Friday, February 12, 2016

'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा वंचित वर्गों की एकता में बड़ी बाधा

'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा
वंचित वर्गों की एकता में बड़ी बाधा
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

वर्तमान में देश की बहुसंख्यक वंचित  मोस्ट MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) आबादी हजारों सालों के जन्मजातीय विभेद, शोषण और उत्पीड़न के कारण हर क्षेत्र में पिछड़ी हुई है। बकवास BKVaS=(B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Vaवैश्य+Sसंघी) वर्ग द्वारा मोस्ट वर्ग के लोगों का कदम—कदम पर उत्पीड़न और शोषण किया जाता रहा है। जिसके लिये बकवास वर्ग की कूटनीति, कुनीति और विभेदक नीति तो मूल कारण है ही, लेकिन मोस्ट वर्ग के समूहों में आपसी एकता तथा सदभावना का नहीं होना भी बहुत बड़ा कारण है। जिसके पीछे अग्रिणी वर्ग द्वारा देश, समाज और दूसरे वर्ग को गुमराह करने की नीति भी मुख्य रूप से जिम्मेदार है। जिसके अनेक कारण हैं। जिसका सबसे सबसे बड़ा कारण है—'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा का सहारा लेकर इतिहास को झुठलाना।

विश्वस्तरीय विद्वान बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेड़कर जी ने गहन अध्ययन, शोध, विश्वसनीय तथ्यों और उपलब्ध अनेकानेक सन्दर्भ ग्रंथों के आधार पर सिद्ध किया है कि प्रारम्भ में आर्यों में त्रिस्तरीय वर्ण व्यवस्था थी। ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य। प्रारम्भ में शूद्र इस त्रिस्तरीय वर्ण व्यवस्था में आर्य—क्षत्रिय वर्ण में शामिल थे। जिनका ब्राह्मणों द्वारा बाकायदा उपनयन संस्कार किया जाता था। उनको यज्ञ करने का अधिकार होता था। उनके अनेकों बड़े—बड़े सूरवीर राजा हुए, जिन्होंने बड़े—बड़े युद्ध किये थे। कालान्तर में ब्राह्मणों से भी उनके अनेक युद्ध हुए, जिनके कारण अन्तत: ब्राह्मणों ने तत्कालीन आर्य—क्षत्रियों का उपनयन संस्कार करना बन्द कर दिया और उनको आर्य—क्षत्रिय वर्ण से गिराकर वैश्य से भी नीचे नये चौथे शूद्र वर्ण में धकेल दिया। जिसके कारण आर्य—क्षत्रियों की ब्राह्मणों द्वारा सामाजिक दुर्गति कर दी। इस प्रकार बाबा साहब के अनुसार शूद्र भारत के मूल​वासी नहीं होकर विदेशी आर्य—क्षत्रियों के वंशज हैं। जबकि बाबा साहब के अनुसार और अनेक दूसरे स्रोतों से प्रमाणित तथ्यों के अनुसार असुर, राक्षस कही/बोली जाने वाली या लिखी गयी भारत की मूलवंशी आदिम जातियों के वंशज हैं। जिन्हें आज आदिवासी लिखा और बोला जाता है, जबकि संविधान निर्माताओं की धोखाधड़ी के चलते वर्तमान में भारत के मूलवंशी, मूलवासी, आदिनिवासी, इंडीजिनियश indigenous प्रजाति को अनुसूचित जनजाति बना दिया गया। जिसके चलते भारत के मूलवासी अन्याय के शिकार हो रहे हैं।

इस प्रकार वर्तमान में अजा एवं अजजा वर्ग में शामिल जातियों का मौलिक उदभव एक नहीं है। आदिवासी भारत के मूलवंशी, मूलवासी, आदिनिवासी, इंडीजिनियश indigenous हैं, जबकि शूद्र विदेशी आर्य—क्षत्रियों के वंशज हैं। इसके उपरान्त भी इतिहास को तोड़—मरोड़कर बामण मेश्राम जैसे शूद्रवंशी लोगों द्वारा बहुसंख्यक वंचित आबादी की मुश्किलों और समस्याओं का समाधान और निराकरण करने का संवैधानिक रास्ता सुझाने के बजाय शूद्रों को भारत की मूलवंशी प्रजाति प्रमाणित करने के मकसद से 'मूलवासी' शब्द से मिलता—जुलता 'मूलनिवासी' शब्द उपयोग में लाकर देश के वंचित लोगों को गुमराह किया जा रहा है। जिसके लिये तथाकथित डीएनए को आधार बनाया जा रहा है। इस डीएनए की मूल रिपोर्ट मुझे आज तक देखने/पढने को नहीं मिली है। यद्यपि इस कथित डीएनए रिपोर्ट में भारत की 'मूलवासी' प्रजाति आदिवासियों के बारे में क्या कुछ निष्कर्ष/रिपोर्ट है, आज तक इस बारे में कोई जानकारी बामण मेश्राम की ओर से प्रकट नहीं की गयी है। इसके उलट वंचित वर्गों का दुर्भाग्य है कि जिस प्रकार से ब्राह्मण—आर्य अपने आप को मूलभारतीय सिद्ध करने के लिये भारत के इतिहास का पुनर्लेखन कर दुष्प्रचार कर रहे हैं, उसी प्रकार से क्षत्रिय—आर्य—शूद्रवंशी बामण मेश्राम भी अपने आप को और शूद्रों को मूलभारतीय सिद्ध करने के लिये 'मूलनिवासी' शब्द और कथित डीएनए रिपोर्ट का अनाप—शनाप प्रचार—प्रसार कर रहे हैं। इन हालातों में देश की बहुसंख्यक वंचित आबादी में एकता कायम होने के बजाय दूरियां पैदा हो रही हैं। इसलिये 'मूलनिवासी' की असत्य अवधारणा वंचित MOST=(Minority+OBC+SC+Tribals) वर्गों की एकता में एक बहुत बड़ी बाधा बन चुकी है। जिसे तत्काल निरस्त किये जाने की जरूरत है। कारण और भी हैं, जिन पर आने वाले दिनों में विचार किया जायेगा।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
9875066111/दि.12.02.2016
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जय भारत! जय संविधान!
नर-नारी सब एक समान!!

@—लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोशिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक), पूर्व रा महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, दाम्पत्य विवाद सलाहकार तथा लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में एकाधिक प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित। वाट्स एप एवं मो. नं. : 9875066111/दि.12.02.2016/08.29 PM
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