Sunday, October 16, 2011

व्यवस्था इंसान के लिये या इंसान व्यवस्था के लिये?



डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

पूर्वी राजस्थान के करौली जिले में गत 4 अक्टूबर को एक तीन वर्षीय बीमार बालक की इस कारण से असमय मौत हो गयी, क्योंकि उस बालक का उपचार करके उसका जीवन बचाने के बजाय कार्यरत डॉक्टर जीएन अग्रवाल ने अस्पताल के लियमों की पालना करवाने को अधिक प्राथमिकता प्रदान की|


सरकारी अस्पताल में उपचार करवाने के लिये आने वाले रोगियों का व्यवस्थित तरीके से उपचार करने के पवित्र उद्देश्य से यह व्यवस्था की हुई है कि रोगी को डॉक्टर को दिखाने से पूर्व एक प्रवेश पर्ची बनवानी होती और तब लाइन में खड़े रहकर रोगी को उपचार करवाना होता है| स्वाभाविक है कि डॉक्टर के कक्ष के समक्ष लाइन में खड़े होने से पूर्व रोगी या उसके परिजनों को पहले पर्ची बनवाने के लिये लाइन में खड़ा होना पड़ता है| ये एक प्रक्रियागत ऐसी व्यवस्था है, जिसका उल्लंघन करने पर किसी भी डॉक्टर को सजा नहीं हो सकती है| इसलिये आपात स्थिति में और रोगी की हालत गम्भीर होने पर डॉक्टर रोगी को बिना पर्ची भी देख सकता है| क्योंकि इस बात का निर्णय करने की योग्यता भी डॉक्टर के पास ही होती है कि किस रोगी को तत्काल उपचार की जरूरत है?

इस सबके उपरान्त भी 3 वर्षीय बीमार बालक के परिजन रोते और चीखते रहे कि पहले उनके बच्चे को बिना पर्ची देख लिया जावे, क्योंकि बच्चे की हालत खराब हो चुकी है, लेकिन डॉक्टर अग्रवाल को बच्चे के जीवन को बचाने के बजाय, पर्ची लेकर उपचार करवाने की व्यवस्था को बचाने की अधिक चिन्ता थी| इसलिये उसने बिना पर्ची के बच्चे का उपचार तो दूर, उसे देखना तक जरूरी नहीं समझा| जब तक बीमार के परिजन पर्ची बनवाकर लाये तब तक बच्चे के प्राण पखेरू उड़ चुके है| परिणामस्वरूप वहॉं हंगामा होना ही था| जिसे शान्त करने के लिये कलेक्टर ने डॉक्टर को एपीओ कर दिया| अर्थात् डॉक्टर को बिना कार्य किये ही तक तक वेतन मिलता रहेगा, जब तक कि उसकी अन्यत्र पोस्टिंग नहीं हो जाती है| समझ में नहीं आता कि यह दण्ड है या पुरस्कार| राजस्थान में जब भी कोई लोक सेवक, विशेषकर अफसर अपराध करते हुए पकड़ा जाता है तो उसे एपीओ (अवेटिंग फॉर पोस्टिंग आर्डर-पदस्थापना आदेश की प्रतीक्षा में) कर दिया जाता है| कुछ दिनों बाद फिर से कोई नई घटना या घौटाले की खबरें सुर्खियों में आती है और जनता सबकुछ भूल जाती है| एपीओ किये गये अफसर को किसी अच्छी कमाई की जगह पर पोस्टिंग दे दी जाती है| जबकि ऐसे अपराधियों को तत्काल निलम्बित करके विभागीय नियमों के तहत अनुशासनिक कार्यवाही करने के साथ-साथ, ऐसे लोक सेवकों के आपराधिक  कृत्य के अनुसार भारतीय दण्ड संहिता के तहत भी कठोर कार्यवाही की जानी चाहिये|

कानूनी संरक्षण नहीं मिलने के कारण व पुलिस की लापरवाही से दहेज लोभी पति ने अपनी ही पत्नी को बेचने हेतु बंधक बनाया|

उधर पश्‍चिमी राजस्थान में ही 4 अक्टूबर को अजमेर जिले में एक वधु के घरवालों द्वारा दहेज की पूर्ति नहीं किये जाने के कारण ससुरालियों के सहयोग से पति ने न मात्र अपनी पत्नी को बन्धक बनाया, बल्कि उसे अन्य पुरुष को बेचने की भी कोशिश की गयी| सबसे बड़ा आश्‍चर्य तो ये है कि हिन्दुओं में प्रचलित दहेज प्रथा अब इस्लाम के अनुयाईयों में भी पैर पसारने लगी है| अजमेर जिले की तहसील ब्यावर के सदर थाना क्षेत्र की गुंदा का बाला निवासी पीड़िता ने रिपोर्ट पेश कर 13 सितंबर को मामला दर्ज करवाया था, लेकिन आरोपी आजाद काठात, मुल्तान कमरुद्दीन सहित अन्य के खिलाफ पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की जिसके चलते आरोपियों ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाने की हिमाकत करने वाली बेवश औरत के साल क्रूरतापूर्ण कृत्य करने में कोई डर महसूस नहीं किया|

पुलिस को संवेदनशील मामलों में रिश्‍वत या बखशीस की उम्मीद छोड़कर तत्काल कानूनी कार्यवाही कर, अपराधियों को बड़े अपराध करने से रोकने के उपाय करने पर ध्यान देना चाहिये| तब ही इस प्रकार के क्रूर अपराधों की रोकथाम सम्भव है|

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