Wednesday, July 17, 2013

जब भी मुँह खोलते हैं मोदी, देश को बाँटने वाली भाषा बोलते हैं

एल.एस.हरदेनिया

नरेन्द्र मोदी जब भी बोलते हैं, देश को बाँटने वाली बातें कहते हैं। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने कम से कम तीन आपत्तिजनक बातें कही हैं।

पहली आपत्तिजनक बात यह है कि उन्होंने सन् 2002 के राज्य प्रायोजित हत्याकाण्ड में मारे गये लोगों की तुलना कुत्ते के पिल्ले से की है। दूसरी आपत्तिजनक बात उन्होंने यह कही है कि वे हिन्दू राष्ट्रवादी हैं। तीसरी आपत्तिजनक बात यह कही कि कांग्रेस अपनी असफलताओं को छिपाने के लिये धर्मनिरपेक्षता का बुर्का ओड़ लेती है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि जो लोग कुत्तों को पालते हैं, उनके मरने पर उन्हें वैसा ही दुःख होता है जैसे उनके परिवार का कोई सदस्य चला गया हो। परन्तु यह भी एक वास्तविकता है कि जब कोई अपने दुश्मन के बारे में यह कहता है कि वह कुत्ते की मौत मरे, तो वह उसके प्रति अपनी गहरी घृणा प्रगट कर रहा होता है। कुत्ते की मौत बड़ी दर्दनाक होती है। बहुसंख्यक मामलों में, उसे मृत्यु के पूर्व भारी यंत्रणा से गुजरना पड़ता है। इसलिये मोदी ने जब 2002 में हुयी मौतों की तुलना कुत्ते के पिल्ले की मौत से की तो वे वास्तव में अपने मन की असली भावना को प्रगट कर रहे थे। वे मुसलमानों से अपने मन की गहराईयों से घृणा करते हैं। उनकी दिली इच्छा होगी कि सभी मुसलमानों को वैसी ही यंत्रणायुक्त मौत मिले, जैसी कुत्तों को मिलती है। वैसे भी, आज गुजरात में बहुसंख्यक मुसलमान जिस तरह की जिन्दगी जी रहे हैं जो आवारा कुत्ते की होती है। अहमदाबाद जैसे शहर में भी मुसलमानों की लगभग सभी बस्तियों में आज भी वे सुविधायें उपलब्ध नहीं हैं, जो एक नागरिक को मिलनी चाहिये। आज भी अनेक मुसलमान, जिन्हें 2002 में अपने गाँव छोड़ने पड़े थे, वे वापस नहीं आ पाये हैं। मैंने स्वयम् अहमदाबाद में मुसलमानों की एक ऐसी बस्ती देखी जिसकी गलियों में स्ट्रीट लाईट की व्यवस्था वहाँ के निवासियों को स्वयम् करनी पड़ी थी। इस तरह के भेदभाव के अनेक उदाहरण गुजरात के अनेक क्षेत्रों में देखने को मिलते हैं।

उसी इंटरव्यू में, जिसमें मोदी ने कहा था कि कुत्ते के पिल्ले की मौत पर भी उन्हें दुःख होता है, उन्होंने यह भी कहा था, ‘‘चूँकि मैं हिन्दू हूँ और राष्ट्रवादी हूं इसलिये मैं हिन्दू राष्ट्रवादी हूँ। राष्ट्रवादी का एक अर्थ राष्ट्रभक्त भी होता है। इस तरह, यह कहकर कि वे हिन्दू राष्ट्रवादी हैं, मोदी ने राष्ट्रभक्तों के बीच विभाजन की रेखा खींच दी है। यदि हमारे देश में राष्ट्रभक्ति की पहचान धर्म के आधार पर होगी तो हमारे देश में विभिन्न प्रकार के राष्ट्रभक्त हो जायेंगे। यदि इस देश के कुछ नागरिक हिन्दू नेशनलिस्ट हैं, तो फिर मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख, और बौद्ध और जैन नेशनलिस्ट भी होंगे। जब धर्म के आधार पर नेशनलिस्टों की पहचान होगी तब धर्म के आधार पर नेशन अर्थात राष्ट्र की पहचान भी होगी। इस तरह, हमारे देश में धर्म-आधारित अनेक राष्ट्र हो जायेंगे।

सबसे पहले विनायक दामोदर सावरकर ने कहा था कि भारत में दो राष्ट्र हैं-एक हिन्दू राष्ट्र और दूसरा मुस्लिम राष्ट्र। इसी बात को जिन्ना ने भी दोहराया था। सच पूछा जाए तो सावरकर द्वारा दी गयी राष्ट्रवाद की धर्म-आधारित परिभाषा ने ही हमारे देश का विभाजन किया था। फिर, सावरकर ने यह भी कहा था कि जिनकी जन्मभूमि और पुण्यभूमि भारत में है उन्हें ही भारत में रहने का अधिकार है। अर्थात् जिन धर्मों की उत्पत्ति भारत में हुयी थी उन्हें मानने वाले ही भारत में रह सकते हैं। इस तरह, भारत में हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध और जैन ही रह सकते हैं। इस परिभाषा ने ही मुसलमानों के मन में शंका पैदा की और उन्हें लगा कि आजाद भारत में उन्हें देश का नागरिक नहीं समझा जायेगा। मुसलमानों के एक वर्ग में उत्पन्न इसी शंका का लाभ उठाकर पाकिस्तान का नारा दिया गया और अन्ततः हमारे देश का विभाजन हुआ।

हिन्दू राष्ट्रवादी या मुस्लिम राष्ट्रवादी कहना वैसा ही है जैसे एक समय प्लेटफार्म पर हिन्दू चाय और मुस्लिम चाय या हिन्दू पानी और मुस्लिम पानी की आवाजें लगती थीं। सच पूछा जाय तो स्वयम् को हिन्दू राष्ट्रवादी कहकर, मोदी ने फिर देश के मानस को बांटने की कोशिश की है।

अभी कुछ दिन पहले, मोदी ने एक और विवादग्रस्त बयान दिया था। उन्होंने कहा कि जब भी कांग्रेस की आलोचना होती है कांग्रेस, धर्मनिरपेक्षता के बुर्के से अपना चेहरा ढँक लेती है। यह प्रायः देखा गया है कि मोदी जब भी कोई बात करते हैं या किसी की आलोचना करते हैं तो मुस्लिम प्रतीकों का उपयोग करते हैं। एक समय था जब वे कहा करते थे कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं परन्तु यह एक वास्तविकता है कि सभी आतंकवादी, मुसलमान हैं। मोदी अपने व्यवहार में, अपनी बातचीत के लहजे में, हिटलर की नकल करते हैं। हिटलर का एक सिद्धान्त था कि एक झूठ की बार-बार पुनरावृत्ति करो तो वह आम आदमी को सच प्रतीत होने लगता है। इसलिये, यह जानते हुये भी कि वे झूठ बोल रहे हैं, वे उसे बार-बार दोहराते हैं। उन्होंने एक झूठ और बोला है। वे देश की बढ़ती हुयी आबादी का जिक्र करते हुये उसका दोष मुसलमानों पर थोपते हैं। इस बारे में वे मुसलमानों की तरफ इशारा करते हुये कहते हैं कि ‘‘हम पांच, हमारे पच्चीस’’। इसका अर्थ होता है कि एक मुसलमान पुरूष की चार बीवियाँ होती हैं और फिर उनसे 25 सन्ताने होती हैं। इससे बड़ा झूठ और कोई नहीं हो सकता। परन्तु मोदी जानते हैं कि एक झूठ को बार-बार कहने से वह सच प्रतीत होने लगता है। इस तरह, समस्या कुछ भी हो, वे उसका दोषरोपण मुसलमानों पर कर देते हैं।

मोदी को समझना चाहिये कि धर्मनिरपेक्षता, भारतीय राष्ट्र की बुनियाद है। सभी को उसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता रखनी चाहिये। धर्मनिरपेक्षता मखौल की वस्तु नहीं है। मोदी राष्ट्रीय स्वयम्सेवक संघ के प्रशिक्षित स्वयम्सेवक हैं। स्वयम् राष्ट्रीय स्वयम्सेवक संघ ने कभी भी धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं किया। संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरू गोलवलकरसमेत सभी संघ प्रमुखों ने यह कहा है कि धर्मनिरपेक्षता, भारतीय राष्ट्र का आधार हो ही नहीं सकती। अभी भी संघ के नेताओं के भाषणों और उनके प्रकाशनों में धर्मनिरपेक्षता का मजाक उड़ाया जाता है। भारतीय जनता पार्टी समेत संघ से जुड़े अनेक संगठन, धर्मनिरपेक्षता में आस्था रखने वालों को छद्म धर्मनिरपेक्षवादी कहते हैं। इस तरह मोदी ने बुर्के को धर्मनिरपेक्षता से जोड़कर, धर्मनिरपेक्षता का मजाक उड़ाया है। मोदी इस बात को भूल जाते हैं कि उन्होंने उस संविधान की रक्षा की शपथ ली है जिसका मूल आधार धर्मनिरपेक्षता है। इसके बावजूद यदि वे धर्मनिरपेक्षता का मजाक उड़ाते हैं तो सच पूछा जाए तो वे संविधान का अपमान करते हैं। और यदि ऐसा व्यक्ति जिसने स्वयम् संविधान की रक्षा की शपथ ली है वह उस शपथ के विपरीत आचरण करे तो वह उस पद पर बने रहने की पात्रता खो देता है। जिस संविधान के प्रावधानों के अन्तर्गत वे विधायक और मुख्यमंत्री बने हैं, उस संविधान का मखौल बनाने का उन्हें अधिकार नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं। एल.एस.हरदेनिया। लेखक वरिष्ठ 
पत्रकार व धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं। L. S. Hardenia. As a professional journalist, a trade unionist, and officer of organizations like Sarvadhrma Sadbhav Samiti, Samprdayikta Virodhi Committee, Qaumi Ekta Trust, National Secular Forum, Centre for Study of Society and Secularism, and Madhya Pradesh government’s National Integration Committee, for many years.
स्त्रोत : हस्तक्षेप डॉट कॉम, 17/07/2013 |

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