Thursday, September 20, 2012

एकाकीपन

डॉ. कल्पना निगम

सारी नैमते देता है, रब एक आध कमी भी कर देता है, अँधेरा अघोर पसरा रहता है, एकाकीपन में लाख छुपाओ खूब मुस्कुराकर या हँसकर, एक दिन मिला एक एकाकी, एकाकी से तो मंजर ह़ी जुदा था | जब पहले ने साहस कर, दिए हृदय के सारे द्वारे खोल, दूजे की हिम्मत भी गई डोल, पहले खूब हँसे बतियाये बहुत फिर अतीत के पन्ने खुले, कुछ गम के उभर आये गीत, महफ़िल में सदा हँसकर मुस्कुराकर हाँकी थी, डींगे खुश हैं बहुत हम अपने इस अकेलेपन में, तो क्यों मिलकर उस एकाकी से लुढ़क गए कुछ अश्रु से जो रखे थे छुपाकर बरसों से, पलकों की कोर में जिसने बरबस ह़ी बरसों पुरानी खोल दी पोल |
डॉ. कल्पना निगम, रतलाम, मध्य प्रदेश।

वही व्यक्ति अपना स्वामित्व पाना शुरू करता है, जो एकांत और निज को जीने लगता है। जो अपने साथ होने में ही आनंद पाता है। दुसरे के साथ होना ही जिसका एकमात्र सुख नहीं है; जिसका अपने साथ होना परम सुख बन जाता है।-ओशो  

No comments:

Post a Comment