आत्मीय मित्र समाधान सिद्ध होते हैं।
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मानव जीवन अपने आप में कठिन से कठिन परीक्षा है। जिसमें अनेक बार व्यक्ति को अनचाहे और अपवित्र समझोते करने होते/पड़ते हैं। दिल में बसने वाले और दिमांग में उथल-पुथल मचाने वाले। दो प्रकार के लोग इस जीवन में अपना-अपना विशेष महत्व रखते हैं। फिर भी इस बात को स्वीकारना होगा कि आज के समाज ने जीवन को अनेक क्षेत्रों में बेहद सरल और आसान बनाया है, लेकिन समाज ने रिश्तों को और रिश्तों ने जीवन को अत्यधिक कठिन बना दिया है। अनेक बार लगता है, समाज अत्यधिक जरूरी है और अनेक बार लगता है कि असली दिक्कत यह समाज का तानाबाना ही है। असंवेदनशील, चालाक और व्यावसायिक मानसिकता के लोगों पर इसका कोई असर नहीं होता, लेकिन रिश्तों का अंतर्द्वंद्व संवेदनशील मनुष्य को न जीने देता है और न मरने देता है। आदिकाल में जब कभी व्यक्ति अत्यधिक परेशानियों और तनावों का सामना कर रहा होगा, सम्भवत: तब हालातों से निपटने या लड़ने के लिए ही उसने आत्मीय मित्रों की खोज की होगी या जिस किसी ने उन हालातों में मदद की होगी, मित्र बन गए होंगे। क्योंकि वर्तमान समाज के हालात इस बात के गवाह हैं कि ऐसे विकट हालातों में मित्र ही जीवन को जीने योग्य बनाते हैं। रिश्ते भी सामाजिक जीवन की अनिवार्यता बन चुके हैं, यद्यपि आज के दौर में रिश्ते ही तनाव, दुःख और अनेक बीमारियों के कारण बन गए हैं। रिश्ते अनेक बार नासूर बन जाते हैं और जीवनभर रिसते रहते हैं। रिश्तों के कारण सामाजिक और असामाजिक ये दो शब्द जब कभी व्यवहार और जीवन में टकराते हैं, व्यक्ति बुरी तरह से कराह उठता है, टूट जाता है। ऐसे वक्त में मित्र ही असली और सच्चे सहारा बनते हैं। मित्र ही अमृत की बरसा करते हैं। एक समय था, जब मनुष्य रिश्तेदार और सम्बंधियों तक ही सीमित हुआ करता था, लेकिन आधुनिक युग में परिभाषाएं बदल गयी हैं। व्यक्ति का कार्यक्षेत्र बढ़ गया है। परिवार और रिश्तों से बहुत दूर उसे नये क्षेत्रों में नयी-नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जिनमें परिवार और रिश्तों तक सिमटे लोग कोई सहयोग नहीं कर पाते। इसके अलावा आधुनिक युग की भागमभाग की जिंदगी में व्यक्ति जब तनाव और विषाद के दौर से गुजरता है, जब रिश्तों के रिसते हुए दर्द से मुक़ाबिल होता है तो ऐसे समय में उसे भावनात्मक उपचार की जरूरत होती, जिससे कि उसका आत्मबल और आत्मविश्वास कमजोर नहीं होने पाये। ऐसे नाजुक वक्त पर अनेक रिश्तेदार और खोखले लोग केवल सहानुभूतियों की बरसात करते हैं, जबकि इस अवस्था में सच्चे और आत्मीय मित्र ही समाधान सिद्ध होते हैं। ऐसे मित्र हालातों से सफलतापूर्वक लड़ने और जीवन को जीने योग्य बनाने में अद्भुत और अकल्पनीय योगदान करते हैं। जिन लोगों के जीवन में ऐसे सच्चे मित्र हों, उन्हें सौभाग्यशाली कहा जा सकता है। जिस किसी के जीवन में ऐसे मित्र हैं, समझें कि वे ही वास्तविक धनवान हैं। ऐसे सच्चे मित्र सभी के जीवन में हों, मेरी यही कामना है। लेकिन इस मित्रता के रिश्ते के प्रति ईमानदारी और सच्चाई बहुत जरूरी है। जरा सी भ्रान्ति अनेक बार मुश्किल खड़ी कर सकती है, यद्यपि निस्वार्थ, सच्चे और गहरे मित्रता के रिश्तों की मजबूत नींव को हिलाना आसान नहीं होता।
---निरंकुश आवाज---जारी----
1- "भय और आलस्य जीवन के कैंसर हैं। कदम-कदम पर जिनका पोषण करते हैं, हमारे अपने लोग।"
2- "क्या हृदय का ऑपरेशन किसी लुहार से करवाना उचित होगा? आपको मेरा यह सवाल मूर्खतापूर्ण लग रहा होगा। लेकिन भारत में इससे भी खतरनाक मूर्खताएं समाज में भी बदस्तूर जारी हैं।"
उक्त विषयों पर-विस्तार से फिर कभी।
जय भारत। जय संविधान।
नर-नारी सब एक समान।।
लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
9875066111/02.03.2016/ 06.30 AM
@—लेखक का संक्षिप्त परिचय : राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोशिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक), पूर्व रा. महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ और दाम्पत्य विवाद सलाहकार।
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