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Monday, May 2, 2016

मूलवासी बनाम सवर्ण

मूलवासी बनाम सवर्ण
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
भारत के स्वाभाविक और प्राकृतिक वासी, इस देश के आदिनिवासी और मूलवासी कहे जाते हैं। इन्हें ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने इंडीजीनियस पीपुल कहा है। लेकिन चालाक सवर्ण आर्यों ने जिस प्रकार से अछूत को हरिजन और दलित, आदिवासी को वनवासी, गिरिवासी और जंगली घोषित कर दिया, उसी तर्ज पर आदिनिवासी-मूलवासी को भी मूलनिवासी (भाड़ेदार) बना दिया।

सवर्ण कौन : सबसे पहले हम सवर्ण कौन, इसे ही समझ लें। बाबा साहब डॉ. आंबेडकर के शोध और निष्कर्ष इस विषय में अधिक प्रासंगिक होंगे। शुद्र कौन थे? नामक ग्रन्थ में बाबा साहब ने जो कुछ लिखा है, उसके अनुसार शूद्र प्रारम्भ में सूर्यवंशी आर्य क्षत्रिय वीर यौद्धा थे, लेकिन ब्राह्मणों से युद्ध और वैमनस्यता के कारण बामणों ने उनका उपनयन संस्कार बन्द कर दिया और उनको क्षत्रिय से शूद्र बना दिया। इस प्रकार शुद्र नामक चौथे वर्ण का उद्भव हुआ। बाबा साहब के अनुसार, वर्ण संरचना के समय----भारत में ब्राह्मण, क्षत्रित, वैश्य और शुद्र चार ही वर्ण थे। जिनमें सभी आर्य थे। जिन्हें सवर्ण कहा गया और उस समय के शेष वाशिंदे, अर्थात भारत के मूलवासी-आदिनिवासी अवर्ण, अर्थात, जिनका कोई वर्ण नहीं, कहलाये गये।

यह चार स्तरीय वर्ण व्यवस्था रची गयी उसके तकरीबन एक हजार साल बाद गैर आर्य प्रजातियों का भारत में आगमन हुआ। जैसे हूँण, कुषाण, शक, मंगोल और बाद में मुगल, ईसाई, पारसी, पुर्तगाली आदि। इस प्रकार वर्ण संरचना के बाद में भारत में आने वाले लोगों के वंशज भी अवर्ण ही हुए। जिनमें से शासक जाति होने के बाद भी अंग्रेजों और मुसलमानों को बामणों ने क्षत्रिय नहीं, बल्कि मुसलमानों को म्लेच्छ और अंग्रेजों को फिरंगी नाम दे दिया। जो किसी वर्ण में शामिल नहीं। इस प्रकार फिर से प्रमाणित हुआ कि उक्त चार वर्णों में शामिल प्रजातियों के अलावा भारत के शेष सब अवर्ण श्रेणी में माने गए।

वर्तमान भारत में खुद को शूद्रों के वंशज मानने वाली कुछ सवर्ण आर्य जातियों ने खुद को भारत के असली निवासी और मूल मालिक सिद्ध करने के लिए--मूलवासी-आदिनिवासी शब्द को तोड़-मरोड़कर मूलनिवासी बना डाला और बाबा साहब के निष्कर्षों के विपरीत खुद को असवर्ण घोषित कर दिया। इन लोगों ने कभी भी अपने आप को भारत के इंडीजीनियश पीपुल या आदिवासी नहीं माना। ये कभी भी विश्व आदिवासी दिवस नहीं मनाते, लेकिन शाब्दिक चालबाजी के जरिये वास्तविक मूलवासी शब्द को, कूट रचित मूलनिवासी शब्द के रूप में गढ़कर और समाज को भ्रमित कर के अपने आप को भारत का मूलवासी और मूलमालिक बताने का षड्यंत्र रच डाला।

जबकि वास्तव में इसकी कोई जरूरत ही नहीं थी, क्योंकि खुद को भ्रमवश शूद्र मानने वालों में अनेक जातियां आर्य शूद्रों की नहीं, बल्कि मूलवासियों की ही वंशज हैं। इसके उपरान्त भी कि बाबा साहब ने अछूतों का जो शोधात्मक अध्ययन किया है, उसके अनुसार वर्तमान में अजा में शामिल या कथित रूप से अछूत मानी जाने वाली या बामणों द्वारा अछूत घोषित जातियों में से केवल "चमार" जाति के अलावा अन्य किसी भी जाति के आर्य-शूद्र-वंशीय होने के प्राथमिक आधार नहीं मिलते हैं। चमार जाति के भी शूद्र होने के अकाट्य प्रमाण नहीं हैं, फिर भी वामन मेश्राम और मायावती/बसपा समर्थक समस्त अनु. जातियों को शूद्रवंशी घोषित करके भारत की वास्तविक मालिक मूलवासी जातियों के वर्तमान वंशजों को और ओबीसी, मुस्लिम और ईसाइयों को भी भारत के मूलनिवासी बनाकर भारत के मालिक मूलवासी बनाने के लिए लगातार भ्रम फैला रहे हैं। झूठ फैला रहे हैं।

इस प्रकार उपनयन संस्कार से तिरस्कृत सवर्ण शूद्र्वंशी आर्य भी संघ पर काबिज आर्य ब्राह्मणों की भाँति खुद को भारत के मूल मालिक सिद्ध करने के षड्यंत्र में बराबर शामिल प्रतीत होते हैं। केवल यही नहीं, इन लोगों की ओर से अपने द्वारा गढ़े गए झूठ और बाबा साहब के महत्वपूर्ण शोधों को असत्य सिद्ध करने के लिए किसी (सम्भवत: इन्हीं के द्वारा) बनावटी और प्रायोजित डीएनए रिपोर्ट का भी आधार लिया जा रहा है। जबकि खुद को शुद्र बताने वाले यह क्यों भूल जाते हैं कि जिस देश में बामणों द्वारा हजारों सालों तक शूद्रों की नवविवाहिता स्त्रियों से यौनि पवित्र संस्कार के नाम पर प्रथम सम्भोग किया जाता रहा था और भारत में विवाहेत्तर सम्बंधों को कटु सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। जिनसे बामणों और गैरवर्णीय/गैर जातीय मर्दों की औलादें शूद्रों सहित सभी वर्णों में जन्मती रही होंगी, इससे इनकार करना असम्भव है। ऐसे में वर्तमान में डी इन ए की प्रामाणिकता अप्रासंगिक, असम्भव और अकल्पनीय है।

इसके अलावा भारत में नस्लीय भेद नहीं, बल्कि जन्मजातीय विभेद मूल समस्या है, जिसका स्थायी और व्यावहारिक समाधान प्रायोजित तरीके से मूलवासी को मूलनिवासी बनाना या बनावटी डीएनए रिपोर्ट नहीं, बल्कि समान संवैधानिक भागीदारी और राष्ट्रीय संसाधनों में हिस्सेदारी है। जो मूलनिवासी का षड्यंत्र फ़ैलाने से नहीं, बल्कि संवैधानिक और मूलवासी हकों की प्राप्ति से ही सम्भव है। जिसके लिए वंचित समाज को गुमराह करने की नहीं, बल्कि उनको सजग और जागरूक बनाना पहली और अंतिम जरूरत है। जबकि इस दिशा में कुछ नहीं हो रहा है। इसके विपरीत बुद्ध और भीम वन्दना गायी जाकर इनकी पूजा की जा रही हैं। जो मनुवाद का पोषण कर रही हैं।

अंत में यही कहा जा सकता है कि मूलवासियों को यदि अपने प्राकृतिक और मौलिक हक पाने हैं तो आर्य-सवर्ण-षड्यंत्रकारियों से भारत की सम्पूर्ण व्यवस्था को मुक्त करना होगा।

जय भारत। जय संविधान।
नर-नारी, सब एक समान।।
: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
9875066111/02-05-2016/02.21 AM
@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : मूलवासी-आदिवासी अर्थात रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

Wednesday, March 9, 2016

रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया : मूलवासी-आदिवासी
समस्त प्रजातियों को एकजुट होने की जरूरत है!!
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
भारत के मूलमालिक, मूलवासी, आदिनिवासी, जिन्हें आम बोलचाल में आदिवासी कहा जाता है, जबकि संविधानसभा में शामिल मूलवासी प्रतिनिधि जयपाल सिंह मुंडा के तीखे विरोध के बावजूद मूलवासी-आदिवासियों को संविधान में अनुसूचित जन जाति लिखा गया है, जो वर्तमान भारत में सर्वाधिक कष्टमय जीवन जीने को विवश है। जिसका मूल कारण भारत के मूलवासी के साथ संविधान निर्माताओं द्वारा किया गया अन्याय है। मूलवासी प्रजाति का मौलिक अस्तित्व मिटाने के लिए, उसे अजजा नाम दे दिया गया। केवल इतना ही नहीं, बल्कि आदिनिवासी जो हकीकत में रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया हैं, उनकी अनेक प्रजातियों को षड्यंत्र पूर्वक संविधान निर्माताओं, केंद्र सरकार और विधायिका ने अजजा, अजा और ओबीसी में विभाजित कर दिया। इस कारण वर्तमान में भारत के मूलमालिक-मूलवासी की खोज करना, मूलवासियों की पहली और अनिवार्य जरूरत है। जिसमें बकवास वर्ग से प्रभावित और भ्रमित कुछ मूलवासी जो खुद को शूद्र मानते हैं, विदेशी मूल की नस्लों के लिए उपयोग में लाये जाने वाले मूलनिवासी शब्द को गढ़कर और मूलवासियों पर थोपकर बलात् व्यवधान पैदा कर रहे हैं। जिनमें बामसेफी वामन मेश्राम प्रमुख व्यक्ति हैं, जो बामणों द्वारा दी गयी शूद्र नामक गाली को सार्वजनिक रूप से अंगीकार कर के, खुद को शूद्रवंशी मान रहे हैं। जबकि बाबा साहब के अनुसार शूद्र सूर्यवंशी आर्य क्षत्रियों के वंशज थे, जिनका उपनयन संस्कार बन्द कर के बामणों ने उनको शूद्र बना दिया। दूसरी और संसार के सबसे बड़े, क्रूर और दुर्दांत हत्यारे आर्य-ब्राह्मण परशुराम ने समस्त क्षत्रियों की 21 बार अभियान चलाकर निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी थी। वहीं बाबा साहब का कहना है कि वर्तमान अजा, दलित और अछूत जातियां ही शूद्र हैं, इस बात का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है। बाबा साहब के उक्त निष्कर्ष का आज तक किसी ने खण्डन नहीं किया है। इससे यह तथ्य स्वत: प्रमाणित होता है कि वर्तमान अजा एवं ओबीसी वर्गों में भी अनेक जातियां शूद्रवंशी या विदेशी मूलनिवासी नहीं, बल्कि अदिनिवासी मूलवासी हैं। जो रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया हैं। आज विभिन्न वर्गों में शामिल समस्त रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया-मूलवासी-आदिवासी जातियों को एकजुट होने की जरूरत है। क्योंकि रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया अर्थात अजा, अजजा और ओबीसी में शामिल हम सभी भारत के मूलवासियों की प्रजातियों को एकजुट होकर अनेक मोर्चों पर लड़ना होगा। मूलवासियों को अनेक विदेशी विचारधाराओं से सतत संघर्ष करना होगा। जिनमें गांधीवादी लोग जो मूलवासी को गिरिवासी कहते हैं। याद रहे गांधी ने भारत का वारिसाना हक प्राप्त करने के लिए कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे निरस्त करके कोर्ट ने निर्णय दिया था कि भारत गांधी या  कांग्रेस का नहीं, बल्कि मूलवासी-आदिवासी का देश है, जिसका वारिसाना हक गांधी और उनकी कांग्रेस को नहीं दिया जा सकता। आर्यवंशी विदेशी लोगों द्वारा प्रतिपादित अमानवीय मनुवादी व्यवस्था के पोषक संघी जो भारत के मूलमालिक आदिवासी को वनवासी कहते हैं। इनसे मुक्ति मूलवासियों की सबसे बड़ी चुनौती है। हमारे की मूलवासियों में शामिल प्रजातियों के कुछ लोग जो बामसेफी प्रभाव में हैं, जबकि बामसेफी जो मूलवासी को मूलनिवासी-विदेशी शूद्रों की औलाद सिद्ध करने में जुटे हुए हैं, ये लोग आज मूलवासी-आदिवासी के विरुद्ध सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण और आत्मघाती कार्य कर रहे हैं। केंद्र सरकार और अनेक राज्य सरकारें जो देश के मूलवासियों के प्राकृतिक हकों को बलपूर्वक छीन रही हैं और प्रतिरोध करने पर मूलवासी को नक्सलवादी घोषित कर रही हैं। अंत में अफसरशाही जो हमेशा व्यवस्था के नाम पर सत्ता की चाटुकारिता करती है, वो भी मूलवासियों के हकों के विरुद्ध जारी षडयन्त्रों में सहायक सिद्ध हो रही है। अत: रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया : मूलवासी-आदिवासी की अजा, अजजा और ओबीसी में शामिल समस्त प्रजातियों को सबसे पहले शीघ्रता से एकजुट होने की जरूरत है!!
जय भारत। जय संविधान।
नर-नारी सब एक समान।।
लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
9875066111/09-03-2016/07.37 AM
@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : मूलवासी-आदिवासी रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।

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Saturday, February 27, 2016

केवल आदिवासी ही भारत के मूलवासी हैं।

केवल आदिवासी ही भारत के मूलवासी हैं।
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
हमारे कुछ मित्र दिन-रात "जय मूलनिवासी" और "मूलनिवासी जिंदाबाद" की रट लगाते नहीं थकते। बिना यह जाने और समझे कि मूलनिवासी का मतलब क्या होता है? साथ ही भारत के 85 फीसदी लोगों को भारत के मूलनिवासी घोषित करके, शेष आबादी ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय को विदेशी बतलाते हैं। आश्चर्य कि इनमें से बहुत से खुद को तर्क के समर्थक महामानव बुद्ध के अनुयायी भी बतलाते हैं, लेकिन इनको व्यवहार में बुद्ध के तर्क के सिद्धांत से परहेज है। तर्क करने वाला इनको मूर्ख, गद्दार और मनुवादियों का एजेंट नजर आता है। मूलनिवासी का नारा देने वाले शीर्ष लोग एक विशेष तबके या विशेष मानसिकता के लोग हैं, जो खुद को बुद्धिजीवियों का शिरोमणि मानते हैं। सबसे बड़ा दुःख तो यह है कि इनका बाबा आंबेडकर या कांशीराम या अन्य किसी के मिशन या सामाजिक न्याय या संविधान के प्रावधानों से कोई सरोकार नहीं है। इनको वंचित वर्ग शूद्रों की समस्याओं से भी कोई मतलब नहीं है। इनका लक्ष्य येनकेन प्रकारेण सत्ता पर कब्जा करना है, जिसके लिये इनको नरेंद्र मोदी का प्रचार करने वाली और बामणों को आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करने वाली मायावती साक्षात देवी नजर आती हैं। आएं भी क्यों नहीं, आखिर मायावती के सहारे पहले की भाँति सत्ता की मलाई मिलने की उम्मीद जो जगी रहती है। इनको बाबा साहब और कांशीराम की संदिग्ध मौत की जांच की मांग करना तो दूर इस बारे में बात करना तक गवारा नहीं है। ऐसे लोग भारत की सत्ता पर कब्जा करने के सपने देखते हैं, जिनको बोलने, लिखने और संवाद करने की तहजीब तक नहीं? हकीकत में ऐसे लोग अभिव्यक्ति की आजादी को कुचल देना चाहते हैं। मूलाधिकारों में इनकी कोई आस्था नहीं। वंचित वर्गों की संख्यात्मक दृष्टि से छोटी-छोटी जातियों के प्रति इनके मन में कोई मान-सम्मान या जगह नहीं। सच में इनका व्यवहार ब्राह्मणों से कई गुना अधिक दुराग्रही और तानाशाही है। इनके लिए वंचित वर्गों के महान लोग, जैसे ज्योतिराव फ़ूले, बिरसा मुंडा, पेरियार, बाबा साहब, कांशीराम आदि के विचार, काम और नाम केवल सत्ता पाने की सीढ़ी मात्र हैं। इनको इतनी सी बात समझ में नहीं आती कि आज भारत का प्रत्येक वह व्यक्ति भारत का मूलनिवासी है, जिसके पास मूलनिवास प्रमाण-पत्र है! ये लोग प्रायोजित और तथाकथित डीएनए को आधार बनाकर तर्क करते हैं, लेकिन हजारों सालों से बामणों और आर्य शासकों के यौनाचार के साथ-साथ विवाहेत्तर यौन सम्बंधों के कार्ब उटप्पन्न वर्णशंकर संतति के कड़वे सच पर विचार, चर्चा और तर्क नहीं करना चाहते। इनका मकसद केवल सत्ता है, सत्ता भी वंचित वर्ग के उद्धार के लिए नहीं, बामणों के साथ समझौता करके माल कमाने और नरेंद्र मोदी का प्रचार करने के लिए चाहिए। सत्ता चाहिये जिससे बामणों के हित में अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम को निलम्बित किया जा सके। संघ के लिए राम मन्दिर और धारा 370 का जो महत्व है, वही इनके लिए मूलनिवासी का अर्थ है। अर्थात लोगों को गुमराह करके वोट बैंक तैयार करना। इसलिए ये लोग सत्ता की खातिर वंचित वर्गों को मूलनिवासी के बहाने लगातार गुमराह कर रहे हैं। मूलनिवासी शब्द के बहाने ये लोग केवल खुद को अर्थात एक विशेष तबके को भारत के मूलवासी घोषित करना चाहते हैं। इनसे मेरा सीधा सवाल है कि यदि वास्तव में इनके पूर्वज भारत के मूलवासी थे तो मूलनिवासी जैसे हल्के शब्द को गढ़ने की क्या जरूरत है? अपने आप को भारत के मूलवासी अर्थात आदिवासी क्यों नहीं मानते? सारा संसार जानता है कि भारत के मूलवासी तो आदिवासी हैं। मूलनिवासी तो प्रत्येक देश के सभी नागरिक होते हैं। ईसाई, पारसी, यहूदी, आर्य-क्षत्रिय-शूद्र, अछूत, दलित, ओबीसी, घुमन्तु, विमुक्त, आदिवासी, हूँण, कुषाण, शक, मंगोल, मुगल, आर्य-ब्राह्मण और वैश्यों सहित सभी के वंशज जो भारत के नागरिक हैं, आज कानूनी तौर पर भारत के मूलनिवासी हैं, लेकिन भारत के मूलवासी नहीं हैं। भारत के मूलवासी केवल भारत के आदिवासी हैं। हाँ यदि इतिहास या अन्य किन्हीं साक्ष्य के मार्फत किन्हीं अन्य जाति, समुदायों के भारत के मूलवासी और आदिवासी होने के प्रमाण प्रकट होते हैं, तो सभी को अपने आप को भारत का आदिवासी मानना चाहिये और आदिवासी एकता को मजबूत करना चाहिए। अन्यथा लोगों को गुमराह करने और बुद्ध के नाम की माला जपने और तर्क से भागने का नाटक बन्द करना चाहिए।

जय आदिवासी। जय मूलवासी।
जय भीम। नमो बुद्धाय।
जय भारत। जय संविधान।
नर-नारी सब एक सामान।।
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', 9875066111/27.02.2016.

Friday, February 12, 2016

'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा वंचित वर्गों की एकता में बड़ी बाधा

'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा
वंचित वर्गों की एकता में बड़ी बाधा
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

वर्तमान में देश की बहुसंख्यक वंचित  मोस्ट MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) आबादी हजारों सालों के जन्मजातीय विभेद, शोषण और उत्पीड़न के कारण हर क्षेत्र में पिछड़ी हुई है। बकवास BKVaS=(B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Vaवैश्य+Sसंघी) वर्ग द्वारा मोस्ट वर्ग के लोगों का कदम—कदम पर उत्पीड़न और शोषण किया जाता रहा है। जिसके लिये बकवास वर्ग की कूटनीति, कुनीति और विभेदक नीति तो मूल कारण है ही, लेकिन मोस्ट वर्ग के समूहों में आपसी एकता तथा सदभावना का नहीं होना भी बहुत बड़ा कारण है। जिसके पीछे अग्रिणी वर्ग द्वारा देश, समाज और दूसरे वर्ग को गुमराह करने की नीति भी मुख्य रूप से जिम्मेदार है। जिसके अनेक कारण हैं। जिसका सबसे सबसे बड़ा कारण है—'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा का सहारा लेकर इतिहास को झुठलाना।

विश्वस्तरीय विद्वान बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेड़कर जी ने गहन अध्ययन, शोध, विश्वसनीय तथ्यों और उपलब्ध अनेकानेक सन्दर्भ ग्रंथों के आधार पर सिद्ध किया है कि प्रारम्भ में आर्यों में त्रिस्तरीय वर्ण व्यवस्था थी। ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य। प्रारम्भ में शूद्र इस त्रिस्तरीय वर्ण व्यवस्था में आर्य—क्षत्रिय वर्ण में शामिल थे। जिनका ब्राह्मणों द्वारा बाकायदा उपनयन संस्कार किया जाता था। उनको यज्ञ करने का अधिकार होता था। उनके अनेकों बड़े—बड़े सूरवीर राजा हुए, जिन्होंने बड़े—बड़े युद्ध किये थे। कालान्तर में ब्राह्मणों से भी उनके अनेक युद्ध हुए, जिनके कारण अन्तत: ब्राह्मणों ने तत्कालीन आर्य—क्षत्रियों का उपनयन संस्कार करना बन्द कर दिया और उनको आर्य—क्षत्रिय वर्ण से गिराकर वैश्य से भी नीचे नये चौथे शूद्र वर्ण में धकेल दिया। जिसके कारण आर्य—क्षत्रियों की ब्राह्मणों द्वारा सामाजिक दुर्गति कर दी। इस प्रकार बाबा साहब के अनुसार शूद्र भारत के मूल​वासी नहीं होकर विदेशी आर्य—क्षत्रियों के वंशज हैं। जबकि बाबा साहब के अनुसार और अनेक दूसरे स्रोतों से प्रमाणित तथ्यों के अनुसार असुर, राक्षस कही/बोली जाने वाली या लिखी गयी भारत की मूलवंशी आदिम जातियों के वंशज हैं। जिन्हें आज आदिवासी लिखा और बोला जाता है, जबकि संविधान निर्माताओं की धोखाधड़ी के चलते वर्तमान में भारत के मूलवंशी, मूलवासी, आदिनिवासी, इंडीजिनियश indigenous प्रजाति को अनुसूचित जनजाति बना दिया गया। जिसके चलते भारत के मूलवासी अन्याय के शिकार हो रहे हैं।

इस प्रकार वर्तमान में अजा एवं अजजा वर्ग में शामिल जातियों का मौलिक उदभव एक नहीं है। आदिवासी भारत के मूलवंशी, मूलवासी, आदिनिवासी, इंडीजिनियश indigenous हैं, जबकि शूद्र विदेशी आर्य—क्षत्रियों के वंशज हैं। इसके उपरान्त भी इतिहास को तोड़—मरोड़कर बामण मेश्राम जैसे शूद्रवंशी लोगों द्वारा बहुसंख्यक वंचित आबादी की मुश्किलों और समस्याओं का समाधान और निराकरण करने का संवैधानिक रास्ता सुझाने के बजाय शूद्रों को भारत की मूलवंशी प्रजाति प्रमाणित करने के मकसद से 'मूलवासी' शब्द से मिलता—जुलता 'मूलनिवासी' शब्द उपयोग में लाकर देश के वंचित लोगों को गुमराह किया जा रहा है। जिसके लिये तथाकथित डीएनए को आधार बनाया जा रहा है। इस डीएनए की मूल रिपोर्ट मुझे आज तक देखने/पढने को नहीं मिली है। यद्यपि इस कथित डीएनए रिपोर्ट में भारत की 'मूलवासी' प्रजाति आदिवासियों के बारे में क्या कुछ निष्कर्ष/रिपोर्ट है, आज तक इस बारे में कोई जानकारी बामण मेश्राम की ओर से प्रकट नहीं की गयी है। इसके उलट वंचित वर्गों का दुर्भाग्य है कि जिस प्रकार से ब्राह्मण—आर्य अपने आप को मूलभारतीय सिद्ध करने के लिये भारत के इतिहास का पुनर्लेखन कर दुष्प्रचार कर रहे हैं, उसी प्रकार से क्षत्रिय—आर्य—शूद्रवंशी बामण मेश्राम भी अपने आप को और शूद्रों को मूलभारतीय सिद्ध करने के लिये 'मूलनिवासी' शब्द और कथित डीएनए रिपोर्ट का अनाप—शनाप प्रचार—प्रसार कर रहे हैं। इन हालातों में देश की बहुसंख्यक वंचित आबादी में एकता कायम होने के बजाय दूरियां पैदा हो रही हैं। इसलिये 'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा वंचित MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) वर्गों की एकता में एक बहुत बड़ी बाधा बन चुकी है। जिसे तत्काल निरस्त किये जाने की जरूरत है। कारण और भी हैं, जिन पर आने वाले दिनों में विचार किया जायेगा।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
9875066111/दि.12.02.2016
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जय भारत! जय संविधान!
नर-नारी सब एक समान!!

@—लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोशिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक), पूर्व रा महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, दाम्पत्य विवाद सलाहकार तथा लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में एकाधिक प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित। वाट्स एप एवं मो. नं. : 9875066111/दि.12.02.2016/08.29 PM
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—निवेदक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'