माधुरी पाटिल केस की सिफारिशों के चलते-
"एक भाई सामान्य और दूसरा भाई जनजाति"
लेकिन फिर भी मीणाओं के कथित महानायकों द्वारा इसे राजस्थान में लागू
करवाया जा रहा है और महाराष्ट्र में इसके खिलाफ 6 घंटे में विधेयक पारित!
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हक़ रक्षक दल बहुत पहले से ही आगाह करता आ रहा है कि करीब तीन दशक पहले से मनुवादियों द्वारा न्यायपालिका के मार्फ़त माधुरी पाटिल केस की सिफारिशों को लागू करके अजा, अजजा और ओबीसी के आरक्षित अस्तित्व को समाप्त किया जाने का सुनियोजित षड्यंत्र रचा गया था। लेकिन इससे भी दुखद बात तो यह है कि इस माधुरी पाटिल केस की असंवैधानिक सिफारिशों को लागू करवाने के लिए खुद मीणाओं के कथित महानायकों (क़ानून के कथित महा विद्वानों) की और से राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दायर की गयी और मीणा-मीना विवाद के समाधान के नाम पर एकत्रित धन को इस असंवैधानिक निर्णय को लागू करवाने के लिए खर्च किया गया। सबसे दुखद तो यह है कि जो हाई कोर्ट राज्य सरकार की इस बात को तो सुनने को तैयार नहीं कि मीना और मीणा (Mina/Meena) में केवल स्पेलिंग का अंतर है, अन्यथा दोनों जाति एक ही हैं। वही हाई कोर्ट माधुरी पाटिल केस की अन्यायपूर्ण सिफारिशों को लागू करने हेतु दायर याचिका को तुरंत स्वीकार कर चुका है। राज्य सरकार अब माधुरी पाटिल केस की असंवैधानिक सिफारिशों के क्रियान्वयन के लिए कानूनी सिस्टम बनाने में लगी हुई है। जिसके लागू होने पर वो होगा जो महाराष्ट्र में हो रहा है-अर्थात
"एक भाई सामान्य और दूसरा भाई जनजाति"
माधुरी पाटिल केस के लागू होने के कारण महाराष्ट्र में डेढ़ लाख जाति पड़ताल की अर्जियां पेंडिंग हैं। जिसके चलते लोग चुनाव नहीं लड़ पाते हैं, आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के नियुक्ति/नौकरी आवेदन निरस्त हो जाते हैं। इसी कारण से राजनैतिक जनप्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने में बाधक माधुरी पाटिल केस की सिफारिशों से राजनेताओं को मुक्ति दिलाने के लिए महाराष्ट्र विधान मंडल के दोनों सदनों ने छह घंटे में विधेयक पारित किया। आप भी पढ़ें :-
माधुरी पाटिल केस के दुष्प्रभाव को काम करने हेतु
छह घंटे में विधेयक बनकर दोनों सदनों में पारित
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अनुराग त्रिपाठी, मुंबई
महाराष्ट्र विधानमंडल के इतिहास में शायद ही इस तरह का घटना हुई होगी। दोपहर 12 बजे राज्य सरकार ने तय किया कि उसे जाति पड़ताल से चुनाव लड़ने वालों को राहत देनी है। आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार जाति सर्टिफिकेट चुनाव जीतने के छह महीने बाद जमा करवा सकेंगे। विधानसभा और विधानपरिषद की दिन भर की 'कार्यक्रम पत्रिका' में इसका कोई जिक्र तक नहीं था। विधायकों को दोपहर तक इसकी भनक तक नहीं लगी थी।
दोपहर से बनना शुरू हुआ विधेयक
सरकार के स्तर पर फैसला हुआ और अधिकारियों की फौज इसके लिए विधेयक बनाने में जुट गई। विधानसभा और विधानपरिषद, दोनों सदनों का राजनीतिक वातावरण तपा हुआ था। परिषद तो दोपहर से भूमि अधिग्रहण पर सरकारी अधिसूचना को लेकर आठ बार स्थगित हो चुकी थी। यहां सभी पक्षों को मंजूर हो सके, ऐसा विधेयक तैयार करके उसे दोनों सदनों में पारित करवाना था।
ड़ेढ लाख अर्जियां पेंडिंग हैं
जाति पड़ताल की शर्त रखे जाने की स्थिति को नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं था। हुआ यूं था कि स्थानीय निकाय में आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने वाले सैंकड़ों मामलों में जाति सर्टिफिकेट फर्जी पाए गए। इसके बाद पिछली कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने हर सर्टिफिकेट की पड़ताल के लिए उच्चस्तरीय समिति बना दी थी। समिति का काम इतनी धीमी गति से चल रहा था कि महाराष्ट्र भर में डेढ़ लाख जाति पड़ताल की अर्जियां पेंडिंग हैं। सभी राजनीतिक दलों को इससे परेशानी हो रही थी।
कई बार बदला गया ड्राफ्ट
आनन-फानन में नए विधेयक का ड्राफ्ट बना। शुरुआत में तय हुआ कि महानगरपालिकाओं में यह सुविधा लागू की जाए। फिर बाकी नगरपालिकाओं में इसकी सुविधा क्यों न दी जाए, यह सवाल उठा, तो एक बार फिर ड्राफ्ट बदला गया। होते-होते यह तय हुआ कि जिला परिषदों और पंचायतों को यह सुविधा क्यों न दी जाए। शाम होते-होते कई प्रारूप बदले जाने के बाद विधेयक बनकर तैयार हुआ।
हंगामें में विधेयक पारित
विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री गिरीश बापट ने सदन को बताया कि विधानपरिषद में विधेयक पर चर्चा हो रही है। जबकि परिषद में हंगामा कायम रहा और विधानसभा विधेयक पारित करके दिन भर के लिए स्थगित हो गई। तब तक चर्चा नहीं हो पाई। वरिष्ठ मंत्री एकनाथ खडसे ने विधेयक सदन में रखने का काफी प्रयास किया, मगर वे सफल नहीं सके। देर शाम शोरगुल और हंगामे के बीच बिना किसी चर्चा के विधानपरिषद में उपसभापति वसंत डावखरे ने विधेयक पारित होने की घोषणा की। विधेयक के लिए दिन भर जुटे पड़े मंत्री समूह और वरिष्ठ अधिकारियों के मुरझाए चेहरे खिल उठे। छह घंटे में विधेयक बनाकर उसे दोनों सदनों में पारित करने की बधाई एक-दूसरे देते हुए विधानभवन से हंसते-मुस्कुराते घरों को रवाना हुए।
क्या है नए विधेयक में
-महानगरपालिका, नगरपालिका, जिला परिषद और पंचायतों की आरक्षित सीटों पर चुने जनप्रतिनिधियों को रियायत
-चुनाव जीतने के छह महीने बाद जाति पड़ताल सर्टिफिकेट जमा कराने की छूट
-यह रियायत 2017 तक के स्थानीय निकाय चुनावों तक लागू रहेगी।
'यह वास्तव में एक तरह का इतिहास रचा गया है। दोपहर 12 बजे से हम (अधिकारी) इस काम में जुटे हुए थे। विधेयक दोनों सदनों में पारित होने के बाद मन को संतोष हुआ।'
-मनीषा म्हैसकर
सचिव, नगर विकास
स्रोत : http://navbharattimes.indiatimes.com/…/article…/46829755.cms
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