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Tuesday, January 10, 2012

भ्रष्टाचार, स्त्री और असंवेदनशीलता

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

गत 23 दिसम्बर को एक समाचार पढने में आया कि जिला शिक्षा अधिकारी इन्दौर के कार्यालय में कार्यरत एक महिला लिपिक ने रिश्‍वत ली और वह रंगे हाथ रिश्‍वत लेते हुए पकड़ी भी गयी| इस प्रकार की खबरें आये दिन हर समाचार-पत्र में पढने को मिलती रहती हैं| इसलिये यह कोई नयी या बड़ी खबर भी नहीं है, लेकिन मेरा ध्यान इस खबर की ओर इस कारण से गया, क्योंकि इस खबर से कुछ ऐसे मुद्दे सामने आये जो हर एक संवेदनशील व्यक्ति को सोचने का विवश करते हैं| पहली बात तो यह कि एक महिला द्वारा एक दृष्टिबाधित शिक्षक से उसके भविष्य निधि खाते से राशि निकालने के एवज में रिश्‍वत की मांग की गयी| शिक्षक ने भविष्य निधि से निकासी का स्पष्ट कारण लिखा था कि वह उसके चार वर्षीय पुत्र का इलाज करवाना चाहता है, जो कि लम्बे समय से किडनी की तकलीफ झेल रहा है|

इतना सब पढने और जानने के बाद भी महिला लिपिक श्रीमती पुष्पा ठाकुर का हृदय नहीं पसीजा| श्रीमती ठाकुर ने भविष्य निधि में जमा राशि को निकालने के लिये प्रस्तुत आवेदन को आपनी टेबल पर दो माह तक लम्बित पटके रखा और आखिर में दो हजार रुपये रिश्‍वत की मांग कर डाली, जो एक बीमार पुत्र के पिता के लिये बहुत ही तकलीफदायक बात थी| जिससे आक्रोशित या व्यथित होकर दृष्टिबाधित पिता ने रिश्‍वत देने के बजाय सीधे लोकयुक्त पुलिस से सम्पर्क किया और श्रीमती पुष्पा ठाकुर को रंगे हाथ गिरफ्तार करवा दिया|

इस मामले में सबसे जरूरी सवाल तो यह है कि भविष्य निधि से निकासी के लिये पेश किये जाने वाले आवेदन दो माह तक लम्बित पटके रहने का अधिकार एक लिपिक को कैसे प्राप्त है? यदि आवेदन प्राप्ति के साथ ही आवेदन को जॉंच कर प्राप्त करने, पावती देने और हर हाल में एक सप्ताह में मंजूर करने की कानूनी व्यवस्था हो तो श्रीमती ठाकुर जैसी निष्ठुर महिलाओं को परेशान शिक्षकों या अन्य कर्मियों को तंग करने का कोई अवसर ही प्राप्त नहीं होगा| क्या मध्य प्रदेश की सरकार को इतनी सी बात समझ में नहीं आती है?

दूसरी बात ये भी विचारणीय है कि स्त्री को अधिक संवेदनशील और सुहृदयी मानने की भारत में जो महत्वूपर्ण विचारधारा रही है, उसको श्रीमती ठाकुर जैसी महिलाएँ केवल ध्वस्त ही नहीं कर रही हैं, बल्कि स्त्री की बदलती छवि को भी प्रमाणित कर रही हैं| इससे पूर्व विदेश विभाग की माधुरी गुप्ता जासूसी करके भी स्त्री की बदलती छवि को प्रमाणित कर चुकी है| यदि ऐसे ही हालात बनते गये तो स्त्री के प्रति पुरुष प्रधान समाज में जो सोफ्ट कॉर्नर है, वह अधिक समय तक टिक नहीं पायेगा|

इन हालातों में पुष्पा ठाकुर और माधुरी गुप्ता जैसी महिलाओं द्वारा स्त्री छवि को तहस-नहस किये जाने से सारी की सारी स्त्री जाति को ही आगे से पुरुष की भांति माने जाने का अन्देशा है| यदि ऐसा हुआ तो भारतीय कानूनों में स्त्री को जो संरक्षण मिला हुआ है, उसका क्या होगा?