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Tuesday, March 5, 2013

भारतीय न्याय व्यवस्था पर श्वेत-पत्र

उदारीकरण से देश में सूचना क्रांति, संचार, परिवहन, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में सुधार अवश्य हुआ है किन्तु फिर भी आम आदमी की समस्याओं में बढ़ोतरी ही हुई है| आज भारत में आम नागरिक की जान-माल-सम्मान तीनों ही सुरक्षित नहीं हैं| ऊँचे लोक पदधारियों को सरकार जनता के पैसे से सुरक्षा उपलब्ध करवा देती है और पूंजीपति लोग अपनी स्वयं की ब्रिगेड रख रहे हैं या अपनी सम्पति, उद्योग, व्यापार की सुरक्षा के लिए पुलिस को मंथली, हफ्ता या बंधी देते हैं| छोटे व्यावसायी संगठित रूप में अपने सदस्यों से उगाही करके सुरक्षा के लिए पुलिस को धन देते हैं और पुलिस का बाहुबलियों की तरह उपयोग करते हैं| अन्य इंस्पेक्टरों-अधिकारियों की भी वे इसी भाव से सेवा करते हैं| व्यावसायियों को भ्रष्टाचार से वास्तव में कभी कोई आपति नहीं होती, जैसा कि भ्रष्टाचार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधिपति ने कहा है, वे तो अपनी वस्तु या सेवा की लागत में इसे शामिल कर लेते हैं और इसे अंतत: जनता ही वहन करती है|

Thursday, March 29, 2012

विरासत में मिला लोकतंत्र

विरासत में मिला लोकतंत्र
 -सचिन कुमार जैन , मध्यप्रदेश 

ब्रिटिश राज द्वारा ऐसी कर और राजस्व व्यवस्था बनायी गयी, जिनसे और आसानी से यहाँ के संसाधनों को लूटा जा सके। ऐसी शिक्षा व्यवस्था बनायी गयी जिससे बंधुआ समाज की स्थापना की जा सके, लोग विचार हीन हो जाएँ और उनकी सवाल करने की क्षमता खत्म कर दी जाए। भय का ऐसा माहौल बने कि भुखमरी होने पर भी लोग विद्रोह करने के बारे में ना सोचें. ऐसी थीं उनकी मंशाएं, तो स्वाभाविक है कि उनके लिए कानून और व्यवस्था के कुछ दूसरे ही मायने स्थापित हो जाते हैं। न्याय उनकी व्यवस्था का चरित्र हो ही नहीं

Saturday, August 27, 2011

अन्ना ब्राह्मणवादी!

उन्हें अन्ना हजारे का रवैया बहुत गहरे तक ब्राह्मणवादी लगता है। शराब, तंबाकू यहां तक कि केबल टीवी पर वहां पाबंदी है। दलित परिवारों को भी शाकाहारी भोजन करने पर मजबूर किया जाता है। जो इन नियमों या आदेशों को तोड़ता है, उसे एक खंबे से बांधकर उसकी पिटाई की जाती है।