Showing posts with label समाज. Show all posts
Showing posts with label समाज. Show all posts

Sunday, January 6, 2013

बलात्कार का मनोविज्ञान!

स्त्री की गहन चाह कि कोई पुरुष उसका पागल हो जाए, कि वह इतनी सुंदर है कि किसी को भी पागल कर दे, कि वह इतनी बड़ी जरूरत है कि कोई उसके लिए जान की बाजी लगा दे, बलात्कार के मूल होती है।
लेखक : बनवारी

क्या आपको पता है कि दुनियाभर के मनोवैज्ञानिकों का यह विश्लेषण रहा है कि बलात्कार के मामलों में अधिकांशतः स्त्रियां स्वयं इस तरह की चाह से भरी होती हैं? कहा तो यह तक जाता है कि स्त्री के स्वभाव में होता है कि कोई उसके साथ जोर-जबरदस्ती करे...कोई उसके लिए इतना पागल हो जाए कि बस सब कुछ करने को तैयार हो जाए?

हाल ही में प्रकाशित मनोविज्ञान के एक अध्ययन के अनुसार पिछले तीस सालों में की लगभग 20 शोधों से यह पता चला है कि पचास से अधिक प्रतिशत में स्त्रियां बलात्कार की वासना रखती हैं, चाह रखती हैं। कुछ मनोवैज्ञानिक तो यह तक कहते हैं कि कई बार स्त्री स्वयं ऐसी परिस्थितियां पैदा करती हैं कि उसका बलात्कार हो जाए।

स्त्री की गहन चाह कि कोई पुरुष उसका पागल हो जाए, कि वह इतनी सुंदर है कि किसी को भी पागल कर दे, कि वह इतनी बड़ी जरूरत है कि कोई उसके लिए जान की बाजी लगा दे, बलात्कार के मूल होती है।

यह तो एक मनोवैज्ञानिक सोच है बलात्कार के पीछे।

भारत में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के पीछे एक तो बहुत बड़ा कारण है स्त्रियां लगातार कम हो रही है और पुरुषों की संख्या बढ़ती जा रही है।

महावीर और बुद्ध की शिक्षाओं के बाद भारत में ब्रह्मश्चर्य की शिक्षा ने ऐसा घर कर लिया कि सेक्स बुरी तरह से अपमानित कर दिया गया और सदियों तक हमने भयंकर दमन किया। आज के इस संचार माध्यमों के सहज युग में हर कोई किसी ने किसी बहाने उत्तेजित हो रहा है। सदियों का दमन का ढक्कन तहस-नहस हो रहा है, काम के दमन से काम की अती पर स्वाभाविक ही पैंडुलम डोल रहा है।

जब तक स्त्री को प्रेम नहीं किया जाता, उसे सम्मान नहीं दिया जाता, उसके प्रति संवेदनशील नहीं हुआ जाता, उसे भी एक मानव समझ कर अपनी बराबरी का नहीं माना जाता, बलात्कार जैसी घटनाएं होती रहेगी। यदि स्त्री भोग की ही चीज है तो सहमती या असहमती भोग ही लो बुरा क्या है?

बलात्कार को सख्त कानून से नहीं रोका जा सकता। काम का वेग इतना होता है कि जब यह उद्दाम वेग किसी के सिर पर चढ़ता है तो उस समय उसे कोई कानून नहीं दिखाई देता। एक बार एक वृद्ध वकील साहब जो देश में अंग्रेजों के जमाने से वकालात कर रहे थे, मुझे बता रहे थे कि जितना कानून सख्त होता जाता है उतना ही बीमारी और जटिल हो जाती है। उन्होंने मुझे बताया कि बलात्कार पर सख्त से सख्त कानून के आते-आते, बलात्कार के बाद स्त्रियों की हत्याएं अधिक होने लगी। सबूत मिटाने के लिए हत्या कर दी जाती है।

बलात्कार के लिए एक बेहद स्वस्थ समाज की जरूरत होती है, जहां स्त्री-पुरुष समान हो, उनका मिलना-जुलना सहज हो, सरल हो, उनके बीच रिश्ते बहुत ही पवित्रता के साथ बन सकते हों, सेक्स का दमन जरा भी न हो, इसे एक प्राकृतिक भेंट समझकर उसे स्वीकारा जाए, उसकी निंदा जरा भी न हो।

किसी तल पर जो आदिवासी हैं, पिछड़े हैं, जंगलों में रहते हैं, वे बेहद सहज, सरल व प्राकृतिक जीवन जीते हैं, वहां कभी बलात्कार नहीं होते। बलात्कार आधुनिक सभ्यता, शिक्षा व दमित समाज की देन है।

और हां, यह भी सच है कि अनेक मामलों में स्त्री अपनी मर्जी से संबंध बनाती हैं और दुर्घटनावश पकड़ में आ जाए तो स्वयं को बचाने के लिए बलात्कार का आरोप लगाती है।

बलात्कार एक बहुत ही जटिल मामला है। हमारे न्यूज चैनल्स व राजनैतिक पार्टियां अपने राजनैतिक हितों के लिए जिस तरह से बयान देकर अपनी रोटी सेंक रहे हैं, उससे इस समस्या का कोई निदान नहीं होगा।