अपनों पे सितम, गैरों पे रहम। एक मुस्लिम महिला के प्रेमपाश के कैदी हिंदू राष्ट्रवाद के प्रवक्ता श्रीमान तरुण विजय का कच्चा चिट्ठा आखिरकार जनता के सामने आ ही गया। दिल्ली से लेकर भोपाल और यूरोप तक जिस शेहला मसूद के साथ रंगरेलियां मनाई गईं, वो शेहला मसूद किसके हाथों कत्ल हुई, ये सवाल तो बाद का है।
पहला और सबसे ख़ास सवाल है कि हिंदू राष्ट्रवाद का पहरुआ आखिर किसके मोहपाश में बंधा अपनी हिंदू बीवी और बच्चों को सड़क पर फेंकने को आमादा हो गया। जिस श्यामा प्रसाद मुखर्जी फाउंडेशन के निदेशक के तौर पर तरुण विजय ने बीजेपी में पारी शुरू की, उस फाउंडेशन के कार्यक्रमों के आयोजन का ठेका किसी स्वयंसेवक के द्वारा संचालित संगठन या संस्था को देने की बजाय शेहला मसूद की इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को ही तरुण विजय ने क्यों सौंपे रखा। पुलिस जांच में तमाम बातें बेपर्दा हो गई हैं।
मसलन, शेहला मसूद सांसद तरुण विजय के लेटर हेड का इस्तमाल धड़ल्ले से कर रही थी। यहां तक कि हस्ताक्षरित ब्लैंक लेटर हेड भी उसके पास से बरामद हुए हैं। शक इस बात को लेकर भी है कि तरुण विजय और शेहला मसूद ने मिलकर हाल ही में भोपाल के पॉश इलाके में 80 लाख रुपये कीमत की कोठी भी खरीदी थी। शायद दोनों ने भावी जिंदगी के लिए भोपाल में आशियाना तलाश लिया था लेकिन आशियाना सजने से पहले ही इसे किसी की नज़र लग गई।
दोनों के बीच मुलाक़ातों का सिलसिला काफी बरस पहले शुरु हुआ और बात शादी तक पहुंच रही थी, अपनी हिंदू पत्नी वंदना विजय को तलाक देने की तरुण विजय की तैयारी भी मुकम्मल थी, ये तमाम चौंकाने वाली बातें मीडिया के जरिए छनकर जनता तक पहुंच गई हैं। बीते तीन सालों से तरुण विजय के भ्रष्टाचार की ख़बरें लगातार मीडिया में सुर्खिया बनीं। ख़ास तौर पर जब आरएसएस ने उन्हें अपने मुखपत्र पांचजन्य के संपादक पद से विदा किया। तब लोगों को लगा कि तरुण विजय का सूर्य अस्त हो गया लेकिन दिल्ली की सियासत में गहरी पैठ रखने वाले तरुण विजय इतनी जल्दी हिम्मत हारने वाले नहीं थे। उन्होंने एक एक कर आरएसएस में अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाना शुरू किया। शुरूआत आरएसएस के उस प्रचारक से हुई जिसने तरुण विजय के खिलाफ आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत को जांच रिपोर्ट सौंपी थी।
ये जांच तरुण विजय द्वारा पांचजन्य के संपादक पद का दुरुपयोग कर करोड़ों रुपये का वारा न्यारा करने से संबंधित थी। इस बारे में मार्च 2008 में पंजाब केसरी, द स्टेट्समैन, इंडिया टूडे, आऊटलुक समेत तमाम अख़बारों में खबरें प्रकाशित हुई थीं । दरअसल ये खबरें उस जांच रिपोर्ट से छनकर आई थीं जिसमें आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक दिनेश चंद्र ने तरुण विजय के खिलाफ जांच की और आरोपों को सही पाया।
इस जांच में भीतर ही भीतर आरएसएस के पूर्व प्रवक्ता राम माधव, आर्गनाइज़र के पूर्व संपादक शेषाद्रिचारी, आरएसएस के दिल्ली के बड़े नेता बजरंग लाल गुप्ता, सूर्या इंडस्ट्री के मालिक जय प्रकाश, संतोष तनेजा ने सहयोग किया। ये सभी पांचजन्य के निदेशक मंडल का हिस्सा थे लिहाज़ा तरुण विजय के खिलाफ जांच हुई तो तरुण विजय ने इन सभी को निशाने पर लिया। और तरुण विजय को इस काम में मदद मिली, पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी से, जो जिन्ना प्रकरण के चलते संघ नेताओं से भन्नाए बैठे थे। संघ ने तरुण विजय को पैदल किया तो आडवाणी ने तरुण विजय को सहारा दिया हालांकि उन्हें इस बात की पूरी जानकारी थी कि तरुण विजय को भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत हटाया जा रहा है। क्या थे आरोप?
आरोप 1- तरुण विजय ने एनडीए सरकार में गृहमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी की नज़दीकी का लाभ उठाकर सिंधु दर्शन यात्रा का सरकारी बंदोबस्त अपने हाथ में लिया। करोड़ों रुपये का वारा-न्यारा इसी काम में हुआ। आज भी आरटीआई के तहत अगर कोई जानकारी मांगें तो इसका खुलासा मंत्रालयों से हो सकता है कि आख़िर सिंधु दर्शन यात्रा का आयोजन तरुण विजय को किसके हुक्म से मिला। आयोजन का दफ्तर पांचजन्य कार्यालय क्यों बनाया गया। आयोजन से जुड़े सारे दफ्तरी काम पांचजन्य, केशव कुंज के कर्मचारी करते रहे और तरुण विजय ने सारे कामों का फर्जी बिल-बाउचर लगाकर लाखों रुपये तो इसी में सरकार से भजा लिए। कई साल तक सिंधु दर्शन का घोटाला चला लेकिन किसी ने आवाज़ तक नहीं उठाई। यूपीए सरकार बनने तक सारा आयोजन तरुण विजय के हाथों में ही सिमटा रहा। बगैर आडवाणी की मर्जी के क्या ये संभव था।
आरोप 2- पांचजन्य के पते पर नचिकेता ट्रस्ट का गठन तरुण विजय ने किया। नचिकेता ट्रस्ट ने शुरुआती कई साल पत्रकारों को सम्मानित किया। इस ट्रस्ट में सुदर्शन से लेकर अटल बिहारी तक शामिल थे। इसके सचिव तरुण विजय थे। ट्रस्ट का कार्यालय पांचजन्य का दफ्तर था, इस ट्रस्ट को बीजेपी सरकारों और केंद्र सरकार के तमाम मंत्रालयों से विभिन्न प्रकाशनों के नाम पर करोड़ों रूपये के विज्ञापन मिले। इस पैसे का पूरा हिसाब तरुण विजय ने किसी को नहीं दिया। ये ट्रस्ट अब कहां चल रहा है किसी को खबर नहीं।
आरोप 3- एडीए सरकार के जमाने में पांचजन्य के दफ्तर से फर्जी प्रकाशनों का सिलसिला शुरू हुआ। प्रकाशन सिर्फ विज्ञापन जुटाने के लिए हुए। दस-बीस प्रतियां छपीं, विज्ञापन का चेक भुनाया, काम खत्म। पैसा तरुण विजय ने ठिकाने लगा दिया।
आरोप 4- देहरादून में आदिवासी बच्चों के लिए बीजेपी सरकार से अरबों रुपये की पचासों एकड़ जमीन हथिया ली। कहा गया कि आरएसएस का ट्रस्ट इस पर स्कूल खोलेगा। आदिवासी बच्चों के नाम पर स्कूल तो खुला लेकिन ट्रस्ट तरुण विजय का निजी था। आरएसएस के तो तोते उड़ गए...तरुण विजय की ये हरकत देखकर। आरएसएस के स्कूल के नाम पर करोड़ों रूपये इसमें भी बटोरे गए। सुषमा स्वराज ने राज्यसभा सांसद के कोष से पचास लाख रुपये दिए, अटल बिहारी वाजपेई ने प्रधानमंत्री कोष से 50 लाख रूपये दिए।
आरोप 5- 1991 में संपादक बनने के वक्त तरूण विजय की तनख्वाह थी मात्र 6000 रूपये, जो साल1998 में बढ़कर 10 हजार रूपये हुई और 2003 में 20हज़ार रूपये। 2008 में जब पद से हटाए गए तो तनख्वाह थी मात्र 25000 रूपए...यानी 16 साल में ज्यादा से ज्यादा सफेद कमाई हुई 25 से 30 लाख रुपये। लेकिन पद से हटते वक्त रोहिणी से लेकर ग्रेटर नोएडा और देहरादून तक संपत्ति इतनी कि थाह लगाना मुश्किल हो जाए। रोहिणी समेत कई जगहों पर मकान खरीदे गए और बाद में बेचकर पैसा भी भुना लिया गया।
आरोप 6- सबसे घिनौना आरोप था...पांचजन्य कार्यालय में शराब पीने और महिला कर्मी से अंतरंग संबंधों का। संपादक बनते वक्त 36 साल के तरूण विजय ने 18 साल की लड़की को अपना प्राइवेट सेक्रेट्री नियुक्त किया और वो लड़की बाद में इस कदर हावी हुई कि जिसने भी तरुण विजय को समझाने की कोशिश की या बात संघ के प्रचारकों तक पहुंचाई, पांचजन्य से उन सभी पत्रकारों का बोरिया-बिस्तर उठ गया। अखबार रद्दी में भले ही बदलता चला गया लेकिन किसी ने इसकी सुध लेने की जरूरत नहीं समझी। अपनी पत्नी वंदना विजय से तरुण विजय के संबंधों का बिगाड़ भी इसी प्राइवेट सेक्रेट्री के चलते ही शुरू हुआ, जिसमें शेहला मसूद का चेप्टर भी बाद में शामिल हो गया। वैसे इस फेहरिस्त में अभी नाम कई और हैं जिसका खुलासा आने वाले वक्त में होगा।
2007 और साल 2008 में जाते जाते तरुण विजय पांचजन्य में घोटाला करते गए। आरएसएस ने साल 2006 को सामाजिक समरसता वर्ष घोषित किया तो तरुण विजय ने रानी झांसी रोड के सिंडिकेट बैंक में समरसता के सूत्र ग्रंथ नाम से बैंक एकाउंट खोलवा दिया। क्या किसी किताब के नाम से अकाउंट खुल सकता है? लेकिन इस भी सच कर दिखाया घोटालगुरु ने, इसके लिए रातों रात फर्जी संस्था 'समरसता के सूत्र' का गठन हुआ, रजिस्ट्रेशन तक कराया गया, कुछ चेले-चपाटे जिसमें प्राइवेट सेक्रेट्री शामिल थी, से हस्ताक्षर कराए गए, और बीजेपी की राज्य सरकारों से समरसता के सूत्र ग्रंथ के नाम पर विज्ञापन मद में चंदा बटोरा गया। ईमानदार मुख्यमंत्री नरेद्र मोदी तक ने इसमें अपनी ओर से 18 लाख रूपये का सहयोग दिया, बाकियों ने कितना दिया होगा, अंदाज़ा लग सकता है जो रबर स्टांप की तरह आए और चलता किए गए...जैसे मध्य प्रदेश में बाबू लाल गौर। गौर ने तो तरुण विजय को अलग से स्मारिका के लिए लाखों रूपये का भुगतान भी कराया।
आरएसएस प्रचारक दिनेश चंद्र ने इन सभी बातों की जांच की और मय दस्तावेज इन्हें आरएसएस के केंद्रीय नेतृत्व को थमा दिया। माहौल बिगड़ता देख, तरुण विजय की छुट्टी तो आरएसएस ने कर दी लेकिन ताज्जुब की बात देखिए....आडवाणी और सुषमा स्वराज ने तरुण विजय को राज्यसभा में पहुंचा दिया। जबकि इन सभी को आरएसएस नेतृत्व ने तरुण विजय के घोटालों की जानकारी दे दी थी...यहां तक कि शेहला मसूद के साथ तरुण विजय की नज़दीकियां भी बहुत पहले इन नेताओं को पता लग चुकी थीं लेकिन विचारधारा के नाम पर गंदगी को पाल-पोसकर बड़ा करने में महारथी बीजेपी नेताओं ने किसी की नहीं सुनी। आर्गनाइज़र के संपादक शेषाद्रिचारी ने तरुण विजय को राज्यसभा में भेजने के फैसले पर खुला विरोध किया। अध्यक्ष को चिट्ठी तक लिख डाली, उत्तराखंड के तमाम नेताओं ने विरोध दर्ज कराया लेकिन जीत तरुण विजय की हुई क्योंकि आडवाणी का आशिर्वाद जो हासिल था।
बड़ा सवाल है कि ये हो क्या रहा है भगवा परिवार में। इसके पूर्व संपादक का क्या यही असल चरित्र है जो सत्ता के साथ इतना मतवाला हो गया है कि ये पहले किसी लड़की की आबरू से खेलता है फिर उसे ठिकाने लगा दिया जाता है। अब ये शेहला मसूद के हत्यारों के लिए फांसी की सजा मांग रहा है लेकिन कब? हत्या के 15 दिनों तक इसे इस बात की याद नहीं आई कि उसकी एक अंतरंग मित्र का क़त्ल हो गया है, फांसी की सजा तब मांगी गई जब आरोपों के छींटे मीडिया के जरिए गर्दन तक पहुंच गए। पत्नी वंदना विजय बीते डेढ साल से चीख-चीखकर कह रही है कि राष्ट्रवाद के इस पहरुए ने उसे छोड़ दिया है और सांसद के सरकारी बंगले में कोई परायी महिला उसके साथ रहने आ गई है। बीजेपी नेता क्यों चुप्पी साधे रहे। आखिर वो महिला कौन थी, तरुण विजय का उससे क्या संबंध था। जिंदगी भर संघ का गीत गाने वाले तरुण विजय को क्या पुरूष मित्र कम थे जो महिला मित्र की जरूरत पड़ गई। वक्त चिंतन और आत्ममंथन का है, बीजेपी के लिए भी और आरएसएस के लिए भी। ऐसे व्यभिचारी चरित्र वाले शख्स को और कब तक बर्दाश्त करेंगे?
Friday, 02 September 2011 10:22 राम कुमारभड़ास4मीडिया - लाइफस्टाइल
राम कुमार, दिल्ली! स्त्रोत/साभार : bhadas4media!
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