Saturday, June 29, 2013

मनुवाद द्वारा प्रायोजित महात्रासदी

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

भारत में जहॉं हर कि प्रकार के प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं, वहीं हम भारतीय हर प्रकार की प्राकृतिक और मनुष्यजन्य विपदाओं का सामना करते रहने के भी आदि होते जा रहे हैं। उत्तराखण्ड में आयी बाढ और भू-स्खलन के कारण जो हालात पैदा हुए हैं, उनके लिये हमारे देश में बुद्धिजीवी वास्तवकि कारणों को ढूँढने में लगे हुए हैं, वहीं नरेन्द्र मोदी जैसे राजनेताओं ने इस विपदा को भी अपनी राजनैतिक रोटी सेकने का अखाड़ा बनाने की शुरूआत करके इसमें भी गंदी और वीभत्स राजनीति को प्रवेश करवा दिया।

सारा संसार जानता है कि भारत में बहुरंगी प्रकृति के सभी रंग और हर एक अनुपन सौगाद मौजूद है, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि हर प्रकृति की सुन्दर लीला को भारत में ब्राह्मणशाही और मनुवादी व्यवस्था ने अपने चंगुल में जगड़ रखा है। जिसके चलते लोगों के दिमांग को धर्म की अफीम के नशे में इस प्रकार से विकृत और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया है कि सारी बातों को भूलकर लोग स्वर्ग और वैकुण्ठ की चाह में ब्राह्मणों द्वारा रचित एवं निर्मित उन कथित धार्मिक स्थलों पर खिंचे चले जाते हैं, जहॉं एक ओर तो मनुवादी लोग उनका दान, दक्षिणा और पूजा-पाठ के नाम पर जमकर शोषण करते हैं, वहीं दूसरी ओर लोगों की अतिसंख्या को प्रशासन एवं धर्मस्थल प्रबन्धकों द्वारा संभाल नहीं पाने के कारण अनेक घरों के चिराग हमेशा को बुझ जाते हैं।

कुछ समय पूर्व ही इलाहाबाद में कुम्भ के दौरान रेलवे स्टेशन के पुल पर अतिसंख्या में तीर्थयात्रियों के चढ जाने के कारण पुल टूट गया और बहुत सारे लोगों की मौत हो गयी। कुछ ही दिनों में उस त्रासदी को भुलाकर इस देश के भोले-भाले लोग उत्तराखण्ड की इस महात्रासदी का सामना करने को विवश हो गये। हजारों लोग बेमौत मारे गये। प्रशासन पस्त हो गया। फौज के जवान भी बेमौत मारे गये। इस दु:खद घड़ी में भी मनुवादी संघ द्वारा पोषित भाजपा के भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस महात्रासदी को भी भुनाने में जरा शर्म महसूस नहीं की और दूसरे नेताओं को भी राजनीति करने को उकसाया। इससे मनुवादियों का विकृत चेहरा सबके सामने आ चुका है।

इसके उपरान्त भी सबसे दु:खद बात तो ये है कि इतना सब हो जाने के बाद भी कोई तो प्रशासन और सरकार को कोस रहा है और कोई प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ करने को इस त्रासदी के लिये जिम्मेदार बतला रहा है, लेकिन कोई भी राजनेता या मीडिया प्रतिनिधि इस सच को सामने लाने की कतई भी कोशिश नहीं कर रहा है कि इस त्रासदी के पीछे मनुवादियों का शोषक और विकृत चेहरा छिपा हुआ है। जिसके कारण-
-अशिक्षित और भोलेभाले लोग अपना और अपने बच्चों का पेट काटकर पापों से मुक्ति पाने और वैकुण्ठ का टिकिट कटाने की कभी न पूरी हो सकने वाली लालसा लिये इन शोषण केन्द्रों पर बेरोकटोक चले आते हैं।
-मनुवादियों के ऐजेंटों की ओर से हर स्तर पर सम्पूर्ण ऐसे प्रयास किये जाते हैं, जिसके कारण लोगों को तीर्थस्थलों पर जाने के लिये उकसाया जाता है। जिसके लिये हर दिन देश में कहीं न कहीं ढोंगी लोग मनुवाद का प्रचार-प्रसार करते रहते हैं। जिनमें अनेक तथाकथित संत भी शामिल हैं। इन सभी का प्रमुख स्त्रोत है-राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ।
-मनुवादियों के समर्थकों को पालने पोषने के लिये धर्मस्थलों पर सड़क और सार्वजनिक स्थलों पर हर मुमकिन तरीके से अतिक्रमण करके दुकाने खोली जा रही हैं और धर्मशालाओं एवं होटलों का निर्माण किया जा रहा है। जिससे लोगों को लुभाया जा सके और चंगुल में फंसाया जा सके।
-सरकार की और तीर्थयात्रियों की संख्या पर नियंत्रण के लिये किसी भी प्रकार का कोई नियमन नहीं है। ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि किस राज्य से कब और कितने लोग तीर्थस्थलों पर आ-जा सकेंगे। इस कारण से बिना किसी रोक-टोक के बेसुमार लोगों को रैला सर्वत्र पहुँच जाता है।
उपरोक्त एवं अन्य अनेक कारणों पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। जबकि इन कारणों पर ध्यान नहीं दिये जाने की वजह से हजारों लोग बमौत मारे गये हैं। दिल्ली में एक लड़की के साथ बलात्कार की घटना होने पर दिल्ली वाले सारे देश को हिला देने की बात करते हैं, जबकि मनुवादियों के इन शोषण केन्द्रों पर हजारों लोगों की मौत पर कोई मनुवाद के खिलाफ एक शब्द भी बोलना जरूरी नहीं समझता है। यह इस देश के लोगों का दौहरा और घिनौना चरित्र है। इसके लिये भी मनुवाद ही जिम्मेदार है। क्योंकि सभी मनुवादी लोगों ने इस प्रकार का षड़यंत्र रचा हुआ है कि धर्म के विरुद्ध बोलने वालों को नर्क का डर बिठा रखा है और इसके चलते लोगों को धर्म की मनमानियों और शोषणकारी व्यवस्थाओं के खिलाफ चुप्पी साध रखी है।

अब समय आ गया है, जबकि लोगों को, विशेषकर उन लोगों को जो इस शोषण की चक्की में हजारों सालों से लगातार पिस रहे हैं, उन्हें मनुवाद के इस विचित्र षड़यंत्र को तत्काल तोड़ना होगा। लोगों को इस बात को समझना होगा कि अपने माता-पिता के चरणों में जो धर्म या शान्ति है-वह न तो पहाड़ों में है और न हीं धर्म के नाम पर चलने वाले शोषण के इन असंख्य केन्द्रों में है। इस बात की पहल आज की युवा पीढी को तत्काल करनी होगी। 

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