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Friday, April 29, 2016

भारत की संयुक्त राष्ट्र संघ में घेराबंदी??

भारत की संयुक्त राष्ट्र संघ में घेराबंदी??
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
इस बात में कोई दो राय नहीं कि वर्तमान भाजपा की केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा का 100 फीसदी नेतृत्व करती है। यह भी सर्वविदित है कि संघ मनुवादी आतंक, जनजातीय विभेद, वर्गवाद, वर्णवाद, जातिवाद, अमानवीयता, साम्प्रदायिकता, अंधश्रद्धा, अंधभक्ति, अंधविश्वास, बामणवाद, सामन्तशाही, भ्रष्टचार, अत्याचार, उत्पीड़न, लिंग भेद, स्त्री अत्याचार जैसी हजारों बुराईयों का पोषक है। अत: ऐसी बुराइयां भारत में अचानक पैदा नहीं हुई हैं, बल्कि सदियों से व्याप्त रही हैं। इसके बावजूद अचानक भारत के मन्दिरों और मस्जिदों/दरगाहों में स्त्रियों के प्रवेश का मुद्दा राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गर्माया रहा है। जिसके लिए देशभर में संघ, मनुवाद, भाजपा, बामणवाद, आदि को कोसा जा रहा है। कोसा जाना भी चाहिए, लेकिन इसके पीछे निहित मकसद को भी समझने की जरूरत है। क्योंकि जो कुछ या जिन बुराईयों को प्रचारित किया जा रहा है, वे न तो अचानक पैदा हुई हैं और न ही नयी हैं और न हीं वर्तमान भाजपा की केंद्र सरकार की दैन हैं। अत: इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं:-

1. संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो पावर प्राप्त करना भारत का दशकों से सपना रहा है। जिसके लिए पिछले 15 वर्षों में बहुत काम किया गया है। ऐसे में भारत को रोकने के लिये विश्व के सामने भारत की छवि की ध्वस्त करना कुछ विश्वव्यापी ताकतों का दुराशय हो सकता है। अत: सम्भव है कि भारत में स्त्रियों के मानवाधिकारों के हनन को मुद्दा बनाकर भारत को घेरने की योजना पर काम हो रहा है। जिसमें प्राथमिक सफलता मिल चुकी है।
2. दूसरा कारण, जिसका भारत को फायदा होगा। वह, यह कि भाजपा को बदनाम करने के लिए प्रोपेगण्डा चलाया जा रहा है।
पहला मुद्दा अत्यंत गम्भीर और विचारणीय है।

जय भारत। जय संविधान।
नर-नारी, सब एक समान।।
: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
9875066111/28-04-2016/10.26 PM
@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : मूलवासी-आदिवासी अर्थात रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

Sunday, April 19, 2015

मनुवाद से मुक्ति, शुरूआत कैसे?

मनुवाद से मुक्ति,  शुरूआत कैसे?
मनुवादी-धार्मिक-अंधविश्वासों के चलते हर दिन सैकड़ों लोग बेमौत मारे जा रहे हैं!
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सोशल मीडिया के मार्फ़त देशभर में मनुवाद के खिलाफ एक बौद्धिक मुहिम शुरू हो चुकी है। जिसका कुछ-कुछ असर जमीनी स्तर पर भी नजर आने लगा है! लेकिन हमारे लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विचारणीय सवाल यह है कि यदि हमें मनुवाद के खिलाफ इस मुहिम को स्थायी रूप से सफल बनाना है तो हमें वास्तव में इस देश के बहुसंख्यक लोगों को और विशेषकर आम लोगों को साथ लेना होगा, जिनको बामसेफ और बसपा वाले बहुजन कहते और लिखते हैं, लेकिन हकीकत में मनुवाद बामसेफ और बसपा के नेतृत्व द्वारा परिभाषित देश के बहुसंख्यक अर्थात बहुजनों के कंधे पर पर ही ज़िंदा है। इसलिए हमें ऐसा सरल और व्यावहारिक रास्ता निकालना होगा, जिससे कि दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक अर्थात सभी अनार्य भारतीय केवल कागजों पर ही नहीं, बल्कि दैनिक व्यवहार में भी मनुवाद के विरुद्ध स्वेच्छा से एकजुट हो सकें, जिसके लिए मनुवाद के विरुद्ध केवल अतिवादी सोच या अतिवादी लेखनी मात्र से कुछ नहीं होगा। बल्कि ऎसी अतिवादी सोच या लेखनी हमें हमारे आम लोगों से दूर भी ले जा सकती है। यह मुहिम दोधारी तलवार जैसी है। मेरा मानना है कि हमें हमारे अनार्य लोगों के साथ सीधा संवाद कायम करना होगा। वातानुकूलित कक्षों से बाहर निकलकर हमें लोगों के बीच जाना होगा, क्योंकि चालाक आर्यों ने मनुवाद को हजारों सालों से धर्म की चासनी में लपेट रखा है। समस्त अनार्य, आर्यों के मनुवादी षड्यंत्र के शिकार होते आये हैं। आज भी मानसिक रूप से हमारे लोग मनुवादियों के गुलाम हैं और सबसे दुखद तो यह है कि उनको इस गुलामी का अहसास ही नहीं है, बल्कि इस मानसिक गुलामी को अनार्य लोग धार्मिक स्वाभिमान और आस्था का प्रतीक मान चुके हैं। उनके अवचेतन मन पर मनुवाद ही धर्म के रूप में स्थापित हो चुका है। हमारे ही लोगों को मनुवाद का विरोध, पहली नजर में धर्म का विरोध नजर आता है, ऐसे में हमें यह विचार करना होगा कि हम किस प्रकार से अपने लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत किये बिना, उनको किस प्रकार से मनुवाद से मुक्ति दिला सकते हैं? क्योंकि यदि हम बिना विचारे मनुवाद और मनुवादी धार्मिक प्रतीकों का सीधा विरोध करते रहे तो ऐसे में सबसे बड़ा खतरा यह है कि आर्य-मनुवादियों तथा अनार्य मनुवादी अंधभक्तों द्वारा हमारी मुहिम को कमजोर करने के लिए हमारे मनुवाद विरोधी सही, सच्चे और तार्किक विचारों को भी हिन्दू धर्म विरोधी करार दिए जाने के लिए पूरे प्रयास किये जायेंगे। बल्कि किये भी जा रहे हैं। जातीय खाप पंचायतों को हमारे खिलाफ खडा किया जा सकता है। जिनमें न तर्क सुने जाते हैं और न ही वहां पर, उनसे न्याय की अपेक्षा की जा सकती है! यही नहीं धर्म के नाम पर हमारे ही लोग हमारे खिलाफ खड़े हो सकते हैं! जिससे हमारी मुहिम पहले दिन से कमजोर हो जाती है। अत: हमको आत्मचिन्तन करना होगा कि मनुवाद के दुश्चक्र को कैसे परास्त किया जाए? इसके लिए हर उस व्यक्ति को जो मनुवाद से आहत है, उसको गहन चिन्तन और मनन करना होगा! यद्यपि मेरा निजी अनुभव है कि मनुवाद से सर्वाधिक आहत मेहतर जाति के लोग तक मनुवाद का खुलकर विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं! लेकिन यह भी सच है कि मनुवाद से मुक्ति के बिना भारत के अनार्यों, मूल निवासियों और वंचित वर्गों के लिए संविधान के अनुसार सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की स्थापना असम्भव है! इसलिए हमें हर हाल में, लेकिन बौद्धिक तरीके से मनुवाद मुक्त समाज की स्थापना के लिए अनेक स्तरों पर लगातार प्रयास करने होंगे! सबसे पहले हम धर्म के नाम पर संचालित अवैज्ञानिक-अंधविश्वासों और स्वास्थ्य के साथ किये जाने वाले खिलवाड़ के प्रति आम लोगों में जागरण लाना होगा! जैसे उदाहरण के लिए हमें हमारे लोगों को समझाना होगा कि-रात दिन मंदिर, मस्जिद या चर्च में रहने वाला पुजारी, मौलवी या पादरी जब बीमार होता है तो वह अपना उपचार करवाने के लिए सीधा डॉक्टर के पास जाता है, जबकि अनार्य अनपढ़ और भोले लोग बीमार होने पर पुजारी, मौलवी या पादरी के पास जाते हैं! जहां इनको-झाड, फूंक, व्रत, भजन, कीर्तन, पाठ, सवामणी, कथा, गंदा, ताबीज आदि उपचार बतलाये जाते हैं और इस प्रकार मनुवादी धार्मिक अन्धविश्वास के चक्कर में हमारे लोग अपनी बीमारी को असाध्य बना लेते हैं! दुष्परिणामस्वरूप बीमारी इतनी असाध्य हो जाती है, जिसका डॉक्टर भी उपचार करने से इनकार कर देते हैं! बीमार की अकाल मौत हो जाती है! लेकिन मनुवादी इसे भी ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करने और बीमार की अकाल मृत्यु पर भी पुण्य-दान करने की सलाह देते हैं! एक कडवी सच्चाई यह भी है कि ऐसे मनुवादी-धार्मिक-अंधविश्वासों के चलते हर दिन सैकड़ों लोग बेमौत मारे जा रहे हैं! ऎसी मौतों के बाद भी मनुवादियों द्वारा हमें बतलाया जाता है कि दान-पुण्य करने से मृतक को मोक्ष मिलेगा और मृत-आत्मा को पाप नीच योनी से मुक्ति मिलेगी! यदि और कुछ नहीं कर सकते तो हम ऎसी पोंगापंथी धूर्त मनुवादी कहानियों से तो हम अपने अनार्य बन्धुओं को बचा ही सकते हैं! शुरूआत में ऐसे प्रयोग मनुवादी शिकंजे से मुक्ति के पुख्ता आधार बन सकते हैं!-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, 19.04.2015

Monday, February 9, 2015

यदि भाजपा मांझी को समर्थन देती है तो मांझी का अत्यंत बुरा अंत तय है।

यदि भाजपा #मांझी को समर्थन देती है तो मांझी का अत्यंत बुरा अंत तय है।

बिहार के सबसे विवादास्पद मुख्यमंत्री बना दिए गए #जीतनराम मांझी जनता दल में शामिल होने से पहले कांग्रेसी हुआ करते थे। वह डॉ. जगन्नाथ मिश्र की राज्य सरकार में राज्यमंत्री भी रहे। जनतादल में बिखराव के बाद में जीतनराम मांझी लालू प्रसाद के साथ गए और राष्ट्रीय जनता दल की सरकार मे मंत्री रहे। फिर वह लालू को छोड़ कर नीतीश के साथ हो गये और उनकी सरकार में मंत्री बने। मुख्य मंत्री बनने से पूर्व तक मध्य बिहार में जीतनराम मांझी की छवि एक सीधे-सादे गैर-विवादास्पद राजनेता की रही है। 

जीतनराम मांझी के बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में लगभग आठ महिने के कार्यकाल को देखें तो अपने दामाद को मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थापित कराने के अलावा उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसे गरिमाहीन या अनैतिक कहा जा सके। दामाद के मामले में भी उन्होंने फ़ौरन कार्रवाई की और उन्हें पदमुक्त कर दिया। 

मनुवादी मीडिया ने मांझी के हर एक सच्चे बयान को विवादित बतलाने और बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। #जनता दल (यू) के नेताओं-विधायकों की मांझी के बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया को भी मीडिया द्वारा ऐसे पेश किया गया, जैसे कि मांझी नीतीश के खिलाफ या सवर्णों और आर्यों के बारे में सच्ची बात बोलकर अपराध कर रहा हैं। 

इस प्रष्ठभूमि में देखा जाए तो बिहार के मुख्‍यमंत्री जीतनराम मांझी का कद केवल बिहार के #महादलितों में ही नहीं, बल्कि बहुत कम समय में देशभर के #दलितों, #पिछड़ों और #आदिवासियों में भी तेजी बढ़ा। जिसे नीतीश और जनता दल (यू) ने बगावत करार दिया। 

जीतनराम मांझी के बगावती तेवर और नीतीश के मुख्‍यमंत्री बनने की जल्‍दबाजी ने 'जनता परिवार' के एकीकरण का सारा खेल बिगाड़ दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आपात स्थिति में नीतीश कुमार ने जिस मांझी को सरकार रूपी नैया की पतवार सौंपी थी, वही आज बगावती सुर अलापकर नैया मझधार में डुबोने पर क्‍यों अमादा हैं?

सारा देश जनता है कि लोकसभा चुनाव में जनता दल (यू) के अत्यधिक घटिया प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 19 मई, 2014 को अपनी कार से जीतन राम मांझी के साथ राजभवन पहुंचे थे। सरकार की कमान संभालने के लायक उन्होंने जीतन राम मांझी को ही समझा था। वही मांझी आज उनके लिए खतरा दिखाई दे रहा है। लेकिन इसके पीछे के कारणों की पड़ताल करना भी जरूरी है। 

मांझी ने 20 मई, 2014 को 17 अन्य मंत्रियों के साथ मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। नीतीश ने कहा था कि मांझी सरकार चलाएंगे और वह (नीतीश) संगठन का काम देखेंगे। सवाल यह है कि इन आठ महीनों में ऐसा क्या हो गया? क्‍यों बागी हुए जीतनराम मांझी, जानिये ये रहे असली कारण :-

-नीतीश मांझी को रिमोट से चलाना चाहते थे जो मांझी को कतई भी मंजूर नहीं था। 

-बिहार के भाजपा के कद्दावर नेता सुशील कुमार मोदी सारे विकल्प खुले रहने के बयान देकर भाजपा के समर्थन के स्पष्ट संकेत दिए। दूसरी और उमा भारती ने अपने पटना दौरे के दौरान मांझी से मुलाकात की थी और उन्हें सार्वजनिक रूप से 'गरीबों का मसीहा' बताया था। जिससे मांझी भाजपा के संपर्क में माने जाने लगे।

-राजनीति के जानकार कहते हैं कि इतने दिनों में मांझी की तेजी से महत्वकांक्षा बढ़ती  गई है। प्रारंभ से ही मांझी महादलित नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने में लगे थे। मांझी बहुत कम दिनों में अपने समाज के नेता बन गए। कई लोग मांझी के पीछे खड़े नजर आते हैं। इसमें कई मंत्री और विधायक भी शामिल हैं। ऐसे में मांझी का हौसला बुलंद हुआ।

-मांझी के सही और कडवे बयानों से जद (यू) नेतृत्व परेशान हो चुका था। ऐसे में पार्टी नेतृत्व ने मांझी से जब इस्तीफा मांगा तो मांझी बागी से दिखने लगे।

-मांझी की नाराजगी लगातार उनके कामों में हस्तक्षेप को लेकर भी है। पिछले दिनों उनके काम को लेकर पार्टी के प्रवक्ताओं द्वारा की गई बयानबाजी से मांझी खासा नाराज हुए थे। इसके बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के स्थानांतरण को भी दो मंत्रियों ने नियम विरुद्ध बताते हुए मुख्य सचिव से शिकायत की थी।

-कुछ सूत्रों का यह दावा है कि कुछ दिनों पूर्व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद ने भी मांझी को खरी-खोटी सुनाई थी। इस कारण मांझी को लेकर जनता दल (यू) में नाराजगी काफी दिनों से थी, परंतु पार्टी अध्यक्ष शरद यादव द्वारा उनसे बिना पूछे पार्टी विधानमंडल दल की बैठक बुलाना आग में घी का काम कर गया और जदयू की नाव हिचकोले खाने लगी। 

अब देखना यह है कि मांझी और जनता दल (यू) की यह नाव किस किनारे लगती है। यदि भाजपा मांझी को समर्थन देती है तो वो मांझी का अत्यंत बुरा अंत तय है। क्योंकि भाजपा रामबिलास पासवान जैसो की भांति मांझी को भी अपनी छत्र छाया में लाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाली। आखिर भाजपा का मकसद दलित और आदिवासियों को नेतृत्व विहीन करना जो है!-डॉ. #पुरुषोत्तम मीणा '#निरंकुश', 

Monday, October 13, 2014

समाज सेवकों के वेश में भावी मनुवादी जन प्रतिनिधि तैयार हो रहे हैं?


डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

राजस्थान सरकार की पूर्ववर्ती कांग्रेसी और वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की राज्य सरकार के प्राश्रय से राजस्थान में 'मीणा' जनजाति को आरक्षित वर्ग में से बाहर निकालने के दुराशय से एक सुनियोजित षड़यंत्र चल रहा है। जिसके तहत 'मीणा' जनजाति के बारे में भ्रम फैलाया जा रहा है की 'मीणा' और 'मीना' दो भिन्न जातियां हैं। 'मीना' को जनजाति और 'मीणा' को सामान्य जाति बताया जा रहा है। जिसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि शुरू में जारी अधिसूचना में एक सरकारी बाबू ने 'मीणा' जाती को अंग्रेजी में Mina लिख दिया। जिसे बाद में हिन्दी अनुवादक ने ‘मीना’ लिख दिया। इसके बाद से सरकारी बाबू सरकारी रिकार्ड में मीणा जनजाति को समानार्थी और पर्याय के रूप में (Meena/Mina) (मीणा/मीना) लिखते आये हैं। राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारियों द्वारा 'मीणा' और 'मीना' दोनों नामों से जनजाति के जाति प्रमाण पत्र भी 'मीणा' जाति के लोगों को शुरू से जारी किये जाते रहे हैं। अनेक ऐसे भी उदाहरण देखने को मिल रहे हैं, जहॉं पर एक ही परिवार में बेटा का 'मीणा' और बाप का 'मीना' नाम से जनजाति प्रमाण पात्र जारी किये हुआ है।


इसके उपरांत भी मनुवादियों, पूंजीपतियों और काले अंग्रेजों द्वारा आरक्षित वर्गों के विरुद्ध संचालित 'समानता मंच' के कागजी विरोध को आधार बनाकर और समानता मंच द्वारा किये जा रहे न्यायिक दुरूपयोग के चलते मनुवादी राजस्थान सरकार ने आदेश जारी कर दिये हैं कि यद्यपि अभी तक 'मीणा' और 'मीना' दोनों नामों से 'मीणा' जाति को जनजाति प्रमाण-पत्र जारी किये जाते रहे हैं, लेकिन भविष्य में सक्षम प्राधिकारी  ‘मीणा’ जाति को जनजाति के प्रमाण पत्र जारी नहीं करें और जिनको पूर्व में 'मीणा' जन जाति के प्रमाण-पत्र जारी किये गये हैं, उनके भी 'मीना' नाम से जनजाति प्रमाण-पत्र जारी नहीं किये जावें। आदेशें में यह भी कहा गया है कि इन आदेशों को उल्लंघन करने पर अनुशासनिक कार्यवाही की जायेगी।

यहॉं स्वाभाविक रूप से यह सवाल भी उठता है कि यदि ‘मीना’ जाति ही जनजाति है तो 'मीना' जाति के लोगों को 'मीणा जनजाति' के प्रमाण-पत्र जारी करने वाले प्राधिकारियों के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा कोई अनुशासनिक कार्यवाही किये बिना इस प्रकार के आदेश कैसे जारी किये जा सकते हैं? विशेषकर तब जबकि 'मीणा' जनजाति के नाम से सरकार की ओर से जारी किये गये जन के जाति प्रमाण-पत्रों के आधार पर हजारों की संख्या में 'मीणा' जनजाति के कर्मचारी और अधिकारी सेवारत हैं। यही नहीं जब पहली बार मीणा जनजाति को जनजातियों की सूची में शामिल किया गया था तो काका कालेकर कमेटी ने अपनी अनुशंसा में हिन्दी में साफ़ तौर पर 'मीणा' लिखा था।

उपरोक्त सरासर किये जा रहे अन्याय और मनमानी के खिलाफ जयपुर में मीणा जाति की और से 12 अक्टूबर, 2014 को सांकेतिक धरने का आयोजन किया गया। जहॉं पर एक बात देखने को मिली कि मीणा समाज के लोग अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ तो खुलकर बोले, लेकिन राजनैतिक बातें करने से कतराते दिखे।

इस बारे में मेरा यह मानना और कहना है कि यह सर्व विदित है की आज के समय में कहने को तो देश संविधान द्वारा संचालित हो रहा है, मगर सच तो ये है कि सब कुछ, बल्कि सारी की सारी व्यवस्था ही राजनीति और ब्यूरोक्रेसी के शिकंजे में है, राजनेता तथा ब्यूरोक्रेट्स राजनैतिक पार्टियों के कब्जे में हैं। राजनैतिक पार्टियों पर मनुवादियों, पूंजिपतियों और काले अंग्रेजों का सम्पूर्ण कब्जा है। मतलब साफ़ है कि सारे देश पर संविधान का नहीं मनुवादियों, पूंजिपतियों और काले अंग्रेजों का कब्जा है। जब तक देश मनुवादियों, पूंजिपतियों और काले अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त नहीं होगा, देश का हर व्यक्ति मनुवादियों, पूंजिपतियों और काले अंग्रेजों द्वारा संचालित मनमानी व्यवस्था का गुलाम ही बना रहेगा। 

इस सबके उपरान्त भी 'मीणा' जाति ही नहीं, अकसर सभी समाजों के मंचों पर चिल्ला-चिल्ला कर घोषणा करवाई जाती हैं कि यहां राजनीति के बारे में कोई चर्चा नहीं की जाएगी। केवल इस डर से कि राजनीति की चर्चा करने से ऐसा नहीं हो कि 'मीणा' समाज के राजनेताओं का समर्थन मिलने में किसी प्रकार की दिक्कत पैदा नहीं हो जाये। इसके विपरीत इस बात को भी सभी जानते हैं कि राजनेता अपनी-अपनी पार्टी की जी हुजूरी पहले करते हैं। इसके बाद देश, समाज या अपनी जाति के बारे में सोचते हैं। फिर भी राजनीति के बारे में चर्चा क्यों नहीं होनी ही चाहिए? इस बात का कोई जवाब नहीं दिया जाता है।

ऐसी सोच रखने वालों से मेरा सीधा सवाल है कि राजनीति कोई आपराधिक या घृणित या असंवैधानिक या प्रतिबंधित शब्द तो है नहीं? राजनीति हमारे यहॉं संवैधानिक अवधारणा है। जिससे संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्र संचालित हो रहा है। ऐसे में राजनेताओं और राजनीति दोनों की अच्छाइयों और बुराइयों पर खुलकर चर्चा क्यों नहीं होनी चाहिए? यदि चर्चा पर ही पाबंदी रहेगी तो फिर समाज को राजनीतिक दलों और राजनेताओं की असलियत का ज्ञान कैसे होगा? राजनैतिक अज्ञानता के कारण मनुवादियों की धोती धोने वाले और मनुवादियों की जूतियां उठाने वाले लोगों को आरक्षित क्षेत्रों से उम्मीदवार बनाया जाता है! जो समाज की नहीं अपनी पार्टियों की चिंता करते हैं। येन केन प्रकारेण जुटाये जाने वाले अपने वोटों की चिंता करते हैं। ऐसे में विचारणीय विषय यह होना चाहिए कि यदि आम जनता को राजनीति की हकीकत का ज्ञान ही नहीं करवाया जायेगा तो फिर वंचित, शोषित और पिछड़े तबकों के हकों की रक्षा करने वाले सच्चे राजनेताओं का उद्भव (जन्म) कैसे होगा?

12 अक्टूबर, 2014 को जयपुर में आयोजित उक्त मीणा-मीना मुद्दे के विरोध में आयोजित धरने कार्यक्रम का मैं साक्षी रहा। जिसमें मीणा-मीना मुद्दे पर खूब सार्थक और निरर्थक भाषण बाजी भी हुई। दबी जुबान में राजनैतिक बातें भी कही गयी। कभी दबी तो कभी ऊंची आवाज में सरकार को भी ललकारा गया। मनुवादियों द्वारा संचालित आरक्षण विरोधी 'समानता मंच' की बात भी इक्का दुक्का वक्ताओं ने उठायी। जिसे मंच तथा धराना आयोजकों की और से कोई खास तबज्जो नहीं दी। अर्थात 'समानता मंच' के विरोध को समर्थन नहीं मिला। यही नहीं बल्कि सबसे दुखद विषय तो ये रहा कि आरक्षित वर्गों का जो असली दुश्मन है, अर्थात मनुवाद, उसके बारे में एक शब्द भी किसी भी वक्ता ने नहीं बोला। 

अभी तक देखा जाता था कि राजनेता मनुवाद के खिलाफ बोलने से कतराते थे या इस मुद्दे पर चुप रहते थे तो आम लोग कहते थे कि राजनेता वोटों के चक्कर में मनुवाद के खिलाफ नहीं बोलते। मगर मीणा समाज के हकों की बात करने वाले मीणा समाज के कथित समाज सेवक भी इस बारे में केवल चुप ही नहीं दिखे, बल्कि इस मुद्दे से जानबूझकर बचते भी दिखे। मैंने मंच पर अनेकों से इस बारे में निजी तौर पर चर्चा भी की, तो सबने माना कि मनुवाद ही आरक्षण का असली दुश्मन है, मगर बिना कोई ठोस कारण या वजह के सब के सब मनुवाद के खिलाफ बोलने से बचते और डरे-सहमे नजर आये। ऐसे में मेरे मन में दो सवाल उठते हैं-

क्या मीणा समाज के समाज सेवकों को मनुवादियों से डर लगता है?

या

समाज सेवकों के वेश में भावी मनुवादी जन प्रतिनिधि तैयार हो रहे हैं?

Saturday, June 29, 2013

मनुवाद द्वारा प्रायोजित महात्रासदी

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

भारत में जहॉं हर कि प्रकार के प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं, वहीं हम भारतीय हर प्रकार की प्राकृतिक और मनुष्यजन्य विपदाओं का सामना करते रहने के भी आदि होते जा रहे हैं। उत्तराखण्ड में आयी बाढ और भू-स्खलन के कारण जो हालात पैदा हुए हैं, उनके लिये हमारे देश में बुद्धिजीवी वास्तवकि कारणों को ढूँढने में लगे हुए हैं, वहीं नरेन्द्र मोदी जैसे राजनेताओं ने इस विपदा को भी अपनी राजनैतिक रोटी सेकने का अखाड़ा बनाने की शुरूआत करके इसमें भी गंदी और वीभत्स राजनीति को प्रवेश करवा दिया।

सारा संसार जानता है कि भारत में बहुरंगी प्रकृति के सभी रंग और हर एक अनुपन सौगाद मौजूद है, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि हर प्रकृति की सुन्दर लीला को भारत में ब्राह्मणशाही और मनुवादी व्यवस्था ने अपने चंगुल में जगड़ रखा है। जिसके चलते लोगों के दिमांग को धर्म की अफीम के नशे में इस प्रकार से विकृत और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया है कि सारी बातों को भूलकर लोग स्वर्ग और वैकुण्ठ की चाह में ब्राह्मणों द्वारा रचित एवं निर्मित उन कथित धार्मिक स्थलों पर खिंचे चले जाते हैं, जहॉं एक ओर तो मनुवादी लोग उनका दान, दक्षिणा और पूजा-पाठ के नाम पर जमकर शोषण करते हैं, वहीं दूसरी ओर लोगों की अतिसंख्या को प्रशासन एवं धर्मस्थल प्रबन्धकों द्वारा संभाल नहीं पाने के कारण अनेक घरों के चिराग हमेशा को बुझ जाते हैं।

कुछ समय पूर्व ही इलाहाबाद में कुम्भ के दौरान रेलवे स्टेशन के पुल पर अतिसंख्या में तीर्थयात्रियों के चढ जाने के कारण पुल टूट गया और बहुत सारे लोगों की मौत हो गयी। कुछ ही दिनों में उस त्रासदी को भुलाकर इस देश के भोले-भाले लोग उत्तराखण्ड की इस महात्रासदी का सामना करने को विवश हो गये। हजारों लोग बेमौत मारे गये। प्रशासन पस्त हो गया। फौज के जवान भी बेमौत मारे गये। इस दु:खद घड़ी में भी मनुवादी संघ द्वारा पोषित भाजपा के भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस महात्रासदी को भी भुनाने में जरा शर्म महसूस नहीं की और दूसरे नेताओं को भी राजनीति करने को उकसाया। इससे मनुवादियों का विकृत चेहरा सबके सामने आ चुका है।

इसके उपरान्त भी सबसे दु:खद बात तो ये है कि इतना सब हो जाने के बाद भी कोई तो प्रशासन और सरकार को कोस रहा है और कोई प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ करने को इस त्रासदी के लिये जिम्मेदार बतला रहा है, लेकिन कोई भी राजनेता या मीडिया प्रतिनिधि इस सच को सामने लाने की कतई भी कोशिश नहीं कर रहा है कि इस त्रासदी के पीछे मनुवादियों का शोषक और विकृत चेहरा छिपा हुआ है। जिसके कारण-
-अशिक्षित और भोलेभाले लोग अपना और अपने बच्चों का पेट काटकर पापों से मुक्ति पाने और वैकुण्ठ का टिकिट कटाने की कभी न पूरी हो सकने वाली लालसा लिये इन शोषण केन्द्रों पर बेरोकटोक चले आते हैं।
-मनुवादियों के ऐजेंटों की ओर से हर स्तर पर सम्पूर्ण ऐसे प्रयास किये जाते हैं, जिसके कारण लोगों को तीर्थस्थलों पर जाने के लिये उकसाया जाता है। जिसके लिये हर दिन देश में कहीं न कहीं ढोंगी लोग मनुवाद का प्रचार-प्रसार करते रहते हैं। जिनमें अनेक तथाकथित संत भी शामिल हैं। इन सभी का प्रमुख स्त्रोत है-राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ।
-मनुवादियों के समर्थकों को पालने पोषने के लिये धर्मस्थलों पर सड़क और सार्वजनिक स्थलों पर हर मुमकिन तरीके से अतिक्रमण करके दुकाने खोली जा रही हैं और धर्मशालाओं एवं होटलों का निर्माण किया जा रहा है। जिससे लोगों को लुभाया जा सके और चंगुल में फंसाया जा सके।
-सरकार की और तीर्थयात्रियों की संख्या पर नियंत्रण के लिये किसी भी प्रकार का कोई नियमन नहीं है। ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि किस राज्य से कब और कितने लोग तीर्थस्थलों पर आ-जा सकेंगे। इस कारण से बिना किसी रोक-टोक के बेसुमार लोगों को रैला सर्वत्र पहुँच जाता है।
उपरोक्त एवं अन्य अनेक कारणों पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। जबकि इन कारणों पर ध्यान नहीं दिये जाने की वजह से हजारों लोग बमौत मारे गये हैं। दिल्ली में एक लड़की के साथ बलात्कार की घटना होने पर दिल्ली वाले सारे देश को हिला देने की बात करते हैं, जबकि मनुवादियों के इन शोषण केन्द्रों पर हजारों लोगों की मौत पर कोई मनुवाद के खिलाफ एक शब्द भी बोलना जरूरी नहीं समझता है। यह इस देश के लोगों का दौहरा और घिनौना चरित्र है। इसके लिये भी मनुवाद ही जिम्मेदार है। क्योंकि सभी मनुवादी लोगों ने इस प्रकार का षड़यंत्र रचा हुआ है कि धर्म के विरुद्ध बोलने वालों को नर्क का डर बिठा रखा है और इसके चलते लोगों को धर्म की मनमानियों और शोषणकारी व्यवस्थाओं के खिलाफ चुप्पी साध रखी है।

अब समय आ गया है, जबकि लोगों को, विशेषकर उन लोगों को जो इस शोषण की चक्की में हजारों सालों से लगातार पिस रहे हैं, उन्हें मनुवाद के इस विचित्र षड़यंत्र को तत्काल तोड़ना होगा। लोगों को इस बात को समझना होगा कि अपने माता-पिता के चरणों में जो धर्म या शान्ति है-वह न तो पहाड़ों में है और न हीं धर्म के नाम पर चलने वाले शोषण के इन असंख्य केन्द्रों में है। इस बात की पहल आज की युवा पीढी को तत्काल करनी होगी। 

Friday, February 15, 2013

मीडिया द्वारा बड़ी घटनाएँ दबा दी जाती हैं और .....!


मीडिया द्वारा बड़ी घटनाएँ दबा दी जाती हैं और प्रायोजित घटनाएँ खबर बना दी जाती हैं!
दूसरा सबसे बड़ा उदाहरण इलाहाबाद में कुम्भ के दौरान हुए हादसे में कई दर्जन निर्दोष लोगों की जान चली जाने का है, जिसमें कोई राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है, तो कोई रेलवे मंत्रालय को, जबकि कोई भी इस बात को नहीं उठा रहा है कि कुम्भ जैसे अवैज्ञानिक और अश्‍लील आयोजनों की जरूरत ही क्या है? जहॉं पर संत का चौला पहने हजारों लोग स्त्रियों की उपस्थिति में नग्न होकर स्नान करते हैं!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

देश की दो फीसदी आबादी का देश के 70 फीसदी संसाधनों तथा पूँजी पर कब्जा है और ये लोग मीडिया के जरिये देश को अपनी योजनानुसार बरगलाते और दिग्भ्रमित करते रहते हैं। ये लोग बड़ी से बड़ी घटना को दबवा देते हैं और देशहित की बातों से ध्यान हटाने के लिये प्रायोजित और बनावटी घटनाओं को ज्वलन्त व सनसनीखेज सबर बनाकर पेश करवा देते हैं। जिसके चलते देश के लोगों को वास्तविक हालातों का ज्ञान ही नहीं हो पाता है और भोले-भाले ऊर्जावान युवा अपने दुश्मनों के दुष्चक्र में फंसकर अपने ही पैरों पर कुल्हा़ड़ी मारने को उद्यत हो जाते हैं।

इस प्रकार के मामले इस देश में अनेकों बार, बल्कि बार-बार दोहराये जाते रहते हैं। जिनकी शुरूआत हुई मण्डल कमीशन के विरोध में मीडिया द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को ही सड़कों पर उतारने को उकसाया गया। जिसमें युवाओं को आरक्षण के खिलाफ सड़कों पर विरोध करते हुए दिखाया गया और जानबूझकर मनुवादियों ने अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों के युवाओं को ही आगे कर दिया। जिन्हें मीडिया के सामने लाकर केरोसीन तथा पेट्रोल से नहलाकर आग के हवाले कर दिया गया। मीडिया ने इसे आरक्षण विराध के रूप में प्रचारित किया। इसी प्रकार से गुजरात में दंगों के दौरान मनुवादियों ने हिन्दुत्व का जहर घोलकर वहॉं के अशिक्षित, विपन्न, शोषित और पिछड़े और दूर-दराज के पिछड़े क्षेत्रों में निवास करने वाले आदिवासियों को आगे कर दिया। जो आज भी कोर्ट-कचेहरियों के चक्कर काट रहे हैं, जबकि नरेन्द्र मोदी और भाजपा इस घिनौने कत्लेआम के प्रतिफल में गुजरात की सत्ता पर लगातार काबिज हो चुके हैं।

उसी गुजरात में पिछले सप्ताह चालीस आदिवासियों को मनुवादियों ने खौलते तेल में हाथ डालकर अग्नि परीक्षा देने के लिये विवश कर दिया और इस दुष्कृत्य को मीडिया ने खबर बनाने के बजाय प्रायोजित तरीके से दबा दिया। जबकि अग्नि परीक्षा जैसी धूर्त चालों के जरिये लोगों को मूर्ख बनाने वाले मनुवादियों के षड़यन्त्र को मीडिया द्वारा प्रमुखता से विश्‍व के समक्ष उजागर करना चाहिये था! सवाल तो यह भी उठना चाहिये कि जब सति-प्रथा जैसी अवैज्ञानिक और अमानवीय कुप्रथा को प्रतिबन्धित करके, इसका महिमामंडन प्रतिबन्धित और अपराध घोषित किया जा चुका है तो किसी भी प्रकार से अग्नि परीक्षा जैसी अमानवीय और नृशंस क्रूरता की कपोल-कल्पित कहानियों से भरे पड़े मनुवादियों के ग्रंथों को क्यों प्रतिबन्धित नहीं किया जा रहा है? जिनके चलते ही लोगों के अवचेतन मन में ऐसे अमानवीय और क्रूर विचार पनपते हैं। दुर्भाग्य यह है कि देश का तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया मनुवादियों के कब्जे में है, जो फिर से इस देश को मनुवाद से शासित होते देखने के लिये लगातार प्रयास करता रहता है, उस मीडिया से ये अपेक्षा कैसे की जा सकती है कि वह मनुवादियों के षड़यन्त्रों को ध्वस्त करने वाली खबरों को प्रमुखता से प्रचारित, प्रसारित और प्रकाशित करे!

इसी का दूसरा सबसे बड़ा उदाहरण इलाहाबाद में कुम्भ के दौरान हुए हादसे में कई दर्जन निर्दोष लोगों की जान चली जाने का है, जिसमें कोई राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है, तो कोई रेलवे मंत्रालय को, जबकि कोई भी इस बात को नहीं उठा रहा है कि कुम्भ जैसे अवैज्ञानिक और अश्‍लील आयोजनों की जरूरत ही क्या है? जहॉं पर संत का चौला पहने हजारों लोग स्त्रियों की उपस्थिति में नग्न होकर स्नान करते हैं!

सच तो यह है कि मनुवादियों ने इस देश के लोगों के अवचेतन में इस प्रकार की अनेक रुग्णताएँ गहरे में स्थापित कर दी हैं कि उनसे लोगों को रोगमुक्त करने के लिये लगातार वर्षों तक प्रयास करने की जरूरत है। जबकि इसके ठीक विपरीत कुम्भ स्नान की कपोल-कल्पित कहानियों का मीडिया लागातार महिमामण्डन कर रहा है और आर्यों के इस अश्‍लील आयोजन को बढाने के लिये प्रयास जारी हैं। जबकि दुर्भाग्यपूर्ण सच यह है कि मूल निवासियों को युद्ध में हराने के जश्‍न के रूप में कुम्भ का आयोजन किया जाता है, जिसमें बढचढकर मूल निवासी ही हिस्सा ले रहे हैं!

मीडिया के जरिये क्रूर और चालाक मनुवादी व्यवस्था के संचालक एक बार फिर से अपने अवैज्ञानिक सिद्धान्तों को आस्था की चाशनी में लपेटकर भोलेभाले देशवासियों के समक्ष इस प्रकार से परोस रहे हैं कि इस षड़यन्त्र में फंसकर आम लोगों, विशेषकर स्त्रियों, पिछड़ों, आदिवासियों और दलितों के वर्तमान और भविष्य को बर्बाद किया जा रहा है। इसी सुनियोजित षड़यन्त्र की क्रूर परिणिती है-इलाहबाद की रेलवे पुल की रैलिंग टूटने की दु:खद घटना, जिसके लिये और कोई नहीं केवल और केवल मनुवादी व्यवस्था जिम्मेदार है। जिससे निजात दिलाने की मीडिया और राजनेताओं से दूर-दूर तक कहीं कोई संभावना नजर नहीं आ रही है|

हालांकि खुशी इस बात की है कि अमानवीय और अवैज्ञानिक मनुवादी व्यवस्था की कड़वी सच्चाई को इस देश के ब्राह्मण समाज के कुछ युवा समझ रहे हैं और वे इसके विरुद्ध खड़े भी हो रहे हैं। जिसके चलते दलित आन्दोलन को ताकत मिल सकती है। यद्यपि बामसेफ जैसे संगठन इस दिशा में लागातार अच्छा काम कर रहे हैं और देशवासियों को ब्राह्मणवादी और मनुवादी व्यवस्था के चंगुल से मुक्त करवाने के लिये देशभर में अभियान चलाये हुए हैं, जो मुनवादी मीडिया के समक्ष नाकाफी ही है!

Thursday, November 1, 2012

मुनवादी लोगों ने दलित जोड़ों को मन्दिर से अपमानित कर भगाया!

यदि हम वास्तव में चाहते हैं कि देश में अमन-चैन बना रहे और समाज के सभी दबे-कुचले लोग तरक्की करें और सम्मान के साथ जीवन यापन करें तो हमें मनुवाद को तत्काल प्रतिबन्धित करने और मुनवादी कुकृत्यों को अंजाम देने वालों को देशद्रोही के समान दण्डनीय अपराध घोषित करने की सख्त जरूरत है| जिसके लिये संविधान के भाग तीन के अनुच्छेद 13 (1) एवं 13 (3) में सरकार को सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं| यदि सरकार में राजनैतिक इच्छा-शक्ति हो तो इस प्रावधान के तहत मनुवादी दैत्य को नेस्तनाबूद किया जा सकता है| लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है, जिसके पीछे हर पार्टी में मनुवादियों का वर्चस्व होना बड़ा कारण है|
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

राजस्थान के अजमेर सम्भाग मुख्यालय से प्रकाशित प्रमुख समाचार-पत्र ‘‘दैनिक नवज्योति’’ 29 अक्टूबर, 2012 के अंक के मुखपृष्ठ पर-‘‘दलित जोड़ों को धक्के मारकर मन्दिर से निकाला’’ शीर्षक से समाचार प्रकाशित हुआ है| जिसमें कहा गया है कि 26 अक्टूबर को अनुसूचित जाति के दो नवविवाहित जोड़े मन्दिर में भगवान के समक्ष नतमस्तक होकर (जिसे स्थानीय आंचलिक बोली में ‘धोक देना’ कहा जाता है) आशीर्वाद लेने गये, लेकिन मन्दिर के पुजारी सहित कुछ मनुवादी लोगों ने और कुछ महिलाओं ने मिलकर न मात्र उन्हें मन्दिर से धक्के देकर बाहर कर दिया, बल्कि उनके साथ जाति सूचक शब्दों का अभद्रतापूर्ण तरीके से उपयोग करते हुए गाली-गलोंच भी की गयी और उन्हें मन्दिर से निकाल दिया गया| इस मामले में खेतड़ीनगर पुलिस ने आठ लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया है| 

Manwadi System
इस मामले में जानकारी करने पर सूत्रों का कहना है कि अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल ‘मेघवाल’ जाति के लोगों को स्थानीय सवर्ण जाति के लोग मन्दिरों में प्रवेश नहीं करने देते हैं और जब भी इन लोगों को में से किसी को मन्दिर में स्थापित भगवान का आशीर्वाद लेना होता है तो मन्दिर के सामने रास्ते या जमीन पर खड़े होकर ही भगवान का आशीर्वाद लिया जा सकता है| इस बार दो नव विवाहित जोड़ों ने मन्दिर के अन्दर जाकर न मात्र भगवान का दर्शन करके आशीर्वाद लेने की हिमाकत की, बल्कि मन्दिर में स्थापित भगवान की पूजा-अर्चना करने का भी अपराध भी कर डाला| जो मन्दिर के पुजारी को नागवार गुजरा| जिस पर मन्दिर के पुजारी घीसाराम स्वामी ने कुछ स्थानीय स्त्री-पुरुषों के साथ मिलकर नवविवाहित जोड़ों को मन्दिर से खदेड़ दिया|

सूत्रों का कहना है कि उक्त पुजारी कट्टर हिन्दू है और मनु द्वारा स्थापित ब्राह्मणवादी व्यवस्था को लागू करना अपना पवित्र धार्मिक कर्त्तव्य मानता है| जिसमें स्थानीय उच्च कुलीन हिन्दू साथ देते हैं| सूत्रों का यह भी कहना है कि पकड़े गये लोगों का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी से निकट सम्बन्ध हैं|

यहॉं विचारणीय गम्भीर प्रश्‍न यह है कि हो सकता है कि कानून के अनुसार आरोपियों के विरुद्ध मुकदमा चले और कुछ वर्षों के विचारण के बाद कुछ लोगों को सजा भी हो जाये, जिसकी कम ही सम्भावना है, लेकिन असल सवाल ये है कि आखिर मनुवाद द्वारा स्थापित यह कुव्यवस्था कब समाप्त होगी और चरित्र निर्माण की बात करने वाला संघ कब तक मनुवादी लोगों का पोषण तथा संरक्षण करता रहेगा?

जब तक मनुवाद और मनुवाद के पोषक संघ तथा संघ की घृणित और समाज तोड़क दोगली सोच को ध्वस्त नहीं कर दिया जाता है, तब तक अकेला कानून कुछ भी नहीं कर सकता है| क्योंकि राजस्थान और अन्य अनेक राज्यों में आये दिन मनुवादियों द्वारा इस प्रकार की अमानवीय और आदिकालीन सोच की परिचायक घटनाओं को लागातार और बेखोफ अंजाम दिया जाता रहा है| जिसे संघ एवं भाजपा से जुड़े लोगों का खुला राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है| जिसका दु:खद परिणाम ये होता है कि आये दिन दलित उत्पीड़न होता रहता है| उत्पीड़न के कुछ मामलों में मुकदमे भी दर्ज होते हैं, लेकिन अधिकतर मामलों में गवाहों को डराया और धमकाया जाता है| डराने और धमकाने से नहीं मानने पर उनके साथ मारपीट की जाती है, उनकी औरतों और लडकियों के साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है और अन्तत: शोषित तथा भयभीत दलित दर जाते हैं! परिणामस्वरूप अधिकतर मुकदमे निरस्त हो जाते हैं, जिन्हें यह कहकर प्रचारित किया जाता है कि दलित लोगों द्वारा बनावटी मुकदमे दर्ज करवाये जाते हैं| 

यदि हम वास्तव में चाहते हैं कि देश में अमन-चैन बना रहे और समाज के सभी दबे-कुचले लोग तरक्की करें और सम्मान के साथ जीवन यापन करें तो हमें मनुवाद को तत्काल प्रतिबन्धित करने और मुनवादी कुकृत्यों को अंजाम देने वालों को देशद्रोही के समान दण्डनीय अपराध घोषित करने की सख्त जरूरत है| जिसके लिये संविधान के भाग तीन के अनुच्छेद 13 (1) एवं 13 (3) में सरकार को सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं| यदि सरकार में राजनैतिक इच्छा-शक्ति हो तो इस प्रावधान के तहत मनुवादी दैत्य को नेस्तनाबूद किया जा सकता है| लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है, जिसके पीछे हर पार्टी में मनुवादियों का वर्चस्व होना बड़ा कारण है|