Sunday, December 18, 2011

एफ आई आर में आनाकानी

पुलिस अक्सर एफ.आई.आर. दर्ज करने में आनाकानी करती है, विभिन्न बहाने गढ़ती है। यद्यपि कानून में स्पष्ट प्रावधान है कि क्षेत्राधिकार या किसी भी अन्य मुद्दे को लेकर पुलिस एफ.आई.आर. दर्ज करने से मना नहीं कर सकती। यहां तक कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 155 तथा राजस्थान पुलिस नियम 1965 के नियम 5.1 में स्पष्ट उल्लेख है कि यदि मामला असंज्ञेय अपराध का है तो भी रोजनामचा में प्रविष्टि की जायेगी किन्तु व्यवहार में पुलिस तो संज्ञेय मामलों में भी अपराध दर्ज नहीं करती है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 में यह प्रावधान है कि यदि प्रभारी पुलिस थाना एफ.आई.आर. दर्ज करने से मना करे तो जिला पुलिस अधीक्षक को लिखित में सूचना देकर एफ.आई.आर. दर्ज करवायी जा सकती है। वैकल्पिक रूप में धारा 190, 200 या 156 के अन्तर्गत मजिस्ट्रेट न्यायालय में भी आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है। अक्सर नागरिकों को पुलिस द्वारा यह कहा जाता है कि थाना प्रभारी बाहर गये हुए हैं अतः उनके आने पर एफ.आइ.आर. दर्ज की जावेगी। जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि प्रभारी अधिकारी हमेशा थाने पर उपलब्ध रहता है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (ण) में हैड कांस्टेबल स्तर तक का पुलिस अधिकारी थाना प्रभारी हो सकता है। राजस्थान पुलिस नियम, 1965 के नियम 3.8 में कहा गया है कि पुलिस थाना लिपिक पुलिस थाना छोड़कर बाहर नहीं जायेगा। नियम 3.64 में लिपिक का कर्त्तव्य उच्च अधिकारियों की अनुपस्थिति में प्रभारी के तौर पर इस प्रकार कार्य करना बताया गया है ।थाना प्रभारी का पद कभी खाली नहीं रहता अतएव इस आधार पर पुलिस कभी भी एफ.आई.आर. दर्ज करने से मना नहीं कर सकती। एफ.आई.आर. दर्ज करने मात्र से ही किसी पक्षकार को कोई क्षति नहीं पहुंचती और न ही एफ.आई.आर. दर्ज करते ही अभियुक्त को गिरफ्तार करना आवश्यक है। राष्ट्रीय पुलिस आयोग की तीसरी रिपोर्ट के अनुसार 60 प्रतिशत गिरफ्तारियां अनावश्यक तथा भ्रष्टाचार का प्रमुख स्रोत है जिन पर जेलों पर होने वाले व्यय का 43.2 प्रतिशत भाग व्यय किया गया है।
राजस्थान पुलिस अधिनियम 2007 की धारा 31 में कहा गया है जहां एक व्यक्ति जिला पुलिस अधीक्षक को सूचना देता या भेजता है जो कि प्रथम दृश्टया संज्ञेय अपराध का गठन करती है और यह आरोपण करता है कि क्षेत्राधिकार वाले पुलिस थानों के प्रभारी ने सूचना दर्ज करने से मना कर दिया है तो जिला पुलिस अधीक्षक ऐसे पुलिस या प्रभारी के विरूद्ध तुरन्त अनुशासनिक कार्यवाही  करेगा अथवा करवायेगा ।
राजस्थान पुलिस नियम, 1965 के नियम 6.10 में कहा गया है कि अपराध की सूचना मिलने पर तुरन्त एक पुलिस ऑफिसर घटनास्थल के लिए रवाना होगा और मामले से सम्बन्धित तथ्यों का संग्रहण करेगा ताकि गड़बड़ी को रोका जा सके।
विभिन्न संवैधानिक न्यायालयों ने भी एफ.आई.आर. सम्बन्धित प्रावधानों की निम्नानुसार व्याख्या की है। हिमाचल उच्च न्यायालय ने मुन्नालाल बनाम राज्य (1992 क्रि.ला.ज. 1558 हि.प्र.) में कहा है कि पुलिस के पास एफ.आई.आर. दर्ज करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है और उसके बाद अनुसंधान प्रारम्भ होता है। गुजरात उच्च न्यायालय ने जयन्तीभाई लालू भाई पटेल बनाम गुजरात राज्य (1992 क्रि.ला.ज. 2377 गुजरात) के मामले में कहा है कि अभियुक्त के विरूद्ध एफ.आई.आर. दर्ज कर उसकी एक प्रति संहिता के प्रावधानों के अनुसार मजिस्ट्रेट को भेजी जाती है। एफ.आई.आर. ऐसा सार्वजनिक दस्तावेज है जिस पर दं.प्र.सं. की धारा 162;(हस्ताक्षरित न होना और साक्ष्य में काम में न लेना) लागू नहीं होती।

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