Monday, August 13, 2012

भ्रष्टाचार की शुरुआत कहाँ से...?

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

आजादी के बाद से अनेक मोर्चों पर मनमानी और भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ छोटे-बड़े अनेक आन्दोलन देश में होते रहे हैं। जिनमें से अधिकतर का इतिहास है कि वे भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगाने के बाद समाप्त होते रहे हैं। पिछले एक वर्ष के दौरान समाज के एक वर्ग और कार्पोरेट घरानों के इशारों पर कदमताल करते मीडिया ने इस बात का पूरी तरह से प्रमाणित करने का भरसक प्रयास किया कि अन्ना हजारे के नेतृत्व में देश का सबसे बड़ा जनान्दोलन उठ खड़ा हुआ है, जो भ्रष्टाचारियों तथा भ्रष्ट व्यवस्था को उखाड़ फेंक-कर ही दम लेगा। लेकिन जो कुछ हुआ है, वोे देश की सारी जनता के सामने आ गया। देशवासियों को ज्ञात हो गया है कि अन्ना टीम के मुख्य कर्ताधर्ता एवं भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये बनाये जाने वाले जन लोकपाल के रचनाकारों में से प्रमुख स्वयं भूषण पिता-पुत्र मायावती की भ्रष्ट गंगा में डुबकियॉं लगाते रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रहे हेगड़े संविधान को धता बताकर के देश के दमित वर्गों के हितों के विरुद्ध निर्णय सुनाकर एक हृदयहीन और शोषक वर्गों के हितसाधक व्यक्ति के रूप में पहले से ही पहचाने जाते रहे हैं।

किरण बेदी चाहे स्वयं को कितनी ही पाकसाफ बतलाने की कोशिश करती रही हों। लेकिन काजल की कोठरी में कोई भी बेदाग नहीं निकल सकता? पुलिस की नौकरी में उन्होंने बड़े-बड़े काम करके दिखाने के बहुप्रचारिक काम या कारनामे किये, जिसके लिये उनको अनेक बार और अनेक स्तरों पर सम्मानित भी किया गया, लेकिन उनका असली चेहरा आज देश के समक्ष प्रकट हो चुका है। 

विदेशी संस्थाओं से अनुदान के नाम पर मोटी रकम लेने वाली संस्थाओं के कार्यक्रमों में जाने के लिये बेदी की ओर से लिये जाने वाले हवाई जहाज के टिकिट के किराये और असल में भुगतान किये जाने वाले किराये में भारी अन्तर देखा गया, जिसे स्वयं किरण बेदी ने अपनी गलती के रूप में स्वीकार कर लिया है। ऐसी संस्थाओं के कार्यक्रमों में जाने की बेदी को क्या जरूरत थी जो भ्रष्टाचार को बढावा देने में पूरी तरह से डूबी हुई हैं?

अरविन्द केजरीवाल को तो उनके अपने साथी ही तानाशाह की उपाधि दे चुके हैं। उन पर भी अनेक प्रकार के आरोप हैं। यही नहीं उन पर तो स्वयं अन्ना हजारे को दिग्भ्रमित करने तक के आरोप हैं। उनके साथियों का मानना है कि केजरीवाल देश के अगले प्रधान मंत्री बनने का ख्वाब पाले बैठे हैं।

इस प्रकार के हालातों के बीच अन्ना हजारे के नेतृत्व में संचालित भ्रष्टाचार विरोधी अन्दोलन जनता के लिये अनपेक्षित दुर्गति को प्राप्त होता दिख रहा है। जबकि हमने शुरू में ही इसे एक प्रायोजित नाटक करार दिया था। जिसके उपरोक्त के अलावा भी अनेक और भी कारण हैं, जिन पर देश के प्रबुद्ध लोग चिन्तन कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। फिलहाल हमें ये देखना है कि भ्रष्टाचार को समाप्त करने वाले ही भ्रष्ट व्यवस्था में स्वयं को समाहित क्यों कर लेते हैं? 

भारत के सन्दर्भ में देखा जाये तो एक समय था, जब केवल शीर्ष स्तर पर ही गलत काम हुआ करते थे। शीर्ष नेतृत्व द्वारा ऐसे लोगों को अभयदान प्राप्त था। जिसके लिये वाकायदा धर्म ग्रंथों में अभयदान देने की व्यवस्था की गयी थी। धर्मग्रंथकारों ने अपने वर्ग को संरक्षित करने के साथ-साथ सबसे पहले ऐसी व्यवस्था की, जिसमें शासक वर्ग को इस आपराधिक गठजोड़ में कहीं भय दिखाकर तो कहीं सजा से छूट प्रदान करके शामिल किया जाये और सत्ता को पोषित करने वाले व्यापारी वर्ग को भी मिला लिया।

जिसके परिणामस्वरूप मुठ्ठीभर इन तीनों वर्गों की तिकड़ी ने देश के तमाम लोगों और सम्पूर्ण व्यवस्था को अपने कैंजे में ले लिया। जिसके बारे में कुछ ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किया जाना भी जरूरी है, जिनसे ये बात प्रमाणित होती है कि मनमानी या भ्रष्टाचार की शुरुआत करने वाले कौन थे।

‘‘राजा यदि परम संकट की परिस्थिति में तो भी उसे ब्राह्मणों को कुपित नहीं करना चाहिये, (आज के सन्दर्भ में इसे आईएएस, आईपीएस और उनके मातहतों को समझा जा सकता है) क्योंकि कुपित ब्राह्मण सेना तथा वाहन सहित राजा (प्रधानमंत्री- मुख्यमंत्री व उनके मंत्री) का विनाश कर सकता है।’’-मनुस्मृति 9/312,

इसमें साफ संकेत दिया गया है कि मनमानी करने वाले ब्राह्मण के विरुद्ध किसी भी प्रकार की दण्डात्मक कार्यवाही के लिये राजा द्वारा सोचा भी नहीं जाना चाहिये।

आगे-मनुस्मृति 9/316, में ये भी साफ कर दिया कि ब्राह्मण चाहे विद्वान हो या मूर्ख वह नि:सन्देह पूज्यनीय ही होता है।

मनुस्मृति 9/319, में कहा गया है कि ब्राह्मण (आईएएस लॉबी) जिनका (प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री व उनके मंत्री) पथ प्रदर्शन करते हैं, वही क्षत्रिय (प्रधानमंत्री/ मुख्यमंत्री व उनके मंत्री) प्रगति कर सकते हैं। मतलब शासक वर्ग को प्रगति करनी है तो ब्राह्मण का पथप्रदर्शन चाहिये ही होगा और वो तब ही मिलेगा, जबकि उसे हर हाल में खुश रखा जाये। उसके कार्मों को अनदेखा किया जाये।

इस प्रकार से ब्राह्मण वर्ग ने स्वयं को सबसे पहले सबसे बड़ा वीआईपी का दर्जा दिलवाया और बाद में क्षत्रिय एवं वैश्य को छोटा वीआईपी बनाकर उन्हें मनमानी करने की व्यवस्था का पोषण किया। निम्न वर्गों (जनता) को इन वर्गों के कर्मों के बारे में सवाल उठाने पर पाबन्दी लगा दी और इस प्रकार से उच्च वर्ग की मनमानी और भ्रष्ट व्यवस्था का जन्म हुआ। यही व्यवस्था आज सरकार और प्रशासन में हर जगह पर देखी जा सकती है, जिसमें मंत्रियों, सचिवों, अफसरों और इंस्पेक्टरों को मनचाही करने और उसके पक्ष में सुरक्षा-संरक्षण के अनेक प्रकार के कानूनी सुरक्षाकवच प्राप्त हैं। जबकि आम जनता अभी भी सूद्र की भांति कुकर्मी या सुकर्मी सभी शासकों का सम्मान करने को विवश है!

इस व्यवस्था को बदलने के लिये देश में नवब्राह्मण बनाने की व्यवस्था को समाप्त करना होगा, जिसके लिये देश के हर व्यक्ति के अवचेतन में व्याप्त पुरानी ब्राह्मणवादी व्यवस्था को समाप्त समूल नष्ट करने के लिये, आगे बढकर ब्राह्मणवादी व्यवस्था के जनक और पोषक लोगों को काम करना होगा। जब तक कोई भी बीमारी जड़ से समाप्त नहीं होगी, ऊपरी दिखावटी उपचारों से उसका शमन सम्मव नहीं है।

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