इंडिया टुडे की फीचर एडिटर मनीषा पांडेय |
एक काम क्यों नहीं करते, इस मुल्क को आप हिंदू, सवर्ण, मर्द राष्ट्र घोषित कर दीजिए!
मनीषा पांडेय
"मैं पिछले दस सालों से घर से दूर अकेले रह रही हूं। लेकिन मेरी मां को आज भी लगता है कि मैं घर वापस आ जाऊं। लड़की के अकेले रहने, अकेले घर से बाहर निकलने के ख्याल से उन्हें बार-बार इलाहाबाद की उस महिला डॉक्टर का ख्याल आता है, जिसे कुछ लोगों ने रेप करके मार डाला था। दिल्ली गैंग रेप के बाद उनका डर और गहरा हो गया है। वो जानती हैं, रहना तो पड़ेगा लेकिन उनके दिल को सुकून नहीं है। उन्हें कतई भरोसा नहीं है कि कभी कुछ बुरा नहीं हो सकता। इस मुल्क में उन्हें अपनी बच्ची की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं लगती। वो डर में जीती हैं।"
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"मेरा एक मुसलमान दोस्त मुंबई में रहता है। शहर में जब-जब बम फटता है, उससे बहुत दूर बिजनौर में बैठी उसकी मां डर जाती है। वो नास्तिक है। खुदा से उसका कभी याराना नहीं रहा। वो न नमाज पढ़ता है, न रोजे रखता है। लेकिन उसे याद है कि हर नौकरी में लोगों ने उसके नाम के कारण उसे तिरछी निगाहों से देखा है। जब-जब बम फटे, उससे उसकी देशभक्ति का सबूत मांगा है। वो जिस मुल्क में पैदा हुआ, उसके दादा, परदादा, दादा के दादा, जिस मुल्क में जन्मे और जिसकी मिट्टी में दफन हो गए, वो मुल्क उससे रोज उसकी देशभक्ति का सबूत मांगता है। दूर देश बैठी उसकी मां रोज डर में जीती है। मां को भरोसा नहीं इस मुल्क पर कि वो उसके बच्चे की हिफाजत करेगा। इस मुल्क ने मां को वो भरोसा कभी नहीं ही दिया।
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मेरा एक और दोस्त है। बहुत गरीब दलित परिवार से आता है। उसकी विधवा मां ने लोगों के घरों में झाडू-बर्तन करके उसे पढ़ाया। आज वो पीसीएस ऑफीसर है। लेकिन अब भी वो कभी-कभी उदास होता है क्योंकि उसकी सारी पढ़ाई, मेहनत, पोजीशन और पावर के बावजूद लोग उसे आज भी पीठ पीछे चमार का लड़का कहकर बुलाते हैं। उसकी सारी उपलब्धियों का ठीकरा रिजर्वेशन के सिर फोड़ देते हैं। मां अपनी धुंधलाई आंखों से बेटे को देखती है और सोचती है कि इतना पढ़-लिखकर भी आखिर बदला क्या। उसकी मां को भी इस मुल्क पर भरोसा नहीं। क्या चाहिए था जिंदगी में। इज्जत और स्वाभिमान की दो रोटी। रोटी तो मिली लेकिन इज्जत और स्वाभिमान नहीं।
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ये सारी माएं तुम्हारे महान लोकतांत्रिक मुल्क में आज भी डर में जीती हैं। वो मुल्क पर भरोसा कर न सकीं, मुल्क उन्हें भरोसा करा न सका। क्योंकि ये मुल्क औरतों के, दलितों के, मुसलमानों के स्वाभिमान का घर है ही नहीं। एक काम क्यों नहीं करते। अपने मुल्क को आप हिंदू, सवर्ण, मर्द राष्ट्र घोषित कर दीजिए।
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मेरे मुसलमान दोस्त से ये मुल्क बार-बार देशभक्ति का सबूत मांगता है। एक औरत से उसका पति उसके शरीर की पवित्रता का सबूत मांगता है। बलात्कार की शिकार महिला से पुलिस, कानून, न्यायालय तक अच्छे चरित्र का सबूत मांगते हैं। एक दलित से उसकी खून की श्रेष्ठता का सबूत मांगते हैं। नौकरी और प्रमोशन में योग्यता का सबूत मांगते हैं। तुम्हारे मुल्क में हम सब हर क्षण संदेह के घेरे में हैं। तुम्हारे हिंदू, सवर्ण, मर्द राष्ट्र में हमारे लिए न इज्जत है, न स्वाभिमान।
स्त्रोत/साभार : भड़ास४मीडिया (इंडिया टुडे की फीचर एडिटर मनीषा पांडेय Manisha Pandey के फेसबुक वॉल से.)
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