अनाथ और गुमशुदा बच्चों का बालगृह हमारे योगदान से चलता है
आज मैं जयपुर (राजस्थान) के एक अनाथ बालगृह में गया। वहाँ रह रहे बच्चों के बारे में प्राथमिक जानकारी हासिल की और अपनी श्रद्धा अनुसार अनुदान करके आया। छोटे और बढे (किशोर) बच्चे मिलकर साथ रहते हैं। साथ पढ़ते, खाते और खेलते-कूदते हैं। मुझे इस बात से शुकून मिला कि बच्चे अपने आपको, अपने हालातों में ढाल चुके हैं। उनके चेहरे पर मायूसी या तनाव देखने को नहीं मिला। संभव है कि उन्होंने अपने जीवन और अपनी नीयति को सहज भाव से स्वीकार कर लिया है। बेशक मैं वहां कुछ पलों को रुका, लेकिन वहां से एक नयी सोच साथ लेकर आया। मेरे साथ मेरा बड़ा बेटा "पंकज" (22) भी था। वहाँ बच्चों को दस-दस की संख्या में अलग-अलग रखा हुआ है, जहाँ पर उनकी एक माँ होती है, जो सबको खाना बनाकर खिलाती है और सबको स्कूल भेजती है। बातचीत से ज्ञात हुआ कि वहाँ कुछ और माओं की जरूरत है। मैंने इस बारे में कुछ करने को उनसे कहा है। बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं। बच्चों को पूरी तरह से सैटल हो जाने तक यहाँ रखा जाता है। अन्दर से बच्चे कितने संतुष्ट हैं, इस बात को भी जानने का प्रयास अगले भ्रमण के दौरान किया जायेगा।
समाज में इस प्रकार के लोग हैं, जो दान देते हैं, जिनके कारण अनाथ और गुमशुदा बच्चों का जीवन संवर रहा है। संवेदनशील और संजीदा लोगों का समाज को बनाये रखने में बहुत बढ़ा योगदान है। निश्चय ही ये ऐसा कार्य है, जिस पर कम से कम ऐसे लोगों को तो सोचना ही चाहिए, जिसके पास पर्याप्त संसाधन हैं।
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