॉस्टिंग सिस्टम के जरिये मुझ से वाट्स एप पर जुड़े सभी मित्रों को भेजी जा रही है। अत: यदि आपको किसी भी प्रकार की आपत्ति हो तो, कृपया अवगत करावें। आगे से आपको कोई सामग्री नहीं भेजी जायेगी। मेरी फेसबुक आईडी : https://www.facebook.com/NirankushWriter</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
मेरा फेसबुक पेज : https://www.facebook.com/nirankushpage/</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
पूर्व प्रकाशित आलेख पढने के लिए करें : http://hrd-newsletter.blogspot.in/</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
एवं http://ppnewschannel.blogspot.in/</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
फेसबुक ग्रुप https://www.facebook.com/groups/Sachkaaaina/</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
अति—महत्वूपर्ण नोट : बकवासवर्गीय मीडिया हमारे विचारों को दबाता है। ऐसे में वंचित वर्गों के पास शोसल मीडिया ही विचार सम्प्रेषण का एक मात्र माध्यम है। अत: यदि हम वंचित वर्गों से जुड़े महत्वूपर्ण विषयों से सम्बन्धित जानकारी को अपने मित्रों और परिचितों को अग्रेषित कर सकें तो हम वंचित वर्गों के जनजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।</div>
<br />
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
—निवेदक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
</div>
डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-65142643296943403932016-02-12T23:21:00.000+05:302016-05-21T16:43:14.514+05:30'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा वंचित वर्गों की एकता में बड़ी बाधा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto; widows: 2;">'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto; widows: 2;">वंचित वर्गों की एकता में बड़ी बाधा</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "tahoma"; orphans: 2; text-align: -webkit-auto; widows: 2;">===================</span></div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: Tahoma; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: -webkit-auto; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
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<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
वर्तमान में देश की बहुसंख्यक वंचित मोस्ट MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) आबादी हजारों सालों के जन्मजातीय विभेद, शोषण और उत्पीड़न के कारण हर क्षेत्र में पिछड़ी हुई है। बकवास BKVaS=(B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Vaवैश्य+Sसंघी) वर्ग द्वारा मोस्ट वर्ग के लोगों का कदम—कदम पर उत्पीड़न और शोषण किया जाता रहा है। जिसके लिये बकवास वर्ग की कूटनीति, कुनीति और विभेदक नीति तो मूल कारण है ही, लेकिन मोस्ट वर्ग के समूहों में आपसी एकता तथा सदभावना का नहीं होना भी बहुत बड़ा कारण है। जिसके पीछे अग्रिणी वर्ग द्वारा देश, समाज और दूसरे वर्ग को गुमराह करने की नीति भी मुख्य रूप से जिम्मेदार है। जिसके अनेक कारण हैं। जिसका सबसे सबसे बड़ा कारण है—'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा का सहारा लेकर इतिहास को झुठलाना।<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3Wy9RE0lQhLcPPgUV2GR0oeiudr_Je8xKJuiGa9Jchx3dsIPL0qLTfB-JG0bhhaLoabWG8eCVeQX-rFydc-V5uRbSP1r6NqvqCLh053TH2vrsHMJey6QGQfrO0aRN0s-ye7bLldcVwYo/s1600/12-02-2016-L.jpg" imageanchor="1"><img border="0" height="231" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3Wy9RE0lQhLcPPgUV2GR0oeiudr_Je8xKJuiGa9Jchx3dsIPL0qLTfB-JG0bhhaLoabWG8eCVeQX-rFydc-V5uRbSP1r6NqvqCLh053TH2vrsHMJey6QGQfrO0aRN0s-ye7bLldcVwYo/s320/12-02-2016-L.jpg" width="320" /></a></div>
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विश्वस्तरीय विद्वान बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेड़कर जी ने गहन अध्ययन, शोध, विश्वसनीय तथ्यों और उपलब्ध अनेकानेक सन्दर्भ ग्रंथों के आधार पर सिद्ध किया है कि प्रारम्भ में आर्यों में त्रिस्तरीय वर्ण व्यवस्था थी। ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य। प्रारम्भ में शूद्र इस त्रिस्तरीय वर्ण व्यवस्था में आर्य—क्षत्रिय वर्ण में शामिल थे। जिनका ब्राह्मणों द्वारा बाकायदा उपनयन संस्कार किया जाता था। उनको यज्ञ करने का अधिकार होता था। उनके अनेकों बड़े—बड़े सूरवीर राजा हुए, जिन्होंने बड़े—बड़े युद्ध किये थे। कालान्तर में ब्राह्मणों से भी उनके अनेक युद्ध हुए, जिनके कारण अन्तत: ब्राह्मणों ने तत्कालीन आर्य—क्षत्रियों का उपनयन संस्कार करना बन्द कर दिया और उनको आर्य—क्षत्रिय वर्ण से गिराकर वैश्य से भी नीचे नये चौथे शूद्र वर्ण में धकेल दिया। जिसके कारण आर्य—क्षत्रियों की ब्राह्मणों द्वारा सामाजिक दुर्गति कर दी। इस प्रकार बाबा साहब के अनुसार शूद्र भारत के मूलवासी नहीं होकर विदेशी आर्य—क्षत्रियों के वंशज हैं। जबकि बाबा साहब के अनुसार और अनेक दूसरे स्रोतों से प्रमाणित तथ्यों के अनुसार असुर, राक्षस कही/बोली जाने वाली या लिखी गयी भारत की मूलवंशी आदिम जातियों के वंशज हैं। जिन्हें आज आदिवासी लिखा और बोला जाता है, जबकि संविधान निर्माताओं की धोखाधड़ी के चलते वर्तमान में भारत के मूलवंशी, मूलवासी, आदिनिवासी, इंडीजिनियश indigenous प्रजाति को अनुसूचित जनजाति बना दिया गया। जिसके चलते भारत के मूलवासी अन्याय के शिकार हो रहे हैं।
</div>
<div>
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<br /></div>
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इस प्रकार वर्तमान में अजा एवं अजजा वर्ग में शामिल जातियों का मौलिक उदभव एक नहीं है। आदिवासी भारत के मूलवंशी, मूलवासी, आदिनिवासी, इंडीजिनियश indigenous हैं, जबकि शूद्र विदेशी आर्य—क्षत्रियों के वंशज हैं। इसके उपरान्त भी इतिहास को तोड़—मरोड़कर बामण मेश्राम जैसे शूद्रवंशी लोगों द्वारा बहुसंख्यक वंचित आबादी की मुश्किलों और समस्याओं का समाधान और निराकरण करने का संवैधानिक रास्ता सुझाने के बजाय शूद्रों को भारत की मूलवंशी प्रजाति प्रमाणित करने के मकसद से 'मूलवासी' शब्द से मिलता—जुलता 'मूलनिवासी' शब्द उपयोग में लाकर देश के वंचित लोगों को गुमराह किया जा रहा है। जिसके लिये तथाकथित डीएनए को आधार बनाया जा रहा है। इस डीएनए की मूल रिपोर्ट मुझे आज तक देखने/पढने को नहीं मिली है। यद्यपि इस कथित डीएनए रिपोर्ट में भारत की 'मूलवासी' प्रजाति आदिवासियों के बारे में क्या कुछ निष्कर्ष/रिपोर्ट है, आज तक इस बारे में कोई जानकारी बामण मेश्राम की ओर से प्रकट नहीं की गयी है। इसके उलट वंचित वर्गों का दुर्भाग्य है कि जिस प्रकार से ब्राह्मण—आर्य अपने आप को मूलभारतीय सिद्ध करने के लिये भारत के इतिहास का पुनर्लेखन कर दुष्प्रचार कर रहे हैं, उसी प्रकार से क्षत्रिय—आर्य—शूद्रवंशी बामण मेश्राम भी अपने आप को और शूद्रों को मूलभारतीय सिद्ध करने के लिये 'मूलनिवासी' शब्द और कथित डीएनए रिपोर्ट का अनाप—शनाप प्रचार—प्रसार कर रहे हैं। इन हालातों में देश की बहुसंख्यक वंचित आबादी में एकता कायम होने के बजाय दूरियां पैदा हो रही हैं। इसलिये 'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा वंचित MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) वर्गों की एकता में एक बहुत बड़ी बाधा बन चुकी है। जिसे तत्काल निरस्त किये जाने की जरूरत है। कारण और भी हैं, जिन पर आने वाले दिनों में विचार किया जायेगा।</div>
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<br /></div>
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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9875066111/दि.12.02.2016</div>
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———मेरी ओर से प्रेषित सामग्री यदि आपको उपयोगी लगे और यदि आप चाहते हैं कि आपको मेरे आलेख और आॅडियो/वीडियो आपके वाट्स एप इन बॉक्स में सदैव मिलते रहें तो आपको मेरे वाट्स एप नं. 9875066111 को अपने मोबाइल में सेव करके वाट्स एप नं. 9875066111 पर एड होने की इच्छा की जानकारी भेजनी होगी। तदोपरान्त आपका परिचय प्राप्त करके आपको एड कर लिया जायेगा। धन्यवाद।</div>
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जय भारत! जय संविधान!</div>
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नर-नारी सब एक समान!!</div>
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@—लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोशिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक), पूर्व रा महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, दाम्पत्य विवाद सलाहकार तथा लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में एकाधिक प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित। वाट्स एप एवं मो. नं. : 9875066111/दि.12.02.2016/08.29 PM</div>
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नोट : उक्त सामग्री व्यक्तिगत रूप से केवल आपको ही नहीं, बल्कि ब्रॉड कॉस्टिंग सिस्टम के जरिये मुझ से वाट्स एप पर जुड़े सभी मित्रों को भेजी जा रही है। अत: यदि आपको किसी भी प्रकार की आपत्ति हो तो, कृपया अवगत करावें। आगे से आपको कोई सामग्री नहीं भेजी जायेगी। मेरी फेसबुक आईडी : https://www.facebook.com/NirankushWriter</div>
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मेरा फेसबुक पेज : https://www.facebook.com/nirankushpage/</div>
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पूर्व प्रकाशित आलेख पढने के लिए करें : http://hrd-newsletter.blogspot.in/</div>
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एवं http://ppnewschannel.blogspot.in/</div>
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फेसबुक ग्रुप https://www.facebook.com/groups/Sachkaaaina/</div>
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अति—महत्वूपर्ण नोट : बकवासवर्गीय मीडिया हमारे विचारों को दबाता है। ऐसे में वंचित वर्गों के पास शोसल मीडिया ही विचार सम्प्रेषण का एक मात्र माध्यम है। अत: यदि हम वंचित वर्गों से जुड़े महत्वूपर्ण विषयों से सम्बन्धित जानकारी को अपने मित्रों और परिचितों को अग्रेषित कर सकें तो हम वंचित वर्गों के जनजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।</div>
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—निवेदक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-1648875044644170052016-01-27T13:45:00.001+05:302016-01-27T13:45:07.815+05:30आरक्षण व्यवस्था के साथ जारी बर्बरतापूर्ण बलात्कार कैसे रुके?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
आरक्षण व्यवस्था के साथ जारी</div>
<div style="text-align: justify;">
बर्बरतापूर्ण बलात्कार कैसे रुके?<br /></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5KBYFHrDSMiqFd2Stp4ZZ4ogqhuHKAE7isY5QKqINCs2XJjFsMu8CKngaIsufziKno2sRhtG4lUDoaTUYbn2dBifujsw_savrRNMl18Hj9Q0DXLxQskpE9Fn3hvzh5yJKD1KtkQMpL3U/s1600/27-01-2016.JPG" imageanchor="1"><img border="0" height="110" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5KBYFHrDSMiqFd2Stp4ZZ4ogqhuHKAE7isY5QKqINCs2XJjFsMu8CKngaIsufziKno2sRhtG4lUDoaTUYbn2dBifujsw_savrRNMl18Hj9Q0DXLxQskpE9Fn3hvzh5yJKD1KtkQMpL3U/s400/27-01-2016.JPG" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br />लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
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भारत में हजारों सालों से संचालित अमानवीय मनुवादी व्यवस्था के कारण सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से वंचित वर्गों की दशा संविधान लागू होने के 66 साल बाद भी अत्यधिक दयनीय है। संविधान निर्माताओं को इन वर्गों की विशेष चिन्ता थी। इसी कारण से इन वंचित वर्गों को अजा, अजजा एवं ओबीसी वर्गों में वर्गीकृत करके, संविधान में कुछ विशेष प्रावधान किये गये थे। जिनमें विधायिका में प्रतिनिधित्व के साथ—साथ शिक्षण संस्थानों में प्रवेश तथा सरकारी नौकरियों में चयन एवं पदोन्नति के समय पात्रता में छूट, प्रमुख प्रावधान हैं। ओबीसी की दशा इस मामले में कमतर है। उनको न तो विधायिका में और न ही पदोन्नति में आरक्षण प्राप्त है। यही नहीं ओबीसी को उनकी जनंसख्या के अनुपात से आधे से भी कम आरक्षण प्राप्त है। जानबूझकर ओबीसी में असमान पृष्ठभूमि की जातियों को शामिल करके आरक्षण को आपसी संघर्ष का आखाड़ा बना दिया गया है।</div>
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<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
संवैधानिक आरक्षण व्यवस्था के परिणामस्वरूप या इसके दुष्परिणामस्वरूप वंचित वर्गों में विशेष रूप से अजा एवं अजजा के अनेक लोग उच्च पदों तक पहुंचे हैं। अनेक वर्तमान में भी पदस्थ हैं। इस सब के बाद भी मैं अत्यधिक दुःख के साथ, यह लिखने को विवश हूं कि उच्च प्रशासनिक और निर्णायक पदों पर पदस्थ रहते हुए, आरक्षित वर्ग के अनेक अधिकारी अपने वर्ग के आहत, पीड़ित और वंचित लोगों का प्रतिनिधित्व करने की तनिक भी परवाह नहीं करते हैं। इसके विपरीत अपने वर्ग के वंचित लोगों से दूरी बनाते देखे जा सकते हैं और बकवास (BAKVaS= B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Va-वैश्य+Sसंघी) वर्ग के मनुवादियों की खुशामद करते देखे जा सकते हैं। जिसे सीधे शब्दों में चाटुकारिता और चमचागिरी की संज्ञा दी जा सकती है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
जबकि सरकारी सेवाओं में चयन हेतु पात्रता में छूट प्रदान करने का मूल मकसद वंचित वर्गों के नये सामन्त पैदा करना कदापि नहीं था, बल्कि देश में सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु कार्यपालिका में वंचित वर्गों का पर्याप्त और सशक्त प्रतिनिधित्व स्थापित करना था। जिससे कि बकवास (BAKVaS= B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Va-वैश्य+Sसंघी) वर्ग से वंचित वर्गों के हितों की रक्षा की जा सके। वंचित वर्गों के उत्थान और संरक्षण के लिये नीतियों और कानूनों का निर्माण किया जा सके। पिछले 66 वर्ष के अनुभव को देखा जाये तो संविधान की मंशा के अनुरूप वंचित वर्गों का सच्चा और सशक्त प्रतिनिधित्व स्थापित नहीं हो सका है। इस मामले में वर्तमान आरक्षण व्यवस्था असफल रही है और आरक्षण का मूल मकसद समाप्त और बेमानी हो चुका है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
आरक्षण का लाभ प्राप्त करके उच्च पदों पर पदस्थ अनेक प्रशासनिक अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों में अपने ही वंचित वर्ग के प्रति संवैधानिक जिम्मेदारी और संवेदनशीलता का प्राय: अभाव दिखाई दे रहा है। इसके साथ—साथ यह भी देखने और सुनने में आता रहा है कि उच्च प्रशासनिक पदों पर बिराजमान आरक्षित वर्ग के अफसरों के परिजनों और सम्बन्धियों का ही प्रशासनिक पदों पर प्रमुखता से चयन हो रहा है? मुझे यह भी जानकारी मिली है कि लिखित और मुख्य परीक्षा में तुलनात्मक रूप से अधिक अंक प्राप्त करने वाले आम आरक्षित लोगों की संतानों की तुलना में, उच्च प्रशासनिक पदों पर बिराजमान आरक्षित वर्ग के अफसरों के कम अंक लाने परिजनों और सम्बन्धियों का अन्तिम रूप से चयन हो जाता है। यदि यह सत्य नहीं भी है तो क्या इसे सिर्फ संयोग ही माना जावे कि उच्च प्रशासनिक पदों पर बिराजमान लोगों के परिवार या रिश्तेदारी में ही अतिविलक्षण प्रतिभाशाली बच्चे पैदा हो रहे हैं, जिसके चलते भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में उनका चयन अवश्य हो रहा है। यदि यह सच है तो यह आरक्षण के आधार पर प्राप्त उच्च पदस्थिति का निजी हित में भयंकर दुरूपयोग और सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु लागू आरक्षण व्यवस्था के साथ सरेआम, क्रूरतापूर्ण और बर्बर बलात्कार नहीं तो और क्या है?</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
अब यह तथ्य किसी से छिपा नहीं रह गया है कि आरक्षण का लाभ लेकर उच्च पदों पर पदस्थ अनेक अधिकारी ऐश-ओ-आराम की जिंदगी जीते हैं और अवैध तरीकों से अकूत धन-सम्पदा अर्जित करते हैं। जिसे अपनी भावी पीढ़ियों के लिए अक्षुण्य बनाये रखने के लिए सरकारी सेवा में रहते हुए राजनैतिक दलों से नजदीकीयां बना लेते हैं और सेवानिवृति के बाद मनुवादी राजनैतिक दलों के टिकिट पर आरखित निर्वाचन क्षेत्रों से जीतकर MP या MLA बन जाते हैं। ऐसे लोगों का अपने वर्ग के आम लोगों के दुःख-दर्द या मुसीबतों या उनके हितों या अधिकारों के संरक्षण से दूर का भी वास्ता नहीं होता है। ऐसे लोग पहले प्रशासन में रहकर और बाद में विधायिका में पहुंचकर अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति करने के साथ—साथ अपने राजनैतिक दल के आकाओं के आदेशों की पालना करने के अलावा कुछ नहीं करते हैं। इसी कारण वंचित समाज के अन्दर गहरी खाई बन चुकी है और आरक्षित वर्ग के आम लोगों में गहरा असन्तोष और गुस्सा व्याप्त है। </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इन हालातों में और संविधान को लागू हुए सात दशक पूर्ण होने जा रहे हैं, तब भी क्या आरक्षित वर्ग के आम लोगों के लिये यह विशेष चिन्ता का विषय नहीं होना चाहिये कि सामाजिक न्याय की वास्तविक स्थापना कैसे हो? वंचितों के प्रेरणा स्रोत ज्योतिबा फूले, विश्वस्तरीय विधिवेत्ता और बहुमुखी प्रतिभा के धनि बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेड़कर, आदिवासी हितों के लिये समर्पित प्रतिनिधि जयपालसिंह मुण्डा और आधुनिक भारत में सामाजिक न्याय के मसीहा कांशीराम की सामाजिक न्याय की लड़ाई का क्या यही लक्ष्य था? मुझे नहीं लगता कि वर्तमान आरक्षण व्यवस्था से इन महामानवों के सपने कभी पूर्ण हो सकेंगे।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
मुझे ज्ञात है कि काले धन की ताकत पर आरक्षित वर्गों के दिखावटी मसीहा बने हुए कुछ स्वार्थी पूर्व या वर्तमान प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से मेरा और मेरे विचारों का कड़ा विरोध हो सकता है, जो अनपेक्षित और अस्वाभाविक नहीं है, लेकिन उनके स्वार्थपूर्ण विचारों की परवाह किये बिना समग्र वंचित समाज के संवैधानिक हित में हमें सत्य को स्वीकार कर के, इस समस्या का अविलम्ब स्थायी और संवैधानिक समाधान खोजना ही होगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कुछ कथित उथले विद्वान आरक्षित वर्गों में क्रीमी लेयर लागू करके इस समस्या का समाधान करने की बात करते हैं, जिसका मैं कभी समर्थन नहीं कर सकता। क्योंकि क्रीमी लेयर संवैधानिक प्रतिनिधित्व की मूल अवधारणा को ही नेस्तनाबूद कर देती है। यद्यपि मैं स्वीकरता हूं और उक्त विवेचन से प्रमाणित भी होता है कि वर्तमान व्यवस्था में वंचित वर्गों का उचित संवैधानिक प्रतिनिधित्व नहीं हो पा रहा है। इसके बावजूद भी हम हमारे समस्त प्रतिनिधियों को शतप्रतिशित नहीं नकार सकते, क्योंकि वर्तमान व्यवस्था की बदौलत ही अनेक संवेदनशील, सेवाभावी एवं जिम्मेदार अफसर और जनप्रतिनिधि, पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा के साथ अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए वंचित वर्गों का निर्भीकतापूर्वक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इसके उपरान्त भी वंचित वर्ग के लिये अहितकर बन चुकी वर्तमान आरक्षण व्यवस्था का स्थायी और संवैधानिक समाधान खोजना ही होगा। बल्कि अविलम्ब खोजना होगा। इसलिये सामाजिक न्याय के लिये कार्यरत और संविधान के जानकार विद्वानों को इस बारे में गम्भीरतापूर्वक चिन्तन और मंथन करने की करने की जरूरत है। मेरे मनोमस्तिष्क में भी कुछ समाधान हैं, लेकिन उन्हें प्रस्तुत करूं उससे पहले बेहतर होगा कि इस विषय पर सार्वजनिक चर्चा होनी चाहिये। जिससे मेरे विचारों से प्रभावित हुए बिना, अधिक अच्छे समाधान सामने आ सकें। अब देखना होगा कि कितने लोग वंचित समाज के प्रति चिन्तनशील हैं और कितने लोग तार्किक, संवैधानिक और समाधानकारी सुझाव प्रस्तुत करने का साहस जुटा पाते हैं?</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
जय भारत। जय संविधान।</div>
<div style="text-align: justify;">
नर—नारी सब एक समान।।</div>
<div style="text-align: justify;">
@—लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोशिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक), पूर्व रा महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, दाम्पत्य विवाद सलाहकार तथा लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में एकाधिक प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित। वाट्स एप एवं मो. नं. 9875066111, 27.01.2016 (11.59 AM)</div>
<div style="text-align: justify;">
नोट : उक्त सामग्री व्यक्तिगत रूप से केवल आपको ही नहीं, बल्कि ब्रॉड कॉस्टिंग सिस्टम के जरिये मुझ से वाट्स एप पर जुड़े सभी मित्रों को भेजी जा रही है। अत: यदि आपको किसी भी प्रकार की आपत्ति हो तो, कृपया अवगत करावें। आगे से आपको कोई सामग्री नहीं भेजी जायेगी। यदि उक्त सामग्री आपको पसन्द है तो कृपया इसे अपने मित्रों को अग्रेषित/फॉरवर्ड करने का कष्ट करें। हमारे पूर्व प्रकाशित आलेख पढने के लिए करें : http://hrd-newsletter.blogspot.in/ एवं http://ppnewschannel.blogspot.in/ ब्लॉग्स पर क्लिक करें या फेसबुक ग्रुप https://www.facebook.com/groups/Sachkaaaina/ में जुड़ कर भारत की 90 फीसदी वंचित (MOST=Minority+OBC+SC+Tribals) आबादी के सरोकारों से जुड़े विषयों पर चर्चा का हिस्सा बनें।</div>
<div style="text-align: justify;">
अति—महत्वूपर्ण नोट : बकवासवर्गीय मीडिया हमारे विचारों को दबाता है। ऐसे में वंचित वर्गों के पास शोसल मीडिया ही विचार सम्प्रेषण का एक मात्र माध्यम है। अत: यदि हम वंचित वर्गों से जुड़े महत्वूपर्ण विषयों से सम्बन्धित जानकारी को अपने मित्रों और परिचितों को अग्रेषित कर सकें तो हम वंचित वर्गों के जनजागरण में महत्वूपर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
—निवेदक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'</div>
</div>
डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-36101895338039259722016-01-22T17:08:00.000+05:302016-01-22T17:26:38.144+05:30रोहित तुम जी सकते थे!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b>
<b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7mkIDOC6W7PtKGA7DFFMVjesqqQmWLvkUgKOJx63IKZN7nNulOXiMptupuegyIAx7qsKnj-QCdvHtQ-AAm93aIy2KGLc4-sgO9h8sMOATV-DCmbshMnKN2BMvl7mesdAzAELP7K_REbg/s1600/Meghwanshi.JPG" imageanchor="1"><img border="0" height="216" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7mkIDOC6W7PtKGA7DFFMVjesqqQmWLvkUgKOJx63IKZN7nNulOXiMptupuegyIAx7qsKnj-QCdvHtQ-AAm93aIy2KGLc4-sgO9h8sMOATV-DCmbshMnKN2BMvl7mesdAzAELP7K_REbg/s400/Meghwanshi.JPG" width="400" /></a></b><br />
<b><br />रोहित तुम जी सकते थे!</b></div>
<div style="text-align: justify;">
--------------------</div>
<div style="text-align: justify;">
रोहित </div>
<div style="text-align: justify;">
तुम जी सकते थे।</div>
<div style="text-align: justify;">
अपमान के कड़वे घूंट </div>
<div style="text-align: justify;">
पी सकते थे।</div>
<div style="text-align: justify;">
टेक सकते थे घुटने </div>
<div style="text-align: justify;">
झुका सकते थे सिर</div>
<div style="text-align: justify;">
बन सकते थे समझौतावादी </div>
<div style="text-align: justify;">
मगर तुमने खुद को सुना </div>
<div style="text-align: justify;">
और दूसरा रास्ता चुना</div>
<div style="text-align: justify;">
जो कि ठीक ही था ।</div>
<div style="text-align: justify;">
............</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
रोहित </div>
<div style="text-align: justify;">
तुम्हारे कमरे में पाया गया था </div>
<div style="text-align: justify;">
'खतरनाक सामान '</div>
<div style="text-align: justify;">
तस्वीर बाबा साहब </div>
<div style="text-align: justify;">
और सावित्री बाई फुले की ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने किये थे कुछ देशविरोधी कृत्य</div>
<div style="text-align: justify;">
जैसे कि -</div>
<div style="text-align: justify;">
फाँसी की सजा की मुख़ालफ़त।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने दंगों की हकीकत बतानी चाही थी।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने 'मुजफ्फरनगर अभी बाक़ी है'</div>
<div style="text-align: justify;">
जैसी फिल्म दिखानी चाही थी ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम्हें सिर्फ रिसर्च करना था </div>
<div style="text-align: justify;">
तुम्हें सोचने की कौन बोला ?</div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने चुपचाप रहना था</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम्हें बोलने की कौन बोला ?</div>
<div style="text-align: justify;">
...............</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
रोहित </div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने सोच भी कैसे लिया ?</div>
<div style="text-align: justify;">
कि प्रचण्ड बहुमत वाले </div>
<div style="text-align: justify;">
इस चक्रवर्ती राज में</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम जो चाहोगे वो बोलोगे</div>
<div style="text-align: justify;">
और उनके विरुद्ध मुंह खोलोगे ।</div>
<div style="text-align: justify;">
उनकी मर्जी के खिलाफ </div>
<div style="text-align: justify;">
कुछ भी मनचाहा खा लोगे ? </div>
<div style="text-align: justify;">
नहीं करना था ,</div>
<div style="text-align: justify;">
पर तुमने किया ये सब</div>
<div style="text-align: justify;">
बन गए थे तुम एक कांटा</div>
<div style="text-align: justify;">
एक ना एक दिन </div>
<div style="text-align: justify;">
निकालना ही था तुमको ।</div>
<div style="text-align: justify;">
..............</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
रोहित </div>
<div style="text-align: justify;">
मंत्री बण्डारु और वीसी अपा राव</div>
<div style="text-align: justify;">
कह रहे है कि</div>
<div style="text-align: justify;">
उन्होंने नहीं मारा तुमको ?</div>
<div style="text-align: justify;">
सही बात है ,</div>
<div style="text-align: justify;">
वे अब नहीं मारते </div>
<div style="text-align: justify;">
किसी को ।</div>
<div style="text-align: justify;">
उनके पूर्वज मारते थे ,</div>
<div style="text-align: justify;">
एकलव्यों से अंगूठा कटवा लेते थे</div>
<div style="text-align: justify;">
और शम्बुकों का काट देते थे गला ।</div>
<div style="text-align: justify;">
पर अब वे ऐसा नहीं करते ।</div>
<div style="text-align: justify;">
बस बना लेते है फंदे</div>
<div style="text-align: justify;">
गले के नाप के ।</div>
<div style="text-align: justify;">
फिर कोशिस करते है </div>
<div style="text-align: justify;">
कि वो फंदे </div>
<div style="text-align: justify;">
हमारे गलों के काम आ जाये ।</div>
<div style="text-align: justify;">
अब वे मारते नहीं </div>
<div style="text-align: justify;">
करते है मरने को मजबूर ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम्हारे साथ भी तो </div>
<div style="text-align: justify;">
यही किया इन्होंने ।</div>
<div style="text-align: justify;">
......................</div>
<div style="text-align: justify;">
रोहित </div>
<div style="text-align: justify;">
तुम लेखक बनना चाहते थे,</div>
<div style="text-align: justify;">
पर लेख बन गए ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने मर कर भी वही किया </div>
<div style="text-align: justify;">
जो तुम ज़िंदा रह कर </div>
<div style="text-align: justify;">
कर सकते थे ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने इस समाज ,</div>
<div style="text-align: justify;">
राष्ट्र और धर्म के </div>
<div style="text-align: justify;">
दोगलेपन और अन्यायकारी</div>
<div style="text-align: justify;">
चरित्र को किया है उजागर ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम आज प्रतिरोध की </div>
<div style="text-align: justify;">
सबसे प्रमुख आवाज़ बन गए हो ।</div>
<div style="text-align: justify;">
.......</div>
<div style="text-align: justify;">
रोहित</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम्हारी मौत </div>
<div style="text-align: justify;">
आत्महत्या </div>
<div style="text-align: justify;">
नहीं हैं ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम आत्महंता नहीं </div>
<div style="text-align: justify;">
आत्मबलिदानी हो </div>
<div style="text-align: justify;">
हमारी नज़र में ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने लिया </div>
<div style="text-align: justify;">
क्रूर व्यवस्था के विरुद्ध</div>
<div style="text-align: justify;">
सबसे कठोर निर्णय ।</div>
<div style="text-align: justify;">
.......................</div>
<div style="text-align: justify;">
रोहित </div>
<div style="text-align: justify;">
तुम्हारा आखिरी खत </div>
<div style="text-align: justify;">
जिसे सुसाइड नोट कहा जा रहा है ।</div>
<div style="text-align: justify;">
पढ़ा है मैने भी ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने खोल कर रख दिया </div>
<div style="text-align: justify;">
अपना भीतर ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने उघाड़ दिया </div>
<div style="text-align: justify;">
हम सबका बाहर ।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
हाँ रोहित </div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने सही कहा </div>
<div style="text-align: justify;">
हमारी भावनाएं दोयम ,</div>
<div style="text-align: justify;">
प्रेम बनावटी</div>
<div style="text-align: justify;">
और मान्यताएं झूठी हो गई है।</div>
<div style="text-align: justify;">
आदमी अब सिर्फ </div>
<div style="text-align: justify;">
एक आंकड़ा, एक वोट</div>
<div style="text-align: justify;">
और वस्तु भर रह गया है ।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
यह सच है मेरे दोस्त।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने ठीक ही लिखा ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम ठीक ही लड़े ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुमने सब ठीक ही किया ।</div>
<div style="text-align: justify;">
काश ,तुम और जी पाते !</div>
<div style="text-align: justify;">
लड़ पाते ,</div>
<div style="text-align: justify;">
बिना थके ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम्हारी बेहद जरूरत थी </div>
<div style="text-align: justify;">
इस भयानक दौर को ।</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम्हारी तरह आज़ाद ख्याल</div>
<div style="text-align: justify;">
निडर, बेमिसाल</div>
<div style="text-align: justify;">
इंसान चाहिए था हमको।</div>
<div style="text-align: justify;">
..........</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
रोहित </div>
<div style="text-align: justify;">
अब चिंता </div>
<div style="text-align: justify;">
सिर्फ इतनी सी है कि</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम्हारा बलिदान </div>
<div style="text-align: justify;">
व्यर्थ नहीं जाये।</div>
<div style="text-align: justify;">
यह जंग कहीं </div>
<div style="text-align: justify;">
हम हार नहीं जाये।</div>
<div style="text-align: justify;">
कोई और एकलव्य</div>
<div style="text-align: justify;">
अपना अंगूठा नहीं खो दे।</div>
<div style="text-align: justify;">
किसी मरजादा </div>
<div style="text-align: justify;">
पुरुषोत्तम के हाथ</div>
<div style="text-align: justify;">
हम अपना शम्बूक नहीं खो दें।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
तुम तो चले गए सितारों के पार </div>
<div style="text-align: justify;">
पर हमें लड़नी होगी </div>
<div style="text-align: justify;">
एक लम्बी लड़ाई।</div>
<div style="text-align: justify;">
हमें उम्मीद है </div>
<div style="text-align: justify;">
कि एक न एक दिन </div>
<div style="text-align: justify;">
हम उन सितारों को </div>
<div style="text-align: justify;">
धरा पर उतार लाएंगे दोस्त</div>
<div style="text-align: justify;">
तुम्हारे खातिर।</div>
<div style="text-align: justify;">
ताकि भविष्य में </div>
<div style="text-align: justify;">
कोई और रोहित वेमुला </div>
<div style="text-align: justify;">
इस तरह नहीं जाये चला </div>
<div style="text-align: justify;">
हाथों से हमारे।</div>
<div style="text-align: justify;">
जिस तरह तुम</div>
<div style="text-align: justify;">
मरते वक्त थे </div>
<div style="text-align: justify;">
बिलकुल खाली।</div>
<div style="text-align: justify;">
अभी वैसे ही मैं </div>
<div style="text-align: justify;">
बिलकुल शून्य हो कर </div>
<div style="text-align: justify;">
सोच रहा हूँ।</div>
<div style="text-align: justify;">
पर मरने के लिए नहीं ,</div>
<div style="text-align: justify;">
जीने के लिए...</div>
<div style="text-align: justify;">
एक आखिरी और निर्णायक जंग</div>
<div style="text-align: justify;">
लड़ने और जीतने के लिए....</div>
<div style="text-align: justify;">
कहते हुए तुमको ।</div>
<div style="text-align: justify;">
एक क्रन्तिकारी जय भीम।</div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: blue;">-भंवर मेघवंशी</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: purple;">(स्वतन्त्र पत्रकार एवम् सामाजिक कार्यकर्ता।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
संपर्क -<a href="mailto:bhanwarmeghwanshi@gmail.com">bhanwarmeghwanshi@gmail.com</a> व्हाट्सएप-09571047777)</div>
</div>
डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-42170469174974704962016-01-01T17:03:00.002+05:302016-01-01T17:03:41.416+05:30उमराव सालोदिया का उमराव खान हो जाना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
उमराव सालोदिया का उमराव खान हो जाना</div>
<div style="text-align: justify;">
.......................................................</div>
<div style="text-align: justify;">
राजस्थान के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी उमराव सालोदिया ने मुख्य सचिव नहीं बनाये जाने से नाराज हो कर स्वेच्छिक सेवा निवृति लेने तथा हिन्दुधर्म छोड़कर इस्लाम अपनाने की घोषणा कर सनसनी पैदा कर दी है ।</div>
<div style="text-align: justify;">
राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार से अब न उगलते बन रहा है और न ही निगलते। यह सही बात है कि वरीयता क्रम में वे मुख्य सचिव बनने के लिए बिलकुल पात्र थे और यह भी सम्भव था कि वे राज्य के पहले दलित मुख्य सचिव बन जाते मगर भाजपा सरकार ने वर्तमान मुख्य सचिव सी एस राजन को तीन माह का सेवा विस्तार दे कर सालोदिया को वंचित कर दिया ।</div>
<div style="text-align: justify;">
सेवा एवम् धर्म छोड़ने की घोषणा करते हुए सालोदिया ने यह भी कहा कि उन्हें सेवाकाल के दौरान सामान्य वर्ग के एक व्यक्ति ने बहुत परेशान किया ,जिसकी प्राथमिकी दर्ज कराये जाने के बावजूद उस व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गयी।सालोदिया ने यह भी कहा कि वे समानता की चाह में इस्लाम कबूल कर रहे है । हालाँकि उन्होंने यह भी बताया कि उनकी इस्लाम में रूचि लंबे समय से है और उन्होंने इस्लाम को भली भांति पढ़ समझ कर ही धर्मान्तरण का फैसला किया है।</div>
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उमराव सालोदिया अब उमराव खान बन चुके है। उनके धर्म परिवर्तन करने पर मिश्रीत प्रतिक्रियाएं आई है ।राज्य के गृह मंत्री गुलाब चन्द कटारिया ने इसे व्यक्तिगत निर्णय बताते हुए कहा कि अगर उनके साथ अन्याय हुआ है और उन्हें लगता है कि उन्हें वंचित किया गया है तो उसका विरोध उचित फोरम पर किया जा सकता था। चिकित्सा एवम् स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ ने इसे सेवा नियमों का स्पष्ट उल्लंघन करार देते हुए कहा कि वे पद पर रहते हुए इस तरह प्रेस वार्ता कैसे कर सकते है । उन्हें दूसरे मान्य तरीके अपनाने चाहिए ।</div>
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यह तो निर्विवाद तथ्य है कि उन्हें मुख्य सचिव बनाया जाना चाहिये। यह उनका हक़ है जिसे सरकार ने जानबूझ कर छीना है मगर उनके इस तरीके और इस्लाम कबूल करने को लेकर दलित बहुजन आंदोलन ने भी कई सवाल खड़े करके उन्हें इस लड़ाई में अकेला छोड़ दिया है।</div>
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दरअसल विगत कुछ दिनों से दलित समुदाय के युवा सोशल मीडिया के ज़रिये उमराव सालोदिया को मुख्य सचिव बनाने की पुरजोर मांग कर रहे थे।इन उत्साही अम्बेडकर अनुयायियों को उमराव सालोदिया के इस आकस्मिक और एकाकी निर्णय ने निराश कर दिया है।अब तक उनके पक्ष में खड़े लोग ही अब पूंछ रहे है कि उमराव सालोदिया उमराव गौतम क्यों नहीं हुए ? जिस अम्बेडकर की वजह से वे इतने बड़े पद तक पंहुचे उनका मार्ग क्यों नहीं लिया खान साहब ने ?</div>
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दलित बहुजन आंदोलन को इस्लाम से ना तो परहेज़ है और ना ही कोई दिक्कत ,परेशानी उमराव सालोदिया के तरीके और निर्णय से है। बिना संघर्ष किये ही उनके नौकरी छोड़ने के निर्णय को पलायन माना जा रहा है तथा बुद्ध धर्म नहीं अपनाने की कड़ी आलोचना हो रही है।</div>
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दलित युवा सोशल मीडिया पर बहस छेड़े हुए है कि अब वे दलितों की समानता के मिशन के लिए काम करेंगे अथवा दीन की तब्लीग के लिए जमाती बन जाएंगे। यह भी प्रश्न उठाया जा रहा है कि अगर उनके साथ नौकरशाही में रहते हुए लंबे अरसे से अन्याय व भेदभाव हो रहा था तो वे इतने समय तक खामोश क्या सिर्फ मुख्य सचिव बनने की झूठी आशा में थे ? यहाँ तक पूंछा जा रहा है कि क्या अगर उन्हें चीफ सेकेट्री बना दिया जाता तो उनकी नज़र में हिन्दू धर्म समानता का धर्म हो जाता ? अब लोग यह भी जानना चाह रहे है कि क्या उन्होंने बौद्ध धर्म को पढ़ा है ?</div>
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जो उमराव सालोदिया को जानते है उनके मुताबिक वे कभी भी आंबेडकर की मुहिम में शामिल नहीं रहे है और ना ही उन्हें मुक्तिकामी कबीर, फुले, अम्बेडकर की विचारशरणी से कोई मतलब रहा है।यह भी कहा जा रहा है कि उन्हें समाज हित में एक सामूहिक फैसला ले कर नज़ीर स्थापित करनी चाहिए थी ।उन्हें अपने साथ हुए भेदभाव और वंचना के प्रश्न को समाज जागृति का हथियार बनाना चाहिए था मगर वे इससे चूक गए और इसे केवल निजी हित का सवाल बना डाला है।संभवतः उमराव सालोदिया से यह चूक इसलिए हुयी है क्योंकि उनका जुड़ाव समुदाय से लगभग नहीं के बराबर रहा है । वे पूरे सेवाकाल में इन्हीं लोगों के होने में लगे रहे जैसे अधिकांश बड़े दलित अधिकारी करते है।</div>
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यह बात कुछ हद तक सही भी है कि जो अधिकारी और राजनेता समाज से कट कर जीते है फिर उन्हें अपनी लड़ाई अक्सर अकेले ही लड़नी होती है और फिर वे ऐसे ही अदूरदर्शी निर्णय ले कर अपनी तथा अपने वर्ग की किरकिरी करा बैठते है।</div>
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बेहतर होता कि उमराव सालोदिया इस लड़ाई को थोडा पहले शुरू करते और अंत तक लड़ते ,मगर उन्होंने योद्धा बनने के बजाय भगौड़ा बनना स्वीकार किया है ,जिसका दलित बहुजन आंदोलन ने स्वागत करने से साफ इंकार कर दिया है।अब दलित किसी धर्म में मुक्ति नहीं देखते,क्योंकि उन्हें मुक्ति संघर्ष में दिखाई देती है पलायन में नहीं ।</div>
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- भंवर मेघवंशी</div>
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( लेखक स्वतन्त्र पत्रकार है ,उनसे Bhanwar <a href="mailto:meghwanshi@gmail.com">meghwanshi@gmail.com</a> पर संपर्क किया जा सकता है )</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8979489259607094613.post-48910545592770786292015-12-20T22:12:00.000+05:302015-12-20T22:12:57.083+05:30देश का दुश्मन नहीं है भारतीय मुसलमान !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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देश का दुश्मन नहीं है भारतीय मुसलमान !</div>
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राजस्थान के दौसा में पाकिस्तानी झण्डा फहराये जाने तथा टौंक के मालपुरा में आई एस आई एस के पक्ष में नारे लगाये जाने और जयपुर में आतंकी नेटवर्क खड़ा करने में जुटे मोहम्मद सिराजुद्दीन को गिरफ्तार किये जाने के बाद यह चर्चा बहुत आम हो गई है कि राजस्थान प्रदेश आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने की सबसे सुरक्षित जगह बन गया है ! </div>
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उत्तरप्रदेश के एक स्वयंभू हिन्दू महासभाई कमलेश तिवाड़ी द्वारा हजरत मोहम्मद को अपमानित करने वाली टिप्पणी करने के विरोध में हुये देशव्यापी प्रदर्शन राजस्थान के भी विभिन्न शहरों में आयोजित किये गये. साम्प्रदायिक रूप से अतिसंवेदनशील मालपुरा कस्बे में भी मुस्लिम युवाओं ने अपने बुजुर्गों की मनाही के बावजूद एक प्रतिरोध जलसा किया. हालांकि शहर काजी और कौम के बुजुर्गों ने बिना मशवरे के कोई भी रैली निकालने से युवाओं को रोकने की भरपूर असफल कोशिस की. जैसा कि मालपुरा के निवासी वयोवृद्ध इकबाल दादा बताते है कि -</div>
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<b>'हमने उन्हें मना कर दिया था और शहर काजी ने भी इंकार कर दिया था, मगर रसूल की शान के खिलाफ की गई अत्यंत गंदी टिप्पणी से युवा इतने अधिक आक्रोशित थे कि वे काजी तक को हटाने की बात करने लगे थे '</b></blockquote>
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अंतत: मालपुरा के युवाओं की अगुवाई में 11दिसम्बर को एक रैली जामा मस्जिद से शुरू हो कर कोर्ट होते हुये तहसीलदार को ज्ञापन देने पहुंची. शांतिपूर्ण तरीके से ज्ञापन दे दिया गया। मगर दूसरे दिन सोशल मीडिया में वायरल हुये एक वीडियो के मुताबिक रैली से लौटते हुये मुस्लिम नवयुवकों ने 'आर एस एस- मुर्दाबाद' तथा 'आई एस आई एस- जिन्दाबाद' के नारे लगाये.</div>
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जब मुस्लिम समाज के मौतबीर लोगों को पुलिस के समक्ष यह वीडियो दिखाया गया तो उन्हें पहले तो यकीन ही नहीं हुआ, फिर उन्होंने अपने बच्चों की इस तरह की हरकत के लिये तुरंत माफी मांग ली और मामले को तूल नहीं देने का आग्रह किया, ताकि सौहार्द बरकरार रहे, मगर मालपुरा के हिन्दुवादी संगठन इस मांग पर अड़ गये कि दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उनको तुरंत गिरफ्तार किया जाये. सूबे में सत्तारूढ़ विचारधारा के राजनैतिक दबाव के चलते किसी व्यक्ति विशेष द्वारा बनाये गये विडियो को आधार बना कर मुकदमा दर्ज कर लिया गया तथा सलीमुद्दीन रंगरेज, फिरोज पटवा ,वसीम ,शाहिद ,शाकिर ,अमान तथा वसीम सलीम सहित 7 लोगो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.</div>
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गिरफ्तार किये गये 60 वर्षीय राशन डीलर सलीमुद्दीन के बेटे नईम अख्तर का कहना है कि-</div>
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<b>'मेरे वालिद एक जमीन के सौदे के सिलसिले में कोर्ट गये थे, वे रैली मैं शरीक नहीं थे, मगर पुलिस कहती है कि उनका चेहरा वीडियो में दिख रहा है] जहां नारे लगाये जा रहे थे, इसलिये उन्हें गिरफ्तार किया गया है'</b></blockquote>
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मालपुरा के मुस्लिम समुदाय का आरोप है कि पुलिस जानबूझकर बेगुनाहों को पकड़ रही है. इतना ही नहीं बल्कि धरपकड़ अभियान के दौरान सादात मौहल्ले में पुलिस द्वारा मुस्लिम औरतों के साथ निर्मम मारपीट और बदसलूकी भी की गई.</div>
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पुलिस दमन की शिकार 50 वर्षीय बिस्मिल्ला कहती है कि हम बहुत सारी महिलायें कुरान पढ़कर लौट रही थी, तब घरों में घुसते हुये मर्द पुलिसकर्मियों ने हमें मारा. वह चल फिरने में असहाय महसूस कर रही है. सना ,जमीला ,फहमीदा ,नसीम आदि महिलाओं पर भी पुलिस ने लाठियां भांजी ,किसी को चोटी पकड़ कर घसीटा तो किसी को पैरों और जंघाओं पर मारा एवं भद्दी गालियां दे कर अपमानित किया.पुलिस तीन औरतों-फरजाना ,साजिदा और आरिफा को पुलिस पर पथराव करने और राजकार्य में बाधा उत्पन्न करने के जुर्म में गिरफ्तार कर ले गई.जहां से फरजाना को शांतिभंग के आरोप में पाबंद कर देर रात छोड़ दिया गया ,वहीं आरिफा और साजिदा को जेल भेज दिया गया.</div>
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उल्लेखनीय है कि मालपुरा में आतंकवादी संगठनों के पक्ष में कथित नारे लगाने के वीडियो को वायरल किये जाने के बाद राज्य भर में इसकी प्रतिक्रिया हुई. हिन्दुत्ववादी संगठनों ने कुछ जगहों पर इसके विरूद्ध में ज्ञापन भी दिये और देशविरोधी तत्वों पर अंकुश लगाने की मांग की. जो विडियो लोगो को उपलब्ध है उसे देखने पर ऐसा लगता है कि वापस लौटती रैली में नारे लगाते एक युवक समूह पर ये नारे सुपर इम्पोज किये गये है . क्योंकि नारों की घ्वनि और रैली में चल रहे लोगो के मध्य कोई तारतम्य ही नहीं दिखाई पड़ता है .जिस जगह का यह विडियो है ,वहां के दुकानदारों का जवाब भी स्पष्ट नहीं है ,वे यह तो कहते है कि मालपुरा में पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे आम बात है ,मगर ये नारे कब और कहां लगते है तथा उस दिन क्या उन्होंने आई एस आई एस के पक्ष में नारे सुने थे ? इसका जवाब वे नहीं देते ,इतना भर कहते है की शायद आगे जा कर लगाये हो या कोर्ट में लगा कर आये हो.</div>
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विचार योग्य बात यह है कि ज्ञापन के दिन ना किसी समाचार पत्र ,ना किसी टीवी चैनल और ना ही गुप्तचर एजेंसियों और ना ही पुलिस या प्रशासन को ये नारे सुनाई पड़े .लेकिन अगले दिन अचानक एक वीडियो जिसकी प्रमाणिकता ही संदिग्ध है ,उसे आधार बना कर पुलिस मालपुरा के मुस्लिम समाज को देशप्रेम की तुला पर तोलने लगती है तथा उनमें देशभक्ति की मात्रा कम पाती है और फिर गिरफ्तारियों के नाम पर दमन और दशहत का जो दौर चलता है ,वह दिन ब दिन बढ़ते ही जाता है. हालात इतने भयावह हो जाते है कि लोग अपने आशियानों पर ताले लगा कर दर ब दर भागने को मजबूर कर दिये जाते है.</div>
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मालपुरा का घटनाक्रम चर्चा में ही था कि एक बड़े समाचार पत्र में दौसा के हलवाई मौहल्ले के निवासी 'खलील के घर की छत पर पाकिस्तानी झण्डा' फहराये जाने की सनसनीखेज खबर साया हो जाती है. खलील को तो प्रथम दृष्टया ही देशद्रोही घोषित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई ,मगर दौसा के मुस्लिम समाज ने पूरी निर्भिकता से इस शरारत का मुंह तोड़ जवाब दिया और पुलिस तथा प्रशासन को बुलाकर स्पष्ट किया कि यह चांद तारा युक्त हरा झण्डा इस्लाम का है ,ना कि पाकिस्तान का ! पुलिस अधीक्षक गौरव यादव को इस उन्माद फैलाने वाली हरकत करने की घटना पर स्पष्टीकरण देना पड़ा तथा उन्होनें माना कि यह गंभीर चूक हुई है ,एक धार्मिक झण्डे को दुश्मन देश का ध्वज बताना शरारत है. मुस्लिम समुदाय की मांग पर चार मीडियाकर्मियों के विरूद्ध मुकदमा दर्ज किया गया और खबर लिखने वाले पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया गया. खबर प्रकाशित करने वाले मीडिया समूह ने इसे पुलिस की नाकामी करार देते हुये स्पष्ट किया कि उनकी खबर का आधार पुलिस द्वारा दी गई सूचना ही थी ,पुलिस ने अपनी असफलता छिपाने की गरज से मीडिया के लोगों को बलि का बकरा बना दिया है.</div>
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जैसा कि इन दिनों ईद मिलादुन्नबी की तैयारियों के चलते घरों पर चांद तारे वाला हरा झण्डा लगभग हर जगह लगा हुआ दिखाई पड़ जाता है , उसे पाकिस्तानी झण्डे के साथ घालमेल करके मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार का अभियान चलाया जा रहा है .</div>
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भीलवाड़ा में पिछले दिनों एक मुस्लिम तंजीम के जलसे के बाद ऐसी ही अफवाह उड़ाते एक शख्स को मैने जब चुनौती दी कि वह साबित करे कि जिला कलक्ट्रेट पर प्रदर्शन में पाकिस्तानी झण्डा लहराया गया है तो वह माफी मांगने लगा. इसी तरह फलौदी में पाक झण्डे फहराने सम्बंधी वीडियो होने का दावा कर रहे एक व्यक्ति से विडियो मांगा गया तो उसने ऐसा कोई वीडियो होने से ही इंकार कर दिया. तब ये कौन लोग है जो संगठित रूप से ' पाकिस्तानी झण्डे ' के होने का गलत प्रचार कर रहे है. यह निश्चित रूप से वही अफवाह गिरोह है जो हर बात को उन्माद फैलाने और दंगा कराने में इस्तेमाल करने में महारत हासिल कर चुका है.</div>
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इन कथित राष्ट्रप्रेमियों को मीडिया की बेसिर पैर की खबरें खाद पानी मुहैया करवाती रहती है. भारत का कारपोरेट नियंत्रित जातिवादी मीडिया लव जिहाद , इस्लामी आतंतवाद ,गौ तस्करी ,पाकिस्तानी झण्डा ,सैन्य जासूसी और आतंकी नेटवर्क के जुमलों के आधार पर चटपटी खबरें परोस कर मुस्लिम समुदाय के विरूद्ध नफरत फैलाने के विश्वव्यापी अभियान का हिस्सा बन रहा है . आतंकवाद की गैर जिम्मेदाराना पत्रकारिता का स्वयं का चरित्र ही अपने आप में किसी आतंकवाद से कम नहीं दिखाई पड़ता है. हद तो यह है कि हर पकड़ा ग़या 'संदिग्ध' मुस्लिम दूसरे दिन 'दुर्दांत आतंकी ' घोषित कर दिया जाता है और उसका नाम 'अलकायदा' 'इंडियन मुजाहिद्दीन ' 'तालिबान ' अथवा 'इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एण्ड सिरिया ' से जोड़ दिया जाता है. आश्चर्य तो तब होता है जब मीडिया गिरफ्तार संदिग्ध को उपरोक्त में किसी एक आतंकी नेटवर्क का कमाण्डर घोषित करके ऐसी खबरें प्रसारित व प्रकाशित करता है , जैसे कि सारी जांच मीडियाकर्मियों के समक्ष ही हुई हो. अपराध सिद्ध होने से पूर्व ही किसी को आतंकी घोषित किये जाने की यह मीडिया ट्रायल एक पूरे समुदाय को शक के दायरे में ले आई है. इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि आज इस्लाम और आतंकवाद को एक साथ देखा जाने लगा है. इसी दुष्प्रचार का नतीजा है कि आज हर दाढ़ी और टोपी वाला शख्स लोगों की नजरों में 'संदिग्ध आतंकी ' के रूप में चुभने लगा है.</div>
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हाल ही में जयपुर में इण्डियन ऑयल कार्पोरेशन के मार्केटिंग मैनेजर सिराजुद्दीन को 'एन्टी टेरेरिस्ट स्क्वॉयड' ने आई एस आई एस के नेटवर्क का हिस्सा होने के आरोप में गिरफ्तार किया .मीडिया के लिये यह एक महान उपलब्धि का क्षण बन गया. पल पल की खबरें परोसी जाने लगी-" आतंकी नेटवर्क का सरगना सिराजुद्दीन यहां रहता था ,यह करता था ,वह करता था.सोशल मीडिया के जरिये 13 देशों के चार लाख लोगों से जुड़ा था ,अजमेर के कई युवाओं के सम्पर्क में था.सुबह मिस्र ,इंडोनेशिया जैसे देशों में रिपोर्ट भेजता था ,तो शाम को खाड़ी देशों तथा दक्षिणी अफ्रिकी देशों को रिपोर्ट भेजता था.फिदायनी दस्ते तैयार कर रहा था.आदि इत्यादि " </div>
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दस दिन आतंक की खबरों का बाजार गर्म रहा ,सिराजुद्दीन को इस्लामिक स्टेट का एशिया कमाण्डर घोषित कर दिया गया ,जबकि जांच जारी है और जांच एजेन्सियों की और से इस तरह की जानकारियों का कोई ऑफिशियल बयान जारी नहीं हुआ है.गिरफ्तार किये गये मोहम्मद सिराजुद्दीन के पिता गुलबर्गा कर्नाटक निवासी मोहम्मद सरवर कहते है कि उनका बेटा पक्का वतनपरस्त है ,वह अपने मुल्क के खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकता है.सिराजुद्दीन की पत्नि यास्मीन के मुताबिक-</div>
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<b>' उसने कभी भी उसको कुछ भी रहस्यमय हरकत करते हुये नहीं देखा ,वह एक नेक धार्मिक मुसलमान के नाते लोगो की सहायता करनेवाला इंसान है. उसके बारे में यह सब सुनकर मैं विश्वास ही नहीं कर पा रही हूं '</b></blockquote>
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खैर ,सच्चाई क्या है , इसके बारे में कुछ भी कयास लगाना अभी जल्दबाजी ही होगी और जिस तरह का हमारी खुफिया एजेन्सियां ,पुलिस और आतंकरोधी दस्तों का पूर्वाग्रह युक्त साम्प्रदायिक व संवेदनहीन चरित्र है ,उसमें न्याय या सत्य के प्रकटीकरण की उम्मीद सिर्फ एक मृगतृष्णा ही है.यह देखा गया है कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में बरसों बाद 'कथित आतंकवादी' बरी कर दिये जाते है ,मगर तब तक उनकी जवानी बुढ़ापा बन जाती है.परिवार तबाह हो चुके होते है .</div>
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कुछ अरसे से पढ़े लिखे ,सुशिक्षित ,आई टी एक्सपर्ट भारतीय मुसलमान नौजवान खुफिया एजेन्सियों और आतंकवादी समूहों के निशाने पर है ,उन्हें पूर्वनियोजित योजना के तहत तबाह किया जा रहा है. इस तबाही या दमन चक्र के विरूद्ध उठने वाली कोई भी आवाज देशद्रोह मान ली जा रही है ,इसलिये राष्ट्र राज्य से भयभीत अल्पसंख्यक समूह अब बोलने से भी परहेज करने लगा है और बहुसंख्यक तबका मीडियाजनिक विभ्रमों का शिकार हो कर राज्य प्रायोजित दमन को 'उचित' मानने लगा है.जो कि अत्यंत निराशाजनक स्थिति है.</div>
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राजस्थान में गोपालगढ़ में मुस्लिम नरसंहार के आरोपी खुलेआम विचरण करते है.नौगांवा का होनहार मुस्लिम छात्र आरिफ जिसे पुलिस ने घर में घुसकर एके सैंतालीस से भून डाला ,उसके हत्यारे पुलिसकर्मियों को सजा नहीं मिलती है.भीलवाड़ा के इस्लामुद्दीन नामक नौजवान की जघन्य हत्या करने वाले हत्यारों का पता भी नहीं चलता है.गौ भक्तों द्वारा पीट पीट कर मार डाले गये डीडवाना के गफूर मियां के परिवार की सलामती की कोई चिन्ता नहीं करता है.हर दिन होने वाली साम्प्रदायिक वारदातों की आड़ में मुस्लिमों को लक्षित कर दमन चक्र निर्बाध रूप से जारी है.कहीं भी कोई सुनवाई नहीं है.लोग थाना ,कोर्ट कचहरियों में चक्कर काटते काटते बेबसी के कगार पर है और उपर से शौर्यदिवस के जंगी प्रदर्शनों में 'संघ में आई शान -मियांजी जाओ पाकिस्तान ' या ' अब भारत में रहना है तो हिन्दु बन कर रहना होगा ' जैसे नारे जख्मों पर नमक छिड़क रहे है.</div>
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हर दिन दूरियां बढ़ रही है,बेलगाम बयानबाजी ,दिन प्रतिदिन गांव गांव में बढ रहे संचलन और हथियारों को लहराती हुई रैलियां किसी गृहयुद्ध के बीज बोती दिख रही है.</div>
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आश्चर्य की बात तो यह है कि हम अपना घर नहीं सम्भाल पा रहे है ,अपने ही लोगों का भरोसा नहीं जीत पा रहे है और हमारे रक्षामंत्री अमेरिका की सैर से लौट कर कह रहे है कि-संयुक्त राष्ट्र कहेगा तो हमारी सेना "इस्लामिक स्टेट" से लड़ने को तैयार है .समझ नहीं आता कि हम आ बैल मुझे मार का काम क्यों करना चाहते है. हमें समझना होगा कि हथियारों का सौदागर अमेरिका कभी किसी का यार नहीं हुआ है.उसके बहकावे में आकर हमें किसी युद्ध में अपनी सेना को झौंकने की गलती क्यों करनी चाहिये ? हम अपने इर्द गिर्द के सभी मुल्कों को वैसे भी दुश्मन बना ही चुके है. हाल ही में हमने अपनी असफल विदेश नीति के चलते नेपाल जैसे स्वभाविक पड़ौसी मित्र तक को अपना विरोधी और चीन को दोस्त बना डाला है .अब हम क्या सारी मुस्लिम दुनिया को भी अपना दुश्मन बना लेंगे ? गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि कहीं हम अमेरिका जैसे देशों के बिछाये जाल में तो नहीं फंसते जा रहे है ? हमारा अमेरिकी प्रेम हमें डुबो भी सकता है .स्थिति यह होती जा रही है कि वाशिंगटन ही पूरा विमर्श तय कर रहा है. इस्लामिक आतंकवाद जैसी शब्दावली से लेकर किनसे लड़ना है और कब लड़ना है ? <b>ईराक से लेकर अफगानिस्तान तक और सिरिया ये लेकर लीबिया तक आतंकी समूहों का निर्माण ,उनके सरंक्षण-संवर्धन में अमेरिका की हथियार इंडस्ट्री और सत्ता सब लगे हुये है .वैश्विक वर्चस्व की इस लड़ाई में पश्चिम का नया दुश्मन मुसलमान है ,मगर भारतीय राष्ट्र राज्य के लिये मुसलमान दुश्मन नहीं है .वे देश के सम्मानित नागरिक है.राष्ट्र निर्माण के सारथी है ,उनसे दुश्मनों जैसा सलूक बंद होना चाहिये .उनके देशप्रेम पर सवालिया निशान लगाने की प्रवृति से पार पाना होगा.झण्डा ,दाढ़ी ,टोपी ,मदरसे ,आबादी ,मांसाहार जैसे कृत्रिम मुद्दे बनाकर किया जा रहा उनका दमन रोकना होगा.उन्हें न्याय और समानता के साथ अवसरों में समान रूप से भागीदार बनाना होगा ,ताकि हम एक शांतिपूर्ण तथा सुरक्षित विकसित राष्ट्र का स्वप्न पूरा कर सकें .</b></div>
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- भँवर मेघवंशी </div>
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( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है , <a href="mailto:bhanwarmeghwanshi@gmail.com">bhanwarmeghwanshi@gmail.com</a> पर सम्पर्क किया जा सकता है</div>
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डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाhttp://www.blogger.com/profile/15100263987556468191noreply@blogger.com0