पैशाचिक पिटाई से पुलिस अभिरक्षा में हुई मृत्यु के प्रमुख मामले गौरीशंकर शर्मा बनाम उ0प्र0 राज्य (ए.आई.आर. 1990 सु.को. 709) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह एक गंभीर अपराध है क्योंकि ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है जिससे नागरिकों की रक्षा करने की अपेक्षा की जाती है न कि अपनी वर्दी व अधिकारों का अपनी अभिरक्षा में रहे व्यक्तियों पर राक्षसी हमला करने की। पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु को गंभीरता से लिया जाना चाहिए अन्यथा हम पुलिस राज की स्थापना करने में सहायक होंगे। इसे भारी हाथ से रोका जाना चाहिए। ऐसे मामलों में दण्ड ऐसा होना चाहिए जो ऐसे व्यवहार में लिप्त होने से अन्य को रोके। इसमें नरमी के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। अतः निचले न्यायालय द्वारा दिये गये दण्ड को घटाना न्यायोचित नहीं होगा और निचले न्यायालय द्वारा दी गई कठोर कारावास की सजा को यथावत रखा गया।
न्यायालय द्वारा मांगे जाने पर पुलिस द्वारा डायरी न्यायालय को उपलब्ध नहीं करवाये जाने पर न्यायालय ने एक माह का वेतन दण्ड स्वरूप जमा कराने का आदेश दिया था ।इस निर्णय के विरूद्ध पुलिस अधिकारी ने राजस्थान उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका सूर्यप्रकाश माथुर बनाम राजस्थान राज्य (1994 (2) डब्ल्यू एल एन 571) दायर की जिसके निर्णय में उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि हमारे विचार से पुलिस अधिकारी ने पुलिस अधिकारों की श्रेष्ठता व विशेषाधिकार प्रदर्शित करने के लिए उक्त आचरण किया है जिसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए। सम्पूर्ण देश में न्यायालयों की यह परम्परा रही है कि पुलिस केस डायरी को पुलिस का विशेषाधिकार प्रलेख समझा जावे जिसका अवलोकन करने के बाद लौटा दिया जाता है। उच्च न्यायालय ने निचले न्यायालय द्वारा दी गई सजा को यथावत रखा गया।
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