सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम भा.जी.बी. के सेवानिवृत अधिकारी संगठन के निर्णय दिनांक 12.02.08 में कहा है कि एक कानून में प्रयुक्त प्रत्येक शब्द उसके उद्देश्य एवं अभिप्राय से असर लेना चाहिए। इसलिए व्याख्या को उद्देश्य एवं अभिप्राय से असर लेना चाहिए। इसलिए व्याख्या में उद्देश्यपरकता का सिद्धान्त प्रयुक्त किया जाना चाहिए। एक प्रत्यायोजिती संविधि के उल्लंघन में कार्य नहीं कर सकता। संविधिक प्रावधानों द्वारा उसे न प्रत्यायोजित शक्तियों का उप प्रत्यायोजित अधिकारी प्रयोग नहीं कर सकता। यह मात्र विनियमों और अधिनियमों से ही मेल नहीं खाने चाहिए अपितु संसद के अन्य अधिनियमों से भी मेल खाने चाहिए।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने सेव द चिल्डेªन फण्ड यू.के. बनाम डॉ0 सुरेष चन्द्र शर्मा (आर.एल.डब्ल्यू. 2006(2) राज. 1433) में कहा है कि नियुक्ति पत्र जयपुर से जारी हुआ था। जयपुर में ही नियुक्ति हुई थी। अतएव प्रत्यर्थी याची को कार्य हेतुक का भाग जयपुर में उपलब्ध हुआ था।
दुनीचन्द एण्ड कं0 बनाम नारायण दास एण्ड कं0 (1947 17 ब्वउच ब्ंेमे 195 थ्ठ) के निर्णय में कहा गया है कि आनुशंगिक का अर्थ आकस्मिक व अकस्मात् सम्बन्ध से नहीं है। शक्तियों के संदर्भ में लागू करने के कानूनी अर्थ में इसका अर्थ जो कुछ अभिव्यक्त है के सहायक से है और उसके सम्बन्ध में निमित प्रकृति से है जो कि अभिव्यक्त रूप में दी गई मुख्य शक्ति के उचित प्रयोग करने, और आवश्यक दोनों अर्थों में है।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब राज्य बनाम मुस्तमा केसर जहां बेगम (एआईआर 1963 सु.को. 1604) में कहा है कि राजा हरिश्चन्द्र के प्रकरण के निर्णय का औचित्य यह लगता है कि प्रभावित पक्षकार को पंचाट का ज्ञान होना चाहिए। वास्तव में या रचनात्मक रूप में और छः माह की समयावधि उस ज्ञान की तिथि से प्रारम्भ होगी। अब ज्ञान का अर्थ मात्र इस तथ्य के ज्ञान से नहीं है कि पंचाट हो गया है। ज्ञान पंचाट की आवश्यक विषय वस्तु के सम्बन्ध में होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने रणजीत बनाम महाराष्ट्र राज्य (1965 एआईआर 881) में कहा है कि उप धारा (अश्ली ल पुस्तक )बेचना और बेचने के लिए कब्जे में रखना अपराध के लिए आवश्यक तत्व बनाती है। चूंकि बिक्री सम्पन्न हो गई है और अपीलार्थी विक्रेता है इसलिए इस मामले में यह आवश्यक अभिप्राय निकलता है। न्यायालय यह समझेगा कि यदि पुस्तक उसकी ओर से बेची गई तो वह दोशी है और बाद में यह पाया जावे कि यह अश्लील थी यदि वह यह स्थापित नहीं करता कि पुस्तक उसकी जानकारी या सहमति के बिना बेची गयी थी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यू इण्डिया एश्योरेन्स कम्पनी बनाम भारत संघ के निर्णय दिनांक 02.07.09 में स्पष्ट किया है कि जहां कार्य का भाग भी सम्पन्न हुआ हो वह वादी जो कि वाद का प्रमुख आधार है अपनी सुविधानुसार मंच का चयन कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने डॉ0 विजय लक्ष्मी साधो बनाम जगदीश के निर्णय दिनांक 05.01.01 में स्पष्ट किया है कि विद्वान एकल न्यायाधीश ने यह अनदेखा किया है कि संविधान के अनुच्छेद 225 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय द्वारा बनाये गये नियम मात्र प्रक्रिया के नियम है तथा वे सारभूत नियम नहीं बन जाते और वे नियम संविधान के अनुच्छेद 348 (2) के प्रावधानों के आशय को प्रभावित नहीं कर सकते। उच्च न्यायालय के नियम 2 (ख) की अनुपालना नहीं करने पर अधिनियम की धारा 86 (1) चुनाव याचिका को प्रभावित करेगा यह सही नहीं है। यह निर्धारित है यदि समान क्षेत्राधिकार वाली बैंच दूसरी बैंच भिन्न तर्क या अन्यथा के आधार पर असहमत है जो कि विधिप्रश्न है कि स्थिति में उपयुक्त यह है कि मामले को बड़ी बेंच को मुद्दे के समाधान हेतु रेफर किया जाय बजाय कि दो विरोधाभासी निर्णयों को संशय के लिए मुक्त छोड़ दिया जाय। कानून की निश्चितता का बलिदान देना ठीक नहीं है। न्यायिक अनुषासन न्यायिक प्रक्रिया का आधार कानूनी औचित्य से कम नहीं बनाता और इसका हर कीमत पर सम्मान होना चाहिए।
मद्रास उच्च न्यायालय ने बोमिडी बायन नायडू बनाम बोमिडी सूर्यनारायण (1912 23 एमएल जे 543) में कहा है कि मैं इस विचारण के पैरा 5 और 6 में दिये गये कारणों से निचले न्यायालयों द्वारा दिये गये निर्णयों को उलटता हूं तथा मामले को निचले अपीलीय न्यायालय द्वारा अपील के नये सिरे से निस्तारण के लिए रिमाण्ड करता हूं जिला मुंसिफ ने मुद्दों सं0 4 ता 5 में अन्तवर्लित प्रश्नों का निर्धारण नहीं किया है और निचले अपील न्यायालय ने भी सभी मुद्दों का विचारण नहीं किया है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रेमप्रकाश विरमानी बनाम राज्य सरकार (ए.आई.आर. 1971 इला 82) में स्पष्ट किया है कि चूंकि मेरे विचार से धारा 7एफ भू आंवटन से सम्बन्धित में अर्द्ध न्यायिक रूप में कार्य करने की आवश्यकता है ऐसे कारण जिनका उतर मैंने रिट में दिया है, राज्य सरकार अपने आदेश में कारण देने को बाध्य है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने सेव द चिल्डेªन फण्ड यू.के. बनाम डॉ0 सुरेष चन्द्र शर्मा (आर.एल.डब्ल्यू. 2006(2) राज. 1433) में कहा है कि नियुक्ति पत्र जयपुर से जारी हुआ था। जयपुर में ही नियुक्ति हुई थी। अतएव प्रत्यर्थी याची को कार्य हेतुक का भाग जयपुर में उपलब्ध हुआ था।
दुनीचन्द एण्ड कं0 बनाम नारायण दास एण्ड कं0 (1947 17 ब्वउच ब्ंेमे 195 थ्ठ) के निर्णय में कहा गया है कि आनुशंगिक का अर्थ आकस्मिक व अकस्मात् सम्बन्ध से नहीं है। शक्तियों के संदर्भ में लागू करने के कानूनी अर्थ में इसका अर्थ जो कुछ अभिव्यक्त है के सहायक से है और उसके सम्बन्ध में निमित प्रकृति से है जो कि अभिव्यक्त रूप में दी गई मुख्य शक्ति के उचित प्रयोग करने, और आवश्यक दोनों अर्थों में है।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब राज्य बनाम मुस्तमा केसर जहां बेगम (एआईआर 1963 सु.को. 1604) में कहा है कि राजा हरिश्चन्द्र के प्रकरण के निर्णय का औचित्य यह लगता है कि प्रभावित पक्षकार को पंचाट का ज्ञान होना चाहिए। वास्तव में या रचनात्मक रूप में और छः माह की समयावधि उस ज्ञान की तिथि से प्रारम्भ होगी। अब ज्ञान का अर्थ मात्र इस तथ्य के ज्ञान से नहीं है कि पंचाट हो गया है। ज्ञान पंचाट की आवश्यक विषय वस्तु के सम्बन्ध में होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने रणजीत बनाम महाराष्ट्र राज्य (1965 एआईआर 881) में कहा है कि उप धारा (अश्ली ल पुस्तक )बेचना और बेचने के लिए कब्जे में रखना अपराध के लिए आवश्यक तत्व बनाती है। चूंकि बिक्री सम्पन्न हो गई है और अपीलार्थी विक्रेता है इसलिए इस मामले में यह आवश्यक अभिप्राय निकलता है। न्यायालय यह समझेगा कि यदि पुस्तक उसकी ओर से बेची गई तो वह दोशी है और बाद में यह पाया जावे कि यह अश्लील थी यदि वह यह स्थापित नहीं करता कि पुस्तक उसकी जानकारी या सहमति के बिना बेची गयी थी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यू इण्डिया एश्योरेन्स कम्पनी बनाम भारत संघ के निर्णय दिनांक 02.07.09 में स्पष्ट किया है कि जहां कार्य का भाग भी सम्पन्न हुआ हो वह वादी जो कि वाद का प्रमुख आधार है अपनी सुविधानुसार मंच का चयन कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने डॉ0 विजय लक्ष्मी साधो बनाम जगदीश के निर्णय दिनांक 05.01.01 में स्पष्ट किया है कि विद्वान एकल न्यायाधीश ने यह अनदेखा किया है कि संविधान के अनुच्छेद 225 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय द्वारा बनाये गये नियम मात्र प्रक्रिया के नियम है तथा वे सारभूत नियम नहीं बन जाते और वे नियम संविधान के अनुच्छेद 348 (2) के प्रावधानों के आशय को प्रभावित नहीं कर सकते। उच्च न्यायालय के नियम 2 (ख) की अनुपालना नहीं करने पर अधिनियम की धारा 86 (1) चुनाव याचिका को प्रभावित करेगा यह सही नहीं है। यह निर्धारित है यदि समान क्षेत्राधिकार वाली बैंच दूसरी बैंच भिन्न तर्क या अन्यथा के आधार पर असहमत है जो कि विधिप्रश्न है कि स्थिति में उपयुक्त यह है कि मामले को बड़ी बेंच को मुद्दे के समाधान हेतु रेफर किया जाय बजाय कि दो विरोधाभासी निर्णयों को संशय के लिए मुक्त छोड़ दिया जाय। कानून की निश्चितता का बलिदान देना ठीक नहीं है। न्यायिक अनुषासन न्यायिक प्रक्रिया का आधार कानूनी औचित्य से कम नहीं बनाता और इसका हर कीमत पर सम्मान होना चाहिए।
मद्रास उच्च न्यायालय ने बोमिडी बायन नायडू बनाम बोमिडी सूर्यनारायण (1912 23 एमएल जे 543) में कहा है कि मैं इस विचारण के पैरा 5 और 6 में दिये गये कारणों से निचले न्यायालयों द्वारा दिये गये निर्णयों को उलटता हूं तथा मामले को निचले अपीलीय न्यायालय द्वारा अपील के नये सिरे से निस्तारण के लिए रिमाण्ड करता हूं जिला मुंसिफ ने मुद्दों सं0 4 ता 5 में अन्तवर्लित प्रश्नों का निर्धारण नहीं किया है और निचले अपील न्यायालय ने भी सभी मुद्दों का विचारण नहीं किया है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रेमप्रकाश विरमानी बनाम राज्य सरकार (ए.आई.आर. 1971 इला 82) में स्पष्ट किया है कि चूंकि मेरे विचार से धारा 7एफ भू आंवटन से सम्बन्धित में अर्द्ध न्यायिक रूप में कार्य करने की आवश्यकता है ऐसे कारण जिनका उतर मैंने रिट में दिया है, राज्य सरकार अपने आदेश में कारण देने को बाध्य है।
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