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Wednesday, April 27, 2016

बुद्ध और बाबा को भगवान बनाने वाले वंचित वर्ग के पक्के दुश्मन हैं।

बुद्ध और बाबा को भगवान बनाने
वाले वंचित वर्ग के पक्के दुश्मन हैं।
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
पिछले एक-डेढ़ वर्ष के दौरान देश के अनेक राज्यों में दर्जनों कार्यक्रमों, सभाओं और कार्यशालाओं में शामिल होने का अवसर मिला। जितने भी आयोजन अजा के नेतृत्व में सम्पन्न हुए तकरीबन सभी में बुद्ध और बाबा साहब की वन्दना और गुणगान इस प्रकार से किया गया, मानो ये दोनों व्यक्ति इंसान नहीं साक्षात मनुवादी बामणों के ईश्वर हैं। अनेक जगह पर तो दोनों महापुरुषों की ईश्वर की भाँति मूर्तियां लगायी जाकर पूजा अर्चना की जा रही है। नियमित रूप से दीपक या वल्व या केंडल का प्रकाश किया जा रहा है।

लेकिन एक भी आयोजन में बुद्ध की वैज्ञानिक विचारधारा, तर्क तथा सन्देह की महत्ता और बाबा साहब के संवैधानिक ज्ञान की तनिक भी चर्चा नहीं की गयी! बाबा का खूब गुणगान किया जाता है, लेकिन बाबा के संवैधानिक योगदान पर चर्चा करना तो दूर संविधान में अंतर्निहित प्रावधानों के बारे एक शब्द तक नहीं बोला जाता। आयोजनों का सीधा और एक मात्र मकसद बुद्ध और बाबा को भगवान के रूप में स्थापित करना है।

दुःखद आश्चर्य कि ऐसे आयोजनों को 85 से 90 फीसदी वंचित आबादी के आयोजन बताकर प्रचारित तो खूब किया जाता है, लेकिन इनमें 90 से 95 फीसदी लोग केवल अजा के ही होते हैं। सामाजिक न्याय के बजाय आयोजनों को बुद्ध धर्म प्रचार के आयोजन बनाया जा रहा है। केवल यही नहीं, इन आयोजनों में हिन्दू धर्म और हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में हिन्दुओं की दृष्टि से घृणित और असहनीय भाषा उपयोग की जाती है। जिसके कारण रामायण, गीता, भागवत आदि का पाठ करवाकर देवलोक की आशा लगाये बैठे अजा, अजजा और ओबीसी के लोग इन आयोजनों में चाहकर भी शामिल नहीं होते हैं। बुद्ध वन्दना के कारण मुस्लिम शामिल नहीं होते या मन मारकर फॉर्मेलिटी करते हैं।

कुल मिलाकर आयोजन कागजी तौर पर ही कामयाब होते हैं या केवल एक राजनैतिक जुंडली के इरादों तक सीमित रहते हैं। इस कारण बकवास वर्ग के लिए बुद्ध और बाबा के मिशन को भगवान से जोड़कर भटकाने का अवसर मिल चुका है। जिसके लिए ऐसे आयोजक जिम्मेदार हैं। एक और तो अजा, ओबीसी और आदिवासी वर्ग को हिन्दू शिकंजे से मुक्ति की बात की जाती हैं और दूसरी ओर ज्योतिबा फ़ूले, बिरसा मुंडा, बाबा साहब, जयपाल सिंह मुंडा, पेरियार, कांसीराम जैसे महापुरुषों के सामाजिक न्याय, समानता, सामान हिस्सेदारी, अंधश्रद्धा निर्मूलन जैसे ऐतिहासिक और अविस्मरणीय प्रयासों को इन आयोजनों में पलीता लगाया जा रहा है। सब कुछ बर्बाद किया जा रहा है।

क्या ऐसे आयोजक इतनी सी बात नहीं समझना चाहते कि बुद्ध और बाबा भगवान नहीं केवल इंसान थे, महान इंसान थे। जिनके अनेक बड़े कार्य वंचित वर्ग के लिए तभ ही उपयोगी होंगे, जबकि इनको भगवान नहीं इंसान माना जाएगा और इनके आचरण, निर्णयों और कार्यों की आज के संदर्भ में खुलकर समीक्षा करने की आजादी होगी। अन्यथा ऐसे आयोजनों के चलते वंचित वर्ग कभी भी वास्तव में एकजुट नहीं हो सकेगा। सामाजिक न्याय की लड़ाई हम कभी नहीं जीत पाएंगे और बकवास वर्ग यही चाहता है।

यही नहीं, बल्कि इन्हीं कारणों से बुद्ध और बाबा साहब को केवल अजा तक सीमित किया जा चुका है। बाबा साहब का विश्वव्यापी पैमाना ऐसे आयोजनों के कारण दलित दृष्टि से मापा जाता है। क्या बाबा साहब और बुद्ध यही चाहते थे?
जय भारत। जय संविधान।
नर-नारी, सब एक समान।।
: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
9875066111/27-04-2016/09.16 PM
@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : मूलवासी-आदिवासी अर्थात रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

Monday, April 25, 2016

वंचित वर्ग की मूल समस्या नर्क का भय और स्वर्ग का प्रलोभन

वंचित वर्ग की मूल समस्या नर्क का भय और स्वर्ग का प्रलोभन
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मुझे अकसर वंचित वर्ग के मित्रों के घर जाने के अवसर मिलते रहते हैं। जिनमें अधिकतर अजा, अजजा, ओबीसी और मुस्लिम लोग होते हैं। उनके घर का नजारा देखकर कोई नहीं कह सकता कि उनको दरिद्रता, शोषण, विभेद और गैर-बराबरी से आजादी का दर्द है।

जय भीम, जय आदिवासी जैसी कथित क्रांति के नारे बोलकर स्वागत करने वालों के घरों के प्रवेश द्वार पर गणेश विराजमान हैं। मुख्य द्वार पर नींबू मिर्ची लटकी मिलती हैं। घरों में बामणवादी पूजा पद्धति के सभी ढोंग दिखाई देते हैं। ओबीसी के लोग तो इनमें आकंठ दूबे हुए हैं। मुस्लिम धर्म के नाम पर जितने अंधभक्त और अंधश्रद्धा रखते हैं, उसकी अन्य किसी से तुलना नहीं की जा सकती।

जो लोग सोशल मीडिया पर बुद्ध-बुद्ध और नमो बुद्धाय चिल्लाते हैं। उनके घरों पर बुद्ध की वन्दना के नाम पर, बुद्ध को भगवान बना कर बामणवादी व्यवस्थानुसार पूजा-अर्चना जारी है। अब तो बुद्ध की मूर्ती के साथ बाबा साहब की मूर्ती भी लगती जा रही है। जो बुद्ध मूर्ती पूजा को नकारते हैं और विज्ञान की बात करते हैं। उनको ही भगवान बनाया जा रहा है। इसके बाद भी इनके परिवारों बामणवादी भगवानों से भी पूर्ण मुक्ति नहीं मिली है। इनके घर भी दुर्गा, हनुमान, गणेश, कृष्ण, राम और शिवजी बिराजे मिलेंगे। ऐसे ही ढोंगियों के कारण बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित किया जा चुका है और संघ की पूर्ण तैयारी है कि बाबा साहब को भी विष्णु अवतारी घोषित करके बाबा भक्तों को पूर्णत: मनुवादी कैद के शिकंजे में बन्द रखा जावे।

वंचित वर्ग के डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर तक अंधश्रद्धा में आकण्ठ दूबे हुए हैं। राजस्थान का डूंगरपुर-बांसवाड़ा जो भील आदिवासी बहुल क्षेत्र है, वहां के शिक्षित और सम्पन्न भील आदिवासी वैदिक व्यवस्था को अपनाने में गौरव का अनुभव करते हैं और आदिकाल से प्रचलित वधुमूल्य प्रथा के स्थान पर दहेज को बढ़ावा दे रहे हैं। बामण को बुलाकर वैदिक रीति से सप्तपदी अनुसार फेरे सम्पन्न करवाकर विवाह होने लगे हैं। पूर्वी राजस्थान के मीणा आदिवासी तो अपने आप को वैदिक व्यवस्था के संरक्षक मानते हैं। उनके लिए उक्त सब के साथ साथ भागवत कथा और रामायण पाठ तो जैसे मोक्ष का मार्ग है।

कुल मिलाकर सारा खेल नर्क के भय और स्वर्ग के प्रलोभन पर टिका हुआ है। जब तक वंचित वर्ग इस मोहपाश में बंधा रहेगा। बामनवादी विभेदक व्यवस्था से उसका शोषण कोई नहीं रोक सकता। ऐसे उसे बराबरी नहीं मिल सकती। जिसका मूल है-अशिक्षा। हमारे लोग डिग्रियां तो हासिल कर रहे हैं, लेकिन पूर्णत: अशिक्षित हैं। उनको जीवन की वास्तविकता का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं हैं। जब तक जीवनोपयोगी शिक्षा नहीं मिलेगी, वंचित समाज मनुवादी शिकंजे से मुक्त नहीं हो सकता। क्योंकि आम व्यक्ति कथित शिक्षित और बड़े लोगों की ओर देखकर आगे बढ़ता है।
: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
9875066111/25-04-2016/06.11 AM
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