Monday, April 11, 2016

वंचितों पर जिन्दा वंचित वर्ग विरोधी पत्रिका का संघ की सह पर आरक्षण विरोधी अभियान जारी

वंचितों पर जिन्दा वंचित वर्ग विरोधी पत्रिका का
संघ की सह पर आरक्षण विरोधी अभियान जारी
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' 
एक तरफ तो राजनैतिक लाभ उठाने के लिये बकवास@ वर्ग द्वारा देशभर में बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेड़कर की 125वीं जयन्ति मनाने का षड़यंत्रपूर्ण नाटक खेला जा रहा है। जिसकी छद्म और छलपूर्ण खबरें मीडिया में छायी हुई हैं। वहीं दूसरी और वंचित मोस्ट@ वर्ग की ओर से बाबा साहब की जयन्ति मनाने की वास्तविक और देश को जगाने वाली खबरों को बकवासवर्गी मीडिया द्वारा जानबूझकर दबाया जा रहा है। तीसरी ओर बकवासवर्गी मीडिया की ओर से देश के लोगों को लगातार गुमराह करके आरक्षण के विषय पर भड़काया जा रहा है। इस सबके कारण सामाजिक न्याय विषय पर अनारक्षित वर्ग के संविधान के प्रावधानों और आरक्षण व्यवस्था से अनजान युवा लोगों की अज्ञानता को बढावा देकर, रुग्ण मानसिकता को हवा दी जा रही है।

इसी क्रम में राजस्थान पत्रिका के 11 अप्रेल, 2016 के जयपुर शहर संस्करण के सम्पादकीय पृष्ठ आठ आर्य पुत्र एसएन शुक्ला, (महासचिव—लोकप्रहरी) का लेख प्रकाशित किया गया है, जिसका शीर्षक है—'आरक्षण—जातिगत आधार से निकलकर सभी धर्मों के गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों को मिले लाभ अब आर्थिक आधार अपनाने का वक्त'। जिसमें मूल रूप से दो गलत, आपत्तिजनक, असंवैधानिक और भ्रामक बातें लिखी/प्रकाशिक की गयी हैं :—

पहली सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा गया है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि ''आरक्षण केवल जातिगत आधार पर नहीं दिया जा सकता।'' जबकि इन आर्यपुत्र लेखक शुक्ला और आर्यपुत्र पत्रिका प्रकाशक गुलाबचन्द कोठारी को शायद अच्छी तरह से ज्ञान है कि संविधान में जातिगत आधार आरक्षण है ही नहीं और न केवल पिछले साल, बल्कि​ संविधान लागू होने के तत्काल बाद से सुप्रीम कोर्ट अनेकों बार इस बात को निर्णीत कर चुका है कि आरक्षण जातिगत आधार पर नहीं दिया जा सकता। क्योंकि आरक्षण जातियों को नहीं, बल्कि जातियों के समूह अर्थात् समाज के वंचित वर्गों को प्रदान किया गया है। आरक्षण के लिये सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ी एक समान जातियों को वर्गीकरण करके मिलते-जुलते वर्गों में बांटकर आरक्षण प्रदान किया गया है। जिसकी संवैधानिकता की पुष्टि करते हुए पश्चिम बंगाल बनाम अनवर अली सरकार, एआईआर 1952 एसएसी 75, 88 में सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि
''चूंकि जब तक कानून उन सबके लिये, जो किसी एक वर्ग के हों, एक जैसा व्यवहार करता है, तब तक समान संरक्षण के नियम का अतिक्रमण नहीं होता, (अनुच्छेद 14 समान संरक्षण की बात कहता है) इसलिये व्यक्तियों का तथा जिनकी स्थितियां सारभूत रूप से एक जैसी हों उन्हें एक ही प्रकार की विधि के नियमों के अधीन (आरक्षण प्रदान करके) रखने का असंंदिग्ध अधिकार विधायिका को प्राप्त है।''
डॉ. प्रद्युम्न कुमार त्रिपाठी द्वारा लिखित ग्रंथ 'भारतीय संविधान के प्रमुख तत्व' के पृष्ठ 277 को आर्यपुत्र लेखक शुक्ला, पत्रिका प्रकाशक कोठारी और उन जैसे पूर्वाग्रही एवं रुग्ण मानसिकता के लोगों को निम्न पंक्तियों को समझना चाहिये। जिसमें स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है कि—
समानता के मूल अधिकार का संवैधानिक प्रावधान करने वाला ''अनुच्छेद 14 विभेद की मनाही नहीं करता, वह केवल कुटिल विभेद की मनाही करता है, वर्गीकरण की मनाही नहीं करता, प्रतिकूल वर्गीकरण की मनाही करता है।'' इस प्रकार आरक्षण जातिगत नहीं है। अत: यह जाति आधारित विभेद नहीं है, बल्कि जाति आधारित कुटिल विभेद मिटाने के लिये वंचित जातियों के लोगों का न्यायसंगत वर्गीकरण है।
पत्रिका में प्रकाशित उक्त लेख में आर्य—पुत्र लेखक शुक्ला और प्रकाशक कोठारी ने समाज में वैमनस्यता फैलाने वाली दूसरी बात लिखी है कि—'मण्डल आयोग के बाद प्रशासनिक दक्षता नीचे गयी।'' इन दोनों आर्य पुत्रों को क्या यह ज्ञात नहीं है कि मण्डल आयोग की सिफारिशों के आधार पर करीब 55 फीसदी ओबीसी आबादी को बकवासवर्गी सरकारों ने मात्र 27 फीसदी आरक्षण ही प्रदान किया था और अभी तक नीति—नियन्ता प्रशासनिक पदों पर ओबीसी को एक फीसदी भी आरक्षण नहीं मिला है? अजा एवं अजजा को साढे बाईस फीसदी आरक्षण के होते हुए प्रथम श्रेणी प्रशासनिक पदों पर पांच फीसदी भी प्रतिनिधत्व नहीं हैं और नीति—नियन्ता पदों पर प्रतिनिधित्व शून्य है।

ऐसे में प्रशासनिक दक्षता गिरने के लिये आरक्षण व्यवस्था को दोषी ठहराना सार्वजनिक रूप से सम्पूर्ण समाज को गुमराह करने का गम्भीर अपराध है। जिसके लिये ऐसे दुराग्रही लेखक औ प्रकाशक के विरुद्ध सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने, लोगों को संविधान के विरुद्ध उकसाने, वंचित वर्गों के संवैधानिक हकों को छीनने और देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिये। मगर दु:ख है कि वंचित वर्ग के लोग ऐसे मामलों में चुप्पी साधे बैठे रहते हैं और वंचित वर्ग के संवैधानिक राजनैतिक तथा प्रशासनिक प्रतिनिधि बकवास वर्ग की गुलामी करने में मस्त रहते हैं। जिसका दुखद दुष्परिणाम है—शुक्ला और कोठारी जैसों द्वारा खुलकर संविधान की अवमानना करने वाले लेख लिखकर प्रकाशित करना और समाज को गुमराह करते रहना।
शब्दार्थ :
@बकवास (BKVaS= Brahman + Kshatriy+ Vaishay + Sanghi)
@मोस्ट (MOST=Minority+OBC+SC+Tribals)/ 
- : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
9875066111/03-04-2016/09.02 AM
@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : मूलवासी-आदिवासी अर्थात रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया। होम्योपैथ चिकित्सक और दाम्पत्य विवाद सलाहकार। राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक) और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ।
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