Friday, February 1, 2013

देश का माहौल बिगाड़ने वाले तथाकथित बड़े लोग


"मनुवादी आशीष नन्दी कहते हैं कि भ्रष्टाचार के जनक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोक सेवक हैं। आशीष नन्दी को ये सब कहने का साहस इस कारण से हुआ कि कुछ ही दिन पूर्व प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि यदि वह भारत का प्रधानमंत्री बन जाये तो मुसलमानों से सभी प्रकार के संवैधानिक हकों को एक झटके में छीन लेंगे। इस बयान पर देश के शूद्र, तथाकथित बुद्धिजीवी, संविधान के रक्षक चुप्पी साधे रहे। सभी जानते हैं कि देश के 90 फीसदी से अधिक मुसलमानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों के पूर्वजों के वंशज हिन्दुओं से धर्मपरिवर्तित होकर मुसलमान बने हैं, जो मनुवादियों के लिये आज भी शूद्र ही हैं।"

डॉ पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

यदि हम इतिहास उठाकर देखें तो पायेंगे कि हर क्षेत्र में हर बार भारत का सौहार्द बिगाड़ने का काम भारत के तथाकथित बड़े कहलाने वाले लोगों ने ही किया है। इसकी शुरूआत कभी भी भारत के आम आदमी ने नहीं की है। चाहे बात अखण्ड भारत के स्वतन्त्रता सेनानी और पाकिस्तान के जनक मुहम्मत अली जिन्ना से शुरू की जाये या भारत के बहुसंख्यक शूद्रों (दलित, आदिवासियों और पिछड़ों) के सेपरेट इलेक्ट्रोल के अधिकार को छीनने के लिये अनशन को हथियार बनाने वाले मोहनदास कर्मचन्द गॉंधी की करें या अहिंसा के नाटककार पुजारी मो. क. गॉंधी के हत्यारे और कट्टरपंथी हिन्दू नाथूराम गोडसे की बात की जाये।

आगे चलकर अयोध्या-बाबरी विवाद को जानबूझकर भड़काने वाले लालकृष्ण आडवाणी की बात करें या कट्टर हिन्दुत्व को भड़काकर अपनी रोटी सेकने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उत्पाद प्रवीण तोगड़िया, उमा भारती, विनय कटारिया, नरेन्द्र मोदी जैसे मुसलमान विरोधी लोगों की बात करें या शिव सेना के बाला साहेब ठाकरे, उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे और उनके गुण्डों के कुकर्मों को देखें या फिर कथित बुद्धिजीवी कहलाने वाले समाज विज्ञानी और प्रोफेसर आशीष नन्दी की बात करें। स्त्री एवं शूद्र विरोधी ढोंगी संत आसाराम या हिंदुत्व के ठेकेदार संघ के मुखिया मोहन भागवत की बात करें। ये सब के सब इस देश के बहुसंख्यक लोगों (अर्थात शूद्रों), स्त्रियों और मुसलमानों को दूसरे, तीसरे और चौथे दर्जे का नागरिक मानते हैं। शूद्र, स्त्री एवं मुसलमानों को देश की कुल आबादी में से घटाने के बाद बचे शेष कुलीन मुनवादी लोग इस देश पर विगत हजारों सालों की भांति आगे भी हजारों सालों तक अपना अमानवीय राज कायम रखने के लिये तरह-तरह के पेंतरे चलते रहते हैं। जिसके लिये इन लोगों ने शूद्रों, स्त्रियों और मुसलमानों में से भी कुछ समाज-द्रोहियों को ललचाकर अपने मिला लिया है। जिन्हें दिखावटी तौर पर आगे रखकर ये सभी वर्गों के हितचिन्तक होने का ढोंग करते रहते हैं!

हिन्दुत्व के ये कथित संरक्षण अपनी संविधानेत्तर और कथित धार्मिक सत्ता और मनुवादी विचारधारा को हर कीमत पर कायम रखने के लिये अपनी खुद की गुण्डा-पुलिस रखते हैं। जो 14 फरवरी को वेलैटाइंस डे पर, मुम्बई से उत्तर भारतीयों को खदेड़ते समय, दलितों को मन्दिरों से लतियाते समय और स्त्रियों को धार्मिक आयोजनों पर बहिष्कृत करते हुए और छेड़ते समय अपना कमाल दिखाती रहती है। ये पुलिस देश में धर्म के नाम पर तरह-तरह के कुकर्म करती रहती है। जिसके सुफल गुजरात के डाण्डिया रास के बाद गर्भपात क्लीनिकों के आंकड़ों से प्रमाणित होते हैं। जिसे रोकने के लिये अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने तो बाकायदा डाण्डिया रास स्थलों के आसपास सरकारी खर्चे पर लाखों गर्भनिरोधक पिल्स और कण्डोम वितरित करवाकर इस बात को प्रमाणित किया था कि धार्मिक आयोजन कुलीन हिन्दुओं के लिये आज भी ऐश-ओ-आराम के सुअवसर होते हैं। आजाद भारत में जबकि देवदासी बनाने की अमानवीय हिन्दू प्रथा संवैधानिक तौर पर समाप्त हो चुकी है तो ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों का भव्यता से आयोजन किया जाने लगा है, जिनमें युवा लड़कियां धर्म के नाम पर घर से बाहर निकलती हैं और उनके साथ मनुवादियों की स्व-घोषित पुलिस के कमाण्डर और पैदल सेना के लोग यौनसुख भोगने को उसी प्रकार से आजाद होते हैं, जैसे कि देवदासियों के साथ उनके पूर्वज हुआ करते थे। इसी का परिणाम है कि आज डाण्डिया रास गुजरात से निकलकर अनेक प्रान्तों में अपने पैर पसार चुका है!

इसके उपरान्त भी मनुवादी आशीष नन्दी कहते हैं कि भ्रष्टाचार के जनक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोक सेवक हैं। आशीष नन्दी को ये सब कहने का साहस इस कारण से हुआ कि कुछ ही दिन पूर्व प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि यदि वह भारत का प्रधानमंत्री बन जाये तो मुसलमानों से सभी प्रकार के संवैधानिक हकों को एक झटके में छीन लेंगे। इस बयान पर देश के शूद्र, तथाकथित बुद्धिजीवी, संविधान के रक्षक चुप्पी साधे रहे। सभी जानते हैं कि देश के 90 फीसदी से अधिक मुसलमानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों के पूर्वजों के वंशज हिन्दुओं से धर्मपरिवर्तित होकर मुसलमान बने हैं, जो मनुवादियों के लिये आज भी शूद्र ही हैं।

शूद्रों को अजा, अजजा, ओबीसी और मुसलमानों के नाम पर मनुवादी लगातार गालियॉं देते रहते हैं और शूद्र चुपचाप सब कुछ सहते और सुनते रहते हैं। यही कारण है कि शूद्र विरोधी भारतीय न्यायपालिका के कुछ जजों ने ऐसे निर्णय दिये हैं, जिनके कारण इस देश के सामाजिक माहौल को बिगाड़ने का काम किया है। इन निर्णयों से इस देश का माहौल मनुवाद को मजबूत करने में सहायक का काम कर रहा है। सभी जानते हैं कि शूद्रों को हजारों सालों तक भारत में मानव नहीं समझा गया। इसी वजह से उन्हें सरकारी क्षेत्र में प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये आरक्षण प्रदान किया गया। जिसे अमलीजामा पहनाने के लिये संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में साफ़ तौर पर प्रारम्भ से ही ये सुस्पष्ट व्यवस्था की गयी थी कि आरक्षण "नियुक्ति के समय" अर्थात् "नौकरी प्राप्त करते समय" और "पदों पर" अर्थात् "पदोन्नति के समय" दिया जायेगा। जिसकी मनुवादी विचारधारा के पोषक जजों ने बार-बार, मनुवादियों और आरक्षणविरोधियों के पक्ष में और संसद की भावना के विपरीत व्याख्या की गयी, जिसे संसद ने अनेक बार ख़ारिज किया और शूद्रों को आरक्षण के हक से वंचित करने के लिये अनेकों बार न्यायिक शक्ति की आड़ में सताया गया! ये सिलसिला अनवरत आज भी जारी है। इस प्रकार इस देश के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और न्यायिक माहोल को बिगाड़ने में सबसे अधिक यदि किसी का योगदान है तो वे हैं शूद्र-विरोधी-मनुवादी तथाकथित बड़े-बुद्धिजीवी, राजनेता, धर्मनेता और जज|

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