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Monday, April 25, 2016

वंचित वर्ग की मूल समस्या नर्क का भय और स्वर्ग का प्रलोभन

वंचित वर्ग की मूल समस्या नर्क का भय और स्वर्ग का प्रलोभन
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मुझे अकसर वंचित वर्ग के मित्रों के घर जाने के अवसर मिलते रहते हैं। जिनमें अधिकतर अजा, अजजा, ओबीसी और मुस्लिम लोग होते हैं। उनके घर का नजारा देखकर कोई नहीं कह सकता कि उनको दरिद्रता, शोषण, विभेद और गैर-बराबरी से आजादी का दर्द है।

जय भीम, जय आदिवासी जैसी कथित क्रांति के नारे बोलकर स्वागत करने वालों के घरों के प्रवेश द्वार पर गणेश विराजमान हैं। मुख्य द्वार पर नींबू मिर्ची लटकी मिलती हैं। घरों में बामणवादी पूजा पद्धति के सभी ढोंग दिखाई देते हैं। ओबीसी के लोग तो इनमें आकंठ दूबे हुए हैं। मुस्लिम धर्म के नाम पर जितने अंधभक्त और अंधश्रद्धा रखते हैं, उसकी अन्य किसी से तुलना नहीं की जा सकती।

जो लोग सोशल मीडिया पर बुद्ध-बुद्ध और नमो बुद्धाय चिल्लाते हैं। उनके घरों पर बुद्ध की वन्दना के नाम पर, बुद्ध को भगवान बना कर बामणवादी व्यवस्थानुसार पूजा-अर्चना जारी है। अब तो बुद्ध की मूर्ती के साथ बाबा साहब की मूर्ती भी लगती जा रही है। जो बुद्ध मूर्ती पूजा को नकारते हैं और विज्ञान की बात करते हैं। उनको ही भगवान बनाया जा रहा है। इसके बाद भी इनके परिवारों बामणवादी भगवानों से भी पूर्ण मुक्ति नहीं मिली है। इनके घर भी दुर्गा, हनुमान, गणेश, कृष्ण, राम और शिवजी बिराजे मिलेंगे। ऐसे ही ढोंगियों के कारण बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित किया जा चुका है और संघ की पूर्ण तैयारी है कि बाबा साहब को भी विष्णु अवतारी घोषित करके बाबा भक्तों को पूर्णत: मनुवादी कैद के शिकंजे में बन्द रखा जावे।

वंचित वर्ग के डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर तक अंधश्रद्धा में आकण्ठ दूबे हुए हैं। राजस्थान का डूंगरपुर-बांसवाड़ा जो भील आदिवासी बहुल क्षेत्र है, वहां के शिक्षित और सम्पन्न भील आदिवासी वैदिक व्यवस्था को अपनाने में गौरव का अनुभव करते हैं और आदिकाल से प्रचलित वधुमूल्य प्रथा के स्थान पर दहेज को बढ़ावा दे रहे हैं। बामण को बुलाकर वैदिक रीति से सप्तपदी अनुसार फेरे सम्पन्न करवाकर विवाह होने लगे हैं। पूर्वी राजस्थान के मीणा आदिवासी तो अपने आप को वैदिक व्यवस्था के संरक्षक मानते हैं। उनके लिए उक्त सब के साथ साथ भागवत कथा और रामायण पाठ तो जैसे मोक्ष का मार्ग है।

कुल मिलाकर सारा खेल नर्क के भय और स्वर्ग के प्रलोभन पर टिका हुआ है। जब तक वंचित वर्ग इस मोहपाश में बंधा रहेगा। बामनवादी विभेदक व्यवस्था से उसका शोषण कोई नहीं रोक सकता। ऐसे उसे बराबरी नहीं मिल सकती। जिसका मूल है-अशिक्षा। हमारे लोग डिग्रियां तो हासिल कर रहे हैं, लेकिन पूर्णत: अशिक्षित हैं। उनको जीवन की वास्तविकता का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं हैं। जब तक जीवनोपयोगी शिक्षा नहीं मिलेगी, वंचित समाज मनुवादी शिकंजे से मुक्त नहीं हो सकता। क्योंकि आम व्यक्ति कथित शिक्षित और बड़े लोगों की ओर देखकर आगे बढ़ता है।
: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
9875066111/25-04-2016/06.11 AM
@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : मूलवासी-आदिवासी अर्थात रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'